- सिंधु घाटी सभ्यता – प्राचीन भारत की पहली सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता थी। सिंधु घाटी सभ्यता का पहला स्थल पश्चिमी पंजाब के हड़प्पा नामक स्थान पर खोजा गया था। इसलिए इसी के नाम पर इस संस्कृति का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया यह सभ्यता अनिवार्यतः सिंधु घाटी तक सीमित थी अत: इसे सिंधु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया।
- सिंधु घाटी सभ्यता का सर्वप्रथम उत्खनन हड़प्पा नामक स्थान पर 1921 ई. में हुआ। इसी स्थान के नाम पर इसका नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया।
- सबसे पहले 1921 ई. मे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देशन में रायबहादुर दयाराम साहनी ने पंजाब के मोंटेगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित हडप्पा का अनवेषण किया। सिंधु घाटी सभ्यता का नाम सर्वप्रथम जॉन मार्शल ने दिया पुरातात्विक खुदाइयों से पता चला है कि यह सभ्यता विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी, जिसमें न सिर्फ भारत के आधुनिक राज्य जैसे – राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र प्रदेश सम्मिलित थे। बल्कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ भाग शामिल थे।
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सिंधु घाटी सभ्यता का काल निर्धारण –
- विद्वान निर्धारित तिथि
- जॉन मार्शल 3250 ई.पू. से 2750 ई.पू.
- माधोस्वरूप वत्स 3500 ई.पू. से 2700 ई.पू.
- अर्नेस्ट मैके 2800 ई.पू. से 2500 ई.पू.
- मार्टीमर हवीलर 2500 ई.पू. से 1500 ई.पू.
- फेयर सर्विस 2000 ई.पू. से 1500 ई.पू.
- सी.जे.गैड 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू.
- डेल्स 2900 ई.पू. से 1900 ई.पू.
- आल्चिन 2150 ई.पू. से 1750 ई.पू.
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सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार –
- सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत में पंजाब, बलूचिस्तान, सिन्ध, गुजरात, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, हरियाणा पश्चिमी उतर प्रदेश के भागों में पाये जा चुके है।
- सिंधु घाटी सभ्यता का भारतीय सीमा में सर्वाधिक उत्तरी पुरास्थल माँडा (जम्मू की चेनाब नदी के तट पर) दक्षिणी छोर दैमाबाद (अहमदनगर- महाराष्ट्र) हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता का सर्वाधिक उत्तरी छोर मुडीगाक एवं सोर्तुगई है। ये दोनों स्थल हिन्दुकुश पर्वत के उत्तर मे स्थित है।
- सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुतकागेंडोर ब्लूचिस्तान) और पूर्वी पुरास्थल आलमगीर पुर है।
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सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता –
- सिंधु घाटी सभ्यता मे कम से कम 4 प्रजातियाँ थी 1.प्रोटो ऑस्ट्रेलाइड, 2.भूमध्यसागरीय, 3.अल्पाइन, 4.मंगोलायड
- डॉ लक्ष्मण स्वरूप व रामचन्द्र के अनुसार सिन्धु सभ्यता के निर्माता आर्य थे।
- विद्वान राखलदास बनर्जी के अनुसार सिन्धु सभ्यता के निर्माता द्रविड थे।
- विद्वान् गार्डन चाइल्ड हीलर क्रेमर के अनुसार सिन्धु के निर्माता सुमेरियन थे
- अमलानन्द घोष व धर्मपाल अग्रवाल ने सिन्धु सभ्यता के निर्माता सोथी संस्कृति को माना है।
- विद्वान् फेयर सर्विस व रोमिला थापर ने सिन्धु सभ्यता के निर्माता ग्रामीण संस्कृति को माना है
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सिंधु घाटी सभ्यता के मुख्य स्थल –
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हड़प्पा सभ्यता –
- पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के पुराने मोंटेगोमरी जिले में रावी नदी के बायें तट पर यह पुरास्थल स्थित है।
- हङप्पा का सर्वेक्षण 1921 मे दयाराम साहनी ने किया व 1923 में इसका नियमित उत्खनन हुआ । व 1926 ई. में माधोस्वरूप वत्स 1946 ई. मे मार्टिमर हीलर ने व्यापक स्तर पर उत्खनन कराया।
- हडप्पा से मिले 6-6 की दो पंक्तियो मे निर्मित कुल बारह कक्षों वाले एक अन्नागार का अवशेष प्राप्त हुआ जिसका क्षेत्रफल 2745 वर्ग मी. से अधिक है। प्रत्येक अन्नागार 50×20 फीट का है।
- हडप्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा कब्रिस्तान स्थित है जिसे समाधि R-37 नाम दिया।
- अभिलेख युक्त मुहरे सर्वाधिक हङप्पा से मिली ।
- हड़प्पा के दो टीलों मे पूर्वी टीले को नगर टीला तथा पश्चिम टीले को दुर्ग टीला कहा जाता है। जिन्हें हीलर ने माउण्ट ए बी की संज्ञा दी
- हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त कुछ महत्वपूर्ण अवशेष –
- एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे वाली मृण्मूर्ति, पीतल की इका गाड़ी, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे, गेहूं व जौ के दानो के अवशेष एक मुद्रा पर पैर से साँप दबाये गरुड का चित्रण सबसे अधिक अभिलेख युक्त मुहरें हड़प्पा से प्राप्त हुई व सर्वाधिक मुहरे मोहनजोदड़ों से मिली।
- हडप्पा से तांबे से बनी मानव आकृति भी प्राप्त हुई।
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मोहनजोदड़ो –
- मोहनजोदड़ो को दुनिया का सबसे पुराना नियोजित व उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह हङप्पा सभ्यता का परिपक्व शहर है।
- मोहनजोदड़ो का सिन्धी भाषा मे शाब्दिक अर्थ है। मृतकों का टीला
- मोहनजोदड़ो को दक्षिण एशिया मे बसे सबसे पुराना शहर माना जाता है। इस शहर को व्यवस्थित ढंग से बनाया गया था।
- मोहनजोदड़ो की खोज – 1922 में राखालदास बनर्जी ने की जो पुरातत्व सर्वेक्षण के सदस्य थे। यह सिन्ध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्थित है।
- मोहनजोदड़ो की विशेषता – खोज से पता चलता है कि यहाँ के लोग गणित का भी ज्ञान रखते थे। क्योकि जो ईँट उस समय अलग-अलग शहरो में उपयोग की गई वे सब एक ही वजन व साइज की थी।
- मोहनजोदड़ो से किसी भी कब्रिस्तान के साक्ष्य प्राप्त नही हुए। सिन्धी भाषा में मोहन जोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है मृतकों का टीला
- मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। जिसका जलाशय दुर्ग के टीले मे है। यह 11.88 मी. लम्बा 7.01 मी चौडा व 2.43 मी. गहरा है।
- मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत इसका विशाल अन्नागार है यह 45.71 मी. लम्बा और 15.23 मी. चौड़ा है।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्य अवशेष –
मोहनजोदड़ो से हमे कांसे की नृत्यरत नारी की मूर्ति व पुजारी की मूर्ति प्राप्त हुई। व मोहनजोदड़ो से मुद्रा पर पशुपतिनाथ शिव की मूर्ति मिली। - मोहनजोदड़ो से सूती कपड़े व धागे के साक्ष्य मिले, गीली मिट्टी पर भी कपड़े के साक्ष्य मिले व चांदी के बर्तन में कपड़े के अवशेष मिले।
- घोड़े के दाँत के अवशेष के लिए मोहनजोदडो ही जाना जाता है। सबसे अधिक मुहरें मोहनजोदड़ो से मिली।
- मोहनजोदडो शहर में रहने वाले लोगो ने सार्वभौमिक रूप से पूरी योजना के साथ मोहनजोदडो शहर की स्थापना की थी उत्खनन से मिले साक्ष्यो के आधार पर कहा जा सकता है कि यहाँ के निवासी योजना बनाने व भवन निर्माण मे निपुण थे।
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चन्हुदड़ो –
- यह स्थल पाकिस्तान के सिंध में मोहनजोदडो से 130 कि.मी. दक्षिण में स्थित है।
- चन्हुदड़ो की खोज – इस स्थल की सर्वप्रथम खोज 1931 ई.में एम. जी. मजूमदार ने कि 1935 ई. में इसका सर्वप्रथम उत्खनन मैके ने किया।
- चन्हूदड़ो की विशेषता –
चन्हूदड़ो से प्राक हडप्पा संस्कृति जिसे झुकर या झांगर संस्कृति कहते है के अवशेष मिले। - हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता मे एक मात्र यह पुरास्थल है जिससे वक्राकार ईंटों के साक्ष्य मिले।
- यह स्थल सामग्री निर्माण की गतिविधियों का महत्वपूर्ण केंद्र था यहाँ के घरों से खोजकर्ताओं को बड़ी मात्रा मे विभिन्न प्रकार का कच्चा माल मिला जिनमे अगेट यानी मूल्यवान पत्थर, कार्नेलियन यानी इन्द्रगोप मणि, क्रिस्टल आदि।
- चन्हूदड़ो से केवल एक ही टीले की संरचना मिली है इसलिए चन्हूदड़ो को सिन्धु घाटी सभ्यता का बिना दुर्ग का एकमात्र सिन्धु नगर भी कहते है।
- चन्हूदड़ो से हमे सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री भी मिली जैसे – लिपिस्टिक, स्याही की दावत, बैल गाडी व इक्का गाडी
चन्हूदड़ो से ही हमें मनके बनाने के कारखाने की प्राप्ती हुई - चन्हूदड़ो से प्राप्त निम्न अवशेष – बिल्ली का पीछा करते हुऐ कुते के पद चिन्ह, अलंकृत हाथी के खिलौने।
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लोथल –
- प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों मे से बहुत ही महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर है।
- लगभग 2400 ई.पू. पुराना यह शहर भारत के राज्य गुजरात के भाल क्षेत्र मे स्थित है।
- लोथल प्राचीन काल में एक फलता-फूलता व्यापार केन्द्र था जहाँ से मोतियों, रत्नों और व गहनों का व्यापार पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका तक किया जाता था।
- लोथल की खोज – अहमदाबाद जिले के सरागवाला ग्राम से 80 कि.मी. दक्षिण में भोगवा नदी के तट पर स्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज डॉ. एस. आर. राव ने 1957 में की थी।
- लोथल से प्राप्त अवशेष – लोथल सिन्धु घाटी सभ्यता काल में सामुद्रिक व्यापारिक गतिविधियो का केन्द्र था क्योंकि यहाँ से हमें फारस की मुद्रा या सील व पक्के रंग मे रंगे हुए पात्र प्राप्त हुये।
- लोथल की सबसे बड़ी उपलब्धि जहाजों की गोदी है। यह पूर्वी खण्ड में पक्की ईटों का एक तालाब जैसा घेरा था।
- लोथल से प्राप्त अवशेषो से ज्ञात होता है कि यहाँ के लोग तोल, माप से भी परिचित थे क्योंकि यहाँ से हमे मुहरें, बाट एवं माप के साक्ष्य मिले।
- यहाँ से फारस की मुहर, घोड़े की लघु मृणमूर्ति, चावल व बाजरे के साक्ष्य मिले।
- लोथल औद्योगिक रूप से भी उन्नत अवस्था में था यहाँ से शंख का कार्य करने वाले दस्तकारों व ताम्रकर्मियों के कारखाने मिले।
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कालीबंगा –
- कालीबंगा एक छोटा नगर था यहाँ एक दुर्ग की प्राप्ति हुई। प्राचीन द्रषद्वती व सरस्वती नदी घाटी वर्तमान मे घग्गर नदी का क्षेत्र में सैन्धव सभ्यता से भी प्राचीन कालीबंगा की सभ्यता पल्लवित हुई।
- कालीबंगा की खोज – राजस्थान के हनुमानगढ़: जिले में स्थित कालीबंगा की खोज अमलानन्द घोष 1953 ई. में की व 1961 ई. में बी.के.थापर व बी.बी.लाल ने कालीबंगा में उत्खनन कार्य कराया।
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कालीबंगा की विशेषता –
कालीबंगा में प्राक सैन्धव संस्कृति की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है कि यहाँ से हमें जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले।
- कालीबंगा से हवन कुण्ड या अग्नि कुण्ड के साक्ष्य भी मिले।
- कालीबंगा में शवों की अंत्योष्टि के लिए तीन विधियों अपनाई गई – पूर्ण समाधिकरण, आंशिक समाधिकरण व दाह संस्कार
- हड़प्पा कालीन लिपि के समान यहाँ से हमे सेलखड़ी की मुहरें व मिट्टी की छोटी मुहरें प्राप्त हुई।
- कालीबंगा के घर कच्ची ईंटो के बने थे व इनमें कोई स्पष्ट घरेलू या शहरी जल निकास प्रणाली नहीं थी।
- कालीबंगा से मिले प्रमुख अवशेष – कालीबंगा के अधिकांश घरों मे अपने कुएं थे
- कालीबंगा से मिट्टी की काले रंग की चूड़ियाँ प्राप्त हुई इस कारण इसका नाम कालीबंगा रखा गया
- कालीबंगा से बेलनाकार मुहर, फर्श मे अंलकृत इंटों का प्रयोग, जुते हुए खेत के साक्ष्य, ऊँट की अस्थियाँ, खिलौना गाड़ी व पहिये आदि मिले।
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बनवाली –
बनवाली सिन्धु घाटी सभ्यता का एक भारतीय राज्य हरियाणा के जिले स्थित एक पुरातत्व स्थल है। यह कालीबंगा से 120 Km तथा फतेहाबाद से 16 km दूर है।
- बनवाली की खोज –
- हरियाणा के हिसार जिले में स्थित इस पुरास्थल मे की खोज रविन्द्र सिंह विष्ट ने 1973 ईस्वी में की
- बनवाली की विशेषता –
इसमें भी कालीबंगा की तरह दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के दर्शन होते हैं 1.प्राक हड़प्पा व 2.हडप्पा कालीन - बनवाली में जल निकास प्रणाली का अभाव था जो सिन्धु सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता थी।
- बनवाली से मिले अवशेष –
- बनवाली से खिलौने के रूप मे हल की आकृति प्राप्त हुई।
- बनवाली से जौ के अवशेष व तिल व सरसो के ढेर मिले ।
- मातृदेवी की लघुमृणमूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन व ताँबे के बाणाग्र मिले।
- बनवाली से सेलखडी एवं पकाई मिट्टी की मुहरे मिली जिन पर सैन्धव लिपि है
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सुरकोटदा –
- सुरकोटदा एक महत्वपूर्ण प्राचीर युक्त सिन्धु कालीन महत्वपूर्ण बस्ती है।
- सुरकोटदा की खोज – गुजरात के कच्छ जिले में स्थित इस स्थल की खोज सर्वप्रथम जगपति जोशी ने 1964 मे की।
- सुरकोटदा की विशेषता – इस स्थल के अंतिम स्तर पर घोड़े की अस्थियों मिली हैं जो किसी भी अन्य हड़प्पा कालीन स्थल से प्राप्त नहीं हुई है
- सुरकोटदा का स्थल सैन्धव संस्कृति के पतन काल को दर्शाता हुई है।
- सुरकोटदा से मिले अवशेष सुरकोटदा से घोड़े की अस्थियाँ- व एक विशेष प्रकार का कब्रगाह मिला।
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रंगपुर –
- गुजरात के काठियावाड प्रायद्वीप मे स्थित इस स्थल से सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।
- रंगपुर की खोज – यह स्थल अहमदाबाद जिले में स्थित है। इसकी खोज 1931 ई. मे एम.एस.वत्स व 1953 ई. में एस.आर.राव ने की।
- रंगपुर की विशेषता –
- रंगपुर व प्रभास पत्तन (सोमनाथ) सिन्धु घाटी सभ्यता के औरस पुत्र है। अत: रंगपुर मे सैन्धव सभ्यता के उत्तरकालीन अवशेष मिले है।
- रंगपुर से धान की भूसी के ढेर, कच्ची ईटों के दुर्गे, नालियां मृदभाण्ड व पत्थर के फलक मिले है।
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कोटदीजी –
- कोटदीजी का प्राचीन स्थल सिन्धु घाटी सभ्यता का अग्रदूत था। कोटदीजी आधुनिक पाकिस्तान के खैरपुर नामक स्थान पर स्थित प्राचीन सैन्धव सभ्यता का एक केन्द्र था।
- कोटदीजी की खोज – सर्वप्रथम इसकी खोज धुर्ये ने 1935 में की इसकी नियमित खुदाई 1953 ई. में फजल अहमद खान द्वारा सम्पन्न करायी गयी।
- कोटदीजी की विशेषता –
- इस बस्ती के चारो तरफ पत्थर से बनी दीवार थी जो लगभग 3000 ई.पू. की प्रतीत होती है।
- कोटदीजी मे घर बनाने मे पाषाण का प्रयोग किया जाता था। यह माना जाता है कि पाषाण युगीन सभ्यता का अंत यही पर हुआ।
- कोटदीजी के विस्तृत स्तर में कांस्य की चपटे फलक वाली कुल्हाडी, तीराग्र, दोहरी व इकहरी चूड़ियाँ आदि वस्तुएँ मिली।
- कोटदीजी के इन स्तरों मे जो संस्कृति मिली वह थोडे बहुत परिवर्तन के साथ सैंधव सभ्यता मे चलती रही।
- कोटदीजी से मिले अवशेष – कांस्य की चूडियाँ, धातु के उपकरण, हथियार व बाणाग्र
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धौलावीरा –
- सिन्धु सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक धौलावीरा है। इसमे इतिहासकारों की आशा से अधिक अवशेष मिले है।
- खौलावीरा की खोज – धौलावीरा गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तहसील मे स्थित है। इसकी खोज 1967-68 ई. मे डॉ. जगपति जोशी ने की। व इसका व्यापक उत्खनन रविन्द्र सिंह विष्ट ने (1990-91) मे किया
- धौलावीरा की विशेषता –
- अन्य हड़प्पा कालीन नगर दो भागो मे विभाजित थे परन्तु धोलावीरा तीन मुख्य भागो मे विभाजित किया, जिनमे 2 भाग आयताकार दुर्गबन्दी मे पूरी तरह सुरक्षित थे, दुर्ग भाग में अतिविशिष्ट लोगों के निवास रहे होगे व निचला नगर आम जनो के लिए रहा होगा
- धोलावीरा नगर से हमे खेल की के स्टेडियम 283*47 के अवशेष मिले व सूचना पट्ट व साइन बोर्ड के साक्ष्य मिले
यहाँ से विभिन्न – प्रकार के जलाशय मिले है जो एक जल संग्रहण व्यवस्था का चित्र प्रस्तुत करते है जिनमे बांध निर्माण व नहर प्रणाली के साक्ष्य मिले। - भारत मे खोजे गये हडप्पा कालीन नगरो मे सबसे बड़े नगरो के अन्तर्गत धौलावीरा एवं राखीगढ़ी को माना गया व भारतीय उपमहाद्वीप मे धौलावीरा चौथा सबसे बड़ा हड़प्पाकालीन नगर है।
- आर.एस.विष्ट ने धौलावीरा की जनसंख्या लगभग 20, 000 बताई।
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अन्य नगर –
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रोपड़ –
- पंजाब में सतलज नदी के तट पर स्थित है। इसकी खोज 1955-56 यज्ञदत्त शर्मा ने की।
- रोपड की खुदाई से हडप्पा से लेकर गुप्त व मध्यकाल तक संस्कृति के पाँच स्तरीय क्रम (हडप्पा, पेटेड ग्रेबेअर-चित्रित, धूसर मृद्भाण्ड, नार्दन ब्लैक पालिश- उत्तरी काली पालिश वाले, कुषाण, गुप्त और मध्य कालीन मृदभाण्ड) प्राप्त हुये।
- रोपड से मानव की कब्र के साथ कुत्ते के शवाधान के प्रमाण भी मिले हैं। अन्य हड़प्पा कालीन स्थल से ऐसे साक्ष्य नहीं मिले।
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माँडा (जम्मू) –
- चिनाब नदी के दाएं तट पर स्थित इस स्थल की खुदाई से हडप्पा व ऐतिहासिक युग सम्बन्धी संस्कृति का त्रि-स्तरीय क्रम प्राप्त हुआ।
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आलमगीरपुर –
- यह गंगा यमुना दोआब क्षेत्र में यमुना की सहायक हिण्डन नदी के बायें तट पर मेरठ जिले में स्थित है। इस पुरास्थल की खोज 1958 ई. मे यज्ञदत्त शर्मा द्वारा की गयी।
- गंगा- यमुना में पहला स्थल था जहाँ से हडप्पा कालीन अवशेष प्रकाश मे आए।
- यह हडप्पा संस्कृति का सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल हैं । यह स्थल सैधव सभ्यता की अन्तिम अवस्था को सूचित करता है।
- आलमगीरपुर से प्राप्त अवशेष – यहाँ एक गर्त से रोटी बेलने की चौकी तथा कटोरे के टुकडे प्राप्त हुए है। यहाँ से मिट्टी के बर्तन, मनके एवं पिण्ड प्राप्त हुए।
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सिंधु घाटी सभ्यता का नगर नियोजन –
- सिंधु घाटी सभ्यता के नगर योजना जाल पद्धति पर आधारित थी।
- प्राप्त नगरों के अवशेषों मे पूर्व तथा पश्चिमी मे दो टीले है। जिनमे पूर्वी टीले पर आवास क्षेत्र के साक्ष्य मिले तथा पश्चिमी टीले पर दुर्ग के साक्ष्य मिले हैं।
- पश्चिमी टीला एक रक्षा प्राचीर से घिरा होता था जबकी पूर्वी टीला पर कोई रक्षा प्राचीर नही होती थी। परन्तु अपवाद स्वरूप जैसे कालीबंगा के पूर्वी टीले भी रक्षा प्राचीर से घिरे है, व लोथल व सुरकोटदा से अलग’ टीले नही मिले।
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सिंधु घाटी सभ्यता की सडकें –
- नगर नियोजन व्यवस्था के अन्तर्गत सड़कें व गलियाँ योजनानुसार निर्मित की गई। मुख्य सडकें उत्तर से दक्षिण की तरफ जाती है तथा सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
- नगर की प्रमुख सड़क को प्रथम सडक कहा गया है नगरो मे प्रवेश पूर्वी सड़क से होता था और जहाँ ये प्रथम सडक से मिलती थी उसे ऑक्सफोर्ड सर्कस कहा गया, सड़के मिट्टी की बनी होती थी।
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सिंधु घाटी सभ्यता की नालियाँ –
- सिंधु घाटी सभ्यता की अद्वितीय विशेषता जल निकास की व्यवस्था थी जो अन्य समकालीन सभ्यताओं में देखने को नहीं मिलती हैं।
- घरो से जल निकासी मोरियों द्वारा होता था जो मुख्य नालियों मे गिरती थी।
- नालियाँ इंटों या पत्थरो की सहायता से ढकी होती थी परन्तु कभी – कभी इनके निर्माण मे चुने व जिप्सम का प्रयोग किया जाता था।
- प्रत्येक मकानों से हमे ढकी हुई नालियों की प्राप्ति हुई।
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सिंधु घाटी सभ्यता के भवन –
- हड़प्पा कालीन नगरों के भवन साधारणतः आवसीय भवन होते थे। इनमें चार – पाँच कमरे होते थे दो मंजिला भवनों का भी निर्माण हुआ।
- हडप्पा कालीन भवनो मे रसोई घर व स्नानागार होते थे।
- हङप्पा कालीन भवनो का निर्माण सादगीपूर्ण रूप से किया जाता था घरो के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे।
- हडप्पा सभ्यता मे कुछ सार्वजानिक भवन भी होते थे जैसे स्नानागार व अन्नागार आदि।
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सिंधु घाटी सभ्यता में ईंटों का प्रयोग –
- हडप्पा व मोहनजोदड़ो मे पकाई गई ईटों का प्रयोग किया गया जबकि कालीबंगा व रंगपुर नगरों के निर्माण में कच्ची ईटो का प्रयोग किया गया
- ईटो की एक विशेषता थी कि वे लम्बाई, चौडाई व मोटाई मे समान थी। उनमे एकसमानता थी।
- सामान्यत: एक ईंट का आकार 10.25*5*2.25 था, ईटों का अनुपात 4:2:1 होता था।
- हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी ईँट हमें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई
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सिंधु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था –
- स्टुअर्ट पिग्गट के अनुसार -हडप्पा व मोहनजोदडो एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानियाँ है।
- हण्टर के अनुसार मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।
- मेके के अनुसार मोहनजोदड़ो का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथ था।
- हड़प्पा संस्कृति के राजनीतिक स्वरूप के बारे मे हमे कोई स्पष्ठ जानकारी प्राप्त नही होती। परन्तु इसके विस्तार एवं नियोजित नगरों को देखकर लगता है कि इस सभ्यता में शासन पर पुरोहित वर्ग का प्रभाव पड़ा।
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सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन –
- समाज की इकाई परम्परागत रूप से परिवार थी। मुहरों पर अंकित चित्र व मातृदेवी की मूर्ति से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हड़प्पा समाज मे मातृसत्तात्मक व्यवस्था थी।
- हडप्पा समाज की नगर नियोजन की व्यवस्था को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि समाज अनेक वर्गों में विभाजित था जैसे- पुरोहित, व्यापारी, अधिकारी व श्रामिक आदि।
- हडप्पा सभ्यता के लोग युद्ध प्रिय कम शान्तिप्रिय अधिक थे
- हड़प्पा सभ्यता के लोग मनोरंजन के लिए पासे का खेल, शिकार, पशुओं की लड़ाई आदि प्रमुख साधन अपनाते थे। व समारोह व धार्मिक उत्सवों का आयोजन भी धूमधाम से किया जाता था ।
- वस्त्रो मे सूती व ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र काम मे लिये जाते थे। व आभूषणों का प्रयोग स्त्री व पुरुष दोनो करते थे।
- हडप्पा सभ्यता के लोग शाकाहारी व मांसाहारी दोनो थे।
- शवों का अन्तिम संस्कार 3 रूप मे किया जाता था
- पूर्ण समाधिकरण – इसमें शव को पूर्ण रूप से भूमि मे दफना दिया जाता था।
- आंशिक समाधिकरण – इसमें शव पशु पक्षियों के खाने के बाद बचे हुए भाग को भूमि में दफनाया जाता था
- दाह संस्कार
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सिंधु घाटी सभ्यता का धार्मिक जीवन –
- हड़प्पा सभ्यता से हमें स्वास्तिक चक्र के साक्ष्य मिलते है जो सूर्य पूजा के प्रतीक माने जाते है।
- सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन में शवाधान (मृत शरीर को दफनाने की जगह या कब्र) प्राप्त हुई। जिनमे कुछ कब्रों मे शवों के साथ मृदभांड, व आभूषण भी मिले है।
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का भूत-प्रेत, जादू-टोना और अन्य अंधविश्वासों पर भी लोगों का विश्वास था।
- हडप्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी की पूजा सबसे ज्यादा करते थे व यहाँ पर पुरुष देवता ( पशुपति नाथ) लिंग-योनि, वृक्ष जल आदि की भी पूजा करते थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता में धार्मिक अनुष्ठानों के लिए धार्मिक इमारतें बनाई गयी थी। लेकिन यहाँ से मन्दिर के कोई साक्ष्य नही प्राप्त हुये
- मोहनजोदड़ो से एक मुहर की प्राप्ती हुई जिस पर तीन मुख वाला एक पुरुष ध्यान की मुद्रा मे बैठा हुआ है जिसके सिर पर तीन सींग, बाई तरफ एक गैंडा तथा एक भैंस एवं दाई तरफ एक हाथी तथा एक बाघ है। जिसे पशुपति शिव का रूप माना गया
- सिंधु घाटी सभ्यता मे पशु पूजा का भी चलन था मुख्य एक सींग वाले जानवर की पूजा होती थी जो संभवत: गैंडा हो सकता है। खुदाई में मुहरों पर कुबड़ वाले सांड का अंकन मिला है। संभवत: कुबड़ वाले सांड की भी पूजा की जाती होगी।
- सिन्धु व मेसोपोटामिया दोनों सभ्यताओं मे मातृशक्ति की उपासना होती थी। बैल, बतख, व पाषाण स्तम्भ पवित्र माने जाते थे।
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सिंधु घाटी में आर्थिक जीवन –
- हडप्पाकालीन आर्थिक जीवन अधिकांशत कृषि व पशुपालन एवं आन्तरिक व विदेशी व्यापार पर निर्भर था।
- पुरातत्वविदों को मिट्टी के बर्तन, बुनाई के उपकरण व धातुएँ भी मिली जिनसे यह अनुमान लगाया जा सकता कि अन्य शहरों के बीच भी इन चीजो का व्यापार होता था। व हड़प्पा सभ्यता की मुहरे हमें अन्य शहरो से मिली जिनसे अनुमान लगाया जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता से निर्यात होता था।
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सिंधु घाटी सभ्यता में कृषि –
- सिंधु घाटी सभ्यता मे प्रमुखत गेहूँ व जौ की खेती की जाती थी। जो सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगो का मुख्य खाद्यान था।
- हड़प्पा सभ्यता के निवासियों ने विश्व में सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारम्भ की इसकी जानकारी हमे सूती वस्त्रों के अवशेषों से ज्ञात होती हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता के किसान अपनी आवश्यकता से अधिक अनाज का उत्पादन करते थे। मोहनजोदडो, हडप्पा व अन्य नगरों में अनाज के भण्डारण के लिए अन्नागार बनाये गये जहाँ खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखा गया।
- हड़प्पा सभ्यता बलूचिस्तान, पंजाब व सिन्ध की प्राक्-हड़प्पा कृषि सभ्यताओं का ही एक विकसित रूप थी।
- सिन्धु सभ्यता से हमे लगभग 9 प्रकार की फसलों की जानकारी प्राप्त होती है। जिनमें चावल, गेहूं, जौ, खजूर, तरबूज, मटर, राई, तिल व कपास
- हड़प्पा सभ्यता के लोग फसल काटने के लिए पत्थर के हाँसियो का प्रयोग करते थे।
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सिंधु घाटी सभ्यता में पशुपालन –
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा कृषि के साथ पशुपालन भी बहुतायत में किया जाता था।
- हड़प्पा सभ्यता के लोग गाय, बैल, बकरी, भेड़, सूअर व कुत्ते के माध्यम से पशुपालन करते थे।
- हड़प्पा सभ्यता में कूबड़ वाला सांड (बैल) विशेष महत्व रखता था व इस सभ्यता से ऐसी कोई मूर्ति या साक्ष्य नही प्राप्त हुआ जिस पर गाय की आकृति हो।
- घोड़े के अस्थिपंजर केवल सुरकोटदा (गुजरात) से प्राप्त हुए। अत: सिन्धु सभ्यता के लोग घोडे से परिचित नहीं थे
- गुजरात में निवास करने वाले हडप्पाई लोग हाथी पालते थे।
- मोहनजोदड़ो की उपरी सतह से तथा लोथल से छोड़े की टेराकोटा की मूर्ति मिली है।
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सिंधु घाटी सभ्यता में व्यापार –
- सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें एवं वस्तुएँ पश्चिमी एशिया व मिस्र मे प्राप्त हुई है जिससे यह ज्ञात होता है कि इस सभ्यता के व्यापारिक सम्बन्ध इन देशों से थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता की अधिकांश मुहरों का निर्माण सेलखड़ी में हुआ।
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग व्यापार मे मुहरों व धातु के सिक्कों का प्रयोग नही के बराबर करते थे। अधिकांशत आदान-प्रदान वस्तु विनिमय द्वारा किया जाता था। अर्थात् वस्तु के बदले वस्तु दी व ली जाती थी।
- लोथल से फारस की मुहरे व कालीबंगा से बेलनाकार मुहरें प्राप्ति भी सिन्धु सभ्यता के व्यापार के साक्ष्य प्रस्तुत करती है।
सुमेरियन लेखों से पता चलता है कि उन नगरों के व्यापारी मेलुहा के व्यापारियों के साथ वस्तु विनिमय करते थे। मेलुहा का समीकरण सिन्धु प्रदेश से किया गया है। - वस्तु विनिमय बाटों द्वारा नियंत्रित होता था। बाट सामन्यत: चट नामक पत्थर से बनाये जाते थे यह निशान रहित घनाकार आकार के होते थे।
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सिंधु घाटी सभ्यता की शिल्प कला, धातु व मुहरें –
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सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें –
- हडप्पा संस्कृति की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ उसकी मुहरे है अब तक लगभग 2 हजार मुहरें प्राप्त हुई है जिनमें 500 मोहनजोदडो से मिली है।
- मुहरों के बनाने मे सर्वाधिक उपयोग सेलखड़ी का किया गया है।
- सिन्धु घाटी सभ्यता की अधिकांश मुहरों पर लघु लेखों के साथ एक सिंगी सांड, भैंस, बाघ, बकरी व हाथी की आकृतियाँ खोदी गई है।
- सैन्धव मुहरे बेलनाकार, वर्गाकार, आयताकार एवं कृताकार है। व लोथल व देसलपुर से तांबे की बनी मुहरें प्राप्त हुई है।
- मोहनजोदडो, लोथल व कालीबंगा से राजमुद्रांक भी मिले है इनसे व्यापारिक क्रिया कलापों का ज्ञान होता है।
- हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर सबसे अधिक एक श्रृंग पशु का अंकन है।
- हड़प्पा सभ्यता की मुहरे खुदाई से निकली जो साबुन के पत्थर, टेराकोटा व तांबे से बनी थी।
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मुहर पर लेखन –
- मुहर के शीर्ष पर प्रतीकों को आमतौर पर सिंधु घाटी भाषा की लिपि बनाने के लिए माना गया। इसी तरह के निशान बर्तनों व अन्य वस्तुओं पर भी है। इन पर लिखी गयी पंक्ति दाएँ से बाएँ, दूसरी पंक्ति को बाएँ से दाएँ इसी तरह लिखा गया है।
- सिंधु घाटी की मुहरें मध्य एशिया के उम्मा और उर शहरों में व अरब प्रायद्वीप के तटों पर व मेसोपोटामिया तक पाई गई जिनसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता में व्यापार दुर-दुर तक होता था।
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सिंधु घाटी सभ्यता की शिल्प कला व धातु –
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग पत्थर के औजारों का काफी मात्रा मे प्रयोग करते थे।
- इससे सिंधु घाटी सभ्यता के लोग कई धातुओं से परिचित थे जिनमें कांसा धातु प्रमुख थी।
- सिंधु घाटी सभ्यता में कला व शिल्प काफी विकसित अवस्था मे था । कई स्थानों से उत्तम कलाकृतियों की प्राप्ती हुई है।
- इस सभ्यता मे बर्तनों का निर्माण, मूर्तियों का निर्माण व मुद्रा निर्माण प्रमुख शिल्प थे
- सिंधु घाटी सभ्यता से फलक, बाट व मनके प्राप्त हुए सिन्धु घाटी सभ्यता के अन्तर्गत मोहनजोदड़ो से हाथ से बुने हुए सूती कपडे के साक्ष्य मिले
- इस सभ्यता से लाल व काले रंग के मृदभाण्डो की प्राप्ति हुई। मृदभाण्ड वे बर्तन होते थे जो मिट्टी से बनाये जाते थे।
- इस सभ्यता में बड़ी संख्या मे टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) की मूर्तियाँ प्राप्त हुई है।
- मिट्टी से बनी मूर्तियाँ पूजा की प्रतिमा के रूप मे भी बनायी जाती थी।
- धातु से बनी मूर्तियाँ मोहनजोदडो, लोथल, कालीबंगा व चन्हूदड़ो से धातु से बनी मूर्तियाँ प्राप्त हुई जिनमे मोहनजोदड़ो से एक कांसे से बनी नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है।
- हड़प्पा सभ्यता के लोग ताँबे के साथ टिन मिलाकर कांसा तैयार करते थे। किन्तु कांसे के औजार हमें हड़प्पा सभ्यत से न के बराबर प्राप्त होते हैं।
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सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि –
- सामान्यतः हडप्पा लिपि को भाव चित्रात्मक लिपि की संज्ञा दी गई है। इस लिपि मे 250 से 400 अक्षर तक है तथा इसमे 64 मूल चिन्ह है।
- सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि की लिखावट क्रमश: दाँयी ओर से बाँयी ओर जाती थी।
- हडप्पा लिपि को अभी तक पढने मे सफलता नही मिली है। हडप्पाई लिपि के अधिकांश लेख मुद्राओ पर पाए गए इन लेखो मे से अधिकांश लेख बहुत ही छोटे है। हड़प्पाई लिपि पर विभिन्न पशु ( एक श्रृंगी बैल, वृषभ आदि) मुहरों के अग्र / पश्च भाग से प्राप्त होते हैं।
- इस लिपि को सिंधु लिपि या सरस्वती लिपि के नाम से भी जाना जाता है।
- सिन्धु लिपि को पढ़ने का सर्वप्रथम प्रयास बेडेन ने किया।
- मोहनजोदड़ो से सीप का बना हुआ व लोथल से हाथी दांत का बना हुआ एक पैमाना मिला जिसका उपयोग संभवत: लम्बाई मापने मे किया जाता था।