राजस्थान की जनजातियाँ

राजस्थान की जनजातियाँ

  • राजस्थान में मुख्यत भील, मीणा, गरासिया, सहरिया, कथौडी व डामोर जन‌जाति पायी जाती है। जो अधिकतर राजस्थान के दक्षिणी व पूर्वी भाग में पाई जाती है। जनजाति जनसंख्या के आधार पर राजस्थान का देश चौथा स्थान है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में जनजाति की आबादी 92,38,534 है। जो राजस्थान कुल जनसंख्या का 13.48% है।
  • अनुसूचित जनजातियों को विभिन्न विद्वानों ने अन्य नामो से सम्बोधित किया।
    • ए. बेन्स – पर्वतीय कबीला
    • जे.एच.हटन – पिछड़े कबीले
    • क्रोबर – आदिम जाती
    • एच.एच.रिस्ले, वारियर एलविन – आदिवासी

राजस्थान की जनजातियाँ

राजस्थान की प्रमुख जनजातियाँ –

  1. मीणा जन‌जाति
  2. भील जनजाति
  3. गरासिया जनजाति
  4. सहरिया जनजाति
  5. कथौडी जनजाति
  6. डामोर जनजाति
  7. कंजर जाति
  8. सांसी जनजाति

मीणा जनजाति –

  • राजस्थान की सबसे बड़ी जनजाति है। मीणा शब्द का शाब्दिक अर्थ मस्य / मछली होता है। मीणा जाति की उत्पत्ति भगवान विष्ष्णु के मत्स्य अवतार से मानी जाति है।
  • कर्नल जेम्स टॉड ने इनका मूल निवास ‘कालीखोह पर्वत माना है।
  • राजस्थान में मीणों की कुल संख्या लगभग 43,45,528 (2011 के अनुसार) है। जो राजस्थान की कुल जनजातियों का लगभग 47% है।
  • राजस्थान के प्रमुख जिलों में मीणा जनजाति – उदयपुर जयपुर, दौसा, गंगापुर सिटी, करौली, प्रतापगढ़
  • मीणा जनजाति की दो उपजातियाँ – जमीदार मीणा, चौकीदार मीणा
  • मीणा जनजाति राजस्थान की सबसे अधिक शिक्षित जनजाति है
  • मीणा जनजाति के प्रमुख देवता – गोमतेश्वर ऋषि (भूरिया बाबा)
  • मोरनी मांडना – मीणा जनजाति में विवाह की रस्म

भील जनजाति –

  • भील जनजाति राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति मानी जाती है। तथा संख्या की दृष्टि से राजस्थान की दूसरी बड़ी जनजाति है। भील शब्द द्रविड़ भाषा के बील का अपभ्रंश है जिसका अर्थ होता है – तीर कमान
  • राजस्थान में भीलों की कुल संख्या 4100264 है। जो राजस्थान की कुल जनजातियों का लगभग 44.3% है।
  • राजस्थान के प्रमुख जिलों में भील जनजाति – बाँसवाड़ा, उदयपुर, भीलवाड़ा, शाहपुरा, सलूम्बर आदि।
  • विलियम रोने ने अपनी पुस्तक wild tribes of India  में भीलों का मूल निवास स्थान मारवाड़ को बताया है।
  • भील जनजाति के मेले –
    • बेणेश्वर मेला (डूंगरपुर) – यहाँ शिव मंदिर बना हुआ है।
    • घोटिया अम्बा मेला (बाँसवाड़ा) – यहाँ पर कुंती व 5 पांडवों के मंदिर बने हुए है।
  • भीलों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न विद्वानों के मत
    • कर्नल टॉड – वनपुत्र
    • थॉमसन – गुजराती
    • रिज़ले और क्रूक – द्रविड़
  • भील जनजाति के प्रमुख देवता “भीलट देव”

गरासिया जनजाति –

  • कर्नल जेम्स टॉड ने गरासिया शब्द की उत्पत्ति गवास शब्द से मानी है।
  • गरासिया जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से राजस्थान में तीसरे स्थान पर है।
  • गरासिया जनजाति में संयुक्त परिवार व्यवस्था नहीं होती है।
  • गरासिया जनजाति में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था –
    • मोटी नियात – उच्च वर्ग
    • नेनकी नियात – मध्यम वर्ग
    • निचली नियात – निम्न वर्ग
  • राजस्थान में गरासियों की कुल संख्या 3,14,194 है जो राजस्थान की कुल जन‌जाति का 3.4% है।
  • राजस्थान के प्रमुख जिलो में गरासिया जनजाति – सिरोही उद‌यपुर व पाली।
  • गरासिया जनजाति के मेले –
    • चेतर विचितर मेला – देलवाड़ा, सिरोही
    • कोटेश्वर मेला – अम्बाजी (गुजरात)
    • गौर मेला / अंजारी का मेला – सियावा ,सिरोही
  • गरासिया जन‌जाति में बरामदे को ओसरा कहते है।
  • गरासिया जनजाति में विवाह के प्रकार –
    1. मोरबंधिया
    2. पहरावणा
    3. खेवणो
    4. ताणना
    5. सेवा
  • गरासिया समुदाय के दो वर्ग –
    1. भील गरासिया – इनका संबंध भीलो से होता है।
    2. राजपूत गरासिया – ये अपनी उत्पत्ति राजपूतों से मानते मानते हैं।

सहरिया जनजाति –

  • सर‌कार द्वारा जनजातियों में सिर्फ सहरिया जनजाति को ही आदिम जनजाति समूह में शामिल किया है।
  • राजस्थान में सहरिया जनजाति की कुल संख्या 111,377 है।
  • राजस्थान में सहारिया जनजाति का निवास – बारां जिले के शाहबाद व किशनगंज तहसील व कुछ संख्या में राजस्थान में कोटा व झालावाड़ में पाई जाती है।
  • सहरिया शब्द फारसी भाषा के सहर शब्द से उत्पति हुई है। जिसका अर्थ जंगल होता है।
  • सहरिया जनजाति में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था –
    1. पाँच गाँवो की पंचायत – पंचताई
    2. ग्यारह गाँवो की पंचायत – एक दसिया
    3. सभी सहरियों की पंचायत – चौरासी

कथौडी जनजाति –

  • कथौडी जनजाति महाराष्ट्र से आयी जनजाति है। जो कत्था बनाने में निपुण होने के कारण कथौडी कहलाये।
  • खैर वृक्ष की कटाई प्रतिबंधित होने के कारण ये जनजाति अपना मूल काम छोडकर अन्य लघु वन उपज का संग्रह कर व उन्हें बेचकर अपने जीवन का निर्वाह करते है।
  • राजस्थान में कथौडी जन‌जाति की कुल संख्या – 4833
  • राजस्थान में कथौडी जनजाति – उद‌यपुर जिल की झाडोल, कोटडा व सलूम्बर जिले की सराड़ा पंचायत, डूंगरपुर, बारां व झालावाड
  • कथौडी जनजाति के प्रमुख देवता
    • डूंगरदेव, गाम देव,कंसारी माता, भारी माता, वाघ देव
  • कथौडी जनजाति एक संकटग्रस्त जनजाति है। इस जनजाति के पुरुष महिलाएँ साथ में बैठकर शराब पीते है।

 

डामोर जनजाति –

  • डामोर जनजाति मूल रूप से गुजरात की जनजाति है। इस कारण इनकी बोली में गुजराती प्रभाव देखने को मिलता है।
  • राजस्थान में डामोर जनजाति की कुल जनसंख्या 91463 है।
  • राजस्थान के प्रमुख क्षेत्रों में  डामोर जनजाति – डूंगरपुर, बाँसवाडा, उद‌यपुर व सलूम्बर
  • डूंगरपुर की सीमलवाडा पंचायत समिति क्षेत्र में सबसे अधिक डामोर जनजाति निवास करती है।
  • डामोर जनजाति के प्रमुख मेले –
    • ग्यारस की रेवाड़ी का मेला – डूंगरपुर
    • छैला बावजी का मेला – पंचमहल (गुजरात)
  • चाडि‌या – डामोरी जनजाति में होली के अवसर पर किया जाने वाला कार्यक्रम चाडिया कहलाता है।
  • दापा – डामोरी जनजाति में वधू का मूल्य चुकाया जाता है वह दापा कहलाता है।

कंजर जनजाति –

  • कंजर शब्द की उत्पत्ति ‘काननचार‘ शब्द से हुई है। जिसका अर्थ होता है – जंगल में विचरण करने वाले।
  • कंजर जनजाति का प्रमुख व्यवसाय – अपराध करना
  • राजस्थान के प्रमुख जिलों में कंजर जनजाति – भीलवाड़ा, शाहपुरा, चितौड़गढ़, ब्यावर, अलवर, बूंदी।
  • कंजर जनजाति के प्रमुख देवता –
    • चौथ माता (सवाई माधोपुर)
    • रक्तदंजी माता (बूंदी)
    • जोगणिया माता (चितौड‌गढ़)
    • हनुमान जी
  • जोगणिया माता कंजर जनजाति की कुल देवी है।
  • पटेल – कंजर जनजाति के मुखिया को पटेल कहा जाता है।

सांसी जनजाति –

  • सांसी शब्द की उत्पति सांसमल व्यक्ति से मानी जाती है।
  • राजस्थान के प्रमुख क्षेत्रो में सांसी जनजाति – भरतपुर, डीग व झुंझुनूं
  • सांसी जनजाति अपने जीवन यापन के लिए पशुओ की चोरी व अन्य छोटे अपराधो पर निर्भर रहने वाली जनजाति है। जिसका अपराधी जनजाति कानून 1871, 1911 व 1924 में किया गया।
  • सांसी जनजाति में होली व दीपावली के अवसर पर देवी माता के सामने बकरों की बली दी जाती है।
  • सांसी जनजाति पितृ सतात्म्क होती है।
  • सांसी जनजाति की दो उपजातियां बीजा व माला है।

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