- भारत के इतिहास में सबसे बड़ा साम्राज्य मोर्य साम्राज्य था। यह भारत का सबसे शक्तिशाली राजवंश था। मौर्य साम्राज्य ने भारत में 323 ई. पू. से 184 ई. पू. तक शासन किया।
- इस वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से की थी।
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मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी के स्रोत
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साहित्यिक स्रोत
- कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र
- विशाखदत्त की मुद्राराक्षस
- सोमदेव की कथासारित्सागर
- क्षेमेंद्र की वृहत्कथामंजरी
- पतंजलि का महाभाष्य
- कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र मौर्य प्रशासन के अतिरिक्त चंद्रगुप्त मौर्य के व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डालता है।
- बौद्ध ग्रंथ – दीपवंश महावंश महाबोधिवंश दिव्यादान आदि बौद्ध ग्रंथों में भी मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी मिलती है।
- जैन ग्रंथ भद्रबाहु का कल्पसूत्र हेमचंद्र का परिशिष्ठ पर्वन आदि जैन ग्रंथों से भी मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी मिलती है।
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विदेशी विवरण
- स्ट्रेबो, कर्टिअस, डिओडोरस, प्लिनी, एरियन, जस्टिन, प्लूटार्क, नियार्कस, ओनेसिक्रिटस, एरिस्टोब्युलस आदि यूनानी लेखकों का वर्णन।
- स्ट्रेबो व जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सेण्ड्रोकोट्स, एरियन व प्लूटार्क ने एण्ड्रोकोट्टस तथा फिलार्कस ने सेण्ड्रोकोप्टस कहा है।
- सर्वप्रथम विलियम जोन्स ने सेन्ड्रोकोटस की पहचान चन्द्रगुप्त मौर्य से की।
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पुरातात्विक स्रोत
- पुरातात्विक साक्ष्य में अशोक के अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण है इससे हमें अशोक के शासन के बारे में जानकारी मिलती है।
- शक महाक्षत्रप रुद्रदामन का जूनागढ़ लेख, काली पालिश वाले मृदभांड। तथा चांदी व तांबे के पंचमार्क (आहत सिक्के) से भी मौर्य कालीन इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है
- अशोक के अभिलेख की सर्वप्रथम खोज टिफेन्थैलर ने 1750 ईस्वी में की प परंतु 1835 ईस्वी में जेम्स प्रिंसेस ने अशोक के अभिलेखों की लिपि पढ़ी ।
- 1915 में बीडल महोदय ने मास्की में अशोक के लेख की खोज की तथा टर्नर ने बताया कि सिंहली ग्रन्थ दीपवंश में प्रियदर्शी देवनांप्रिय का प्रयोग अशोक के लिए ही हुआ है।
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चन्द्रगुप्त मौर्य
- समय – 323 से 295 ई.पू.
- अपने गुरू चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द शासक घनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
- स्ट्रेबो व जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सेण्ड्रोकोट्स, एरियन व प्लुटार्क ने एण्ड्रोकोटस तथा फिलार्कस ने सेण्ड्रोकोप्टस कहा है।
- ब्राह्मण साहित्य मे चन्द्रगुप्त मौर्य को शुद्र , जैन एवं बोद्ध साहित्य मे क्षत्रिय तथा ग्रीक साहित्य मे उसे निम्न कुल का नही बल्कि निम्न परिस्थिति में जन्मा हुआ मानते है।
‘ - 305 ई. चन्द्रगुप्त ने तत्कालीन यूनानी शासक सेल्युकस निकेटर को पराजित किया व सन्धि करने के पश्चात् सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से 500 हाथी लेकर बदले एरिया (हेरात अराकोसिया (कान्धार) जेड्रोसिया एवं पेरोपनिसडाई (काबुल के क्षेत्र के कुछ भाग ) दिये।
- संधि स्वरूप सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त से किया व उपर्युक्त चारों प्रान्त दहेज में दिये व मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त के दरबार मे भेजा।
- चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य उत्तर पश्चिम मे ईरान (फारस) से लेकर पूर्व में बंगाल तक, उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण मे उत्तरी कर्नाटक (मैसूर) तक फैला हुआ था।
- परिशिष्ट पर्व के अनुसार चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म स्वीकार किया दक्षिण विजय की जानकारी तमिल ग्रन्थ ‘अहनानूर एवं मुरनातूर से होती है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन के अन्तिम वर्षो मे मगध मे भीषण अकाल पड़ा इसकी पुष्टि जैन ग्रन्थों से होती है ,चन्द्रगुप्त मौर्य के महास्थान व सौहगरा अभिलेख अकाल से निपटने के प्रबन्धों पर प्रकाश डालते है।
- जीवन के अन्तिम समय मे पुत्र के पक्ष मे सिंहासन छोड़कर चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैनमुनि भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली व श्रवणबेलगोला जाकर 298 ई.पू सल्लेखना विधि द्वारा शरीर का त्याग किया।
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बिन्दुसार
- समय – 298 ई.पू. से 274 ई.पू.
- चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात् उसका पुत्र बिंदुसार गद्दी बैठा । यूनानि लेखों मे इसे अमित्रोचेट्स कहा जाता है वायुपुराण मे मद्रसार व जैन ग्रंथो मे सिंहसेन कहा गया है।
- स्ट्रेबो के अनुसार सीरिया के शासक एण्टियोकस प्रथम ने डायमेक्स नामक दूत बिन्दुसार के दरबार मे भेजा।
- प्लिनी के अनुसार मिस्र के शासक टालमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने डायानोसियस नामक एक राजदूत मौर्य दरबार मे भेजा था।
- एथिनियस नामक यूनानी लेखक के अनुसार बिन्दुसार ने सीरिया के शासक एण्टियोकस प्रथम को मैत्रीपूर्ण पत्र लिखकर निम्न तीन वस्तुओं की मांग की जो है।
- 1 मदिरा 2. सूखी अंजीर 3. दार्शनिक
- सीरियाई शासक ने दार्शनिक के अलावा अन्य वस्तुएं भिजवा दी तथा दार्शनिक के बारे मे कहा की यूनानी कानून के अनुसार दार्शनिक का विक्रय नही किया जा सकता।
- दिव्यावदान के अनुसार बिन्दुसार के समय तक्षशिला मे दो विद्रोह हुए जिनके दमन हेतु प्रथम बार अशोक व दुसरी बार सुसीम को भेजा गया।
- बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था। दिव्यावद से पता चलता है की उसकी सभा मे आजीवन सम्प्रदाय का ज्योतिषी निवास करता था।
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अशोक
- समय – 273 ई.पू से 232 ई.पू.
- सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयो की हत्या कर सिंहासन प्राप्त किया। चार वर्ष तक चले उत्तराधिकार युद्ध पश्चात् अशोक ने 269 ई. पू. विधिवत राज्यभिषेक करवाया।
- महाबोधिवंश एवं तारानाथ के अनुसार सत्ता प्राप्ति हेतु अशोक ने अपने भाइयों की हत्या कर दी।
- अशोक के जीवन के प्रारम्भिक समय की जानकारी बौद्धग्रन्थो दिव्यावदान एवं सिंहली अनुभुति से मिलती है|
- दक्षिण भारत से प्राप्त मास्की एवं गुर्जरा अभिलेखों में उसका नाम अशोक और पुराणों में अशोक वर्द्धन मिलता है। अभिलेखों में अशोक ईरानी शैली मे देवानामप्रिय तथा देवानामपियदस्सी उपाधियों से विभूषित है।
- कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक शिव का उपासक था। उसने कश्मीर में वितस्ता नदी के किनारे की श्रीनगर नामक नगर की स्थापना की।
- अशोक द्वारा उत्कीर्ण कराये गये अभिलेखो में उसकी एक ही रानी कारुवाकी का उल्लेख मिलता है। अशोक ने राज्यभिषेक, के आठवें वर्ष 261 ई.पू. में कलिंग पर आक्रमण किया जिसमे लगभग एक लाख लोग मारे गये कलिंग युद्ध व उसके परिणामों का वर्णन तेरहवें शिलालेख मे मिलता है।
- अशोक ने कलिंग के विजयोपरांत दो अधीनस्य प्रशासनिक केन्द्र स्थापित किये
- 1.उत्तरी केन्द्र ( राजधानी तोसलि ) 2.दक्षिणी केन्द्र ( राजधानी जौगढ़)
- प्लिनी के अनुसार अशोक ने कलिंग को व्यापार-व्यवसाय की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझकर इस पर आक्रमण किया
असम से मौर्य साम्राज्य या अशोक कालीन कोई साक्ष्य नही प्राप्त हुआ
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अशोक एवं बौद्ध धर्म
- दीपवंश एवं महावंश के अनुसार अशोक को उसके शासन के चौथे वर्ष निग्रोध नामक भिक्षु ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया व मोग्गलिपुत्ततिस्स के प्रभाव में वह पूर्ण रूप से बौद्ध हो गया।
- अशोक ने अपने शासन के दसवें वर्ष सर्वप्रथम बोध गया की यात्रा की इसके बाद अभिषेक के बीसवें वर्ष लुम्बिनी ग्राम गया। उसने लुम्बिनी ग्राम को कर मुक्त घोषित किया तथा केवल 1/8 भाग कर के रूप मे लेने की घोषणा की
- अशोक के बौद्ध होने का सबसे बडा प्रमाण भाब्रू शिलालेख है। इसमें अशोक बुद्ध, धम्म तथा संघ के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करता है।
- बराबर की पहाडियो मे अशोक ने आजीवको के निवास चार गुफाओ का निर्माण करवाया जिनके नाम –
कर्ण चौपार, सुदामा तथा विश्व झोपड़ी
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अशोक का धम्म
- अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए अशोक ने जिन आचारों व नियमों की संहिता प्रस्तुत की है उसे अभिलेखो मे धम्म कहा गया है। अशोक ने धम्म परिभाषा दीर्घ निकाय के ‘राहुलोवाद सुत‘ से ली है।
- अशोक का धम्म मूलतः उपासक बौद्ध धर्म था इसका चरम लक्ष्य स्वर्ग प्राप्ति था। द्वितीय व सातवें स्तम्भ लेख मे अशोक ने धम्म की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है पाप से मुक्ति, लोगों का कल्याण, दया, दान सत्य एवं शुद्धि ही धम्म है।
- अशोक द्वारा धर्म प्रचार हेतु भेजे गये बौद्ध भिक्षु मास्की के लघु शिलालेख मे अशोक ने स्वयं को बुद्धशाक्य कहा है।
अशोक ने महेन्द्र व संघमित्रा को लंका मे धम्म प्रचार हेतु भेजा। व अशोक के समकालीन लंका नरेश देवनामप्रिय तिष्य था।
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अशोक द्वारा धर्मप्रचार हेतु भेजे गये बौद्ध भिक्षु
- धर्म प्रचारक देश
- मज्झन्तिक कश्मीर तथा गांधार
- महारक्षित यवन देश
- मज्झिम हिमालय देश
- धर्म रक्षित अपरान्तक
- महाधर्म रक्षित महाराष्ट्र
- महादेव महिष्मंडल (मैसूर)
- रक्षित बनवासी
- सोन तथा उत्तर सुवर्ण भूमि
- महेन्द्र तथा संघमित्रा लंका
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अशोक के उत्तराधिकारी
- वायुपुराण के अनुसार अशोक के बाद कुणाल शासक बना व राजतरंगिणी के अनुसार जालौक कश्मीर का शासक बना ।
- अशोकावदान के अनुसार बौद्ध संघ को अत्याधिक दान देने के कारण मत्रियो ने अशोक को अपने पौत्र संप्रति के पक्ष में सिंहासन छोड़ने को मजबूर किया।
- मौर्य वंश का अन्तिम शासक बृहदथ था जिसकी हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई.पू मे कर दी।
बाण भट्ट का हर्षचरित व पुराण इस घटना का वर्णन करते है।
- पांच सीमांत यूनानी राजा जहाँ अशोक ने अपने दूत भेजे –
- अन्तियोक (सीरिया) – एन्टियोकस द्वितीय थियोस
- तुरमय (मिस्र) – टोलमी द्वितीय फिलाडेल्फस
- एत्तिकिनि या अन्तेकिन (मोसिडोनिया) – एन्टिगोनस
- मग (एपिरस) – मेगस
- अलिक सुंदर (सिरीन) – अलेक्जेंडर
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अशोक के अभिलेख
- अशोक के अभिलेखों का वर्णन तीन वर्गों में विभाजित करके किया गया है –
- शिलालेख
- स्तम्भ लेख
- गुहा लेख
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अशोक के शिलालेख
- अशोक के शिलालेखों को 2 भागों में बांटा गया है 1.शिलालेख 2.लघु शिलालेख
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शिलालेख
- 14 विभिन्न लेखों का समूह जो 8 अलग अलग स्थानों से प्राप्त किया गया है
- अशोक के 14 शिलालेख
14.शिलालेख | उनमें उल्लेखित विषय |
प्रथम शिलालेख | 1.समाज का निषेध
2.पशु बलि का निषेध 3.सभी मनुष्य मेरी सन्तान की तरह है |
द्वितीय शिलालेख | 1.चोल, पाण्ड्य, सतियपुत व केरलपुत राज्यों का उल्लेख
2.मानव व पशु चिकित्सा का लोक कल्याणकारी कार्य |
तृतीय शिलालेख | 1.अधिकारीयों को प्रत्येक पांच वर्ष पर दौरे पर जाने का आदेश
2.राजूक या रज्जुकों की नियुक्ति |
चतुर्थ शिलालेख | 1.भेरीघोष के स्थान पर धम्मघोष की घोषणा |
पंचम शिलालेख | 1.धम्म महामात्रों की नियुक्ति व कार्य निर्देश
2.मोर्य कालीन समाज की वर्ण व्यवस्था का उल्लेख |
षष्ट शिलालेख | 1.धम्म महामात्रों के लिए आदेशों का उल्लेख व आत्मनियंत्रण की शिक्षा |
सातवाँ शिलालेख | 1.सभी सम्प्रदायों में पारस्परिक सहिष्णुता |
आठवाँ शिलालेख | 1.अशोक की तीर्थ यात्राओं व बोध गया भ्रमण का उल्लेख |
नवां शिलालेख | 1.सच्ची भेंट व सच्ची शिष्टाचार का उल्लेख |
दशवाँ शिलालेख | 1.राजा व उच्च अधिकारीयों को प्रजा के हित में सोचने का निर्देश |
ग्यारहवाँ शिलालेख | 1.धम्म विजय की विशेषताओं का वर्णन |
बारहवाँ शिलालेख | 1.धार्मिक सहिष्णुता की निति का उल्लेख |
तेरहवां शिलालेख | 1.कलिंग युद्ध का वर्णन
2.यूनानी राजाओं के उल्लेख 3.आटविक जातियों का उल्लेख |
चौदहवाँ शिलालेख | 1.अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया |
- 8 विभिन्न स्थान जहाँ से 14 शिलालेख प्राप्त हुए
क्र.स. | स्थान | लिपि | वर्ष | खोजकर्ता |
1. | शहबाजगढ़ी,पेशावर (पाकिस्तान) | खरोष्टी | 1836 | कोर्ट |
2. | मनसेहरा,हजारा (पाकिस्तान) | खरोष्टी | 1889 | कनिंघम |
3. | कालसी,देहरादून (उतराखंड) | ब्राह्मी | 1860 | फ़ॉरेस्ट |
4. | गिरनार (गुजरात) | ब्राह्मी | 1822 | कर्नल टॉड |
5. | धौली,पूरी (उड़ीसा) | ब्राह्मी | 1834 | किट्टो |
6. | जोगढ़,गंजाम (उड़ीसा) | ब्राह्मी | 1850 | इलियट |
7. | एर्रगुडी,कर्नुल (आंध्रप्रदेश) | ब्राह्मी | 1929 | अनुघोष |
8. | सोपारा,थाना (महाराष्ट्र) | ब्राह्मी | 1882 | भगवान लाल |
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लघु शिलालेख
- 14 मुख्य शिलालेखों के अतिरिक्त अशोक की राजकीय घोषणा कुछ स्तम्भों पर उत्कीर्ण है जिन्हें लघु शिलालेख कहा जाता है, जो निम्न है –
- 1.गुजर्रा, दतिया (मध्यप्रदेश)
- 2.रूपनाथ, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
- 3.सारोमारो, शहडोल (मध्यप्रदेश)
- 4.भाब्रू, बैराठ (जयपुर,राजस्थान)
- 5.अहरौरा, मिर्जापुर (उत्तरप्रदेश)
- 6.सहसराम, (बिहार)
- 7.मास्की, रायचूर (कर्नाटक)
- 8.उदेगोलम, बेलारी (कर्नाटक)
- 9.ब्रह्मगिरी, चित्तलदुर्ग (कर्नाटक)
- 10.सिद्धपुर, चित्तलदुर्ग (कर्नाटक)
- 11.जातिंगरामेश्वर, चित्तलदुर्ग (कर्नाटक)
- 12.गोविमठ, मैसूर (कर्नाटक)
- 13.पालकिगुंडू, मैसूर (कर्नाटक)
- 14.नेट्टूर, मैसूर (कर्नाटक)
- 15.सन्नाती, गुलबर्गा (कर्नाटक)
- 16.एर्रगुडी, कर्नूल (आंध्रप्रदेश)
- 17.राजुल मंदगिरी,कर्नूल (आंध्रप्रदेश)
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अशोक के स्तम्भ लेख
- अशोक के स्तम्भ लेखो की संख्या सात है जो ब्रह्म लिपि मे है जो 6 भिन्न स्थानों पर पाषाण स्तंभों पर उत्कीर्ण है
- दिल्ली टोपरा – यह मूलतः अम्बाला ( हरियाणा ) में था लेकिन फिरोज शाह तुगलक़ ने इसे दिल्ली में गड़वा दिया सिर्फ दिल्ली टोपरा मे ही सात अभिलेख है। अन्य में 6 ही लेख उत्कीर्ण है।
- दिल्ली मेरठ – मेरठ से फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया।
- लौरिया-अरराज – बिहार के चम्पारन जिले मे स्थित।
- लौरिया-नन्दनगढ़ – चम्पारन जिला
- रामपुरवा – चम्पारन जिला
- प्रयाग – अकबर द्वारा कौशाम्बी से इलाहाबाद के किले मे लगवाया
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अशोक के गुहालेख
- गया जिले मे बराबर की पहाड़ी की गुफाओं की दीवारो पर अशोक के लेख उत्कीर्ण मिले है। इनमें अशोक द्वारा आजीवक साधुओ को निवास हेतु गुहा दान करने का उल्लेख है।
- अशोक ने आजीवकों के निवास हेतु चार गुफाओं का निर्माण करवाया जिनके नाम है – कर्ण, सुदामा, चौपार व विश्व झोपड़ी
- अशोक के अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी व भाषा प्राकृत है ।
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अशोक के अभिलेखों से सम्बन्धित जानकारी
- रुम्मिनदेई व निग्लिवा स्तम्भ लेख नेपाल की तराई से प्राप्त हुये
- कौशाम्बी के लघु स्तम्भलेख मे अशोक की रानी कारूवकी द्वारा दान दिए जाने का उल्लेख है।
- केवल अशोक के रुम्मिनदेई लेख का विषय आर्थिक था और सभी अभिलेखो का विषय प्रशासनिक था।
- अशोक की राजकीय घोषणाएं जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण है उन्हें साधारण तौर पर लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है।
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मौर्य प्रशासन
- मौर्य प्रशासन को दो भागों में विभाजित किया गया। 1.केन्द्रीय प्रशासन 2.प्रान्तीय प्रशासन
- 1.केन्द्रीय प्रशासन – मौर्य प्रशासन केन्द्रीय राज तंत्रात्मक प्रशासन था जिसमे भारत को राजनैतिक एकता के सूत्र में बाँधा
- मौर्य काल में गणराज्यो का हास होने लगा जिसके परिणाम स्वरूप राजतन्त्रात्मक व्यवस्था की स्थिति मौर्य मजबूत हो रही थी।
- प्राचीन काल में भारत मे सबसे विशाल नौकरशाही मौर्यकाल मे थी।
- साम्राज्य में मुख्यमंत्री एवं पुरोहित की नियुक्ति उनके चरित्र की भली भांति जांच के बाद की जाती थी जिसे उपधा परीक्षण कहा जाता है।
- कौटिल्य ने राज्य के सप्तांग सिद्धान्त के सात अंग निर्दिष्ट किये है 1.राजा 2.अमात्य 3.राष्ट्र 4.दुर्ग 5. बल (सेना) 6.कोष 7.मित्र
- 2.प्रान्तीय प्रशासन – चन्द्रगुप्त मौर्य ने शासन की सुविधा हेतु प्रान्तों को चार भागों में विभाजित किया तथा अशोक के समय कलिंग विजय के साथ प्रान्तो की संख्या पांच हो गयी, प्रान्तो को चक्र या आहार कहा जाता है।
- प्रान्त – राजधानी
- उत्तरापथ – तक्षशिला
- दक्षिणापथ – सुवर्णगिरि
- अवन्ति – उज्जैन
- मध्यदेश – पाटलिपुत्र
- कलिंग – तोसाली
- प्रान्तों का शासन राजवंशीय ‘कुमार’ या ‘आर्यपुत्र’ नामक पदाधिकारियों द्वारा होता था। अशोक सिंहासनारूढ, होने से पूर्व उत्तरापथ एवं अवन्ती का कुमार रह चुका था।
- मौर्य प्रशासन का विभाजन निम्न प्रकार था
- साम्राज्य
- प्रान्त
- आहार या विषय – जिला
- स्थानीय – 800 गाँवो का समूह
- द्रोणमुख – 400 गाँवों का समूह
- खार्वाटिक – 200 गाँव
- संग्रहण – 100 गाँव
- ग्राम – प्रशासन की सबसे छोटी इकाई
- प्रदेष्टि – यह अधिकारी समाहर्ता के अधीन कार्य करता था जो स्थानिक व गोप के कार्यों की जाँच करता था।
- अशोक ने युक्त नामक अधिकारियों की नियुक्ति की ये केंद्र तथा स्थानीय शासन के बीच की संपर्क की कड़ी थी।
- आहार या विषय विषयपति के अधीन होता था। जिले का प्रशासनिक अधिकारी स्थानिक था जो समाहर्ता के अधीन था।
- गोप के अधीन दस गाँव होते थे। गोप स्थानिक के अधीन था।
- रक्षिण – नगर में अनुशासन रखने तथा अपराधी मनोविकृति के दमन करने हेतु पुलिस व्यवस्था थी। जिन्हें रक्षिण कहा जाता था।
- अशोक के अभिलेख के कुछ अधिकारी –
- राजुक – ग्रामीण क्षेत्रों की देखभाल हेतु, कर संग्रह एवं न्यायिक शक्तियों युक्त अधिकारी। यह सम्भवत: राज्याभिषेक के 27 वें वर्ष में नियुक्त किया गया।
- प्रादेशिक – जिलाधिकारी (अर्थशास्त्र का प्रदेष्टा)
- महामात्र – उच्चअधिकारी ( महामात्र को केन्द्र में राजा से प्रांतपति की जानकारी के बिना सीधे आदेश मिलते थे
- प्रतिवेदक – राजा को सूचना देने वाला अधिकारी
- नगर प्रशासन –
- मेगस्थनीज के अनुसार नगर का प्रशासन तीस सदस्यो का एक मण्डल करता था जो 6 समितियों मे विभक्त था। प्रत्येक समिति मे 5 सदस्य होते थे।
- समिति – कार्य
- प्रथम समिति – उद्योग शिल्पों का निरीक्षण
- द्वितीय समिति – विदेशियो की देखरेख
- तृतीय समिति – जन्म-मरण का लेखा-जोखा
- चतुर्थ समिति – व्यापार-वाणिज्य
- पंचम समिति – निर्मित वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण
- छठी समिति – बिक्रीकर वसूल करना
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मौर्य साम्राज्य की सैन्य व्यवस्था
- जस्टिन ने चन्द्रगुप्त की सेना को डाकुओ का गिरोह कहा है।
- सेना के संगठन हेतु पृथक सैन्य विभाग था जो 6 समितियों मे विभक्त था।(मेगस्थनीज के अनुसार) प्रत्येक समिति मे 5 सदस्य होते थे। ये समितियाँ सेना के पाँच विभागों की देख रेख करती थी- पैदल, अश्व, हाथी, रथ व नौसेना।
- सर्वप्रथम ग्रुनवेडेल ने यह बताया कि मौर्यों का वंश चिन्ह मोर था।
- अन्तपाल नामक अधिकारी सेना का प्रशासन देखता था व नोसेना का प्रधान नवाध्यक्ष कहलाता था
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मौर्य साम्राज्य की न्याय व्यवस्था
- सम्राट सर्वोच्च व अन्तिम न्यायधीश था। मौर्य साम्राज्य की न्याय व्यवस्था कठोर थी। न्याय का उद्देश्य सुधारवादी न होकर आदर्शवादी था।
- ग्राम सभा सबसे छोटी न्यायालय थी जहाँ ग्रामीण तथा ग्राम वृद्ध अपना निर्णय देते थे। इनके उपर क्रमश: द्रोणमुख स्थानीय एवं जनपद के न्यायालय थे।
- अर्थशास्त्र मे दो प्रकार के न्यायालय का वर्णन है।
- 1.धर्मस्थीय न्यायालय – इस वर्ग के न्यायालय नागरिको के पारस्परिक विवादों का निपटारा करते थे। इन्हें दीवाने अदालत कहा जाता था। चोरी डाके व लूट के मामले जिन्हें ‘साहस’ कहा जाता था वे धर्मस्थीय न्यायालय के अन्तर्गत आते थे।
- 2.कंटक शोधन. न्यायालय – राज्य तथा नागरिको के मध्य होने वाले विवाद का निर्णय कंटक शोधन न्यायालय के अन्तर्गत होता था ये फौजदारी अदालतें थी।
- प्रदेष्ट्रि – फौजदारी ( हत्या, चोरी, मारपीट) आदि मामलो का निपटारा करता था।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र मे गुप्तचरों को गूढ़ पुरुष कहा गया है। मौर्य शासन मे दो प्रकार के गुप्तचर कार्य करते थे।
- 1.संस्था – वे गुप्तचर जो एक ही स्थान पर संस्थाओं मे संगठित होकर कार्य करते थे।
- 2.संचार – ये गुप्तचर एक स्थान से दुसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए कार्य करते थे
- एरियन ने गुप्तचरों को ‘ओवर सियर‘ तथा स्ट्रैबो ने इंस्पेक्टर कहा है।
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मौर्य काल की आर्थिक व्यवस्था
- मौर्यकाल मे ही पहली बार राजस्व प्रणाली की रुपरेखा तैयार की गई। इसकी जानकारी कौटिल्य के अर्थशास्त्र से भी मिलती है।
- राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन और वाणिज्य आधारित थी जिन्हें सम्मिलित रूप से ‘वार्ता’ कहा जाता था।
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मौर्य काल में कृषि
- अर्थशास्त्र मे कुछ भूमियों का वर्णन इस प्रकार
- 1. देवमातृक – सिर्फ वर्षा द्वारा खेती पर निर्भर भूमि
- 2. आदेवमातृक – वह भूमि जिसमे बिना वर्षा के भी अच्छी खेती होती हो।
- 3.कृष्ट – जुती हुई भूमि
- 4.अकृष्ट – बिना जुती हुई भूमि
- 5.स्थल – ऊँची भूमि
- राजकीय भूमि की व्यवस्था करने वाला प्रधान अधिकारी सीताध्यक्ष कहलाता था। इस भूमि पर कर्मचारियो व कैदियो द्वारा बुआई व जुताई होती थी।
- राज्य की आय का प्रमुख स्रोत भूमिकर था। यह उपज का 1/6 होता था।
- भूमिकर दो प्रकार से होता था।
- 1.वनकर 2.सेतुकर
- राजकीय आय के लिए विभिन्न प्रकार के कर लिए जाते थे।
- 1.प्रणय – आपातकालीन कर
- 2.सीता – राजकीय व वन्य भूमि से आय पर कर
- 3.भाग – कृषकों द्वारा उत्पादित कृषि उत्पादों पर कर
- 4.बलि – एक प्रकार का भू-राजस्व
- 5.सेतुबन्ध – राज्य की और से सिंचाई का प्रबन्ध हेतु कर
- 6. विष्टि – बेगार
- 7.हिरण्य – नकद कर
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मौर्य काल में उद्योग
- मौर्य काल का प्रधान उद्योग सूत कातने एवं बुनने का था।
- पण्याध्यक्ष – कारखानो मे बनी वस्तुएँ पण्याध्यक्ष के नियंत्रण मे बाजारो मे बेची जाती थी।
- लक्षणाध्यक्ष – मुद्रा जारी करता था। लोग स्वयं सिके बनवाते थे उन्हें राज्य को ब्याज रूपिका और परीक्षण के रूप मे देना पड़ता था।
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मौर्य काल के सिक्के
- 1.कार्षापण, पण या धरण – चाँदी का सिक्का
- 2.सुवर्ण, निष्क – सोने का सिक्का
- 3.माषक – ताँबे का सिक्का
- 4. काकणि – ताँबे का छोटा सिक्का
- मौर्य कालीन सिक्को को आहत सिक्के के नाम से जाना जाता था।
- रज्जुग्राहक – नामक अधिकारी खड़ी फसल को माप कर उस पर कर लगाने वाला अधिकारी होता था
- आयात कर को प्रवेश्य तथा निर्यात को निष्क्राम्य कहा जाता था
- मुद्राओं का परीक्षण करने वाला अधिकारी रूपदर्शक के नाम से जाना जाता था।
- सिंचाई पर विशेष ध्यान दिया जाता था जूनागढ़ अभिलेख से चन्द्रगुप्त के गवर्नर पुष्य गुप्त वैश्य द्वारा सौराष्ट्र मे निर्मित सुदर्शन झील का उल्लेख मिलता है
- पर्वत, अर्द्धचन्द्र व मयूर की छाप वाली आहत रजत मुद्राएँ मौर्य साम्राज्य की मान्य मुद्राएँ थी।
- कर मुक्त गाँवो को परिहारिका तथा जो गाँव सैनिक आपूर्ति करते थे उन्हें आयुधिका कहा जाता था जो गाँव कच्चे माल की आपूर्ति करते थे उन्हें कुप्य कहा जाता था
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मौर्य काल में व्यापार
- मौर्य काल में व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्ग से होता था। आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार उन्नत अवस्था मे था।
- व्यापारिक जहाजों का निर्माण इस काल का प्रमुख उद्योग था। स्ट्रेंबो व कौटिल्य के अनुसार जहाज निर्माण पर राज्य का एकाधिकार था
- भारत का इस समय व्यापार रोम, सीरिया, फारस, मिस्र तथा अन्य पश्चिमी देशों के साथ होता था।
- यह व्यापार पश्चिमी भारत मे भृगुकच्छ तथा पूर्वी मे ताम्रलिप्ति बन्दरगाहो द्वारा किया जाता है।
- आन्तरिक व्यापार के प्रमुख केन्द्र तक्षशिला, उज्जैन, काशी कौशाम्बी, तोसली, पाटलिपुत्र आदि थे।
- व्यापारिक मार्ग
- प्रथम मार्ग – (उत्तरापथ) उत्तरपश्चिम ( पुष्कलावती तक) से पाटलिपुत्र (ताम्रलिप्ति) तक जाने वाला राजमार्ग ( सबसे महत्वपूर्ण मार्ग)
- दूसरा मार्ग – पश्चिम में पाटल से पूर्व में कौशाम्बी के समीप उत्तरापथ मार्ग से मिलता था।
- तीसरा मार्ग – दक्षिण में प्रतिष्ठान से उत्तर में श्रावस्ती तक जाने वाला मार्ग
- चौथा मार्ग – यह प्रसिद्ध मार्ग भृगुकच्छ से मथुरा तक जाता था जिसके मार्ग में उज्जयिनी पडता था
- भारत से मिस्त्र को हाथी दाँत, कछुए, सीपियाँ, बहुमूल्य लकड़ी, नील निर्यात होता था
- मिस्र एवं भारत के बीच मौर्य काल मे होने वाले व्यापार को और अधिक बढ़ाने के लिए टालमी ने लाल सागर पर बरनिस नामक बन्दरगाह की स्थापना की
- पुराना माल संस्थाध्यक्ष की अनुमति के बिना न तो बेचा जा सकता और न ही बन्धक रखा जा सकता।
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मौर्य काल में सामाजिक स्थिति
- मौर्यकालीन समाज की संरचना / जानकारी के बारे मे हमे कौटिल्य के अर्थशास्त्र व मेगस्थनीज के विवरणों से होती है।
- मेगस्थनीज ने भारतीय समाज को सात जातियों में बांटा 1.दार्शनिक 2.अहीर 3.किसान 4 कारीगर व शिल्पी 5.सैनिक 6. निरीक्षक 7.सभासद
- मेगस्थनीज के अनुसार अपराध करने वाला ब्राह्मण को यातना नही दी जाती थी, ब्राह्मणों के अलावा कोई भी अन्तर्जातीय विवाह और न ही दुसरों का पेशा अपना सकता।
- मौर्य काल मे स्त्रियों की दशा ठीक थी उन्हें विवाह विच्छेद (तलाक) जिसे कोटिल्य ने अर्थशास्त्र मे मोक्ष कहा है, की अनुमति थी।
- उच्च वर्ग की स्त्रियों को जो घर के अन्दर ही रहती थी, उन्हें कौटिल्य ने अनिष्कासिनी कहा है।
- प्रवहरण एक सामूहिक समारोह था जिसमे खाने-पीने की चीजो का प्रचुर इस्तेमाल होता था।
- समाज में वैश्यावृत्ति की प्रथा प्रचलित थी। तथा इसे राजकीय संरक्षण प्राप्त था। स्वतन्त्र रूप से वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियाँ रूपाजीवा कहलाती थी। इनके कार्यो का निरीक्षण गणिकाध्यक्ष करता था।
- अर्थशास्त्र मे सभी चारों वर्णो के लोगो को सेना मे भर्ती होने का उल्लेख है।
- नाटक, नर्तक गायक आदि कलाकार भी लोगो का मनोरंजन करते थे। पुरुष कलाकारों में रंगोपजीवी तथा स्त्री कलाकारो में रंगोपजीवनी कहा जाता था। इन कलाकारों का गाँवो प्रवेश वर्जित था।
- मेगस्थनीज व स्ट्रैबो के अनुसार भारत मे दास प्रथा नही थी
- मौर्य काल मे ब्राह्मणों को अपराध करने पर कोई यातना या सजा नहीं दी जाती थी।
- मौर्य कालीन अर्थव्यवस्था मे दासों का महत्वपूर्ण योगदान था त्रिपिटक मे चार प्रकार तथा कौटिल्य ने नौ प्रकार के दासों का उल्लेख किया है।
मौर्य काल के उच्च अधिकारी
क्र.स. | तीर्थ | सम्बन्धित विभाग |
1. | मंत्री | प्रधानमंत्री |
2. | पुरोहित | प्रधानमंत्री |
3. | सेनापति | सेना का प्रधान |
4. | युवराज | राजा का उत्तराधिकारी |
5. | समाहर्ता | राजस्व विभाग का प्रधान था आय व्यय का ब्यौरा रखना व वार्षिक बजट तैयार करना |
6. | सन्निधाता | राजकीय कोषाध्यक्ष |
7. | प्रदेष्टा | फौजदारी न्यायलय का न्यायधीश |
8. | दंडपाल | सेना की सामग्री जुटाने वाला प्रधान अधिकारी |
9. | कर्मान्तिक | उद्योग-धंधों का अध्यक्ष |
10. | व्यवहारिक | दीवानी न्यायलय का न्यायधीश |
11. | मंत्रिपरिषदाध्यक्ष | मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष |
12. | नायक | सेना का नेतृत्त्वकर्ता / नगर रक्षा अध्यक्ष |
13. | नागरक | नगर का प्रमुख अधिकारी व कोतवाल |
14. | दौवारिक | राजमहलों की देखरेख करने वाला अधिकारी |
15. | आटविक | वन विभाग का प्रधान |
16. | अन्तर्वशिक | सम्राट की अंगरक्षक सेना प्रधान |
17. | दुर्गपाल | राजकीय दुर्ग रक्षकों का का अध्यक्ष |
18. | अन्तपाल | सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक |
मौर्य काल में मंत्रिपरिषद के नीचे द्वितीयं श्रेणी के पदाधिकारी जिन्हें अध्यक्ष कहा जाता था इनके बारे में जानकारी अर्थशास्त्र से भी प्राप्त होती है । जो निम्नलिखित है –
क्र.स. | अध्यक्ष | सम्बन्धित विभाग |
1. | लक्षणाध्यक्ष | मुद्रा व टकसाल का अध्यक्ष |
2. | आकाराध्यक्ष | खानों का अध्यक्ष |
3. | शुल्काध्यक्ष | राजकीय जुर्माना का अध्यक्ष |
4. | पौतावाध्यक्ष | माप तौल का अध्यक्ष |
5. | सीताध्यक्ष | राजकीय कृषि विभाग का अध्यक्ष |
6. | विवीताध्यक्ष | चरागाहों का अध्यक्ष |
7. | लावणाध्यक्ष | नमक अधिकारी |
8. | गणिकाध्यक्ष | वेश्याओं का निरीक्षक |
9. | नवाध्यक्ष | नौ सेना का अध्यक्ष |
10. | सूनाध्यक्ष | बूचड़खाने का अध्यक्ष |
11. | महामात्रापसरण | पुलिस व सुचना विभाग |
12. | सूत्राध्यक्ष | रुई कातने व कपड़ा बुनने के उद्योग का अध्यक्ष |
13. | संस्थाध्यक्ष | व्यापारिक मार्गों का अध्यक्ष |
14. | मुद्राध्यक्ष | पासपोर्ट विभाग का अध्यक्ष |
15. | पण्याध्यक्ष | व्यापर वाणिज्य का अध्यक्ष |