- भारतीय चित्रकला का जनक – रवि वर्मा (केरल)
- राजस्थान चित्रकला का जनक – आनंद कुमार स्वामी
- आनंद कुमार स्वामी ने 1916 में राजपूत पेटिंग नामक ग्रन्थ लिखा
- राजस्थान में चित्रकला के आधुनिक जनक – कुन्दनलाल मिस्त्री
- राजस्थान में चित्रशैली की शुरुआत – 15 वी से 16 वीं सदी के मध्य
- कार्ल खण्डेलवाला के अनुसार राजस्थान चित्रशैली का स्वर्णकाल 17वी से 18 वी सदी को माना जाता हैं।
- राजस्थान चित्रशैली की उत्पत्ति – गुजराती / जैन / अजन्ता अपभ्रंश शैली से हुई।
- राजस्थान चित्रशैली के प्राचीन नाम – हिन्दु चित्रशैली “स्टडीज इन इण्डियन पेंटिंग्स” में HC मेहता ने इसे हिन्दु चित्रशैली की संज्ञा दी।
- राजस्थानी चित्रशैली – रायकृष्णदास ने सभी मतो का खण्डन कर इसे राजस्थानी चित्रशैली का नाम दिया।
- राजपूत कला WH ब्राउन ने अपने ग्रंथ ‘इण्डियन पेंटिंग्स’ में राजपूत कला की संज्ञा दी।
- तिब्बत इतिहासकार तारानाथ शर्मा के अनुसार राजस्थान का प्रथम चित्रकार मरूप्रदेश-श्रृंगधर (यक्ष शैली का चित्रकार) था।
- राजस्थानी चित्रकला का प्रथम चित्रित ग्रंथ – दसवैकालिक सूत्र चूर्णी औध नियुक्ति सुप्त -1060 ई. जो (जिनभद्र सुरी के भुमिगत संग्राहालय जैन भण्डार – जैसलमेर में सुरक्षित)
- राजस्थान में चित्रकला की जन्मभूमि – मेदपाट / मेवाड़ 12 वी शताब्दी।
- मेवाड चित्रशैली का प्रथम चित्रित ग्रंथ – श्रावक प्रतिक्रमण चुर्णी ( तेजसिंह के काल में) चित्रकार – कमलचन्द्र (1260) वर्तमान में यह सरस्वती भण्डार उदयपुर में सुरक्षित है।
- दर (भरतपुर) से प्राचीन पक्षियो के चित्रों की खोज – डॉ जगन्नाथ पुरी।
- बैराठ सभ्यता से प्राप्त चित्रो के आधार पर राजस्थान चित्रशैली को प्राचीन युग की सभ्यता कहा – V.A टॉलेमी
- राजस्थानी चित्रकला का वर्गीकरण
- राजस्थानी चित्रकला को भोगोलिक आधार पर चार भागों में बांटा गया है।
- 1. मेवाड़ स्कूल ऑफ पेटिंग – उदयपुर चित्र शैली, नाथद्वारा चित्र शैली, देवगढ, चित्र शैली, चावण्ड चित्र शैली
- 2. मारवाड, स्कुल ऑफ पेटिंग – जोधपुर चित्र शैली, जैसलमेर चित्र शैली, बीकानेर चित्र शैली, नागौर चित्र शैली, बणी-ठणी/किशनगढ़ चित्र शैली
- 3. ढुंठाड, स्कूल ऑफ पेटिंग – आमेर चित्र शैली, जयपुर चित्र शैली, उनियारा टोंक चित्र शैली, अलवर चित्र शैली, शेखावाटी चित्र शैली
- 4. हाडौती स्कूल ऑफ पेटिंग – कोटा चित्र शैली, बुंदी चित्र शैली
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मेवाड़ स्कूल ऑफ पेटिंग
- मेवाड़ चित्रशैली को उदयपुर चित्र शैली, नाथद्वारा चित्र शैली, देवगढ, चित्र शैली, चावण्ड चित्र शैली आदि भागों में बांटा गया है।
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उदयपुर चित्र शैली
- प्रारंभकाल – राणा कुम्भा
- स्वर्णकाल – जगतसिंह
- प्रधानरंग – लाल पीला
- चित्रकार – साहबुदीन, रकानुद्दीन, भैराराम, कृपाराम, मनोहर
- 1260ई.में श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चुर्णि नामक ग्रंथ इस शैली का है। जो तेजसिंह के राज्यकाल में चित्रित हुआ।
- मेवाड़ चित्र शैली को चित्र शैलियों की जननी कहा जाता है।
- अजंता शैली का सर्वप्रथम प्रभाव मेवाड चित्रशैली पर आया।
- चित्रकारों के प्रशिक्षण हेतु जगतसिंह प्रथम ने कला विद्यालयों की स्थापना की जिसे “चितेरों की ओवरी” एवं “तस्वीरों रो कारखानों” कहा जाता ।
- राणा कुंभा को राजस्थानी चित्रकला का जनक कहा जाता है।
- सुपार्श्वनाथ चरित्रम्, सुपासना चरित – जैन ग्रंथ (राणा मोकल के काल मे 1422-23 में चित्रित) चित्रकार. हीरानंद, स्थान- देलवाडा (सिरोही देवकुल पाठक के निर्देशन में)
- 1540 ई. में नानकराम ने भागवत पुराण का चित्रण किया
- 1651 ई में मनोहर नामक चित्रकार ने मेवाड, चित्रशैली में रामायण का चित्रण किया। (मेवाड, की मोनालिशा) वर्तमान में मुंबई संग्रहालय में सुरक्षित है।
- विष्णु शर्मा द्वारा लिखित कहानी पंचतंत्र का चित्रण मेवाड, शैली में ‘नुरदीन’ नामक चित्रकार द्वारा किया। इस कहानी में कलीला व दामीना नामक दो गीदड़ो का वर्णन हैं। इन पात्रों के बारे में सर्वप्रथम अलबरूनी ने बताया।
- मेवाड़ चित्र शैली की विशेषता
- नीला आकाश, मछलीनुमा आँखे, बारहमासा, कदंब पृक्ष, कोयल व सारस पक्षी, चकोर पक्षी का चित्रण हुआ।
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नाथद्वारा चित्र शैली
- जिला – राजसमन्द
- प्राचीन नाम – सिहाड गांव
- राजसिंह द्वारा श्री नाथजी मंदिर का निर्माण
- प्रारंभकाल – राजसिंह
- स्वर्णकाल – राजसिंह
- प्रधानरंग – हरा पीला
- पृष्ठभूमि रंग-निबुआ / गुलाबी
- चित्रकार –नारायण, चतुर्भुज, नरोत्तम, हरदेव, देव कृष्ण, विठलदास, उदयसिंह, घासीलाल, घनश्याम
- महिला कलाकार – कमला, इलायची
- चित्र – राधा कृष्ण का चित्र, पिछवाई के चित्र, केले का वृक्ष, कृष्ण लीला व गाय का चित्रण
- ये एक धार्मिक चित्रशैली है। नाथद्वारा चित्रशैली को कृष्ण भक्ति की चित्रशैली कहा जाता है।
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देवगढ चित्रशैली
- जिला – राजसंमद
- रावत – 16 वें उमराव
- स्थापना- 1680 में द्वारिका प्रसाद
- स्वर्णकाल – महाराणा जयसिंह का काल (1680-98)
- इस शैली को प्रकाश में लाने श्रेय श्रीधर अंधारे को जाता हैं।
- यह मेवाड+मारवाड+ढूढाड़ चित्रशैली का मिश्रण (कोकटेल चित्रशैली)
- इस चित्रशैली में मोतीमहल व अजारा हवेली के भित्ति चित्रो का आकर्षण है।
- देवगढ चित्रशैली की विशेषता
- इस चित्रशैली में हरे व पीले रंग में हाथियों की लड़ाई
- राजदरबार के दृश्य, मुकट, निम्बला, वस्त्र इत्यादि का चित्रण |
- चित्रकार – कमल, चौखा बैजनाथ, कंवला
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चावण्ड चित्र शैली
- जिला – उदयपुर
- प्रारंभकाल – महाराणा प्रताप
- स्वर्णकाल – अमरसिंह प्रथम
- चित्रकार – निसारद्दीन / नासिरुद्दीन
- 1592 ई. में महाराणा प्रताप के काल में निसारद्दीन के द्वारा ‘ढोला मारू का चित्रण ‘
- 1605 ई. में अमरसिंह प्रथम के काल में में निसारद्दीन द्वारा रागमाला सेट चित्रण
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हाड़ौती स्कुल ऑफ पेटिंग
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बूंदी चित्र शैली
- प्रारंभकाल – सुर्जनसिंह का काल
- स्वर्ण काल – उम्मेद सिंह प्रथम , बिशनसिंह
- प्रधान रंग – सुनहरा,चटकीला
- चित्रकार – सुरजन, अहमद, डालू, भीखराज, श्री कृष्ण।
- इस शैली को पशु पक्षीयों की शैली कहा जाता है।
- अग्रेंज को अपनी प्रेमिका के साथ पियानो बजाते हुए दर्शाया गया
- वर्षा ऋतु में नाचते मोर का चित्रांकन
- छत्रशाल ने रंगमहल का निर्माण करवाया।
- चित्रशाला निर्माण – उम्मेदसिंह (1750) इसे भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहा जाता हैं, इसमें उम्मेदसिंह को सुअर का शिकार करते हुए दर्शाया गया।
- भावसिंह के काल में इस चित्रशैली पर भोग विलासिता का प्रभाव।
- रतनसिंह हाड़ा चित्रकला प्रेमी होने के कारण जहांगीर द्वारा सरबुलंद राय की उपाधि।
- विशुद्ध राजस्थानी चित्रकला का प्रारंभ बुंदी चित्रशैली से माना जाता हैं
- ये शैली मेवाड, चित्र शैली से प्रभावित, इस चित्रशैल में राग भैरव (इलाहाबाद/प्रयागराज्य में संरक्षित) व रागिनी दीपक (बनारस संग्राहालय में संरक्षित) का चित्र चित्रित हुआ।
- भावसिंह के काल में मतिराम ने रसराज ग्रंथ की रचना की।
- अन्य प्रमुख चित्र – बारहमासा, रागमाला, चक्रदार पायजामा, अन्तपुर के चित्र, भोग विलास के चित्र, खजुर वृक्ष
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कोटा चित्र शैली
- प्रारंभकाल – रामसिंह प्रथम का काल
- स्वर्णकाल – उम्मेदसिंह प्रथम
- प्रधानरंग- हल्का नीला
- प्रमुख चित्रकार – लच्छीराम, नुरमोहम्मद, गोविन्द डालु, रघुनाथ, लालचंद
- इस शैली को शिकार की चित्रशैली कहा जाता है।
- भगवान की राम को हिरण का शिकार व महिलाओं को शिकार करते हुए भी दर्शाया गया।
- झालिम सिंह द्वारा निर्मित झाला हवेली भिति चित्रों का आकर्षण
- डालुराम ने 1640 ई. में रागमाला सैट का चित्रण
- विशेषता – शेर, बतख, खजुर व मृगनयनी आंखे आमपत्रों के समान आंखो का चित्रण
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मारवाड़ स्कूल ऑफ पेटिंग
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जैसलमेर चित्रशैली
- प्रारम्भकाल – हरराय भाटी
- स्वर्णकाल- अखेसिंह का काल
- प्रधान रंग – पीला, गुलाबी
- इस चित्रशैली पर किसी बाह्य शैली का प्रभाव नहीं है।
- चित्रकार – मूलराज, अखैराज, सोनराज
- महेन्द्र व मूमल की प्रेमकथा पर आधारित चित्रशैली (मीनाक्षी स्वामी)
- ‘मूमल’ पुस्तक की रचना लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत रानी जी ने की
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किशनगढ़ चित्र शैल
- उपनाम – बणी-ठणी,भारतीय कला इतिहास का लघु आश्चर्य, चित्रो का अमूर्त स्वप्न, रहस्यमय कलाओं का अमूर्त स्वप्न।
- प्रारंभकाल सावंत सिंह
- स्वर्णकाल – किशनगढ़ शैली में सावंतसिह के काल को स्वर्णकाल कहा जा सकता है।
- प्रधानरंग – श्वेत, गुलाबी, सलेटी व सिंदुरी
- यह चित्र शैली अन्तपुर दिल्ली निवासी रसिकप्रिया व सावंत सिंह के प्रेम पर आधारित हैं।
- सांवतसिह के उपनाम – नागरीदास, चितवन, मतवाले, चितेरे
- बणी-ठणी के उपनाम – भारत की मोनालिशा, उत्सव प्रिय लवलीज, नागर रमणी, कीर्तिनिन, कलांवती।
- किशनगढ़, चित्रशैली को प्रकाश में लाने का श्रेय= एरिथ डिक्सन, व फैयाज अली
- एरिथ डिक्सन ने बणी-ठणी को भारत की मोनालिसा कहा। मोनालिशा इटली की एक पेटिंग है जिसके चित्र ‘लियोनर्दा द विची’ ने बनाये
- बणी-ठणी का चित्र 1778 ई. में निहालचंद ने बनाया,
- आकार : – 48.8×36.6 से.मी.
- मौलिक प्रति – महाराजा के किशनगढ़ संग्राहालय मे स्थित
- प्रतिलिपि – पेरिस के अल्बर्ट हॉल में सुरक्षित
- बणी ठणी पर 5 मई 1973 ई. को 20 पैसे का डाक टिकट जारी किया
- यह चित्र शैली कांगडा शैली से प्रभावित। इस शैली को कागजी शैली भी कहते हैं
- बसली – चित्र बनाने हेतु गोंद व लाई कई कागजों को चिपकाकर एक मोटे कागज का निर्माण करना
- बेसरी – बणी-ठणी के नाक का आभुषण
- किशनगढ़ चित्र शैली वैष्णव सम्प्रदाय एवं ब्रज साहित्य से प्रभावित हैं।
- प्रमुख चित्र – नागर समुच्य – बणी-ठणी के 75 चित्रों का समूह चित्रण (मोरध्वज निहाल चंद) राधा कृष्ण का चित्र भी बनाया।चांदनी रात की संगोष्ठि –अमरचंद (गुदोलाव झील के किनारे का दृश्य)
दीपावली / सांझी – नागरीदास ने चित्रण किया। बणी-ठणीकी आँखों का चित्रण – लाडीदास - बणी-ठणी की विशेषता – मित्र नयन, कजरायु नयन, पतली कमर, लम्बे बाल, सुईदार गर्दन, नाक मे बेसरी आभुषण, भंवरे, बतख, गुलाब का फूल, तैरती नौकाए सरोवर के किनारे, मोतियों का भव्य चित्रण, केले का वृक्ष का चित्रण
- चित्रकार – मोरध्वज, निहालचंद, अमरचंद, नागरीदास, लाडीदास, नगराम, उमरू नानकराम
- महिला चित्रकार – संतोष बाई।
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जोधपुर चित्र शैली
- प्रारंभकाल – मालदेव (1532-1562)
- स्वर्णकाल – जसवंतसिह प्रथम व मानसिंह
- रंग – पीला, लाल I
- चित्रकार – रामा, नाथा, छज्जु, सेफु, शिवदास, देवदास, किशन भाटी, रामरत्न
- मुगल प्रभाव – मोटा राजा उदयसिंह
- युरोपिय प्रभाव – तख्तसिंह के काल
- नाथ संप्रदाय – मानसिंह
- वैष्णव सम्प्रदाय – विजयसिंह
- जोधपुर चित्रशैली का प्रथम चित्रित ग्रंथ – उत्तरध्यान सुत्र / उत्तर सूत्र चूर्णों ( माल्देव के काल में चित्रित)
- चौखेलावा महल – राम-रावण युद्ध का चित्र (रामायण का चित्र) सप्तसती चित्र
- 1623 ई. विठ्ठल बीर जी चंपावत द्वारा रागमाला का चित्रण
- ढोला मारू, पृथ्वीराज बेल, वेली किशन रुकमणी इत्यादि ग्रंथो का चित्रण
- भागते खरगोश, छोटी-छोटी झाड़ियाँ, पनिहारी, भागते हिरण, रेत के टीले साका, पगड़ी, लम्बी मुछे आदि का चित्रण
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नागौर चित्र शैली
- प्रारंभकाल – अमरसिंह राठौड
- स्वर्णकाल – बरुत सिंह
- प्रधान रंग – हल्का बुझा हुआ रंग
- चित्रशैली – बादल महल के भित्ति चित्र, जलकुण्ड में स्नान करती नायक, पारदर्शी वस्त्र, पंख लगी परियाँ, सामुहिक बात करते हुए पुरुष
- वृद्धा अवस्था के चित्रों को नागौर के चित्रकारों ने कुशलता पूर्वक चित्रित किया है 1720 ई. में ठा.इन्द्रसिंह का चित्र इस शैली का उत्कृष्ट चित्र है।
- RS अग्रवाल – ने नागौर चित्रशैली की वेशभुषा को पर्सियन गाऊन कहा है।
- चित्रकार – पुरखाराम, मोहनराम, पूर्णाराम, नाथाराम, चेलाराम, लिखमाराम, चिमनाराम
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बीकानेर चित्रशैली
- प्रारंभकाल – रायसिंह का शासन काल
- स्वर्णकाल – अनुपसिंह
- प्रधानरंग – बैंगनी, नीला, जामुनी
- प्रमुख चित्रकार – रामलाल, मुन्नालाल, चौखा, मुकद
- मुस्लिम चित्रकार- राशिद हसन, अलीराज, रुकनुद्दीन, शोएब, नाथा, सिका
- बीकानेर चित्रशैली की मुख्य पृष्ठभूमि मथैरणा कला व उस्ताकला है।
- बीकानेर चित्रशैली के चित्रकार उस्ताद कहलाते है क्योंकि यह चित्र के नीचे अपना नाम व तिथि अंकित करते हैं।
- बाल रामायण, बाल महाभारत, भगवदगीता इत्यादि का चित्रण इस शैली में हुआ।
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ढुंढाड़ स्कूल ऑफ पेटिंग
- ढुंढाड स्कुल ऑफ पेटिंग आदमकद व पोट्रेट चित्रो हेतु विख्यात है, यह स्कुल मुगल शैली से सर्वाधिक प्रभावित स्कुल है।
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आमेर चित्र शैली
- प्रारंभकाल- मानसिंह प्रथम
- स्वर्णकाल- मिर्झा जयसिंह
- प्रधानरंग – गेरूआ रंग
- चित्रकार – मन्नालाल, , हुक्मंचद, मुरारी, शोभाराम
- रज्मनाम – ( महाभारत का फारसी अनुवाद 169 चित्र) का चित्रण
- मिर्जा जयसिंह ने अपनी पुत्री चन्द्रावती के कहने पर बिहारी सतसई एवं रुकमणी कृष्ण का चित्रण करवाया (सफेदा वृक्ष का चित्रण)
- चित्रण – पशु पक्षियों की लड़ाईयाँ, हाथियो की लड़ाई,उद्यान के कामसूत्र, दृश्य
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जयपुर चित्र शैली
- प्रारम्भ काल – सवाई जयसिंह
- स्वर्णकाल – सवाई प्रतापसिंह
- प्रधान रंग – हरा गेरूआ ।
- प्रमुख चित्रकार – गोपाल, उदय, हुक्मा, सहिबाराम, गंगबक्श, सालिग्राम घासीदास, लक्ष्मणदास, गोपालदास
- मध्यम कद काठी के पुरुष की सुंदरता का वर्णन व मध्यम कद काठी की महिला की सुंदरता का वर्णन
- वट वृक्ष, सफेदा, हाथीयो की लड़ाई का वर्णन, जुलुस, थिएटर, बाग-बगीचे, शहर सौन्दर्य का वर्णन
- रामसिंह द्वितीय के काल में यूरोपिया चित्रों का चित्र
- प्रमुख चित्र – आदमकद चित्र – साहिबराम ने ईश्वरी सिंह का पूर्ण आदमकद चित्र व प्रतापसिंह का अर्द आदमकद चित्र बनाया।
- सवाई जय सिंह के दरबारी कवि शिवदास राय द्वारा 1737 में ब्रज भाषा में तैयार करवाई गई सचित्र पांडुलिपि सरसरस ग्रन्थ में कृष्ण विषयक 39 चित्र पुरे पृष्टों पर अंकित है।
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शेखावाटी चित्र शैली
- शेखावटी को भित्ति चित्रों के कारण इसे ओपन आर्ट गैलरी कहा जाता है।
- पद्धतियाँ – आलागिला, फ्रेस्को, अराईश, पणा
- आलागिला –
- यह कला इटली से भारत आई।
- इस शैली का सर्वाधिक विकास जहाँगीर के काल में हुआ।
- हवेलियों व छतरीयों के भित्ति चित्रो के लिए यह चित्र शैली प्रसिद्ध है
- फ्रेस्को सेको – सुखी दीवारो पर चित्रांकन की विधि
- फ्रेस्को बुनो – गिली दीवारों पर चित्राकन विधि
- फ्रेस्को साधारण – फ्रेस्को सेको+ फ्रेस्को बुनो
- उदयपुरवाटी झुंझुनू में जोगीदास की छतरी पर देवा द्वारा की गई चित्रकारी शेखावाटी चित्रशैली का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।
- प्रसिद्ध चित्र – लैला मजनु, हीर रांझा, जवाहरजी डुंगरजी की हवेलियों एवं छतरीयों के भित्ति चित्रण मोटरगाडी, रेलगाड़ी, चिलगाडी।
- प्रमुख चित्रकार– बालुराम चेजारा, जयदेव, तनसुख
- चेजारा – कमठे का कार्य करने वाला कारीगर व चुनाई करने वाला।
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उनियारा (टोंक) चित्र शैली
- प्रारंभकाल – सरदार सिंह
- स्वर्णकाल – संग्रामसिंह
- प्रधानरंग – प्राकृतिक रंग, लाल, नीला, पीला
- चित्रकार – मीरबक्श, धीमा, काशी, लखन
- यह शैली जयपुर + बुंदी चित्रशैली का मिश्रण
- इस चित्र शैली में मीरबक्श ने श्री राम सीता, लक्ष्मण व हनुमान जी के चित्र बनाये
- चित्रण – दशावतार, उँट का चित्रण, शेर, हाथी इत्यादि का चित्रण
-
अलवर चित्र शैली
- प्रारंभकाल – प्रतापसिंह
- स्वर्णकाल – विनयसिंह
- प्रधान रंग :- सोने-चांदी रंगो का प्रयोग
- चित्रकार :- बलदेव, गुलाम अली, डालुराम, मूलचन्द, मंगलसेन, जमनादास, बुद्धसेन व नानकराम
- इस चित्रशैली में प्रमुख चित्र:- राजस्थान की एकमात्र चित्रशैली जिसमे गणिकाओं (वैश्या) के चित्र चित्रित।
- गुलिस्तां – शेखसादी द्वारा रचित।
- चित्रण – गुलामअली, 17 चित्रो का समुह, जेवाहरतों की स्याही।
- शिवदान सिंह के कालमें अलवर चित्रशैली में कामशास्त्र पर चित्र बने।
- मूलचंद नामक चित्रकार ने हाथी दांत पर चित्र बनाये ।
- इस शैली में सर्वाधिक मुगल प्रभावित चित्र बलदेव ने बनाये।
- इस शैली में सर्वाधिक हिन्दु चित्र डालुराम ने बनाये।
- युरोपिय शैली से सर्वाधिक प्रभावित।
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महत्त्वपूर्ण बिन्दु
- अजमेर चित्रशैली – यह मारवाड स्कूल का भाग हैं। यह शैली मालदेव राठौड़ के काल में प्रारंभ
- प्रमुख चित्रकार :- तैपथ, लालची, अंवला, तेला राम
- महिला चित्रकार -साहिबा,
- प्रमुख चित्रण – पैन्नी अंगुलियो का चित्रण, राठौड़ी पगड़ी का चित्र
- राजस्थानी चित्रशैली की प्रमुख पद्धतियाँ –
- वाश पद्धति – पारदर्शक रंगो का प्रयोग होता है
- टैम्परा पद्धति – गाढे, अपादर्शक रंगो का प्रयोग जनक – फुलंचद वर्मा नरैना (जयपुर) “बतखो की मुद्राए” की रचना ललित कला अकादमी द्वारा 1972 में पुरस्कार
- जलरंग पद्धति- कागज पर चित्रकारी की विधि
- पेस्टल पद्धति – राजस्थान में चित्रकारी की विशुद्ध विधि
- एकल प्रदर्शनी चित्र परम्परा की शुरुआत रामगोपल विजयवर्गीय ने की।
- मिनिएचर पेटिंग – चावल का दाना, राई का दाना, हाथी दांत एवं अन्य बारीक वस्तुओं पर चित्रकारी करना।
- इस शब्द की उत्पत्ति – लैटिन भाषा के मिनियम शब्द से हुई जिसका अर्थ – लाल रंग का शीशा।
- किशन शर्मा – बेगु चितौड़गढ़ (राई के दानो पर संत शिरोमणी मीराबाई का चित्र )
- हीरालाल सोनी – चावल के दानों पर चित्रकारी हेतु प्रसिद्ध।
- आलागिला – ईटली से यह कला अकबर के शासन काल में भारत आई। इसका सर्वप्रथम प्रयोग आमेर चित्र शैली व सर्वाधिक प्रयोग शेखावाटी चित्रशैली में हुआ।
- अराईश – चुने का पलास्टर
- फ्रेस्को – पाशता शब्द फ्रेश से उत्पति शेखावाटी क्षेत्र में इन शब्दो को ‘पणा’ कहा जाता है।
- राजीव गुप्ता (कोटा) – मूक बधिर चितेरा
- जया – जामडोली (जयपुर) – राजस्थान कीसबसे कम उम्र की चित्रकार
- घनश्याम पाण्ड्या (डूंगरपुर ) – चित्रकला में पानी जैसे रंगो का प्रयोग (वाटर कलर)
- हमीदुल्ला (जयपुर) – राजस्थान के प्रसिद्ध रंगकर्मी
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चित्रकला से संबंधित प्रमुख संग्राहालय
- जैन भंडार / जिनभद्र सुरी संग्रहालय – जैसलमेर (भूमिगत ताड़ पत्रो पर चित्रित ग्रंथों का संग्रहालय ) दसवैकालिक सूत्र चुर्णी / औघ नियुक्ति सुप्त इस संग्राहालय में संग्रहित है इन ग्रंथो को भारतीय चित्रकला का द्वीप स्तंभ कहा जाता है।
- सरस्वती भण्डार – उदयपुर
- मान प्रकाश – जोधपुर
- पोथीखाना – जयपुर
- अगता / कोटा संग्रहालय – कोटा
- जुबली संग्रहालय – बीकानेर
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चित्रशैली में आखों व रंगो का समायोजन
चित्रशैली | आँखे | रंग | वृक्ष |
नाथद्वारा | चकोर | हरा / पीला | केला |
जोधपुर | बदामनुमा | लाल / पीला | आम |
मेवाड़ | मछलीनुमा | पीला | कदम्ब |
जयपुर | मछलीनुमा | हरा / गेरुआ | वटवृक्ष |
अलवर | मछलीनुमा | सोने / चांदी | पीपल |
कोटा | मृगनयनी | – | खजूर |
बूंदी | आम्र पत्र | – | – |
किशनगढ़ | कामनुमा आँखे | – | – |
-
प्रमुख चितेरे
- भीलोंका चितेरा / बारात का चितेरा – बाबा गोवर्धन लाल (राजसमंद)
- नीड़ का चितेरा – सौभाग्यमल गहलोत ( जयपुर )
- श्वानों का चितेरा – जगमोहन माथेडिया ( जयपुर ) 3000 श्वानों के चित्र ( लिमका बुक में नाम दर्ज )
- जैन शैली का चितेरा – कैलाश वर्मा
- भैसों का चितेरा – परमानंद चोयल ( कोटा )
- गांवो का चितेरा – भूरासिंह शेखावत (बीकानेर) ये कृपालसिंह शेखावत के गुरू मऊगाँव सीकर के थे इन्हें ब्लू पोटरी का जादुगर के नाम से भी जानते थे
- पशुओ व भित्ति चित्रण का चितेरा – देवकी नंदन शर्मा (अलवर)