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राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिर व मंदिर स्थापत्य
- भारतीय संस्कृति में धर्म का सदैव महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ईसा से कई शताब्दियों पूर्व भारत में भागवत धर्म का उदय हुआ व गुप्त काल तक आते-आते अवतारवाद का सिद्धान्त अच्छी तरह प्रतिष्ठित हो गया था। अवतारवाद के कारण ही देवताओं की मूर्तियां व मन्दिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
- अध्ययन की दृष्टि से मन्दिर स्थापत्य की शैली को तीन भागों में विभाजन किया
- 1. नागर शैली (उत्तर भारत)
- 2. द्रविड़ शैली ( दक्षिण भारत)
- 3. बेसर शैली (मध्य भारत)
- नागर शैली – समतल छत से उपर उठे शिखर की प्रधानता वाले मंदिर नागर शैली में आते हैं।
- द्रविड़ शैली – द्रविड़ मंदिरों का निचला भाग तो वर्गाकार होता व मस्तक गुम्बदाकार होता था। इनका विस्तार क्षेत्र अगस्त्य कृष्णा व तुंगभद्रा से लेकर कुमारी अंतरीप तक है।
- बेसर शैली – नागर व द्रविड़. शैलियों का मिश्रित रूप है।
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राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिर Rajasthan ke mandir
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अजमेर के मंदिर
- सोनीजी की नसीयां – यह शहर के मध्य पर्यटकों आकर्षित करती, ऊँचे शिखर एवं मान स्तम्भ वाली लाल पत्थर की इमारत है जो प्रथम जैन तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर है। इसका निर्माण प्रारम्भ मूलचन्द सोनी ने किया व इसका निर्माण कार्य पूर्ण टीकमचन्द सोनी ने किया।
- काचरिया मंदिर – किशनगढ़. (अजमेर) में स्थित इस मंदिर में राधाकृष्ण का स्वरूप विराजमान है। कृष्ण का विग्रह अष्ट धातु निर्मित घनश्याम वर्ण का है।
- पुष्कर के प्रमुख दर्शनीय स्थल -1.ब्रह्मा मन्दिर – यह भगवान ब्रह्मा जी को समर्पित एक पवित्र मंदिर है। 2. पुष्कर झील – राजस्थान राज्य के पर्यटन स्थल पुष्कर में अरावली पर्वतमाला के बीच स्थित है। भारत में इस झील को हिन्दुओं के लिए एक पवित्र झील के रूप में जाना जाता है। 3. वराह मंदिर – पुष्कर का सबसे बड़ा व सबसे प्राचीन मंदिर है। जो भगवान वराह द बोअर को समर्पित है। यह भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माना जाता है।
- रंगजी मंदिर – पुष्कर शहर में स्थित रंगजी मंदिर में मुगल वास्तुकला की डिजाइन की झलक देखने को मिलती है।
- दिगम्बर जैन मंदिर – अजमेर में स्थित दिगंबर जैन मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से एक भव्य जैन मंदिर है। यह मंदिर भारत में सबसे अमीर मंदिरों में गिना जाता है।
- अन्य मंदिर – 1. पीपलाज माता का मंदिर – ब्यावर, 2. कल्पवृक्ष मंदिर – मांगलियावास (ब्यावर) 3. बलाङ, का जैन मंदिर – ब्यावर
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अलवर के मंदिर
- नीलकण्ठ महादेव मंदिर, टहला (राजगढ़) – मंदिर के शिलालेख के अनुसार बङगुर्जर राजा अजयपाल ने वि.सं. 1010 के पूर्व ये भव्य मंदिर टहला ग्राम के निकट बनवाया ।
- अन्य मंदिर – 1. नलदेश्वर महादेव मंदिर – थानागाजी, 2. भर्तृहरि मंदिर – भर्तृहरि , 3. प्राचीन हनुमान मंदिर – पाण्डूपोल
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चूरू के मंदिर
- तिरुपति बालाजी मंदिर (सुजानगढ़) – सोहन लाल जानोदिया ने सुजानगढ़ में 2 करोड़ रूपये की लागत से भव्य वैंकटेश्वर मंदिर का निर्माण 1994 में कराया। इटालियन मार्बल, ग्रेनाइट एवं मकराना मार्बल से यह भव्य मंदिर दस हजार वर्ग फीट क्षेत्र में 75 फीट ऊँचा बना हुआ है।
- सालासर हनुमान जी – चूरू जिले के सालासर में हनुमान का प्राचीन मंदिर है। माना जाता है कि सालासर के पास गाँव में हनुमान जी की मूर्ति स्वतः प्रकट हुई थी।
- गोगाजी महाराज का मंदिर – ददरेवा
- साहबा का गुरुद्वारा – साहबा
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डूंगरपुर के मंदिर
- धनमाता व काली माता के मंदिर – धनमाता व कालीमाता के मंदिरों में ताक कला कौशल का अद्भूत नमूना है। इस ताक में रखे जले हुए दीपक को वायु का प्रबलतम वेग भी बुझा नहीं सकता
- श्री नाथ जी मंदिर – इसका निर्माण महारावल पूंजराज ने करवाया इसमें श्री गोवर्धन नाथ व राधिका जी की आदमकद की प्रतिमाएं हैं।
- देव सोमनाथ – डूंगरपुर के पास देव गाँव में सोमनदी के तट पर स्थित मंदिर जिसे 14वीं सदी का माना जाता है। बिना चूना, सीमेंट के मात्र पत्थरों को जमाकर बनाया गया देव सोमनाथ का मंदिर बहुत ही आकर्षक है।
- बेणेश्वर धाम – ‘बागड का पुष्कर’ और ‘बागड का कुम्भ’ नामों से भी प्रसिद्ध है। यह सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर नवाटापरा ग्राम में स्थित है। इसे ‘आदिवासियों का कुम्भ भी कहा जाता है।
- अन्य मंदिर – मामा-भांजा का मंदिर – डूंगरपुर, विजयराज राजेश्वर मंदिर – डूंगरपुर, गवरी बाई का मंदिर – डूंगरपुर, नेमिनाथ स्वामी का डंडा मंदिर – डूंगरपुर
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जयपुर के मंदिर
- गोविन्ददेव जी का मंदिर – भगवान की कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर का मंदिर है।
- शिलामाता का मंदिर – शिलामाता कच्छवाहा राज परिवार की आराध्य देवी थी। नवरात्रों में यहाँ छठ के मेले का आयोजन किया जाता है। वर्तमान में माता को शराब का भोग लगता है
- शिलादेवी संग विराजमान हिंगलाज माता – आमेर के शिलामाता मंदिर में शिलादेवी के संग हिंगलाज माता की आराधना करते थे।
- कल्की मंदिर – जयपुर में बडी चौपड़ के नीचे कलयुग के अवतार कल्की भगवान का विष्णु मंदिर है। यह मंदिर विश्व का पहला कल्की मंदिर है। जयसिंह के दरबारी कवि कलानिधि देवर्षि श्री कृष्ण भट्ट ने भी ईश्वर विलास महाकाव्य में कल्की अवतार का उल्लेख किया है।
- जगत् शिरोमणि मंदिर – आम्बेर के राजमहलों के उत्तर-पश्चिम में पहाडी के तलहटी में जगत् शिरोमणि का भव्य वैष्णव मंदिर बना है। मानसिह प्रथम की रानी कनकावती ने अपने दिवंगत ज्येष्ठ पुत्र युवराज जगतसिंह की 1594 मे असामयिक मृत्यु होने पर उनकी स्मृति को अक्षुण्ण रखने हेतु करवाया।
- नृसिंह मंदिर – यह मंदिर आम्बेर नगरी के पिछवाड़े में प्राचीन कदमी महल में विद्यमान है।
- संघी झूथाराम का मंदिर – संघी झूथाराम मंदिर वर्तमान में यह शिव मंदिर कहलाता है। उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार यह मूलतः एक जैन मंदिर है जो जैन तीर्थकर विमलनाथ को समर्पित था। इस मंदिर की वैदिका में जैन तीर्थकर की प्रतिमाएं स्थापित होनी थी । परन्तु राजनैतिक कारणवश स्थापित नहीं हो पायी।
- लाडली जी का मंदिर – यह मंदिर दक्षिणमुखी ऊँची जगती पर रामगंज बाजार में स्थित है।
- अन्य मन्दिर – गणेश मंदिर (जयपुर), शाकम्भरी माता का मंदिर (सांभर), शीतला माता का मंदिर शील डूंगरी , नकटी माता का मंदिर-भवानीपुरा, ज्वाला माता का मंदिर जोबनेर
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उदयपुर के मंदिर
- जगदीश मंदिर – इसका निर्माण सन् 1651 में महाराणा जगतसिह प्रथम द्वारा करवाया गया। मंदिर मे काले पत्थर से निर्मित भगवान जगदीश की विशाल प्रतिमा स्थित है। इस मंदिर के निर्माण में स्वप्न संस्कृति बड़ा योगदान रहा। इसलिए इसे सपने से बना मंदिर भी कहते हैं।
- एकलिंगजी, कैलाशपुरी – इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी म मेवाड़ के शासक बप्पा रावल द्वारा करवाया गया था।
- अम्बिका मंदिर, जगत – उदयपुर से 56 किलोमीटर दूर जगत गाँव में अम्बिका देवी का भव्य मंदिर बना हुआ है। जो शक्ति पीठ कहलाता हैं। यह मंदिर 10 वी शताब्दी का है जिसमें नृत्य गणपति की विशाल प्रतिमा है। मंदिर में दिक्पाल, यक्ष, किन्नरों व युगल की खजुराहो शैली पर आर्धारित मिथुन मुद्रा में अनेकों मूर्तियां उत्कीर्ण की गई है।
- सास-बहू का मंदिर, नागदा – नागादित्य छठी शताब्दी में मेवाड की राजधानी के रूप में नागदा नगर बसाया था। यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया है। । जिनमे दो संगमरमर के बने हुए मंदिर विद्यमान है। यह मंदिर मुख्यत: भगवान सहस्रबाहु का मंदिर माना जाता है
- अन्य मंदिर – चामुण्डा माता का मंदिर – चामुण्ड, आबूनाथ जी मंदिर – नागदा, ऋषभदेव – धुलेव
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जालौर के मंदिर
- श्री मंदिर – श्री मंदिर नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध ऋषि जालन्धरनाथ की तपोभूमि है। वर्तमान मंदिर का निर्माण मारवाड़ के शासक मानसिह ने करवाया।
- आशापुरा माता का मंदिर (मोदरा) – यह महोदरी माता का प्रसिद्ध मंदिर है। यह जालौर व नाड़ोल के सोनगरा चौहानों की कुल देवी थी। बग
- सुंधादेवी का मंदिर (जसवंतपुरा)- यह जालौर के जसवंतपुरा पहाड़ियों पर सुन्धा पर्वत पर स्थित है। यहाँ स्थित सुन्धा अभिलेख भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण अभिलेखों में से माना जाता है।
- आपेश्वर महादेव – तेरहवीं शताब्दी में बना भगवान अपराजितेश्वर शिव मंदिर आपेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहाँ स्थित शिव प्रतिमा पाँच फीट ऊँची है व श्वेत स्फटिक से निर्मित है।
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झालावाड़ के मंदिर
- सूर्य मंदिर (झालरापाटन) – शहर के बीच बने इस मंदिर को सात सहेलियों का मंदिर व पद्मनाभ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। झालरापाटन को ‘झालरापतन’ व ‘घण्टियों का शहर’ भी कहते हैं। इस शहर को झाला जालिम सिंह ने संवत 1849 में बसाया था।
- शीतलेश्वर / चन्द्रमौलिश्वर महादेव मंदिर – इस मंदिर का निर्माण राजा दुर्ग्गण के सामन्त वाजक ने 746 में करवाया । यह राजस्थान प्रथम तिथि अंकित मंदिर है।
- अन्य मंदिर – शांतिनाथ जैन मंदिर – मंगलवाड, शीतलेश्वर महादेव, काली देवी, शिव विष्णु व वराह के मंदिर समूह – चन्द्रावती
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सवाई माधोपुर के मंदिर
- रणथम्भोर का गणेश मंदिर – भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी / गणेश चतुर्थी को यहाँ पर प्रतिवर्ष ऐतिहासिक गणेश मेला भरता है , यहाँ के गणेश जी त्रिनेत्री है।
- घुश्मेश्वर महादेव मंदिर (शिवाड) – यह बारहवां ज्योतिर्लिंग है। पवित्र महादेव मंदिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि को विशाल मेले का आयोजन होता है।
- अन्य मंदिर – चौथ माता का मंदिर – चौथ का बरवाडा, अमरेश्वर महादेव मंदिर- सवाई माधोपुर, चमत्कारी जैन मंदिर- आलनपुर
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बाँसवाड़ा के मंदिर
- तलवाडा का त्रिपुरा सुन्दरी का मंदिर – त्रिपुरा सुन्दरी के मंदिर में सिंह पर सवार भगवती की 18 भुजा की मूर्ति है व पैरों के नीचे प्राचीनकालीन श्री यंत्र बना हुआ है
- छींछ का ब्रम्हा मंदिर – 12 वीं शताब्दी में बना ब्रम्हाजी का मंदिर राज्य के गिने चुने मंदिरों में से एक हैं। चार मुखों वाली ब्रम्हाजी की इस मूर्ति की स्थापना महारावल जगमाल ने की।
- बागीदोरा का घोटिया अम्बा का मंदिर – पाण्डवों ने वनवास के दोरान कुछ समय यहीं पर गुजारा था पाण्डवों ने भगवान कृष्ण की सहायता से 88,000 ऋषियों को स्वादिष्ट भोजन कराया। व इन्द्र द्वारा प्रदत्त आम की गुठली को यहीं रोपा जहाँ आजभी आम का पेड़ है
- कालिंजरा के जैन मंदिर -बांसवाड़ा के निकट हिरन नदी तट पर कालिंजरा ग्राम में दिगम्बर जैनियों का मंदिर है। यहां पर पार्श्वनाथ जी की खड़ी मूर्ति है।
- पाराहेड़ा का मंडलेश्वर मंदिर – गढ़ी तहसील के पाराहेडा में नीची पहाडी पर नग्न तालाब के किनारे मंडलेश्वर शिव मंदिर है।
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बाड़मेर के मंदिर
- किराडू के मंदिर (राजस्थान का खजुराहो ) ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के किराडू में पांच मंदिर है। जिनमें चार भगवान शिव व एक विष्णु को समर्पित है। यहाँ के मंदिरों में सबसे सुन्दर सोमेश्वर मंदिर के अंतर्गत वहाँ का गर्भगृह, सभामण्डप, गूढ मण्डप, व मूल प्रासाद है किराडू किसी समय परमारों की राजधानी थी
- अन्य मन्दिर – धोरीमन्ना का आलमजी का मंदिर, विरात्रा माता मंदिर, शिव का गरीबीनाथ का मंदिर, नागोणा का नागनेची मंदिर
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बारां के मंदिर
- बारां को प्राचीन समय में वराह नगरी के नाम से भी जाना जाता था।
- भंडदेवरा का शिव मंदिर – (मिनी खजूराहो, हाड़ौती का खजुराहो ) भंडदेवरा का शिव मंदिर 10 वीं सदी में निर्मित हुआ । यहाँ पूर्व में 108 मंदिरों का समूह था। यह मंदिर 10 बड़े 18 छोटे कलात्मक खम्भों पर टिका हुआ सभा मण्डप व गुम्बज कला का बेजोड, नमूना है। यह देवालय पंचायतन शैली में बना हुआ है।
- काकूनी धाम, बारां – परवन नदी के तट पर 108 मंदिरों की “श्रृंखला थी परन्तु अब वहाँ 15-16 मन्दिरों के खण्डहर मात्र है।
- सीता बाड़ी – भगवान राम के परित्याग के बाद सीता ने अपना समय यहाँ व्यतीत किया। सीताबाड़ी में सात कुण्ड है।
- ब्राह्मणी माता का मंदिर, सोरसेन – सारे विश्व में एक यही एक मंदिर है, जहाँ पर देवी की पीठ का श्रृंगार होता है व पीठ की पूजा अर्चना की जाती है पीठ को ही भोग लगाया जाता है व पीठ के ही दर्शन किये जाते है।
- कल्याणजी का मंदिर – इसका निर्माण बूंदी की राजमाता राजकुंवर बाई ने संवत 1537 में करवाया।
- गडगच्च देवालय, अटरू- यहाँ पर 13 वीं शताब्दी के मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमुने देखने को मिलते हैं। अटरू के राधाकृष्ण मंदिर में शिव पार्वती , दुर्गा, गणेश, राधा व कृष्ण की 77 मूर्तियों है।
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भरतपुर के मंदिर
- उषा मंदिर (बयाना ) – यह मंदिर द्वापर कालीन है। प्रेमाख्यान पर आधारित इस मंदिर का जीर्णोद्वार गुर्जर वंश के शासक महीपाल की महिषी रानी चित्रलेखा व पुत्री मंगला राज ने 936 में करवाया ।
- गंगा मंदिर ( भरतपुर) – इस मंदिर का निर्माण बलवन्त सिंह ने 1846 में प्रारम्भ किया। व 1937 में बलवन्त सिंह के वंशज ब्रजेन्द्र सिंह ने गंगाजी की सुन्दर मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई। गंगा मंदिर लाल रंग के पत्थरों से निर्मित 84 खम्भों पर टिका हुआ है। जो हिन्दू, मुगल व बोद्ध शैली में बना हुआ।
- लक्ष्मण मंदिर – माना जाता है की भरतपुर का नाम भगवान राम के भाई भरत पर पड़ा। अपने कुलदेवता लक्ष्मण के लिए पहला मंदिर राजा बदन सिंह ने बनवाया जो वर्तमान में पुराने मंदिर के रूप में जाना जाता है। जबकि नये लक्ष्मण मंदिर का निर्माण महाराजा बलदेव सिंह ने करवाया।
- गोकुलचंद्र मंदिर, कामां – पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के आराध्य गोकुलचन्द्र का प्रसिद्ध मंदिर है।
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भीलवाड़ा के मंदिर
- भीलवाड़ा की स्थापना 11वीं सदी के मध्य हुई। माना जाता है कि यहाँ एक टकसाल थी जिसमे भिलाडी नाम के सिक्के डाले जाते थे। जिस कारण इसका नाम भीलवाड़ा हो गया।
- तिलस्वां महादेव मंदिर (मांडलगढ़) – शिवरात्रि को विशाल मेला यहाँ लगता है तिलस्वां के जलकुण्ड का पानी चर्म रोगियों के लिए दवा का काम करता है।दूर-दूर से यहाँ चर्म व कुष्ट रोगी अपना उपचार करवाते है।
- बारह देवरा – भीलवाड़ा का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ का बड़ा देवरा, पुराना किला व गैबीपीर के नाम से प्रसिद्ध मस्जिद दर्शनीय है।
- सवाई भोज मंदिर (आसींद) – भीलवाडा से 50 किलोमीटर दूर आसींद में सवाई भोज का प्राचीन मंदिर गुर्जर समाज का तीर्थ स्थल है। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद माह में विशाल पशु मेला लगता है।
- अन्य मंदिर – हरणी महादेव शिव मंदिर – भीलवाडा, यक्षणी माता का मंदिर – माण्डल, बीजासण माता का मंदिर – माण्डलगढ़, सिंगोली का श्याम – माण्डलगढ़
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बीकानेर के मंदिर
- करणी माता का मंदिर, देशनोक – बीकानेर के देशनोक गाँव में सुप्रसिद्ध करणी माता का मंदिर है। करणी जी एक सामान्य चारण महिला थी। माना जाता है कि करणी देवी के आशीर्वाद से बीकाजी राठौड़ ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। यहाँ चूहों के दर्शन शुभ माने जाते है।
- कपिल मुनि मंदिर, कोलायत – कपिल मुनि ब्रह्मा के पुत्र महर्षि कर्दम व मनु पुत्री देवभूति पुत्र थे। कपिल द्वारा रचित ग्रन्थ सांख्यशास्त्र है व इनका दर्शन सांख्य दर्शन कहलाता है। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक माह में पांच दिवस का धार्मिक मेला लगता है।
- भाण्डासर जैन मंदिर, बीकानेर – ओसवाल महाजन भाण्डाशाह द्वारा निर्मित भाण्डासर जैन मंदिर अपनी कलात्मक विशेषताओं के कारण दर्शनीय है। इस मंदिर में पांचवें तीर्थंकर सुमितनाथ जी की प्रतिमा है।
- नागणेची मंदिर (बीकानेर) – राठौड़ो की कुल देवी नागणेची है। राठौड़ वंश अपनी कुलदेवी के रूप में यहाँ पर स्थापित माता की मूर्ति की पुजा करते हैं।
- अन्य मंदिर लक्ष्मीनारायण मंदिर, धूनीनाथ मंदिर हेरम्ब गणपति मंदिर, रतन बिहारी मंदिर बीकानेर
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चितौडगढ़ के मंदिर
- बाड़ौली का शिव मंदिर – बाडौली के कलात्मक मंदिर कोटा से 51 किलोमीटर दूर चम्बल व बामिनी नदियों के संगम से 5 किलोमीटर दूर स्थित है। बाड़ौली शैव मत का एक धार्मिक केंद्र था। बाड़ौली के छोटे बड़े कुल 9 मंदिर है जिनमें बाड़ौली के 9 मंदिरों का निर्माण आठवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है।
- कालिका माता का मंदिर – प्रसिद्ध कालिका माता मंदिर का निर्माण मेवाड़ के गुहिलवंशीय राणाओं ने आठवीं व नवीं शताब्दी में करवाया। प्रारम्भ में यह सूर्य मंदिर था मुगलों के आक्रमण के समय सूर्य की मूर्ति तोड़ दी गई व उसकी जगह कालिका माता की मूर्ति स्थापित कर दी गई।
- श्रृंगार चंवरी – चितौडगढ़ दुर्ग पर बनवीर की दीवार के मध्य भाग में राजपूत एवं जैन स्थापत्य कला के समन्वय का एक उत्कृष्ट नमुना श्रृंगार चंवरी के नाम से प्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहाँ महाराणा कुम्भा की राजकुमारी के विवाह की चंवरी है। इसलिए श्रृंगार चंवरी के नाम से जानी जाती है
- मीरां मंदिर – कुम्भश्याम मंदिर के पास ही मीरां मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में मुरली बजाते हुए भगवान श्रीकृष्ण व भक्ति में लीन मीरां का भजन गाती हुई का चित्र लगा हुआ है। व मंदिर के सामने मीरा के गुरु रैदास की स्मारक छतरी बनी है।
- कुंभश्याम मंदिर – यह मंदिर आठवीं शताब्दी में बनाया गया अलाउद्दीन खिलजी आक्रमण से क्षतिग्रस्त हो गया था। महाराणा कुम्भा ने 1505 में इसका जीर्णोद्धार करवाया । इस कारण यह मंदिर कुम्भ स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस मंदिर के अंतर्गत गर्भग्रह अर्धमण्डप सभामण्डप श्रृंगार चौकी आदि भाग है। इस मंदिर में अनेक पाषाण प्रतिमाएं महाराणा कुम्भा ने भी प्रतिष्ठित करवाई
- समाधीश्वर मंदिर – प्राचीन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि 1928 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा मोकल ने कराया।समाधीश्वर मंदिर में जो वास्तु एवं शिल्प की भिन्नता विद्यमान है। इस मंदिर में अन्य मंदिरो की भांति गर्भगृह, अर्धमण्डप व सभा मण्डप आदि है।
- अन्य मंदिर मातृकुंडिया मंदिर – हरनाथपुरा , सप्तमातृका मंदिर बाडोली, सतबीस देवरी – चितौडगढ़, महानालेश्वर मंदिर – मैनाल
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कोटा के मंदिर
- विभीषण मंदिर कैथून – कोटा से 16 किलोमीटर दूर कैथून में स्थित विभीषण मंदिर तीसरी से पांचवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। विशाल मूर्ति धड़ से उपर तक की है।
- गेपरनाथ महादेव मंदिर – रथकांकरा कोटा से 22 किलोमीटर दूर गाँव रथकांकरा के समीप चम्बल घाटी में लगभग 300 फीट गहराई में गेपरनाथ महादेव का मंदिर स्थित है। जो दर्शकों को आकर्षित करता है।
- मथुराधीरा मंदिर पाटनपोल – देश में वल्लभ संप्रदाय के 7 पीठों मे से कोटा की मथुराधीश पीठ प्रथम पीठ है यहाँ पर नन्द महोत्सव दीपावली पर अन्नकूट उत्सव व फागोत्सव मनाये जाते है
- अन्य मंदिर चारचौमा शिवालय, कंसुवा का शिव मंदिर, खटुम्बरा शिव मंदिर (कोटा), बुढादीत का सूर्य मंदिर (दीगोद)
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बूंदी के मंदिर
- केशवरायजी मंदिर (केशवरायपाटन) – केशवरायपाटन में विशाल विष्णु मंदिर बना है जिसका विवरण स्कन्दपुराण, पद्म पुराण वायु पुराण में भी है। केशवराय जी के प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण 1601 ई. में बूंदी के राजा शत्रुसाल ने करवाया। यहाँ पर पाण्डवों की यज्ञशाला, पाण्डवो की गुफा प्राचीन जैन मंदिर हनुमान मंदिर, अंजली माता मंदिर, जम्बू मार्गेश्वर व पांच शिवलिंग मंदिर देखने लायक है।
- अन्य मंदिर – सथूर माता का मंदिर, लड़केश्वर महादेव का मंदिर (बूंदी), खटकड महादेव मंदिर – ननैवा, रक्त दंतिका माता का मंदिर – सतूर।
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करौली के मंदिर
- मदनमोहन जी का मंदिर – मदन मोहन जी की मूर्ति महाराजा गोपल सिंह के द्वारा सन् 1728 में जयपुर से सुबलदास के माध्यम से करौली लाई गई। यहाँ काले मार्बल से निर्मित मदन मोहन जी की मूर्ति है। जयपुर के गोविन्द देव जी, गोपीनाथ जी व करौली के मदनमोहन जी के विग्रहों के एक ही दिन में दर्शन करना शुभ माना जाता है।
- कैलादेवी का मंदिर – यह मंदिर कालीसिंध नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में स्थापित मूर्ति 1114 ई. की है जिसका निर्माण राजा गोपालसिंह द्वारा करवाया गया। कैलादेवी अपनी आठ भुजाओं में शस्त्र लिए हुए सिंह पर सवार है। अंजना के पुत्र हनुमान को लांगुरिया कहा जाता है।
- अन्य मंदिर – महावीर मंदिर – महावीर जी
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पाली के मंदिर
- परशुरामेश्वर मंदिर – मेवाड़ में अमरनाथ के समान महत्व रखने वाला यह तीर्थ सादड़ी से 14 किलोमीटर पूर्व में पाली में स्थित है। यहां एक प्राकृतिक गुफा में भगवान शिव का मंदिर है। माना जाता है कि परशुराम जी ने अपनी माता का वध कर दिया था तो पश्चाताप के लिए महादेव की आराधना इस गुफा में की
- सालेश्वर महादेव का मंदिर – परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि ने इसी स्थल पर तपस्या की। ऐसा माना जाता है कि राजा, सहस्रबाहु ने उसी स्थान पर स्थित ऋषि जमदग्नि के आश्रम में कामधेनु मांग ली। ऋषि ने कामधेनु देने से मना कर दिया इस पर सहस्रबाहु ने कामधेनु को बलपूर्वक ले जाने की चेष्टा की तब जमदग्नि ने सहस्रबाहु को युद्ध में परास्त किया। लेकिन कामधेनु स्वर्ग में चली गई।
- अन्य मंदिर – वराह अवतार मंदिर, चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर (सादड़ी) रणकपुर के मंदिर – आदिनाथ, मुच्छाला महावीर, गजानन्द मंदिर घाणेराव
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राजसमंद के मंदिर
- श्रीनाथद्वारा – राजसमंद से 16 किलोमीटर दक्षिण में वल्लभ संप्रदाय का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल नाथद्वारा स्थापित है।
- द्वारकाधीश का मंदिर – कांकरोली में भगवान द्वारकाधीश का भव्य मंदिर है। यह पुष्टीमार्गीय वल्लभ संप्रदाय का प्रसिद्ध मंदिर है। वल्लभ संप्रदाय के पुजारियों द्वारा यह मथुरा से लाइ गई मेवाड़ के राजा राणा राजसिंह ने 1671 ई. में उन्हें मेवाड़ आमंत्रित किया। पहले यह मूर्ति कांकरोली के निकट आसोटिया ग्राम में स्थापित की बाद में 1719 में भगवान कृष्ण की मूर्ति कांकरोली के वर्तमान मंदिर में स्थापित की गई।
- अन्य मंदिर – जरगाजी का मंदिर – जरगा, बैरा की मठ, कुम्भश्याम मंदिर ( कुम्भलगढ़), आमज माता का मंदिर – रीछेड़।
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सिरोही के मंदिर
- रसिया बालम व कुंवारी कन्या का मंदिर – माना जाता है कि आबू के राजा ने यह घोषणा कि जो कोई भी एक रात में इस पर्वत पर झील खोदेगा उसके साथ वह अपनी लड़की का विवाह करेगा। तब रसिया बालम ने एक ही रात में झील तैयार कर दी, जिसे नक्की झील के नाम से जानते है, लेकिन राजा ने अपनी लड़की की शादी करने से मना कर दिया तो रसिया बालम ने जहर पीकर व राजकुमारी ने भी अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। देलवाडा के जैन मंदिरों के बगल में जहर का प्याला लिए हुए रसिया बालम व राजकुमारी का मूर्तियों सहित मंदिर बना हुआ है।
- अचलेश्वर मंदिर – नक्की झील से 12 किलोमीटर दूर अचलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है।
- मंदिर में कोई शिव प्रतिमा नही है, बल्कि शिवजी का अंगूठा है। अचलेश्वर मंदिर के पास मंदाकिनी कुण्ड है जिसका जल गंगा जल की तरह पवित्र माना जाता है।
- सुर्य मंदिर – सिरोही जिले के विभिन्न स्थानों पर अनेक सूर्य मंदिर है। जिनमे बसंतगढ़, वासा, अनाद्रा, मुंगथला व पीडवाडा के सूर्य मंदिर मुख्य है। सूर्य मंदिर में प्राचीन उपलब्ध मंदिरों में सातवीं शताब्दी का मन्दिर सबसे प्राचीन है जो वरमान में स्थित है।
- अम्बाजी मंदिर – आबू रोड से 12 किलोमीटर दूर अम्बाजी मंदिर है अम्बाजी के सम्बन्ध में कहा जाता है कि यहां बाल कृष्ण का मुंडन संस्कार हुआ था। व माना जाता है कि कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण यहीं से किया।
- अर्बुदा देवी का मंदिर – अर्बुदा देवी आबू की अधिष्टात्री के रूप में पूजी जाती है।
- अन्य मन्दिर – गोपेश्वर जी का शिव मंदिर, लक्ष्मीनारायण का मंदिर (पिण्डवाडा) क्षेमकारी माता का मन्दिर, ब्रह्मा मंदिर (बसलगढ़ः)
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दौसा के मंदिर
- आभानेरी – यह स्थान जयपुर अलवर सड़क पर बांदी कुई से 7 कि मी दूर स्थित है। हर्षतमाता के मंदिर से प्राप्त खण्डहरों से गुर्जर प्रतिहारकालीन उत्कृष्ट कला के केन्द्र का पता चलता है। माना जाता है कि यह नगरी निकुम्भ चौहानों की राजधानी थी जिसे प्रसिद्ध राजा चंद ने बसाया। यह स्थान हर्षतमाता के मंदिर व चांद बावड़ी के कारण अत्यन्त प्रसिद्ध हो गया
- चाँद बावड़ी – आभानेरी में ही हर्षतमाता के मंदिर से कुछ दूर ही चाँद बावड़ी है। बावड़ी में तीन और सीढ़ियाँ है जो हजारों की संख्या में है।
- मेहंदीपुर बालाजी – आगरा बीकानेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिकन्दरा से 26 किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित मेहंदीपुर बालाजी का मंदिर भारत के हिन्दुओं के आस्था का केंद्र है। यहाँ पर भूत-प्रेतों की बाधा से मुक्ति दिलवायी जाती है।
- झांझीरामपुरा – इसकी स्थापना ठाकुर रामसिंह ने की, यहाँ झाझेश्वर महादेव का मंदिर है। एक ही जलहरी में 121 महादेव है। यहाँ पर स्थित गौमुख से सर्दियों में गरम व गर्मियों में ठंडा पानी आता है। यहाँ पर श्रावण मास में विशाल मेले का आयोजन होता है।
- भाण्डारेज – दौसा का भाण्डारेज गाँव प्राचीन कला व संस्कृति की अनोखी मिसाल है। यहाँ बावडियों, कुण्ड, भूतेश्वर, महादेव मंदिर हनुमान मंदिर व गोपालगढ़ स्थित है।
- अन्य मंदिर – लक्ष्मण मंदिर, कटारमल भैरव मंदिर, गोपालजी का मंदिर। (सिकन्दरा), नीलकण्ठ महादेव मंदिर, गिर्राजजी मंदिर (दौसा)
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सीकर के मंदिर
- खाटू श्याम जी – सीकर के खाटू गाँव मे श्याम जी प्रसिद्ध मंदिर है। फाल्गुन सुदी 7 वि.स.1777 में अजमेर के राजा राजेश्वर अजीत सिंह सिसोदिया के पुत्र अभयसिंह ने वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया। खाटू श्यामजी में महाभारत कालीन योद्धा बर्बरीक का मंदिर है जो भीम का पोत्र था जिसका सिर भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध से पहले ही उतार दिया तो कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तेरी पूजा मेरे नाम से होगी। यहाँ पर कार्तिक व फाल्गुन माह में विशाल मेले का आयोजन होता है
- जीण माता का मंदिर – सीकर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जीण माता का मंदिर है जो दसवीं सदी का माना जाता है। यहां पर चैत्र व अश्विन नवरात्रों में मेले का आयोजन होता है। जीण माता का गीत राजस्थान में सभी लोक देवी-देवताओ में सबसे लम्बा गाये जाने वाला गीत है।
- हर्ष पर्वत का शिव मंदिर – यह दसवीं सदी का प्राचीन शिव मंदिर। माना जाता है कि त्रिपुरा वध के बाद इंद्र द्वारा भगवान शिव की हर्ष नाम से स्तुति की।
- अन्य मंदिर – शाकम्भरी माता का मंदिर (सीकर), मुरली मनोहर (लक्ष्मणगढ़)
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नागौर के मंदिर
- दधिमति माता का मंदिर (गोठ मांगलोद) – नागौर की जायल तहसील में गोठ मांगलोद नामक गाँव की सीमा पर यह मंदिर है। दाहिमा ब्राह्मण इस मंदिर को अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित मानते है यह मंदिर सातवीं से नवीं शताब्दी पूर्व में निर्मित है।
- कैवाय माता का मंदिर – नागौर जिले के परबतसर के निकट किणसरिया गाँव में पर्वत शिखर पर बना कैवाय माता का मंदिर है।
- चारभुजानाथ का मंदिर (मेड़ता)- इस मंदिर की स्थापना राव दूदा ने की। यहाँ मीराबाई, संत तुलसीदास, रैदास अदि की प्रतिमाएँ है।
- अन्य मंदिर – भांवल माता का मंदिर, ब्राह्मणी माता का मंदिर (नागौर), मीरा बाई का मंदिर (मेड़ता सिटी)
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धौलपुर के मंदिर
- सैपऊ महादेव – इस मंदिर मे विशाल शिव लिंग है। गंगा स्नान को जाने वाले लोग गंगाजी से नंगे पैर पैदल चलकर गंगाजल की कावड़ कन्धों पर लाकर शिव का अभिषेक करते हैं।
- मचकुण्ड तीर्थ – यह प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जो गंधमादन पर्वत पर स्थित है। माना जाता है की मचकुण्ड में स्नान से चर्मरोग दूर हो जाते हैं।
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टोंक के मंदिर
- कल्याणजी का मंदिर (डिग्गी) – इसका निर्माण कार्य मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह के राज्यकाल में हुआ । यहाँ पर विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा है। यहाँ कुष्ठ रोग से मुक्ति व दीन दुःखियों के कष्टों का निवारण होता है। भाद्रपद एकादशी व वैशाख मास की पूर्णिमा को विशाल मेले का आयोजन होता है।
- अन्य मंदिर – माण्डकला के 16 प्राचीन मंदिर
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झुंझुनू के मंदिर
- सती माता का मंदिर – अपने पति की चिता पर प्राणोत्सर्ग कर देने वाली सतियों की भी देवियों की तरह पूजा होती है। झुंझुनूं की राणी सती पूरे प्रदेश में पूजी जाती है। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद अगावस्या को मेला भरता है।
- अन्य मंदिर – मनसा माता का मंदिर, खेमी शक्ति मंदिर, लक्ष्मीनाथ जी मंदिर व अरविन्द आश्रम (खेतडी)
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जोधपुर के मंदिर
- ओसियां के मंदिर – जोधपुर से 57 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा ओसियां स्थित है। यह 8 वीं व 9 वीं शताब्दी में एक हिन्दू वैष्णव व जैन धर्मावलम्बियों का प्रमुख तीर्थस्थल रहा है। ओसियां एक प्रकार का देवालय नगर है। यहां पर लगभग 16 हिन्दू व जैन मंदिरों के अवशेष है।
- मंडोर – जोधपुर मारवाड़ क्षेत्र में आठवीं , नवीं व दसवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार नरेशों के राज्यकाल में अनेक मंदिरो का निर्माण हुआ। मंडोर के वैष्णव मंदिर के अवशेष व तोरणद्वार के दो कृष्णलीला युक्त स्तम्भ अब जोधपुर संग्रहालय में है।
- अन्य मंदिर – चामुण्डा देवी का मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, आनन्दधन मंदिर (मेहरानगढ़), गंगश्याम मंदिर व घनश्याम मंदिर (जोधपुर)
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जैसलमेर के मंदिर
- चुंधी गणेश तीर्थ मंदिर – जैसलमेर जिले में स्थित एक गणेश मंदिर के बारे में मान्यता है। कि यहाँ गणेश जी की सच्चे मन से प्रार्थना करता है उसका अपने घर का सपना साकार हो जाता है। घर की मन्नत पूर्ण करने के लिए यह मंदिर प्रसिद्ध है।
- तनोट देवी को मंदिर – इसे मरुस्थल की वैष्णव देवी कहा जाटा है। यह भाटियों की कुल देवी है। इसे सेना की देवी भी कहा जाता है।
- अन्य मंदिर – आशापूर्णा मंदिर, खिंवज माता का मन्दिर पोकरण , घटियाली माता का मंदिर (तनौट)
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प्रतापगढ के मंदिर
- गोतमेश्वर महादेव – गोतमेश्वर महादेव आदिवासी मीणों के आराध्य देव है, अरनोद में यह गोतम ऋषि का स्थान माना जाता है
- अन्य मंदिर – भंवर माता छोटी सादड़ी सीता माता का मंदिर सीता माता अभ्यारण्य दीपनाथ महादेव का मंदिर प्रतापगढ़