मौयोत्तर काल Moryotar kal

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मौर्योत्तर काल के शासक व राजवंश

शुंगवंश (185 ई.पू. से 75 ई.पू.)

  • वृहद्रथ (मौर्य वंश का अन्तिम शासक) की हत्या करके उसके सेनापति पुष्यमित्र ने शुंग वंश की स्थापना की।
  • मेरुतुंग कृत थेरावली ग्रन्थ मे अवन्ती के शासकों की सूची उल्लेखित है इसमें पुष्यमित्र शुंग का नाम मिलना इस बात का द्योतक है कि पुष्यमित्र अवन्ति का उपराजा था।

 

  • शुंग कौन थे ?

  • शुंग पारसिक थे – हरप्रसाद शास्त्री
  • शुंग मौर्य क्षत्रिय वंशज थे – दिव्यावदान
  • 3. हरिवंश पुराण – इसने पुष्यमित्र को ओद्भिज  (अचानक उठने वाला ) कहा एवं कहा कि सेनानी (पुष्यमित्र शुंग) कलयुग में अश्वमेध युद्ध करेगा व कश्यप गोत्र ब्राह्मण इन्हें बताया।
  • 4. अश्वलायन – के गृहसुत्र व वृहदरण्यक  उपनिषद में शुंगो को आचार्य बताया है।
  • 5. शुंग अनार्य व निम्न जाति के थे – बाणभट्ट के हर्षचरित में लिखा।

 

  • पुष्यमित्र शुंग के अभियान व आक्रमण

  • पुष्यमित्र शुंग का विदर्भ अभियान
  • पुष्यमित्र के काल में विदर्भ स्वतंत्र हुआ। पुष्यमित्र के कहने के बावजूद भी यज्ञसेन ने अधीनता स्वीकार नहीं की। तत्पश्चात् पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र (विदिशा के गर्वनर थे) ने यज्ञसेन को पराजित किया व विदर्भ को दो भागों में विभाजित किया ।
  • Note :- काशीप्रसाद जायसवाल एवं स्मिथ खारवेल के हाथीगुम्फा में उल्लेखित बृहसतिमंत्र का समीकरण पुष्यमित्र से करते जिसको खारवेल ने 12 वें वर्ष हराया था।
  • इस अभियान की जानकारी मालविकाग्निमित्र से मिलती है। विदिशा को दूसरी राजधानी के रूप में स्थापित किया है।

 

  • पुष्यमित्र शुंग का यवन अभियान (आक्रमण)
  • स्रोत – पंत‌जलि का महाभाष्य जब मैं अश्वमेध यज्ञ में यजमान रूप में बैठा था उस समय यवन शासक ने माध्यमिका व साकेत पर आक्रमण किया
  • गार्गी सहिंता का युगपुराणखण्ड – यवन शासक ने मथुरा, पांचाल, साकेत को जीतते हुए पाटलिपुत्र में प्रवेश किया।
  • मालविकाग्निमित्र पुष्यमित्र का अश्वमेघ घोड़ा सिन्धु नदी के किनारे यवन शासकों ने रोका तत्पश्चात सेनापति वसुमित्र (अग्निमित्र का पुत्र) ने यवन शासक को पराजित किया।
  • नरेन्द्र नाथ घोष के अनुसार डेमिट्रियस ने प्रथम आक्रमण किया यह शासन काल के आंरभ में हुआ था। दुसरा आक्रमण शासन काल के आखिरी में मिनाण्डर ने किया।
  • टॉर्न महोदय – इनके अनुसार डेमिट्रियस (यवन) ने तक्षशिला को अपना केन्द्र बनाकर दो क्षेत्रों में अभियान भेजे।
  • 1.भृगुकच्छ  (दक्षिण पश्चिम) 2. पाटलीपुत्र (पूर्व)

 

  • नोट – मथुरा के समीप मोरा नामक स्थान से प्राप्त प्रथम शताब्दी ईस्वी के लेख में तोस नामक विदेशी महिला द्वारा वासुदेव, संकर्षण प्रद्युम्न, साम्ब, अनिरुद्ध की मूर्तियों की स्थापना का उल्लेख है। अतः शुंग काल भागवत के विकास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
  • शुंगों की राजधानी पाट‌लिपुत्र (कुसुमध्वज)विदि‌शा दुसरी राजधानी थी।

 

  • पुष्यमित्र शुंग की धार्मिक निति

  • ब्राह्मण / वैदिक धर्म – पुष्यमित्र शुंग ने वैदिक धर्म की महता को पुनः स्थापित किया। इस कारण इसे वैदिक धर्म का पोषक / उद्धारक / पुनर्जागरण करने वाला कहा जाता है।
  • इस हेतु पुष्यमित्र शुंग ने निम्न कार्य किये –
संस्कृत को बढ़ावा दिया।
ब्राह्मणों को राजकीय संरक्षण।
महाभारत के लेखन का अधिकांश कार्य हुआ।
वर्णाश्रम धर्म में विश्वास।
राजपद का महत्व बढ़ाना।

 

  • पुष्यमित्र शुंग व बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म के पक्ष में बौद्ध धर्म के विपक्ष में
1. सांची भरहुत, बोधगया, स्तूपों का परिवर्धन व परिरक्षण करवाया। 1.दिव्यावदान के अनुसार पुष्यमित्र ने 84 हजार स्तूपों को नष्ठ किया तथा शाकल में घोषणा कि बौद्ध भिक्षु का सिर लाने पर पर 1000 दिनार देंगे।
2.पुष्यमित्र की सभा में बौद्ध मंत्री थे। 2.पुष्यमित्र ने पाटलिपुत्र स्थित अशोक निर्मित कुक्कटराम के महाविहार को नष्ट करने का असफल प्रयास किया।
3.अग्निमित्र के दरबार में भगवती व कौशिक नामक बौद्ध स्त्रीयां थी। 3.तारानाथ के अनुसार मध्यप्रदेश से जालंधर तक सभी बौद्ध विहार स्तूप व भिक्षुओं का नरसंहार किया।
4.G.R. शर्मा के अनुसार घोषितराम ने बिहार व कौशाम्बी को नष्ठ किया।

 

शुंग वंश का पतन व उत्तराधिकारी

  • पुराणों के अनुसार शुंग वंश में कुल 10 शासक हुए जिन्होंने 185 से 75 ई.पू. तक शासन किया।
  • पुष्यमित्र, अग्निमित्र,वसुज्येष्ठ, वसुमित्र, आणघ्रक, पुलिन्दक,  घोष, वज्रमित्र, भागभद्र, देवभूति।
  • शुंग वंश का अन्तिम शासक देवभूति था।
  • भागभद्र के शासन काल में 14 वें वर्ष तक्षशिला के यवन शासक एंटीयालकीड्स का राजदूत हेलियोडोरस ने विदिशा में वासुदेव के सम्मान में गरुड़  स्तम्भ स्थापित किया।
  • गरुड़ स्तंभ को स्थानीय भाषा में खाम बाबा कहते है।
  • घोसुण्डी में पुष्यमित्र को से सर्वतात संकर्षण कहा है।

 

  • कण्व वंश (75 ई.पू. से 30 ई.पू.)

  • हर्षचरित के अनुसार देवभूति की हत्या करके उसके मंत्री वासुदेव कण्व ने कण्व वंश की स्थापना की। 75 ई.पू. से 30 ई.पू. के बीच चार कण्व शासकों ने शासन किया। वासुदेव (9 वर्ष), भूमिमित्र (14 वर्ष) नारायण (12 वर्ष) सुशर्मा (10 वर्ष)
  • पुराणों में इन चारों शासकों को शुंग भत्य कहा है।
  • सुशर्मा की हत्या कर के सिमुक ने सातवाहन वंश की स्थापन्ना की।
  • शुंग व कण्व वंश का आरम्भ व अंत हत्या से हुए।

 

शुंग वंश की कला –

गौर्यकालीन शुंग कालीन
1.ईटों का प्रयोग 1.पाषाण का प्रयोग
2.रराजकीय संरक्षण दरबार तक सीमित 2.राजकीय संरक्षण नहीं इस कारण जनमानस तक गई।
3.दरबारी राजकीय विषय 3. लौकिक व लोकजीवन से जुड़े विषय
4.लघु फलक 4. विस्तृत फलक
5.अस्थाई 5. स्थायी धार्मिक संरचनाओं का निर्माण
6. सारनाथ व पाटलीपुत्र कला के केन्द्र 6.भरहुत, साँची बोधगया कला के केंद्र

 

  • शुंग काल में बने स्तूप

  • 1. भरहुत स्तूप –

  • भरहुत स्तूप सतना (MP) में था जिसकी खोज अलेक्जेण्डर कनिंघम द्वारा की गई। यह पूर्णत नष्ट हो चुका है व इसके अवशेष कलकत्ता संग्रहालय में सुरक्षित है।
  • इसका प्रारम्भिक निर्माण अशोक के काल में हुआ। तत्पश्चात् पुष्यमित्र ने लाल पाषण से मजबूत वेदिका बनाई जिसमे 4 प्रवेशद्वार  बनाये।
  • इस वेदिका में 80 स्तम्भ थे जिनमें 47 स्तम्भ बटनमारा लिथौरा भरहुत से कनिंघम को प्राप्त हुए, स्तम्भ एकाश्मक है।

 

  • 2.सांची स्तूप –

  • सांची स्तूप रायसेन (mp) में स्थित है।
  • सर्वप्रथम 1818 में सर हेनरी टेलर ने देखा। उसके बाद यहाँ खनन व शोध का कार्य निम्न विद्वानों ने किया।             1.कनिंघम, 2.मार्शल फूसे, 3.मोहम्मद कुरैशी
  • उक्त खोजों से यहाँ पर लगभग 60 स्तूप तथा कई स्तंभ, बोद्ध मंदिर विहार प्राप्त हुए है इन ध्वंसावशेषों के संरक्षण हेतु, भोपाल की शाहजहाँ बेगम तथा सुल्ताना बेगम ने बड़ा अनुदान दिया था।
  • यहाँ से प्राप्त स्मारकों का निर्माण मौर्यकाल से गुप्तकाल तक लगभग 2 ई.पू. से 2 ई. तक निर्माण हुए जो निम्न प्रकार है।
  • महास्तूप –
  • स्तूप 1 – इसका निर्माण कार्य अशोक मौर्य के समय प्रारंभ हुआ जो कि ईंटों से निर्मित था। जिसका शुंग काल में आकार बढाया गया। प्रस्तर की मजबूत वेदिका बनायी गई।
  • सातवाहन काल में तोरण बनवाये गये। इस स्टूप पर बुद्ध की मानव आकार की पूजा नहीं बल्कि प्रतीक पूजा प्रचलन में थी।
  • स्तूप संख्या 2 – वेदिका विध्यमान परन्तु तोरण द्वार का अभाव, फणयुक्त नागराज का अंकन, इसके स्तम्भों पर दूसरी बौद्ध संगीति में भाग लेने वाले भिक्षुओं में से 10 का नाम उत्कीर्ण है। तीसरी बौद्ध संगीति के बाद अशोक द्वारा भेजे गये धर्म प्रचारकों के नाम मिलते है।
  • स्तूप संख्या-3 – वेदिका अण्ड के उपरी भाग में हैं। हर्मिका में नीचे वेदिका नहीं, एक तोरण द्वार है जो कि सातवाहन कालीन है। यह प्रस्तर से निर्मित लघु स्तूप है इसे काला स्तूप भी कहा जाता है।

 

  • बोधगया (बिहार) –
  • यहाँ पर अशोक ने ईंटों का एक विहार बनाया इसकी पाषाण वेदिका शुंग काल में बनी व बृहद‌गंध कुटिप्रसाद गुप्त काल में बना। वेदिका पर कमल पुष्प उत्कीर्ण है जिसे पदम् वेदिका भी कहते है।

 

 

  • सातवाहन वंश

  • इने आन्ध्र भृत्य जातीय / शालीवाहन वंश का भी कहा जाता है।
  • मूल निवास स्थान – महाराष्ट्र में प्रतिष्ठान

 

  • सातवाहन कौन थे ?

  • 1.अनार्य थे – ब्राह्मण साहित्य सात‌वाहनों को अनार्य मानता है। चूँकि सातवाहन दक्षिण भारत में आवासित थे और यह क्षेत्र आर्य के प्रसार से बाहर था। इस कारण उनको अनार्य कहा गया।
  • ऐतरेय ब्राह्मण – अनार्य
  • महाभारत – मलेच्छ
  • मनुस्मृति – अत्यंज, वर्ण संकरण

 

  • 2.क्षत्रिय थे – भण्डारकर सातवाहनों को क्षत्रिय बताते है, परन्तु कई साक्ष्यों के आधार पर इनका खण्डन किया गया है।
  • नासिक अभिलेख – सातवाहन को क्षत्रियमानदपदेश (क्षत्रियों के मान व दर्प का नाश करने वाले) तथा एकब्रह्म कहा है।

 

  • 3.ब्राहम्ण थे – अधिकांश इतिहासकार इस मत का समर्थन करते है इस कारण यह मत सर्वमान्य है।
  • (1) प्रमुख शासकों के नाम के आगे विभिन्न ऋषियों का नाम जैसे-गौतम, वशिष्ठ, माधव, हरित आदि।
  • (2) नासिक प्रशस्ति में गोतमीपुत्र शातकर्णी हेतु कई विरुद्ध  प्रयुक्त हुए – 1.आगमन निलय (धर्मशास्त्रों का ज्ञाता) 2.अद्वितीय ब्राह्मण 3. वर्णव्यवस्था का रक्षण  4.विनिर्मित चवर्ण संकस्य (वर्णव्यवस्था को रोकने वाला) 5.पर्वतों के स्वामी
  • मनुस्मृति में इन्हें वेदशास्त्रविद्ध कहा है।

 

  • सातवाहन वंश की स्थापना व प्रारम्भिक शासक

  • स्थापना – आन्ध्रजातीय या आन्ध्रभृत्य सिमुक कण्व वंशीय सुशर्मा की हत्या करके पृथ्वी पर राज करेगा। – (वायुपुराण)
  • अत: इस वंश की स्थापना सिमुक ने की।
  • मत्स्य पुराण के अनुसार – 30 राजा 460 वर्ष शासन करेंगे
  • वायु पुराण के अनुसार – 17 राजा  300 वर्ष शासन करेंगे।
  • 1.सिमुक – सातवाहन वंश का संस्थापक, कोटलिंगल से ताम्र व पोटिन के सिक्के मिले।
  • 2.कृष्ण (कान्हा) सिमुक का भाई, नासिक को साम्राज्य में शामिल किया, जिसका नासिक लेख में नाम मिलता है।
  • 3.शातकणी प्रथम – उपाधि – दक्षिणापथपति, प्रतिष्ठान पति, अप्रतिहतचक्र। शातकणी प्रथम सातवाहन वंश को प्रसिद्धि दिलाई व सातवाहनों को गोरव प्रदान करने व साम्राज्य विस्तार करने वाला पहला शासक था।
  • मालवा- यहाँ से ताम्र मुद्राएँ प्राप्त हुई जिन पर श्री सात लिखा है इसके अलावा अनूप क्षेत्र, विदर्भ क्षेत्र तथा सांची क्षेत्र पर संभवत शासन रहा।
  • विदिशा – यहाँ से मुहरें प्राप्त हुई जो मालव शैली में थी।
  • पेरिप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी के अनुसार श्री शातकणी प्रथम (एल्डर सारगुनस) के नियंत्रण में सोपरा कल्याण बंदरगाह थे।
  • इस प्रकार सम्पूर्ण गोदावरी घाटी में अपना शासन स्थापित कर प्रतिष्ठान को अपनी राजधानी बनाया। इसलिए इन्हें प्रतिष्ठानपति भी कहा जाता है।
  • खारवेल इसके समकालिक था, इसके हाथी गुफा अभिलेखव में सातवाहन अभियान का वर्णन मिलता है।
  • शातकर्णी प्रथम  की मृत्यु के बाद दो अल्पवयस्क पुत्र थे वेदश्री व शक्तिश्री
  • वेदश्री को उत्तराधिकारी बनाकर माता नागानिका / नायानिका को संरक्षिका बनाया। नागानिका अंगदेश की राजकुमारी थी।
  • जुनार महाराष्ट्र से एक रजत मुद्रा प्राप्त हुई जिसमें नागानिका व शातकर्णी प्रथम के नाम का उल्लेख है। यह पहली महिला संरक्षिका थी जिसने मुद्रा जारी की।
  • शातकणी प्रथम की उपलब्धियों का ज्ञान नानाघाट अभिलेख से होता है।

 

  • नानाघाट अभिलेख (पुना) –
  • शातकणी प्रथम की उपलब्धियों का ज्ञान नायनिका (नागानिका) के नानाघाट अभिलेख से होता है। यह लेख ब्राह्मी लिपि, प्राकृत भाषा में लिखा गया है।
  • इस अभिलेख में निम्न बातें लिखी है –
  • 18 यज्ञों में से 3 यज्ञ ( 2 अश्वमेघ व 1 राजसूय) शातकणी ने करवाये ।
  • भूमि अनुदान का प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य है।
  • वीर अप्रतिहतचक्र, दक्षिणापथपति जैसी उपलब्धियां शातकणी प्रथम को दी गई।
  • नोट – सातवाहनों की प्रारम्भिक राजधानी धान्यकटक (अमरावती) थी, शातकणी ने सर्वप्रथम गोदावरी नदी के किनारे प्रतिष्ठान / पेठन को राजधानी बनाया ।
  • अन्धकार युग – शातकणी प्रथम से लेकर गौतमीपुत्र शातकर्णी के मध्य कुल 19 शासक हुए जिनका नामोल्लेख मत्स्य पुराण में हुआ।3 शासकों के अलावा अन्य 16 के नाम केवल मत्स्य पुराण से ही प्राप्त होते है। जो इस प्रकार है –
  • 1अपालिक – मध्यप्रदेश से ताम्र सिक्के प्राप्त हुये ।
  • 2.कुंतल शातकर्णी – वातस्यान कृत कामसूत्र में उल्लेख, राजशेखर कृत काव्य मीमांसा में उल्लेख – अंतपुर की रानियां, प्राकृत भाषा उपयोग में लायेगी का आदेश कुंतल शातकर्णी ने दिया।
  • 3. हाल – (17 वाँ शासक) – सातवाहन राजा हाल एक प्रसिद्ध कवि एवं विद्वानों के आश्रय दाता थे। इन्होंने गाथा सप्तशती नामक प्राकृत भाषा में श्रृंगार रस प्रधान एक काव्य लिखा। इनके दरबार में 2 प्रमुख विद्वान थे 1.गुणाढ्य बृहत्कथा के रचयिता जो पैशाची प्राकृत में लिखित 2.सर्ववर्मन – कातन्त्र नामक संस्कृत व्याकरण के लेखक।
  • हाल राजा की रानी मलयवती संस्कृत ज्ञाता थी,लीला वे लीलावती नामक ग्रन्थ से हाल के काल की सैनिक उपलब्धियों की जानकारी मिलती है।
  • नोट – उक्त कमजोर उत्तराधिकारियों के कारण उत्तर दक्षिण सीमा से शकों का आक्रमण व साम्राज्य विस्तार हुआ। इस कारण आगे चलकर शक सातवाहन संघर्ष आरंभ हुआ, जो कि यज्ञ श्री शातकर्णी तक चलता रहा, इस दोरान शकों के दो राजवंश हुए 1.क्षहरात वंश (नहपान, भुमक) 2. कार्दमक वंश (रुद्रदामन, चेष्टन)

 

  • गौतमी पुत्र शातकर्णी (23 वाँ शासक 106 ई. से 130 ई.)

  • यह सातवाहन वंश का सबसे प्रतापी शासक था, इसने सातवाहन साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया, इस क्रम में पहला संघर्ष शकों के साथ हुआ, इसके समकालिन क्षहरात वंश का क्षत्रप नहपान था, इसने नहपान को पराजित किया जिसके निम्न प्रमाण है –
  • 1.नासिक अभिलेख – नासिक में गौतमी पुत्र शातकर्णी ने 2 लेख लिखवाये (18 वें व 24 वें  वर्ष)
  • 18 वें वर्ष के लेख में उल्लेखित है कि गौतमी पुत्र शातकर्णी ने बौद्ध संघ को अजकालकिय ग्राम दान में दिये तथा वेणकटक स्वामी की उपाधि ली।
  • गौतमीपुत्र शातकर्णी के अभिलेखों के अनुसार उसके घोड़े तीन समुद्रों का पानी पीते थे।
  • 2.कार्ले अभिलेख (18 वें वर्ष) – इसमें लिखा है कि गौतमीपुत्र शातकर्णी ने करजक ग्राम बौद्धों को दान में दिया, यह ग्राम पहले शकों ने भी बौद्धों को दिया, ये क्षेत्र पहले नहपान, उषावदत शकों के नियंत्रण में था।
  • 3.जोगल ‌थम्बी मुद्रा भण्डार अभिलेख ( नासिक ) महाराष्ट्र – 1906 में इसे खोजा, इसमें 13250 रजत मुद्राएँ प्राप्त हुई, इसमें 9270 सिक्कों यानि एक भाग पर नहपान तथा दूसरे भाग पर गौतमी पुत्र शातकर्णी का मुद्रा लेख (गौतमीपुत्रस्य) तथा चैत्य पुन: मुद्रांकित है।
  • उक्त साक्ष्यों के आधार पर विद्वानों का मत है कि गौतमीपुत्र शातकर्णी ने 16 वर्ष युद्ध की तैयारी की तथा 17 वें वर्ष युद्ध हुआ जिसमें नहपान व उषावदत दोनों  मारे गये। क्षहरात वंश क्षीण हो गया व शक क्षेत्र सातवाहनों के अधीन आ गये। यह युद्ध नासिक के पास गोवर्धन में हुआ था इसके बाद सात‌वाहन साम्राज्य निम्न क्षेत्रों तक फैला था।
  • 1 ऋषिक (कृष्णा नदी)2.अस्मक (गोदावरी) 3. मूलक (प्रतिष्टान) 4. सूरत (सौराष्ट्र) 5. कुक्कर (काठियावाड़ ) 6. अनूप (नर्मदा) 7.अपरान्त 8. विदर्भ 9.आकार ( पूर्वी मालवा) 10.अवन्ती (पश्चिमी मालवा)
  • सातवाहनों की प्रारंभिक राजधानी धान्यकटक (अमरावती) थी। शातकर्णी प्रथम ने सर्वप्रथम गोदावरी नदी के किनारे प्रतिष्ठान / पैठन  को राजधानी बनाया। नासिक प्रशस्ति विशिष्ट पुत्र पुलुमावी के शासन काल के 19 वें वर्ष गौतमीपुत्र शातकर्णी की माता गोतमी बलश्री द्वारा यह प्रशस्ति लिखी गई, इसमें गोतमी पुत्र शातकर्णी की विजय लिखी गई है। यह प्रशस्ति ब्राह्मी लिपि व प्राकृत भाषा में लिखी गई है, इसमें गौतमी पुत्र शातकर्णी को निम्न उपाधियां दी गई – 1. खतियद‌पमानमदनस 2. खखरातवसनिखसेसकरस 3.सर्वराजलोकमण्डल 4.बर-बरुण-विक्रम-चारुविक्रम 5. आगमनिलय अद्वितीय ब्राह्मण 6.अतुल्य धनुर्धर 7. अनेकसमयविजय शत्रुसंघ

 

  • वाशिष्ठी पुत्र पुलुमावी (130-154 ई.)

  • नाम – पुलोमा – पुराणों एवं अमरावती लेख में पुलोमा
  • सिरोपुलोमाय – टॉलमी
  • पुलु‌मावी – म्यूकडेनी अभिलेख
  • नासिक अभिलेख में वाशिष्ठी पुत्र पुलुमावी की उपाधि दक्षिणापथेश्वर कहा गया। आन्ध्रप्रदेश पर विजय के कारण प्रथम आन्ध्रसम्राट भी कहा जाता है।
  • वाशिष्ठी पुत्र पुलुमावी के अभिलेख ही सातवाहन वंश के आंध्रप्रदेश में पाये जाने वाला सबसे प्राचीन अभिलेख है।
  • जानकारी के स्रोत –
  1. नासिक में 4 लेख लिखवाये
  2.  कार्ले में 2 लेख
  3. नानाघाट में एक लेख
  • कोरोमण्डल तट पर इसकी मुद्रा जिन पर ‘दो पतवारों की नाव‘ का जहाज का चित्र बना हुआ है।
  • नवनगर की स्थापना व मुद्रा मिली।
  • शकों के साथ संघर्ष – क्षहरात के बाद कार्दमक वंश का उत्थान हुआ, वशिष्ठ पुत्र पुलमावी के समकालिक चेष्टन व रुद्रदामन शासक थे।
  • गिरनार अभिलेख – रुद्रदामन ने वशिष्ठ पुत्र पुलुमावी को 2 बार पराजित किया परन्तु निकट सम्बन्धी होने के कारण छोड दिया।
  • कन्हेरी अभिलेख – इसके अनुसार रुद्रदामन की पुत्री का विवाह विशिष्ठ पुत्र पुलुमावी से हुआ था। रुद्रदामन ने विशिष्ठ पुत्र पुलु‌मावी को पराजित किया था। इस प्रकार शक्तिशाली शकों के कारण विशिष्ठ पुत्र पुलुमावी उत्तर पश्चिम की ओर अपना विस्तार नहीं कर सका, इस कारण इस समय दक्षिण पूर्व की ओर विस्तार किया इस प्रकार पहला आन्ध्रसम्राट कहलाया व अमरावति को अपना प्रमुख केंद्र बनाया।

 

  • यज्ञ श्री शातकर्णी – (174 से 203 ई.)

  • यह अंतिम शक्तिशाली शासक था इसके कार्यकाल की जानकारी चिह्न अभिलेख से 165-195 ई. मिलती है। अधिकांश स्रोत (174-203ई.) बताते है।
  • इसने कार्दमक शकों को पराजित कर शक सातवाहन संघर्ष समाप्त किया इसके उपलक्ष्य में इसने रजत मुद्राएँ चलायी। सोपारा से हमें ऐसी कई मुद्राएं प्राप्त हुई। नागार्जुन यज्ञ श्री शातकर्णी का मित्र एवं समकालीन था। यज्ञ श्री शातकर्णी की सिक्कों पर समुद्री जहाज, मछली, शंख के चित्र उत्कीर्ण है।
  • इनके काल में कई अभिलेख लिखे 1.गुंटूर का लेख 2.नासिक का लेख
  • 3.कन्हेरी लेख – कवि बाणभट्ट ने इन्हें त्रिसमुद्रधिपति कहा व बौद्ध भिक्षु नागार्जुन का मित्र बताया है।
  • इसके बाद निरन्तर कमजोर उत्तराधिकारी हुए व अन्तिम शासक पुलुमावी चतुर्थ था। इसके बाद सातवाहन क्षेत्र वंश, आन्ध्र प्रदेश के के तटीय क्षेत्रों तथा बेलारी तक सीमित रहा व अन्य क्षेत्रों में कई वंशों का विकास हुआ।
  1. आभीर वंश (नासिक ) – संस्थापक – ईश्वरसेन ,  कलचुरी चेदी संवत चलाया
  2. चतुशातकणी वंश – महाराष्ट्र व कुंतल में, कदम्ब वंश के शासक
  3.  ब्रह्तफल पाणम – कृष्ण मुसली पटनम, कालान्तर में पल्लवों के अधीन हुआ।
  4.  शालकायन – वंगी राजधानी, कालांतर पल्लवों के अधीन।
  5.  इश्वाकु वंश  – कृष्णा व गुंटूर का क्षेत्र, संस्थापक – श्री शांति मूलक , अश्वमेध युद्ध किया, नागार्जुनीकोंडा अभिलेख से ज्ञात होता है कि इश्वाकु नरेश वीर पुरुषदत्त ने उज्जैन के शक नरेश की कन्या रूद्रभटारिका से विवाह किया।

 

  • सातवाहन कला –

  • स्तूप, विहार, चैत्य – यह कला अशोक के काल में आरम्भ हो चुकी थी परन्तु विकसित सातवाहन काल में हुई।
  • 1.स्तूप – बुद्ध की मानव आकार मूर्तियाँ बनाई गयी, इससे पूर्व प्रतीक पूजा होती थी। श्वेत पाषाण का प्रयोग हुआ, आयक स्तंभ बनाये गये । यहां आकर्षक मानव मूर्तियां बनी, जिसमें छाया प्रकाश नीति और उन्नति, शरीर कसावट, स्तूपों के शीर्ष पर गवाक्ष बनाये गये।

 

  • अमरावती स्तूप
  • (गुण्टूर, आन्ध्रप्रदेश) 1797 में मेकेन्जी द्वारा खोजा गया। यह वर्तमान में संग्रहालय में शेष बचा है – कलकता, मद्रास, लन्दन।
  • निर्माण – इसका निर्माण 4 चरणों में 200 से 250 ई. के मध्य हुआ।
  • 1. 200-100 ई.पू. – हीनयान (प्रतीक चिन्ह चित्रण)
  • 2.100ई.पू.-100 ई. – हीनयान व महायान दोनों का प्रभाव (प्रतीक मूर्ति पूजा)
  • 3.100 ई.-200 ई. – उत्कृष्टता / सातवाहन काल में वशिष्ठी पुत्र पुलुमावी, यज्ञ श्री शातकर्णी व श्री शिव शातकर्णी।
  • 4.200-250 ई. – इश्वाकू वंश की रानियों द्वारा वाकाटक वंश की।
  • उक्त विभिन्न कालों में धान्यकटक (यहाँ पर अमरेश्वर शिवलिंग होने के कारण इसे अमरावती कहा जाता है) में इस स्तूप का निर्माण करवाया।
  • इसका पूर्व नाम धरणिकोट था। इस स्तूप को महाचैत्य / महास्तूप / धरणी महाचैत्य / कत महाचैत्य आदि नामों से जाना जाता है।
  • विशेषता – हाथी का अवक्रान्ति में प्रवेश, तोरण द्वारों का अभाव उसके स्थान 2 बड़े स्तंभ जिन पर सिंह मूर्ति है। अलंकृत स्तूप, केन्द्रीय हिस्सा ठोस इंटों से बना है। शिलपट्टों पर लेख मिले है, जातक कथाएँ व महात्मा बुद्ध के जीवन की घटनाएँ उत्कीर्ण।

 

  • नागार्जुन कोण्डा स्तूप –
  • गुंटूर (आन्धप्रदेश) 1926 में लैगहर्स्ट द्वारा खोजा।
  • इक्ष्वाकु रानियों द्वारा बनाया गया – बपिसिरितिक, चतिसिरि, शांतिश्री व बौधिश्री, इन्होंने स्तूप निर्माण हेतु नवकार्मिक पद का गठन किया।
  • KD वाजपेयी के अनुसार – यह भारतीय वास्तुकला की उज्ज्वलतम कृर्ति है।

 

  • अन्य स्तूप-
  • 1 गुंटपलेस्तूप – दक्षिण भारत का प्राचीनतम स्तूप
  • 2 संकाराम
  • 3.भटिप्रोल – महास्तूप इंटों से निर्मित
  • 4.घंटशाल – बोरोबदुर

 

  • विहार / चैत्य – बौद्ध भिक्षुओं का रहने का स्थान विहार था।
  • चैत्य 2 प्रकार के होते थे । 1.पहाड़ों को काटकर बनाये जाने वाले गुहा चैत्य 2. स्वतंत्र भूमि पर बनाये जाने वाले चैत्य
  • बौद्धों का पूजा भवन – चैत्य
  • पश्चिमी भारत के चैत्य विहार – महाराष्ट्र में विहार अधिक व चैत्य कम है। हीनयान विचारधारा में प्रतीक गुफा, हीनयानों की 8 गुफाएं मिली है। 1.भांजा (पुणे) 2.. कोण्डाने (कोलाबा) 3.पीतल खौरा (खानदेश) 4.कार्ले (पूना) 5. कन्हेरी (कृष्णागिरी, मुम्बई) 6. बेडासा (पुना) 7. नासिक 8. जुन्नार (पुणे)

 

  • मौर्योत्तर अर्थव्यस्था

  • 1.कृषि – जीवनयापन का प्रमुख आधार – चावल, गेहूं, जौ, गन्ना, चावल (धान) राजकीय धान था, मिलिन्द‌पन्हों में कृषि के 8 चरण बताए गये। सिंचाई हेतु जलाशय बनाये जाते थे, इसमें पानी बाहर निकालने के रहट / अरघट का उपयोग किया जाता था।
  • 2. उद्योग – वस्त्र उद्योग प्रमुख था, इसमें भी सूती वस्त्र उद्योग अत्यंत विकसित था। वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्र –
  • 1.उरैयूर व अरिकमेडु – सूती वस्त्रों के प्रमुख केन्द्र थे।
  • 2. उरैयूर – अर्गरू , मलमल
  • 3.मोटावस्त्र – तगर व प्रतिष्ठान
  • 4.वाराणसी व मथुरा – उत्कृष्ट वस्त्र निर्माण
  • 5. बंगाल – मसलिन मलमल
  • 6. मगध –  वृक्षों के रेशे

 

  • 3. शिल्प -18, दीर्घनिकाय – 24, महावस्तु-36, मिलिन्दपन्हों 75 इसमें से 8 शिल्प धातुकर्म से सम्बंधित है।
  • शिल्प के नियत्रंण हेतु श्रेणियों की व्यवस्था थी, प्रत्येक शिल्प की अलग श्रेणी होती थी। श्रेणियों को कुलिक निगम कहा जाता था। श्रेणियों के कार्यलय को निगम सभा श्रेणियों के नियमों को श्रेणी धर्म कहा जाता है।
  • श्रेणी धर्म जानकारी – मनुस्मृति याज्ञवलक्य स्मृति में मिलती है।

 

  • 4. व्यापार एवं वाणिज्य –

  • व्यापार 2 प्रकार से होता था – 1आन्तरिक व्यापर 2. बाह्य व्यापर
  • 1. आन्तरिक व्यापार – देश के विभिन्न व्यापारिक केन्द्रों के मध्य होने वाले आपसी व्यापार को आन्तरिक व्यापार कहते थे। यह व्यापार स्थल मार्गो से होता था जिसमें बैल, घोड़ा, ऊंट, गाड़ियों का उपयोग होता था।
  • इस समय वस्तु विनिमय प्रणाली अस्तित्व से थी व धातु विनिमय भी प्रचलित था।
  • धातु विनिमय हेतु मुद्रा प्रणाली भी अस्तित्व में थी, चूँकि मुद्रा का मूल्य निर्धारित नहीं था , इस कारण मुद्रा विनिमय नहीं था।

 

  • 2.बाह्य व्यापार – 1.क्षेत्र- रोम के साथ सर्वाधिक मध्य एशिया, पूर्वी एशिया

    2.प्रमाण / स्रोत  – साहित्य प्रमाण 1.शिल्पादिकरम – रोम के साथ व्यापार का समान चित्र वर्णन देता है। 2. पेरिप्लस ऑफ एरिथ्रियन सी (लेखक – अज्ञात, मिश्र में आवास्थित यूनानी था)

    प्रथम शताब्दी में लाल सागर, हिन्द महासागर, फारास की खाड़ी तीनो को संयूक्त रूप से एरिथ्रियन सी कहा जाता है।

    व्यापार के वर्णन – 24 बन्दरगाह बताये (पश्चिमी और पूर्वी बन्दरगाह) उन वस्तुओं की सूची दी जिनका व्यापार होता था, किन क्षेत्रों से व्यापार होता था उनका उल्लेख है। यह ग्रीक (यूनानी) भाषा की पुस्तक है।

     

 

  • 5. मुद्रा प्रणाली –

  • ताम्र मुद्राओं का प्रचलन अधिक था, स्वर्ण मुद्राएँ कम थी जो विशिष्ठ लेने देने में प्रयुक्त होती थी। सातवाहनों ने कोई स्वर्ण मुद्रा नहीं चलाई। इस समय विभिन्न मुद्राये प्रचलन में थी।
  • 1.स्वर्ण – निष्क व पल
  • 2. चाँदी – शतमान
  • 3.तांबे – काकणी
  • 4.रागा
  • उक्त चारो का मिश्रण कार्षापण (सर्वाधिक उपयोग)
  • सातवाहन क्षेत्रों में रजत की कमी के कारण 500 ग्रेन के सीसे के सिक्के चलाये, ताम्र, जस्ता,सीसा इत्यादि के मिश्रण (पोटिन), सिक्के चलाई थे। पेडा बाकुडा (आन्ध्रप्रदेश), आदन (MP) – सातवाहनों के सिक्को का ढेर मिला तो संभवतय यहाँ सातवाहनो की टकसाल रही होगी।
  • इस प्रकार समृद्ध आन्तरिक व्यापार के कारण कई नगरों व मुद्राओं का विकास हुआ। इस कारण रोमिला थापर व RS शर्मा नें इस काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण काल कहा है। साथ ही RS शर्मा ने अपनी पुस्तक अर्बन डीके इन इंडिया में इस काल को लगभग 125 नगरों का विवरण दिया है। संभवत कुछ विद्वान् इसे तृतीय नगरीकरण का संकेत देते है।

 

 

  • 6. पुरातात्विक प्रमाण –

  • 1. सिक्के – कोयंबटूर (कांगू देश) अरिकमेडू, कोटलिंगल, पेडाबाकुड (आंध्रप्रदेश), शिशुपाल, आदम क्षेत्रों में रोमन शासकों के सिक्के मिले जिनमें आगस्टस, टाइबेरियस नीरो इत्यादि प्रमुख थे।
  • 130 रोमन सिक्कों के संग्रह मिले है जिनमें लगभग 6000 सिक्के मिले हैं।
  • अरिकामेडू – पांडिचेरी (पुडुचेरी) वर्तमान स्थान यहाँ से रोमन बस्ती रोमन सिक्के, मिले है।
  • 2.मृद्भाण्ड – 1.एम्फोरा – तरल पदार्थ का पात्र , 2.एरटाइन मृद्भाण्ड – मुद्रांकित चमका सांचे में ढाला हुआ, जिन्हें टेरा सिकिलात भी कहा जाता है।
  • अरिकामेडु जहाजों का निर्माण केन्द्र रहा है।
  • मार्ग – मानसून (अरबी भाषा शब्द) हवाओं की दिशाओं में परिवर्तन खोज – हिप्पाल्स द्वारा की गई।
  • स्थल मार्ग – मानसून पवनों की खोज से पूर्व स्थल मार्ग (उत्तरापथ / रेशम मार्ग) से व्यापार होता था।
  • जलमार्ग – कालान्तर में मानसून पवनों की खोज के बाद जल मार्ग से सर्वाधिक व्यापार होता था।
  • बेरिगाजा / भड़ौच (शकों के अधीन सबसे बड़ा बन्दरगाह था यह टॉलमी ने कहा ) व सोपारा व कल्याण बन्दरगाह भी सातवाहनो के पास थे।

 

  • वस्तुयें – आयात – शराब, तांबा, रागा, सीसा
  • निर्यात – गर्म मसाले, लौहा उत्पाद, चंदन, हाथी दांत, रेशम, हीरा सर्वाधिक मात्रा में
  • गर्म मसाले में गोलमिर्च प्रमुख थी इसे यवन प्रिय कहा जाता था। गोलमिर्च को रोमिला थापर ने काला सोना कहा।

 

  • व्यापार की स्थिति – भारत के अनुकुल रही 2.55 करोड, सेक्टर्स भारत को हरसाल फायदा मिलता था यह पिलनी ने कहा।
  • विविध तथ्य सातवाहन शासन मोर्य प्रशासन से प्रभावित था। मोर्यकाल की तरह जिलों को आहार कहा जाता था।
  • सातवाहन शासकों ने ब्राह्मणों व श्रमणों को करमुक्त भूमि अनुदान देने की प्रथा शुरू की। अभिलेखों में भूमि अनुदान का प्रथम उल्लेख सातवाहन अभिलेख प्रथम शताब्दी ई. पू. का है।
  • सातवाहन अभिलेकों में कटक एवं स्कन्धावर शब्दों का अत्यधिक प्रयोग है। ये सैनिक शिविर थे जो प्रशासन में केन्द्र के रूप में काम करते थे।
  • चैत्य सातवाहनों का राज चिन्ह था, सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत लिपि ब्राम्ही थी। गाँव का प्रशासक गौल्मिक कहलाता जो सैनिक टुकड़ी का प्रधान होता था।
  • इस समय सामन्तों की 3 श्रेणियां थी – प्रथम श्रेणी राजा, द्वितीय श्रेणी महाभोज, तृतीय श्रेणी सेनापति
  • शातकर्णी प्रथम ने सर्वप्रथम राजा के नाम के सिक्के जारी किये।
  • कार्षापण (काहापण) का प्रथम उपभिलेखीय साक्ष्य नागानिका का नाना घाट अभिलेख है। महारठी व महाभोज बड़े सामन्त होते थे जिन्हें अपने क्षेत्र में सिक्के उत्कीर्ण कराने का अधिकार था।

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