1857 की क्रांति

  • 1857 की क्रांति भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक व्यापक लेकिन असफल क्रांति थी।
  • प्लासी के युद्ध 1757 से 1857 की क्रांति के बीच लगभग 100 वर्षो के बाद अंग्रेजों ने भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में प्रत्यक्ष कार्यवाही करने की नीति अपनाई। जिससे धीरे धीरे भारतीय जनता में आक्रोश की भावना बढ़ी जिसने 1857 की क्रांति का रूप ले लिया।
  • 1857 की क्रांति से पूर्व भारत में कई स्थानों पर विद्रोह हुए –
    • 1825 में असम में स्थित तोपखाने में विद्रोह।
    • 1806 में बेल्लोरमठ में कुछ भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजो द्वारा अपने सामाजिक व धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप के कारण विद्रोह कर मैसुर के राज्य का झण्डा फहराया।
    • 1764 में बक्सर के युद्ध में हैक्टर मुनरो के नेतृत्व मे लड़ रही सेना के सिपाही विद्रोह कर मीर कासिम से मिले।

 

1857 की क्रांति के कारण

  • अग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार, दमनकारी नीतियाँ, भेदभाव, भारतीयों को हेय दृष्टि से देखना आदि कई 1857 की क्रांति के कारण बने।

 

1857 की क्रांति के राजनीतिक कारण

  • डलहौजी की व्यपगत नीति।
  • वेलेजली की सहायक संधि।
  • डलहौजी की हड़प नीति के द्वारा जैतपुर, सम्भलपुर, झांसी, नागपुर राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय किया व साथ ही अवध के नवाब को गद्दी से उतार दिया।
  • डलहौजी ने तंजौर व कर्नाटक के नवाब की राजकीय उपाधियां जब्त कर ली, मुगल बादशाह को नजर देना व सिक्कों पर नाम खुदवाना आदि परम्पराओं को बन्द कर दिया।
  • मुगल बादशाह भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करते थे इसलिए वह भी भारतीय जनता के साथ हुए ।
  • भारतीयों की भागीदारी जातीय श्रेष्टता पर आधारित थी। कोई भी भारतीय सुबेदार ऊँचे पद पर नहीं पहुँच पाता। न्यायिक क्षेत्र के अन्तर्गत अंग्रेजों को हर स्तर में भारतीयों से श्रेष्ठ माना।
  • स्थायी बंदोबस्त, रैय्यतवाडी व महलवाड़ी व्यवस्था से किसानों का जबरदस्त शोषण हुआ। जिससे जीवन स्तर और भी निम्न हो गया।

 

1857 की क्रांति के आर्थिक कारण

  • प्लासी के युद्ध के बाद भारत का निरन्तर आर्थिक शोषण हुआ।
  • आर्थिक शोषण व पारम्पारिक ढाँचे का पूर्ण रूप से विनाश कर किसानों, दस्तकारों व हस्तशिल्पकारों से उच्च मात्रा मे कर लेना शुरू किया। जिससे जनता में असन्तोष का जन्म हुआ।
  • अकाल की स्थिति होने पर भी ग्रामीणों से कर वसुला जाता जिससे आम जनता की स्थिति और भी दयनीय हो गई।

 

1857 की क्रांति के धार्मिक व सामाजिक कारण

  • 1856 के धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम के अन्तर्गत ईसाई धर्म ग्रहण करने वाले व्यक्ति को ही पैतृक सम्पति दी जाती व इसके साथ नौकरियों में पदोन्नति व शिक्षण कार्य के लिए किसी भी संस्थाओं में प्रवेश की सुविधा।
  • लार्ड बैंटिक ने सती प्रथा को बंद करवाया, लार्ड कैनिंग ने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया व बाल विवाह पर अंकुश लगाया।

 

1857 की क्रांति के सैनिक कारण

  • अंग्रेजी सेना मे कार्यरत कई भारतीय सैनिक अफसर थे परन्तु उनकी पदोन्नति का कोई फायदा नही होता। व उन्हें वेतन भी बहुत कम दिया जाता है।
  • भारतीय सैनिकों पर अपनी जरूरत के मुताबिक चीजें थोप दी जाती जो भारतीय सैनिकों की परम्परा के विरूद्ध होती।

 

1857 की क्रांति के तात्कालिक कारण

  • कैनिंग सरकार के द्वारा सैनिकों के प्रयोग लिए ब्राउन बैस के स्थान पर एनफील्ड रायफल का प्रयोग किया जिसमें गाय व सुअर की चर्बी का प्रयोग किया।

 

1857 की क्रांति की शुरुआत व प्रसार

  • चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग ने जनता को और क्रोधित कर दिया जिस कारण यह निर्धारित समय सीमा से पहले ही हो गई।
  • इसके उपरान्त चर्बीयुक्त कारतूसों के प्रयोग के विरुद्ध पहली घटना 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में 34 वीं इनफेंट्री के सिपाही मंगल पांडेय ने चर्बी युक्त कारतूसों के प्रयोग के लिए माना कर दिया व दो अंग्रेज अधिकारियों लेफ्टिनेंट बागजनरल ह्यूसन की गोली मार कर हत्या कर दी। व इसके बाद अग्रेजों द्वारा 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडेय को फांसी दे दी गई। इसमें भारतीय सैनिकों में आक्रोश की भावना बढी।
  • इसके बाद भारतीय स्वतंत्रता हेतु सशस्त्र विद्रोह 10 मई 1857 को उत्तरप्रदेश के मेरठ क्षेत्र मे हुआ वहाँ 20 एन आई व तीन एल. सी. की सैन्य टुकड़ी ने कारतुस के प्रयोग के लिए मना किया। व अपने उच्चधिकारियों को मार कर दिल्ली की और रवाना हुए व बहादुरशाह द्वितीय (मुगल बादशाह) को भारत का सम्राट बनाया।
  • दिल्ली विजय का समाचार कई देशों मे फैला व इस विद्रोह ने लखनऊ, कानपुर, बरेली, जगदीशपुर, रुहेलखण्ड, ग्वालियर को भी अपनी चपेट मे ले लिया।

 

1857 की क्रांति का विस्तार क्षेत्र

  • कानुपुर – कानपुर में 5 जून 1857 को विद्रोह का प्रारम्भ, हुआ यहाँ पर मराठा साम्राज्य के अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब ने विद्रोह का नेतृत्त्व संभाला व उनकी मदद तांत्या टोपे ने की परन्तु डलहौजी की हड़प नीति के कारण नाना साहेब को अपना अधिकार नही मिल पाया।
  • दिल्ली – दिल्ली के बारे में हमने पहले भी चर्चा की भारतीय सैनिक दिल्ली आकर बहादुरशाह को अपना नेता चुना बख्त खां उनके सेनापति थे। परन्तु 20 सितम्बर 1857 को बहादूरशाह ने हुमायूँ के मकबरे में अंग्रेज लेफ्टिनेंट हडसन के सामने समर्पण किया। बहादुरशाह को बाकी का जीवन रंगून जेल मे निकालना पड़ा व वही 1862 में उनकी मृत्यू हो गई।
  • लखनऊ – लखनऊ में 4 जून 1857 को विद्रोह का प्रारम्भ हुआ। व बेगम हजरत महल द्वारा लखनऊ स्थित ब्रिटिश रेजिडेंसी पर आक्रमण किया व उसके बाद मौलवी अहमदुल्ला के साथ शाहजहाँपुर में विद्रोह किया वहाँ से हारने के बाद नेपाल भाग गयी
  • झाँसी – झाँसी में 4 जून 1858 को रानी लक्ष्मी बाई ने अपने पुत्र दामोदर राव के अधिकारो के लिए अग्रेजों से युद्ध किया। ग्वालियर में तात्या टोपे के साथ विद्रोह का नेतृव्य किया लेकिन अन्त समय में जनरल ह्यूरोज से लड़ते हुए 17 जून1858 को वीरगति को प्राप्त हुई।
  • बिहार (जगदीशपुर) – बिहार के जगदीशपुर में वहाँ के जमींदार कुंवर सिंह ने 1857 में विद्रोह का झंडा फहराया। इस विद्रोह के समय कुंवर सिंह को ‘बिहार का सिंह’ कहा।
  • फैजाबाद – फैजाबाद में 1857 के विद्रोह मे मौलवी अहमदुल्ला ने अपना नेतृत्त्व दिया। उन्होने विभिन्न धर्म के अनुयाइयों को बोला कि सारे लोग अंग्रेज काफिर के विरुद्ध खडे हो जाओ व उन्हें भारत से बाहर खदेड दो।
  • असम – असम में 1857 के विद्रोह के समय वहाँ के दीवान मनीराम दत्त ने अन्तिम राजा के पोते कंदपेश्वर सिंह को राजा घोषित करके विद्रोह को शुरू किया व कुछ समय में ही असफल हुई।
  • बरेली – बरेली में खान बहादुर खान द्वारा विद्रोह किया गया जहाँ पर कैम्पबेल द्वारा विद्रोह का दमन कर दिया
  • कोटा – कोटा में भारतीय सैन्य टुकड़ी ने अंग्रेज एजेंट मेजर बर्टन की हत्या कर विद्रोह किया।

 

1857 की क्रांति के असफल होने के कारण –

  • संसाधनों की सीमितता –
    • भारतीयों के पास इतने संसाधन नही थे जिससे वह अंग्रेजों के हथियारों का सामना कर सके अधिकांश यह क्रांति रजवाडे व छोटे जमीदारों के उपर ही थी। व उनके पास इतने हथियारों की सुविधा नही थी कि वे अग्रेजों की बराबरी कर सके। यह भी इस क्रांति के असफल होने का कारण बना।
  • एकता का अभाव –
    • अलग-अलग क्षेत्रों में क्रांति होने को देखकर यह लगता है कि इनमें एकता की कमी थी। इनमें आपस में कोई तालमेल नही था। ये क्षेत्र अंग्रेजों की नीतियों से आजाद होने का प्रयास अलग-अलग होकर कर रहे थे। जो संभव न था।
  • नेतृत्व का अभाव –
    • 1857 की क्रांति हर क्षेत्र मे छोटे-छोटे रूपों मे बंट गई। हर क्षेत्र में वहाँ के शासक अपने ही क्षेत्र का नेतृत्त्व करते नजर आ रहे थे। किसी भी क्षेत्र के शासक ने इन्हें जोड़कर राष्ट्रीय एकरूप देने का प्रयास नही किया।
  • शिक्षित वर्ग के समर्थन का अभाव –
    • 1857 की क्रांति में शिक्षित वर्ग ने भाग नहीं लिया। व इसकी आलोचना भी की।

 

 विद्रोह को लेकर विभिन्न इतिहासकारों के मत

  • जॉन सीले -1857 के विद्रोह को सैनिक विद्रोह के रूप में मानते हैं।
    • जॉन सीले के मत का खण्डन  – 1857 के विद्रोह को केवल सैनिक विद्रोह कहना उचित नही क्योकि इस विद्रोह में किसानो व असैनिक लोगों ने भी भाग लिया था।
  • वी.डी.सावरकर – 1908 में प्रकाशित वी.डी.सावरकर की पुस्तक (फर्स्ट वार ऑफ इंडियन इंडिपेंडस) भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम ने इस धारणा को जन्म दिया कि यह एक सुनियोजित राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम था।
  • डॉ. एस.एन.सेन – सेन ने अपनी पुस्तक एट्टीन फिफ्टी सेवन में कहा “जो कुछ धर्म के लिए लड़ाई के रूप शुरू हुआ, वह स्वतंत्रता संग्राम के रूप समाप्त हुआ।

 

1857 की क्रांति के परिणाम –

  • भारत में से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर ब्रिटिश ताज ने भारत का शासन सीधे अपने हाथ में लिया।
  • 1857 के विद्रोह के पश्चात् सैनिको की भर्ती हेतु एक रॉयल कमीशन का गठन हुआ व बडी कुटिलता से ‘फूट डालो राज करो की नीति का अनुसरण करते हुए सेना के रेजिमेटों को जाति, समुदाय व धर्म के आधार पर विभाजित किया।
  • भारतीय राजवाड़ो के प्रति विजय व विलय करण की नीति का त्याग कर सरकार ने राजाओं को गोद लेने की अनुमति दी।
  • 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार के द्वारा सेना के पुनर्गठन के लिए स्थापित पील कमीशन की रिपोर्ट पर सेना में भारतीय सैनिकों से ज्यादा यूरोपियनों का अनुपात बढ़ा दिया।

 

1857 की क्रांति से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु

  • 1857 के विद्रोह की शुरुआत 10 मई 1857 में मेरठ से हुई।
  • 1857 की क्रांति के समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग थे।
  • 1857 के विद्रोह में पंजाब, राजपूताना, पटियाला, जींद, हैदराबाद व मद्रास के शासको ने हिस्सा नहीं लिया।
  • ब्रिटिश सांसद डिजरायली ने 1857 के विद्रोह को राष्ट्रीय विद्रोह कहा।
  • चर्बीयुक्त कारतूसों के प्रयोग के विरोध में प्रथम विद्रोह बैरकपुर – छावनी में मंगल पाण्डे द्वारा किया गया।
  • 1857 की क्रांति के समय मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर / बहादुरशाह द्वितीय था।
  • 1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामर्स्टन थे।

 

1857 की क्रांति संक्षेप में

केन्द्र क्रांतिकारी क्रांति का दिन अंग्रेज अधिकारी
दिल्ली बहादुरशाह,  बख्त खां 11-12 मई, 1857 निकलसन, हडसन
कानपुर नाना साहब, ताँत्या टोपे 5 जून, 1857 ई कॉलिन कैम्पबेल, हेवलॉक
लखनऊ बेगम हजरत महल 4 जून, 1857 ई कॉलिन कैम्पबेल
झाँसी, ग्वालियर रानी लक्ष्मी बाई, ताँत्या टोपे 4 जून, 1857 ई जनरल ह्यूरोज
जगदीशपुर कुंवर सिंह 12 जून, 1857 विलियम टेलर, विंसेट आयर
फैजाबाद मौलवी अहमद उल्ला जून, 1857 जनरल रेनॉर्ड
इलाहाबाद लियाकत अली 6 जून, 1857 कर्नल नील
बरेली खान बहादुर खान (बख्त खाँ) जून, 1857 विंसेट आयर, कैम्पबेल

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