राजस्थान के दुर्ग व किले
- सम्पूर्ण भारत देश में राजस्थान वह प्रदेश है जहाँ पर महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश के बाद सर्वाधिक गढ़ व दुर्ग बने हुए हैं।
- राजस्थान के दुर्ग व किले
- राजस्थान के दुर्ग :- ऐसा भवन जिसमें राज्य की सुरक्षा हेतु पर्याप्त संसाधन हो दुर्ग या गढ़ कहलाते हैं ।
- किला :- राज्य का छोटा भवन जिसमें सुरक्षा के पर्याप्त संसाधन न हो।
- दुर्गों का पहला प्रमाण हड़प्पा सभ्यता में मिला
- दुर्गो का सर्वप्रथम वर्गीकरण मनुस्मृति में किया गया।
- मनुस्मृति के आधार पर दुर्ग 6 प्रकार के होते हैं
- कौटिल्य ने दुर्गों की चार श्रेणियाँ बताई-
- 1.गिरी श्रेणी – पहाड़ी पर स्थित दुर्ग।
- 2.औदुक दुर्ग – नदियों के संगम पर स्थित
- 3.वन दुर्ग – जंगल से घिरा हुआ दुर्ग
- 4.धान्वन दुर्ग – समतल भूमि पर स्थित दुर्ग ।
राजस्थान के दुर्ग व किले
- शुक्र नीति के अनुसार दुर्ग 9 श्रेणियों के होते है।
- गिरी दुर्ग – पहाड़ी पर निर्मित दुर्ग।
- एरण दुर्ग – ऐसा दुर्गे जहाँ तक पहुँचने का मार्ग कठिन व दुर्गम हो
- वन दुर्ग – घने जंगलों में निर्मित दुर्ग ।
- धान्वन दुर्ग – समतल सतह पर निर्मित दुर्ग ।
- जल दुर्ग – नदियों के संगम स्थल पर निर्मित दुर्ग ।
- पारिख दुर्ग – चारों तरफ गहरी खाई युक्त दुर्ग।
- पारिध दुर्ग – ऐसा दुर्ग जिसके चारों तरफ परकोटा हो
- सैन्य दुर्ग – ऐसा दुर्ग जिसमे सैनिक निवास करते हो।
- सहाय दुर्ग – जहाँ सैनिक व आसजन दोनों निवास करते हो।
- राजस्थान के दुर्ग व किले
- मनुस्मृति व कौटिल्य के अनुसार सर्वश्रेष्ट दुर्ग गिरी दुर्ग हैं।
- शुक्रनीति के अनुसार सर्वश्रेष्ट दुर्ग सैन्य दुर्गे है।
- 21 जून 2013 को युनेस्को ने राजस्थान के छ: दुर्गों को विश्वविरासत में शामिल किया।
- 1. गागरोन ( झालावाड़)
- 2. जैसलमेर
- 3. चितौडगढ़.
- 4 . रणथम्भौर
- 5. कुंभलगढ़
- 6. आमेर
- T.H.हेण्डले के अनुसार राजस्थान की आकृति पतंगाकार व विषम कोणीय चतुर्भुजाकार है।
- उत्तरी सीमा का प्रहरी / रक्षक/ प्रवेश द्वार – भटनेर ( हनुमानगढ़)
- पूर्वी सीमा का प्रहरी / रक्षक / प्रवेश द्वार – लोहागढ़ (भरतपुर)
- दक्षिणी सीमा का प्रहरी / रक्षक / प्रवेश द्वार – चितौड़गढ़
- पश्चिमी सीमा का प्रहरी / रक्षक / प्रवेश द्वार – सोनारगढ़ (जैसलमेर)
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राजस्थान के प्रसिद्ध दुर्ग
- राजस्थान का सबसे प्राचीन दुर्ग – भटनेर ( हनुमानगढ)
- मिट्टी से निर्मित दुर्ग – 1. लोहागढ़ दुर्ग 2.भटनेर दुर्ग
- राजस्थान का सबसे नवीन दुर्ग – 1.मोहनगढ़, (जैसलमेर) 2.लोहागढ़ (भरतपुर)
- सर्वाधिक आक्रमण वाला दुर्ग – तारागढ़ (अजमेर)
- सर्वाधिक विदेशी आक्रमण वाला दुर्ग – भटनेर दुर्ग
- सर्वाधिक गहराई मे स्थित दुर्ग – लोहागढ़
- सर्वाधिक बुर्जो वाला किला – सोनारगढ़
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राजस्थान के प्रमुख दुर्ग
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जैसलमेर का किला (सोनारगढ़)
- जैसलमेर के सोनारगढ़ के नाम से प्रसिद्ध दुर्ग की नींव जैसलभाटी ने 1155 में रखी। उनकी मृत्यु होने पर 1164 में उनके पुत्र शालिवाहन द्वितीय ने इस दुर्गे का अधिकांश निर्माण करवाया।
- सोनारगढ़ किले का प्रवेश द्वार अक्षयपोल कहलाता है।
- सोनारगढ़ किले में ही गढ़ीसर | घडसीसर झील स्थित है।
- 2009 में इस दुर्गे पर 5रु. का डाक टिकट भी जारी हुआ।
- इस दुर्ग का परकोटा घाघरेनुमा है। इस कारण इसे घाघराकोट या कमरकोट भी कहते है।
- इस दुर्गे के निर्माण में चुना व सीमेन्ट का प्रयोग न कर जिप्सम पत्थर का ही प्रयोग किया।
- राजस्थान के इस दुर्गे पर सत्यजीत रे ने सोनार किला फिल्म बनाई।
- यह दुर्गे सर्वाधिक बुर्जों वाला (99 बुर्जे) किला है।
- इस दुर्गे का प्रमुख मंदिर लक्ष्मीनाथ जी का मन्दिर है जिसमें जैसलमेर शासको के आराध्य देव मूर्ति मेड़ता से लाई गई।
- इस दुर्गे का प्राचीन मंदिर आदिनाथ जी (जैन मंदिर) का है।
- अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा कि घोड़ा कीजे काठ का पग किजे पाषाण शरीर राखे बखतरबंद ते पहुँचे जैसाण।.
- जैसलमेर दुर्गे ढाई शाकों के लिए प्रसिद्ध है जो निम्न है-
- जैसलमेर का प्रथम शाका भाटी शासक मूलराज द्वितीय व अलाउदीन खिलजी के मध्य 1312 ई मे हुआ।
- जैसलमेर का दुसरा शाका रावल दूदा व दिल्ली के फिरोजशाह तुगलक के मध्य 1370-71 में हुआ
- तीसरा अर्द्धशाका 1550 में जैसलमेर शासक राव लुणकर्ण व कंधार शासक अमीर अली के मध्य हुआ। इसमें वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जौहर नही हुआ इसलिए इसे अर्द्धशाका कहा।
- Note: राजस्थान इतिहास का यह एकमात्र अर्द्धशाका हुआ। राजस्थान के इस दुर्गे को युनेस्को ने जुन 2013 में विश्वविरासत में शामिल किया
- जैसलमेर दुर्गे ने जैसलु कुआ स्थित है जो भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से निर्मित हैं।
- सिलवटों द्वारा 5 मंजिला बादल महल का निर्माण करवाया जो राजस्थान का सबसे ऊँचा बादल महल है। इस बादल महल में ताजिया टावर स्थित है
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भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़ )
- इस दुर्गे का निर्माण तीसरी सदी के अन्त में भूपत भाटी द्वारा सरस्वती या धग्घर नदी के तट पर किया।
- इस दुर्गे का अन्य नाम उत्तरी सीमा का प्रेहरी है व वास्तुकार कैकेया है
- यह दुर्ग दिल्ली मुल्तान मार्ग पर स्थित है
- भटनेर दुर्ग राजस्थान का सबसे प्राचीन दुर्ग है।
- भटनेर दुर्ग पर सबसे अधिक विदेशी आक्रमण हुए।
- 1003 में महमुद गजनवी का प्रथम विदेशी आक्रमण हुआ। व अंतिम विदेशी आक्रमण 1532-34 का कामरान का हुआ
- इस दुर्ग में शेर खां की कब्र स्थित है। जो गयासुदीन बलबन का भाई है।
- भटनेर दुर्ग में गुरु गोरखनाथ का मंदिर स्थित हैं
- यह दुर्ग राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जहाँ पर मुस्लिम महिलाओं ने जौहर किया। जौहर 1399 ई. मे हुआ उस समय भटनेर का शासक दूलचंद था व आक्रमण तेमूर लंग का हुआ।
- इस जौहर का प्रमाण तैमुर लंग की आत्मकथा ‘तुजुक ए तैमुरी मे मिलता है
- 1805 ई. में बीकानेर शासक सुरतसिंह ने भटनेर शासक जावता सिंह भट्टी को मंगलवार के दिन पराजित कर इसका नामकरण हनुमानगढ़ किया
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जुनागढ का दुर्ग (बीकानेर)
- निर्माण 1589-94 में रायसिंह के द्वारा करवाया गया
- यह किला राती घाटी में बीका की टोकरी के ऊपर निर्मित दुर्ग है
- जुनागढ का दुर्ग धान्वन दुर्ग की श्रेणी में अता है।
- जमीन का जेवर इस दुर्गे को कहा जाता है।
- यह दुर्गे सुर सागर झील के किनारे स्थित है।
- जुनागढ के मुख्य द्वार पर गजरुढ़ जयमल व फत्ता की मूर्तियां स्थित है। जो मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के सेनापति थे।
- जुनागढ के दुर्ग में नागणेची माता का मंदिर है। व लक्ष्मीनाराय जी का मंदिर ( जुनागढ का आकर्षक मंदिर) इसका निर्माण रतनसिंह ने करवाया।
- राजस्थान का प्रथम दुर्ग जिसमे लिफ्ट लगी हैं
- इस दुर्ग में गंगासिंह का लड़ाकू विमान स्थित है
- इस दुर्ग में तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर है, यह अनूपसिंह के शासन काल के समय का है व इसमें मूर्तियां धातु से निर्मित है।
- जुनागढ दुर्ग में अनूप संस्कृत पुस्तकालय है। जिसका निर्माण अनुसिंह ने कराया। इसमें राणा कुम्भा के ग्रंथों का संकलन
- इस दुर्ग में अनूप महल है। जिसका निर्माण अनुपसिंह ने करवाया व यह प्रसिद्ध बीकानेर राजाओं के राज्यभिषेक के लिए प्रसिद्ध है जिनका राज्यभिषेक गोदारा जाति द्वारा किया जाता था।
- जुनपगढ़ दुर्ग में गज विलास महल है जिसका निर्माण गंगासिंह करवाया। इसमें सोने चांदी से निर्मित बैड, सोफा व वेशभूषा स्थित है
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मेहरानगढ दुर्ग (जोधपुर)
- निर्माण 1459 मे बाव जोधा द्वारा किया गया
- दुर्ग की नींव करणी माता रिद्धि बाई ने रखी।
- इस दुर्ग की श्रेणी गिरिदुर्ग।
- पंचेतिया पहाड़ी / चिड़िया टुक पहाड़ी पर स्थित है
- मेहरानगढ़ दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर पूर्व में जयपोल व दक्षिणी पश्चिमी में शहर के अंदर से फतेहपोल है। व एक अन्य मुख्य प्रवेश द्वार लोहा पोल है
- मेहरानगढ़ दुर्ग को कागमुखी गढ़ मयुरध्वज गढ़, जोधा की ढाणी, सूर्यगढ़ , गढ़ चिंतामणि, मारवाड़ का सिरमोर, बिहंगढ़ आदि नामों से जाना जाता है
- मेहरानगढ़, दुर्ग में मामा भांजा छतरी है। जिसका निर्माण अजितसिंह ने करवाया
- मेहरानगढ़ दुर्ग में मान प्रकाश पुस्तकालय स्थित है। जिसका निर्माण मानसिंह द्वारा करवाया गया।
- मेहरानगढ़ की मुख्य तोपें
- किलकिला, गजनी, शम्भूबाण, गजक, गुब्बार जनजमा, कङक, बिजली, घुडधाणी आदि
- मेहरानगढ़ दुर्ग में पेयजल स्रोतों में रानीसर लालाब जिसका निर्माण जोधा की पत्नी जसमा दे ने करवाया व पदमसर तालाब सेठ पद्मशाह द्वारा निर्मित जिसका निर्माण राव गंगा की पत्नी पद्मावती ने करवाया
- दुर्ग के भीतर फ़तेह महल, फूल महल, श्रृंगार चंवरी महल, जसंवत थड़ा महल स्थित हैं। जिनमे फूल महल (अभयसिंह द्वारा निर्मित) मेहरानगढ़ का सबसे आकर्षक महल है।मेहरानगढ़ दुर्गे में चामुण्डा माता मंदिर है। जिसका निर्माण राव जोधा द्वारा किया गया। चामुण्डा माता राठौड़ राजवंश की आराध्य देवी थी इनका मेला नवरात्रों मे लगता है
- इस दुर्ग के बारे में रुडयार्ड क्लिपिंग ने कहा कि इसका निर्माण तो परियों व फरिश्तो ने करवाया।
- जैकलीन कैनेडी ने इस दुर्ग को दुनिया का आठवां अजुबा कहा
- बिल गेटस जोधपुर को नीला शहर बताया।
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चितौडगढ दुर्ग
- चितौडगढ़ दुर्ग के निर्माता चित्रांगद मौर्य ( 8वी सदी में) थे
- चितौड़गढ़, दुर्ग के उपनाम – दुर्गों का सिरमौर, राजस्थान का गौरव, मालवा का प्रवेशद्वार, दक्षिणी सीमा का प्रहरी, त्याग व बलिदान का दुर्ग।
- चितौडगढ़ दुर्ग मे राजस्थान का सबसे बडा लिविंग फोर्ट है।
- राजस्थान का एकमात्र दुर्ग जिसमें खेती होती है।
- चितौड़गढ़ दुर्ग की आकृत्ति व्हेल मछली के समान है।
- चितौड़गढ़ दुर्ग पर प्रथम विदेशी आक्रमण मामू अफगान का हुआ
- चितौडगढ, दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने कहा कि गढ़ तो चितौड़गढ़ बाकी सब गढैया
- चितौड़गढ़ दुर्ग के प्रमुख तीन शाके –
- राजस्थान इतिहास का सबसे बड़ा शाका 26 अगस्त 1303 को रावल रतनसिंह व अलाउद्दीन खिलजी के बीच हुआ।
- इस शाके में रानी पद्मिनी ने जोहर किया।
- चितौड़गढ़ में प्रतिवर्ष चैत्र मास मे जौहर मेला लगता है।
- दुसरा शाका 1534 में गुजरात के शासक बहादुरशाह व रावल बाघसिंह के बीच हुआ।
- इस शाके में जौहर रानी कर्मावती ने किया
- तीसरा शाका 1567-68 मुगल बादशाह अकबर व फतेहसिंह सिसोदिया के बीच हुआ। इस शाके में जौहर फूल कँवर ने किया।
- चितौडगढ दुर्ग में प्रमुख जलाशयों के अन्तर्गत घी तेल बावडी, भीमलत कुण्ड, रत्नेश्वर तालाब, घोसुण्डी की बावडी, खातण कीबावड़ी है।
- चितौड़गढ़ में नवलखा / नवकोटा भण्डार है। जिसका निर्माण बनवीर मे करवाया इससे चितौडगढ़ का लघु दुर्ग कहते हैं।
- चितौड़गढ़ के प्रमुख मंदिर
- 1. मीरा मंदिर- मंदिर का निर्माण राणा सांगा ने कराया। इस मंदिर की मूर्ति वर्तमान में आमेर दुर्ग के जगतशिरोमणी मंदिर में स्थित।
- 2. तुलजा भवानी मंदिर – मंदिर का निर्माण बनवीर द्वारा करवाया गया
- 3. कलिका माता का मंदिर – चितौड़गढ़ दुर्ग का सूर्य मंदिर
- 4. श्याम पार्श्वनाथ मंदिर – मंदिर का निर्माण रावल तेजसिंह की पत्नी जैतल देवी द्वारा
- 5.चितौड़गढ़ में कीर्तिस्तम्भ / जैन प्रशस्ति है जिसका निर्माण जैन व्यापारी जीजाशाह द्वारा करवाया गया है। इसमें कुल सात मंजिलें है व इसकी ऊँचाई 76 फीट है
- चितौड़गढ़ में विजयस्तम्भ है जिसका निर्माण राणा कुंभा द्वारा 1440 – 48 के मध्य हुआ।
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कुम्भलगढ़ (राजसमन्द)
- कुंभलगढ़ दुर्ग के उपनाम – मेवाड मारवाड सीमा का प्रहरी, मेरुदंड मेवाड राजाओं की शरणस्थली , मेवाड़ की तीसरी आंख, एस्त्रकुन दुर्ग (कर्नल टॉड) ने बताया।
- मारवाड़ की सीमा पर सादड़ी नामक स्थान पर निर्मित (राजसमंद) जिले में अरावली पर्वतमाला की 3568 फीट ऊँची चोटी पर स्थित दुर्ग का निर्माता महाराणा कुंभा (1443-1458) ने वास्तुकार मण्डन की देखरेख में बनाया।
- महाराणा कुम्भा ने इस दुर्ग का निर्माण पत्नी कुंभलमेरु हेतु करवाया
- कुम्भलगढ़ दुर्ग में कुम्भ श्याम मंदिर जिसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया। इस मंदिर में साढ़े पांच फीट की शिवलिंग है
- अबुल फजल ने कहा – यह दुर्ग तो इतनी बुलंदी पर है, इसके नीचे से उपर देखने पर सिर को पगड़ी गिर जाती हैं।
- कुंभलगढ़ दुर्ग में प्रवेश ओरठपोल मे होता है
- कुंभलगढ़ दुर्ग में झाली रानी का मालिया स्थित है जिसे अटपटा महल भी कहते है।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग में नीलकंठ महादेव का मंदिर स्थित है, जिसे कर्नल टॉड ने यूनानी शैली का मंदिर कहा।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग में पृथ्वीराज सिसौदिया की 12 स्तंभों की छतरी बनी हुई है। जो उड़ना राजकुमार की छतरी के नाम से प्रसिद्ध है
- कुंभलगढ़ दुर्ग के चारों तरफ 36 किलोमीटर लम्बी व 8 किलोमीटर चौड़ी दीवार है जिसे भारत की महान दीवार कहते है।
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तारागढ़ (अजमेर)
- इस दुर्ग के उपनाम – राजपुताना की कुंजी / अरावली का अरमान / राजस्थान का हृदय , गढ़ बीठली, इस दुर्ग का प्रारम्भिक नाम अजयमेरु दुर्ग था।
- अजमेर जिले के इस दुर्ग का निर्माण सातवीं शताब्दी में चौहान शासक अजयपाल ने तारागढ़ पर्वत की बीठली पहाड़ी पर करवाया।
- अजयराज के द्वारा 1113 में अजमेर शहर की स्थापना की गई। इसे विशप हैबर ने राजस्थान का जिब्राल्टर कहा।
- इस का प्रथम बार जीर्णोद्धार उड़ना रामकुमार पृथ्वीराज सिसोदिया ने करवाकर अपनी वीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा।
- राजस्थान का प्रथम तरणताल इस दुर्ग में बना।
- तारागढ़ दुर्ग में सिसखाना गुफा व सैयद हुसैन खिंगसवार की दरगाह भी है
- मुग़ल उत्तराधिकारी दाराशिकोह ने इसी दुर्ग में आश्रय लिया।
- तारागढ़ दुर्ग की प्राचीर में 17 बुर्ज है। जिनमें घूंघट बुर्ज, श्रृंगार बुर्ज, इमली बुर्ज, तापी बुर्ज, नगारची बुर्ज आदि स्थित है।
- तारागढ़ पहाडी पर राज्य सरकार ने पृथ्वीराज्य स्मारक स्थापित किया जहाँ पर पृथ्वीराज की घोड़ी पर सवार प्रतिमा है।
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मैग्जीन दुर्ग (अकबर का किला) अजमेर
- अकबर ने 1570 में अजमेर नगर के मध्य अकबर का किला जिसे मैग्जीन दुर्ग भी कहते हैं का निर्माण करवाया।
- मैग्जीन दुर्ग के प्रवेश द्वार को जहाँगीरी पोल के नाम से जानते है।
- यह दुर्ग धान्वन श्रेणी का है।
- इस दुर्ग की नींव संत दादू दयाल ने राखी
- 1576 में हल्दीघाटी युद्ध की योजना इस दुर्ग में बनी
- जहाँगीर ने सर टॉमस रो को भारत मे बसने की अनुमति इस दुर्ग में दी।
- वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा 1905 में इस दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया
- मैग्जीन दुर्ग राजस्थान का एकमात्र दुर्ग जो पूर्ण रूप से मुग़ल शैली में निर्मित है।
- 1908 में राजपुतना संग्राहलय की स्थापना इसी दुर्ग में हुई। जिसके प्रथम अध्यक्ष हीरानंद औझा बने।
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टॉडगढ़, (अजमेर)
- अजमेर जिले में स्थित यह दुर्ग कर्नल जेम्स टौड द्वारा निर्मित है जिन्हें राजस्थान इतिहास का जनक व घोडे वाले बाबा के नाम से भी जानते हैं।
- गोपालसिंह खरवा व विजयसिंह पथिक को इसी दुर्ग में केद रखा गया।
- वर्तमान में यहाँ जेल संचालित है
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गागरोण का दुर्ग (झालावाड.)
- दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के सबसे प्राचीन व विकट दुर्ग में गागरोण दुर्ग भी एक जलदुर्ग या औदुक दुर्ग है।
- जो कालीसिंध व आहु नदी के संगम पर है।
- इस दुर्ग का निर्माण 11 वीं शताब्दी में डोड परमारों द्वारा करवाया गया उनके नाम पर यह डोडगढ़ कहलाया ।
- उसके बाद यह दुर्ग खींची चौहानों के अधिकार में आ गया।
- चौहान कुल कल्पद्रुम के अनुसार गागरोण के खींची राजवंश का संस्थापक देवनसिंह था। जिसने बीजलदेव नामक डोड शासक को मारकर धूलरगढ पर अधिकार कर लिया उसका नाम ही गागरोण रखा।
- गागरोण दुर्ग के उपनाम डोडगढ, धुलरगढ़ः, शाहगढ़, गीधकगढ
- गागरोण का प्राचीन नाम गर्गराटपुर था।
- इसका नामकरण गागरोण देवीसिंह खिची ने किया।
- इस दुर्ग में 2 शाके हुए
- प्रथम शाका – गागरोण के प्रथम शाके का विवरण शिवदास गाडण कृत अचलदास खिंची री वचनिका में मिलता है जिसमे सन्न 1423 ई.में अचल दास खिंची (भोज का पुत्र) व मांडू के सुलतान अलपंखा गौरी के मध्य भीषण युद्ध हुआ व अंत में दुर्ग का भार सहजादे जगनी खां को सोंपा
- दूसरा शाका – सन्न 1444 ई. में महमूद खिलजी ने विजय के बाद दुर्ग का नाम बदलकर मुस्तफाबाद रखा
- इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वी राज ने वेली किशन रुक्मणी ग्रन्थ गागरोण में ही लिखा
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रणथम्भौर दुर्ग
- रणथम्भौर दुर्ग के उपनाम – चितौडगढ़ का छोटा भाई, दुर्गाधिराज, हम्मीर की आन – बान का प्रतीक
- रणथम्भौर दुर्ग की गिरी, एरण, वन तीनों श्रेणीयां हैं।
- इस दुर्ग में पीर सदरुद्दीन की दरगाह है।
- ऐसी मान्यता है कि इस दुर्ग का निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों ने करवाया
- रणथम्भौर का प्राचीन रन्त पुर था जिसका शाब्दिक अर्थ है रण की घाटी
- राजस्थान का सबसे बड़ा गणेश मंदिर इस दुर्ग में ही स्थित, जिसे रणत भंवर / त्रिनेत्र गणेश मंदिर के नाम से जानते है।
- रणथम्भौर दुर्ग में 32 खम्भों की छतरी स्थित है जिसका निर्माण हम्मीरदेव चौहान के पिता जयसिन्हा / जैत्रसिंह ने अपने शासनकाल में करवाया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने 11 जुलाई 1301 ई. को आक्रमण किया हम्मीर विश्वासघात के परिणामस्वरूप लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। व उनकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर किया यह (एकमात्र जल जौहर था )
- रणथम्भौर दुर्ग में सुपारी महल, जौरा भौरा महल, हम्मीर महल, जोगी महल, हम्मीर कचहरी स्थित है अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा की यह दुर्ग तो बख्तरबंद है बाकि दुर्ग नंगे है
- जलालुद्दीन खिलजी ने कहा की में ऐसे 10 दुर्गों को मुसलमान के बाल के बराबर नही समझाता
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आमेर दुर्ग
- आमेर दुर्ग के उपनाम – हाथियों का किला, अम्बेवती दुर्ग, अम्बरीश दुर्ग , अम्बेपुर दुर्ग
- आमेर दुर्ग की गिरी श्रेणी है। जो काली खोह पहाड़ी पर स्थित है।
- आमेर दुर्ग में मिर्जा जयसिंह द्वारा दीवान-ए-खास का निर्माण करवाया जिसमें राजा अपने विशिष्ट सामंतों व मुख्य व्यक्तियों से मिलता व दीवान-ए-आम में राजा के दरवार का आयोजन होता था
- आमेर दुर्ग के किनारे मावटा झील स्थित है
- राजस्थान का एकमात्र दुर्ग जहाँ मीणा बाजार स्थित है
- आमेर दुर्ग राजपूत व मुग़ल शैली में निर्मित है।
- विश्प हैबर ने कहा कि मैंने जो कुछ क्रेमलिन में देखा एवं अलब्राह्म के बारे में जो कुछ सुना उनसे कई ज्यादा बेहतर महल आमेर के महल है
- आमेर दुर्ग के मुख्य महल – सुख महल, सुहाग महल, यश महल
- आमेर दुर्ग को बहादुरशाह ने 1707 गोमिनाबाद कहा।
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जयगढ़ (जयपुर)
- जयगढ़ दुर्ग के उपनाम – चिल का टीला, शाही निवास, तोपों व सुरंगो का किला
- जयगढ़ दुर्ग का निर्माता सवाई जयसिंह द्वितीय था
- जयगढ़ दुर्ग में जयबाण / रणबंका तोप जो एशिया की सबसे बडी तोप स्थिति है जिसका निर्माण 1740 में के सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया।
- आमेर दुर्ग व जयगढ़ दुर्ग जयसुंरग से आपस में जुड़े हुए हैं।
- जयगढ़ दुर्ग में आराम व सूर्य मंदिर स्थित है।
- दुर्ग के महल – सुभट निवास महल, खिलवत महल, दिया बुर्ज 7 मंजिल (सबसे बडा बुर्ज)।
- इस दुर्ग में विजयगढ़ी महल है जिसे लघु दुर्ग कहते है
- जयगढ़ दुर्ग में चार बाग शैली का उद्यान स्थित है।
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नाहरगढ, दुर्ग (जयपुर)
- नाहरगढ़ दुर्ग के उपनाम – जयपुर मुखौटा, मीठडी दुर्ग, सुदर्शनगढ़, जनाना क्वार्टर आदि।
- नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण – 1734 में सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा किया गया।
- नाहारगह दुर्ग की श्रेणी गिरी श्रेणी है जो मिठडी पहाडी पर स्थित है
- नाहरगढ़ दुर्ग में माधवेन्द्र भवन है जिसका निर्माण सवाई जयसिंह ने किया।
- नाहरगढ़ दुर्ग में नाहर सिंह भोमिया की छतरी स्थित है।
- नाहरगढ़ दुर्ग में एक समान नौ महल है जो विक्टोरिया शैली में निर्मित है। जिनका निर्माण माधोसिंह ने किया।(सुख महल,
- खुश महल, बसन्त महल, ललित महल, जवाहर महल, आनंद महल, प्रकाश महल, चांद महल, लक्ष्मी महल)
- नाहरगढ दुर्ग का निर्माण मराठा आक्रंताओ से बचने हेतु हुआ
- नाहरगढ़ दुर्ग में भगवान भी कृष्ण का सुदर्शन चक्र लिए मंदिर स्थित है।
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लौहागढ़ दुर्ग भरतपुर
- लोहागढ़ दुर्ग के उपनाम – राजस्थान का अजयदुर्ग, पूर्वी सीमा का के प्रेहरी / रक्षक
- महाराजा सूरजमल द्वारा स्थापित भरतपुर दुर्ग का निर्माण 1733 ई. में सौगर के निकट प्रारंभ हुआ।
- लोहागढ दुर्ग पारिख श्रेणी का है।
- लौहागढ़ दुर्ग में 1805-06 ई. में जसवंत राय होल्कर को शरण देने पर लार्ड लेक ने गोले दागे
- लौहागढ़ दुर्ग के लिए कहावत 8 फिरंगी 9 गोरे लड़े जाट के दो छोरे(दुर्जनशाल व माधोसिंह)
- राजस्थान का सबसे निचाई पर स्थित दुर्ग है तथा इसका निर्माण मिट्टी से किया गया
- लोहागढ़ दुर्ग में मंदिर – लक्ष्मण मंदिर (राजस्थान का एकमात्र मंदिर)
- बिहारी मंदिर
- लोहागढ़ दुर्ग के महल – वजीर कोठी, दादी माँ का महल, किशोरी मां का महल, जवाहर बुर्ज
- लोहागढ़ दुर्ग पर 1826 ई. में अग्रेजो ने अधिकार किया।
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बयाना दुर्ग (भरतपुर)
- बयाना दुर्ग के उपनाम – रोणितपुर, बाणासुर, बादशाह दुर्ग, विजयमंदिर गढ.
- यादव राजवंश के महाराजा विजयपाल ने अपनी राजधानी मथुरा को असुरक्षित जानकर यह दुर्ग माही (दमदमा) पहाडी पर 1040 ई. के लगभग बनवाया।
- 1618 ई. में डच यात्री फ्रेक स्पेल्सट बयाना आते है व उन्होंने नील की खेती की जानकारी दी।
- बयाना दुर्ग से सर्वाधिक गुप्तकालीन मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं।
- बयाना दुर्ग में उषा मंदिर का निर्माण चित्रलेखा ने करवाया जिसको मुबारक खिलजी ने तुड़वाकर उषा मस्जिद बनवाया
- 1765 ई. में जवाहर सिंह ने अष्टधातु दरवाजा स्थापित करवाया।
- बयाना दुर्ग में सर्वाधिक कब्रें हैं।
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डीग का किला ( भरतपुर)
- निर्माण – बदन सिंह
- दुर्ग के भीतर सुरजमहल स्थित है।
- इस दुर्ग के किनारे जल महल स्थित है।
- राजस्थान में जलमहलों की नगरी – डीग (भरतपुर)
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बाला किला (अलवर)
- निर्माण – अलघराज
- 52 दुर्गो का लाड़ला
- अलवर दुर्ग को आँख वाला किला भी कहा जाता है।
- बाला किला अलवर में सलीम महल, हैगिंग महल व झूला महल स्थित है।
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भानगढ़ किला (अलवर)
- निर्माण माधौसिंह ने 1631 मे करवाया।
- इस दुर्ग में मेंहदी महल स्थित है।
- यह दुर्ग सरिस्का अभयारण्य की सीमा के पास पहाडी पर स्थित है।
- वर्तमान समय में इस किले को खंडर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित है।
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कुचामन का किला (नागौर)
- कुचामन के किले को जागीरी किलों का सिरमौर कहा जाता है।
- कुचामन के किले का निर्माण गौड राजपुतों द्वारा करवाया गया।
- कुचामन के किले को अणखला किला भी कहते है क्योंकि इस किले का शत्रु सेना के सामने पतन नही हुआ।
- कुचामन एक मात्र जागीर जिसकी स्वयं मुद्रा इक्कतीसंदा है।
- यह दुर्ग कुचबंधियो की ढाणी के नाम से जाना जाता था।
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जालौर दुर्ग ( सुवर्णगिरी दुर्ग )
- जालौर दुर्ग के उपनाम – जबालिपुर, जालनगर, सोनगढ़, जलालाबाद, सुवर्ण गिरी।
- जालौर दुर्ग का निर्माण डॉ दसरथ शर्मा के अनुसार नागभट्ट प्रथम ने (730-756) में करवाया।
- जालौर दुर्ग में झालर बावडी, सोहनबावडी व पापड़ बावडी स्थित है।
- जालौर दुर्ग में जोगमाया माता मंदिर, आसापुरा माता मंदिर, अवसुधन मंदिर स्थित है।
- जालौर दुर्ग के बारे में हसन निजामी ने कहा कि इस दुर्ग का दरवाजा कोई आक्रमणकारी अब तक नहीं खोल पाया
- इस दुर्ग के सामने नटनी की छतरी स्थित है।
- दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार ‘सूरजपोल है, दुसरा ध्रुवपोल, तीसरा चाँदपोल व चौथा सिरपोल है।
- जालौर दुर्ग में मानसिंह महल, रानी महल, नाथावत महल स्थित है।
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मांडलगढ़ दुर्ग ( भीलवाड़ा )
- यह गिरी दुर्ग भीलवाड़ा जिले में बनास, बेडच व मेनाल नदियों के संगम पर स्थित है।
- इस दुर्ग का निर्माण मंडिया भील द्वारा करवाया गया।
- इस दुर्ग की श्रेणी जल / ओदुक है।
- हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व अकबर की सेना को इस दुर्ग में 21 दिन का सैन्य प्रशिक्षण दिया।
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अचलगढ़ दुर्ग (सिरोही)
- अचलगढ़ दुर्ग का निर्माण राणा कुंभा ने करवाया।
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शेरगढ़. / कोषवर्धन दुर्ग (बारां)
- इस दुर्ग का निर्माण नागवंशीय शासकों ने करवाया उस समय इसका नाम कोशवर्धन था । परन्तु बाद शेरशाह सूरी के नाम पर शेरगढ़ रखा गया।
- इस दुर्ग में हनुहुन्कार तोप स्थित है।
- इस दुर्ग में रावल महल स्थित है।
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नवलखा दुर्ग (झालावाड़)
- नवलखा दुर्ग का निर्माण 1860 में झाला पृथ्वी सिंह द्वारा करवाया गया ।
- एकमात्र दुर्ग जिसका निर्माण कार्य अभी तक जारी है।
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भैंसरोड़ गढ का दुर्ग
- कर्नल टॉड के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण भैंसाशाह नामक व्यापारी रोड़ा चारण ने पर्वतीय लुटेरों से अपने व्यापारिक काफिले की रक्षार्थ करवाया था ताकि वर्षाकाल में यह दुर्ग उनका आश्रयस्थल बन सके।
- अरावली पर्वतमाला की विशाल घाटी में यह दुर्ग स्थित है जो चम्बल व वामनी नदियों के संगम स्थल पर बना यह दुर्ग तीनों ओर से प्रभूत जल राशी से घिरा है।
- इसे राजस्थान का वेल्लोर कहा जाता है।
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लक्ष्मणगढ़ दुर्ग सीकर
- इस दुर्ग का निर्माण सीकर तत्कालीन राव राजा लक्ष्मणसिंह ने विक्रम सम्वत 1862 में बैड गाँव की पहाड़ी पर करवाया।
- दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने के 2 वर्ष बाद लक्ष्मणगढ़ नगर बसाया ।
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नाहरगढ दुर्ग (बारां )
- यह दुर्ग लाल पत्थरों से बना हुआ है व इसकी आकृति दिल्ली के लाल किले के सामान है।