- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन 1885 से 1947 ‘भारतीय इतिहास’ में लम्बे समय तक चलने वाला आन्दोलन रहा। सामान्यतः इस आन्दोलन की शुरूआत 1885 ई. में कोंग्रेस की स्थापना के साथ-साथ हुई। व वर्ष 1857 ई. को भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का प्रारम्भ माना जाता हैं भारत में राष्ट्रवादी विचारों को जन्म देने के लिए कॉग्रेस सबसे बड़ा योगदान था।
- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन 1885 से 1947 को तीन चरणों में बांटा –
- 1.प्रथम चरण ( उदारवाद ) 1885 से 1905 ई. तक
- 2.द्वितीय चरण ( उग्रवाद / राष्ट्रवाद का उदय) 1905 से 1917 ई. तक
- 3.तृतीय चरण ( गांधीयुग) 1917 से 1947 ई0 तक
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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम चरण 1885 से 1905
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कांग्रेस की स्थापना से पूर्व स्थापित राजनीतिक संस्थायें
- बंगाल में 1836 में स्थापित बंग भाषा प्रकाशक सभा गठित की गई, इस संस्था ने सरकार की नीतियों की समीक्षा एवं सुधार कार्यों के लिए सरकार को प्रार्थना पत्र दिया।
- 1838 ई. में द्वारकानाथ टैगोर ने कलकत्ता में लैंड होल्डर्स सोसायटी की स्थापना की। यह भारत की प्रथम राजनीतिक संस्था थी। इस संस्था का उद्देश्य जमींदारों के हितों की रक्षा करना।
- 1843 ई. मे ‘बंगाल ब्रिटिश ऐसोसिएशन‘ या ‘बंगाल इंडिया सोसायटी‘ की स्थापना हुई। इसकी स्थापना में भी द्वारकानाथ टैगोर का हाथ था इस संस्था के सदस्य अंग्रेज भी थे। अंग्रेज जार्ज थाम्पसन ने संस्था की एक बार अध्यक्षता भी की।
- लैंडहोल्डर्स सोसायटी व बंगाल ब्रिटिश एसोसिएशन को मिलाकर 28 अक्टूबर 1851 को ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की कलकता में स्थापना हुई। राधाकांत देव, देवेन्द्र नाथ टैगोर राजेन्द्र लाल मित्र व हरिशचन्द्र मुखर्जी स्थापना में शामिल थे। इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य भारतीयों के लिए राजनैतिक अधिकारों की मांग करना था।
- 1852 ई. में बम्बई एसोसिएशन की स्थापना डॉ. भाउदाजी ने की
- 1852 ई. में ‘मद्रास नेटिव ऐसोसिएशन‘ की स्थापना हुई।
- 1866 ई. में दादा भाई नौरोजी ने लन्दन में ‘ईस्ट इंडिया ऐसोसिएशन‘ की स्थापना की। फिरोजशाह मेहता, बद्रूदीन तैयबजी व मनमोहन घोष भी ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन की स्थापना से जुड़े थे, दादा भाई नौरोजी को ग्रान्ड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया, भारत के ग्लैडस्टॉन व मि. नैरो मेजोरिटी के नाम से भी जाना जाता था।
- 1867 ई. में महादेव गोविन्द रानाडे, एस. एच. चिपलुंकर व जी वी जोशी ने पूना में पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना की।
- 1875 की ई. में शिशिर कुमार घोष ने बंगाल में इंडियन लीग की स्थापन की।
- 1876 ई. में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने आनन्द मोहन बोस के सहयोग से कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की। यह कांग्रेस से पूर्व अखिल भारतीय स्तर की संस्था थी। इसमें सिविल सेवा परीक्षा में सुधार की मांग व इल्बर्ट बिल जैसे विवादों को लेकर आन्दोलन चलाया।
- 1883 ई. में इंडियन ऐसोसिएशन ने कलकत्ता में नेशनल कॉन्फ्रेस नामक एक अखिल भारतीय संगठन का आयोजन किया। जिसकी स्थापना सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने की व प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता आनन्द मोहन बोस ने की।
- 1884 ई. में ए.वीर राघव चेरियार की सुब्रह्मण्यम अय्यर, गजूलू लक्ष्मी नारसु व पी.आनन्द चारलू ने मद्रास में मद्रास महाजन सभा की स्थापना की।
- 1885 में नेशनल कॉन्फ्रेंस का दुसरा राष्ट्रीय सम्मेलन कलकत्ता में आयोजित हुआ। इसी समय बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन चल रहा था। अत: सुरेन्द्र नाथ बनर्जी कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में शामिल नही हो पाये 1885 ई. में फिरोजशाह मेहता, बदरुद्दीन तैय्यबजी व के.टी.तैलंग ने बम्बई प्रेसीडेन्सी ऐसोसिएशन की स्थापना की।
- कांग्रेस से पहले स्थापित संगठनो मे किसी की भी राजनीतिक स्वाधीनता की कोई भी संकल्पना नही थी,अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाना उनका उद्देश्य नही था।
- वे प्राय: बड़े जमींदारों, व्यापारियों व थोडे से अंग्रेजी पढे लिखे लोगों के संगठन भर थे।
- कांग्रेस की स्थापना से पूर्व पूर्वगामी संस्थाओं ने देश के विभिन्न भागों मे राजनीतिक चेतना जगाने का कार्य किया।
- 1885 में जिस इंडियन नेशनल कांग्रेस’ की स्थापना हुई उसका पथ प्रशस्त करने में इन संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान था।
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना सम्भवतः अंग्रेजी सरकार के आशीर्वाद से एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज अधिकारी एलन अक्टोवियन ह्यूम द्वारा 1885 में की गई।
- ह्यूम ने 1884 में भारतीय राष्ट्रीय संघ की स्थापना की। जिसका प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर 1885 को बम्बई स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में आयोजन किया गया।
- दादा भाई नौरोजी के सुझाव पर भारतीय राष्ट्रीय संघ का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रख दिया गया।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अध्यक्ष होने का गौरव व्योमेश चन्द्र बनर्जी को प्राप्त हुआ। व कांग्रेस के प्रथम बम्बई अधिवेशन मे ‘कुल 72 सदस्यों ने हिस्सा लिया।
- जिनमें कुछ प्रमुख निम्न प्रकार हैं- दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, दिनशा वाचा, काशीनाथ तैलंग, वी राघवाचेरियार, एन.जी.चन्द्रावकर व एस.सुब्रह्मण्यम थे।
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कांग्रेस की स्थापना एवं इससे जुड़े विवाद
- कांग्रेस की स्थापना के पीछे वह दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति थी जिसने 1885 तक अंग्रेजों के विरुद्ध काफी प्रखर रूप धारण कर लिया या फिर ये अंग्रेजो की राजनीतिक चाल थी। जिसे तत्कालीन वायसराय लार्ड डफरिन के परामर्श पर हयूम ने चरितार्थ किया।
- लाला लाजपतराय के अनुसार हयूम को इस बात का संशय था कि अगर जनता के असन्तोष को व्यवस्थित रूप से बाहर नही निकाला गया तो भारत में भयंकर विस्फोट का रूप धारण हो सकता है। जिससे ब्रिटिश साम्राज्य नष्ट हो जायेगा।
- लाला लाजपतराय ने 1916 ई. मे यंग इंडिया के एक लेख में कांग्रेस को लार्ड डफरिन के दिमाग की उपज बताया।
- अंग्रेजों ने जहाँ कांग्रेस की स्थापना ‘सेफ्टी वाल्व’ के रूप में की वही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों ने इसका प्रयोग तड़ित चालक के रूप मे किया। जिससे आंदोलन पर गिरने वाली सरकारी दमन की बिजली को रोका जा सके।
- कांग्रेस की स्थापना के समय गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन व भारत सचिव लॉर्ड.आर.चर्चिल थे।
- कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाला प्रथम अंग्रेज जार्ज युल थे, जिन्होंने 1888 में इलाहाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता की।
- 1889 ई. में कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में ब्रिटिश हाउस ऑफ कामन्स के सदस्य चार्ल्स ब्रेडला भी उपस्थित थे।
- चार्ल्स ब्रेडला को भारतीय मामलों में रूचि के कारण ब्रिटिश संसद के सदस्य इन्हें भारत के लिए सदस्य’ के रूप में जानने लगे।
- सन् 1885 से 1905 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर उदारवादी / नरमपंथी नेताओं का वर्चस्व था। इन्हें नरमपंथी या उदारवादी इसलिए कहा क्योंकि ये अपनी मांगो को भाषणों व लेखों के माध्यम से सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किया। इनकी ब्रिटिश सरकार में पूरी आस्था थी।
- नरमपंथी या उदारवादी नेताओं के नाम दादाभाई नौरोजी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, मदनमोहन मालवीय व फिरोजशाह मेहता।
- 1888-89 में विलियम डिग्बी की अध्यक्षता में लंदन में ब्रिटिश कमेटी ऑफ इंडिया की स्थापना हुई।
- नरमपंथी नेता दादाभाई नौरोजी को ग्रेंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया भी कहा जाता हैं।
- उदारवादी या नरमपंथी नेताओं ने अपनी मांगे मनवाने के उद्देश्य से ब्रिटेन में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में 1887 में भारतीय सुधार समिति की स्थापना की।
- सन् 1905 से 1913 तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर उग्रवादी / अतिवादी नेताओं का वर्चस्व था।
- उग्रवादी या अतिवादी कहे जाने वाले नेताओं के नाम बाल गंगाधर तिलक, अरविन्द घोष, लाला लाजपतराय व विपिन चंद्रपाल थे।
- अरविन्द घोष ने अपनी पुस्तक भवानी मंदिर मे लिखा कि हमारी भारत माता पृथ्वी का एक टुकडा नहीं है और न ही मन की कल्पना यह लाखों लोगों की सामूहिक चेतना से निर्मित महान शक्ति है जिससे राष्ट्र का निर्माण होता है।
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उग्रवाद के उदय के प्रमुख कारण
- सरकार की जनता विरोधी नीतियाँ जैसे 1896 में उत्पादन शुल्क की वापसी, विश्वविद्यालय अधिनियम 1904, बंगाल विभाजन 1904 आदि।
- भारत में उग्रवाद की मशाल जलाने का श्रेय तिलक को दिया जाता है। इन्होंनें राष्ट्रीय चेतना को जगाने के उद्देश्य से धार्मिक रूढ़िवाद का सहारा लिया। तिलक ने 1884 में गणपति महोत्सव व 1886 ये शिवाजी महोत्सव की शुरुआत करवायी।
- लार्ड कर्जन की नीतियां उग्रवाद को जन्म देने में अग्रणी थी, कर्जन ने कांग्रेस को गंदी चीज, देशद्रोही संगठन कहा।
- देशी समाचार पत्रों ने भी उग्रवाद को पनपने में योगदान दिया बंगवासी (कलकत्ता), केसरी व काल ( पुणे) के अखबारों ने कांग्रेस की उदारवादी नीति की आलोचना की।
- लाल, बाल, पाल उग्रवाद के तीन प्रमुख स्तम्भ थे। तिलक ने केसरी, विपिन चन्द्र पाल ने न्यू इण्डिया व लाला लाजपतराय ने पंजाबी के माध्यम से ब्रिटिश सरकार पर प्रहार किया
- बंगाल विभाजन के विरुद्ध ‘स्वदेशी’ आंदोलन शुरू होने से पूर्व ही बंगाल में अश्विनी कुमार दत्त व रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्वदेशी का बीज बो दिया गया था।
- उग्रवादी नेताओं का मानना था कि हाथ पांव जोड़कर अंग्रेजो से प्रार्थना करने से कभी स्वतंत्रता नही मिलेगी उसके लिए स्वावलंबन, संगठन व संघर्ष की आवश्यकता है।
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन
वर्ष | स्थान | अध्यक्ष |
दिसम्बर,1885 | बम्बई | व्योमेश चन्द्र बनर्जी |
दिसम्बर,1886 | कलकत्ता | दादा भाई नौरोजी |
दिसम्बर,1887 | मद्रास | बदरुद्दीन तैय्यबजी |
दिसम्बर,1888 | इलाहाबाद | जार्ज यूले |
दिसम्बर,1889 | बम्बई | विलियम वेडनबर्न |
दिसम्बर,1890 | कलकत्ता | फिरोजशाह मेहता |
दिसम्बर,1891 | नागपुर | पी.आनंद चार्लू |
दिसम्बर,1892 | इलाहाबाद | व्योमेश चन्द्र बनर्जी |
दिसम्बर,1893 | लाहौर | दादा भाई नौरोजी |
दिसम्बर,1894 | मद्रास | वेब |
दिसम्बर,1895 | पूना | सुरेन्द्रनाथ बनर्जी |
दिसम्बर,1896 | कलकत्ता | एम.ए.सयानी |
दिसम्बर,1897 | अमरावती | एम.सी.शंकरन |
दिसम्बर,1898 | मद्रास | ए.एम.बोस |
दिसम्बर,1899 | लखनऊ | रमेश चन्द्र दत्त |
दिसम्बर,1900 | लाहौर | एन.जी.चंद्रावकर |
दिसम्बर,1901 | कलकत्ता | दिनशा ई.वाचा |
दिसम्बर,1902 | अहमदाबाद | सुरेन्द्रनाथ बनर्जी |
दिसम्बर,1903 | मद्रास | लाला मोहन घोष |
दिसम्बर,1904 | बम्बई | सर हेनरी कॉटन |
दिसम्बर,1905 | वाराणसी | गोपाल कृष्ण गोखले |
दिसम्बर,1906 | कलकत्ता | दादा भाई नौरोजी |
दिसम्बर,1907 | सूरत | रास बिहारी घोष |
दिसम्बर,1908 | मद्रास | रास बिहारी घोष |
दिसम्बर,1909 | लाहौर | मदन मोहन मालवीय |
दिसम्बर,1910 | इलाहाबाद | सर विलियम वेडनबर्न |
दिसम्बर,1911 | कलकत्ता | विशन नारायण दत्त |
दिसम्बर,1912 | बाँकीपुर | आर.एन.मुधोकर |
दिसम्बर,1913 | कराची | नवाब सैयद महम्मूद |
दिसम्बर,1914 | मद्रास | भूपेन्द्रनाथ बोस |
दिसम्बर,1915 | बंबई | एस.पी.सिन्हा |
दिसम्बर,1916 | लखनऊ | अम्बिका चरण मजूमदार |
दिसम्बर,1917 | कलकत्ता | ऐनी बेसेन्ट |
दिसम्बर,1918 | दिल्ली | मदन मोहन मालवीय |
दिसम्बर,1919 | अमृतसर | मोतीलाल नेहरू |
दिसम्बर,1920 | नागपुर | चक्रवर्ती विजय राघवाचार्य |
दिसम्बर,1921 | अहमदाबाद | हकीम अजमल खां |
दिसम्बर,1922 | गया | सी.आर.दास |
दिसम्बर,1923 | काकीनाडा | मौलाना अब्दुल कलाम आजाद |
दिसम्बर,1924 | बेलगाँव | महात्मा गाँधी |
दिसम्बर,1925 | कानपुर | सरोजनी नायडू |
दिसम्बर,1926 | गुवाहाटी | श्रीनिवासन आयंकर |
दिसम्बर,1927 | मद्रास | डॉ एम.ए.अंसारी |
दिसम्बर,1928 | कलकत्ता | मोतीलाल नेहरू |
मार्च,1929 | लाहौर | जवाहरलाल नेहरू |
अप्रैल,1931 | कराची | सरदार वल्लभ भाई पटेल |
अप्रैल,1932 | दिल्ली | अमृत रणछोड़दास सेठ |
अप्रैल,1933 | कलकत्ता | श्रीमती नेल्ली सेन गुप्ता |
अक्टूबर,1934 | बम्बई | डॉ राजेन्द्र प्रसाद |
अप्रैल,1936 | लखनऊ | जवाहरलाल नेहरू |
दिसम्बर,1936 | फैजपुर | जवाहरलाल नेहरू |
फरवरी,1938 | हरिपुरा | सुभाषचंद्र बोस |
मार्च,1939 | त्रिपुरी | सुभाषचंद्र बोस |
मार्च,1940 | रामगढ | मौलाना अब्दुल कलाम आजाद |
नवम्बर,1946 | मेरठ | जे.बी.कृपलानी |
दिसम्बर,1948 | जयपुर | पट्टाभिसीतारमैया |
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भारत से बाहर क्रांतिकारी गतिविधियां
- देश में आतंकवाद निरोधी अधिनियमों द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगने के बाद यहाँ से अधिकांश क्रांतिकारी विदेशों को पलायन कर गये।
- भारत से बाहर लंदन में पुरानी क्रांतिकारी संस्था इंडिया होमरूल सोसाइटी थी जिसकी स्थापना 1905 में लंदन मे श्याम जी कृष्ण वर्मा ने की।
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इंडिया होमरूल सोसाइटी
- प्रमुख सदस्य – वी.डी.सावरकर, हरदयाल व मदन लाल धींगरा
- इंडियन होमरूल सोसाइटी ने इंडियन सोसिऑलाजिस्ट नामक पत्रिका का प्रकाशन किया व इण्डिया हाउस की स्थापना की व इण्डिया हाउस के सदस्य मदनलाल धींगरा थे जिन्होंने भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार विलियम हट कर्जन वाइली की गोली मार कर हत्या की। जिस कारण धींगरा को फासी पर लटका दिया।
- 1907 में स्टुटगार्ट (जर्मनी) में होने वाले द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस के सम्मेलन में मैडम कामा ने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया।
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गदर पार्टी (1913)
- क्रांतिकारी आतंकवादी आंदोलन के समय कई भारतीय युवक अमरीका व कनाडा चले गये व वहाँ जाकर समाचार पत्रो पर जोर दिया।
- नवम्बर 1913 में सोहन सिंह भाकना ने ‘हिन्द एसोसिएशन ऑफ अमरीका की स्थापना की। इस संस्था ने कई भाषाओं में (उर्दू, मराठी, अंग्रेजी व पंजाबी) एक साथ गदर विद्रोह को प्रकाश में लाया। व गदर पत्रिका के नाम पर ही हिन्द एसोसिएशन ऑफ अमरीका का नाम गदर आंदोलन पडा।
- गदरपार्टी के लाला हरदयाल, भाई परमानंद व रामचंद्र प्रमुख नेता थे, जिनमे कैलिफोर्निया के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में लाला हरदयाल अध्यापन कर रहे थे।
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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का द्वितीय चरण 1905 से 1917
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के द्वितीय चरण की शुरुआत बंगाल विभाजन से हुई।
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बंगाल विभाजन (1905)
- बंगाल विभाजन के समय भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन थे जिन्होंने 1899 से 1905 तक इस पद पर कार्य किया।
- इस समय भारतीयों के अंदर राष्ट्रवाद जन्म ले रहा था व धीरे धीरे यह राष्ट्रवाद भारत मे बढ़ा। व इस राष्ट्रवाद का मुख्य केन्द्र उस समय बंगाल था।
- बंगाल प्रेसीडेंसी उस समय की सभी प्रेसीडेंसीयो में की सबसे बड़ी प्रेसीडेंसी थी इसके अन्तर्गत पश्चिमी व पूर्वी बंगाल सहित बिहार व उडीसा शामिल थे
- बंगाल विभाजन के अन्तर्गत अग्रेंजो की बांटो व राज करो की नीति थी। क्योंकि पूर्वी बंगाल में मुस्लिम समुदाय के लोग व पश्चिमी बंगाल में हिन्दू समुदाय के लोग थे, जिनमे लडाई करवाकर अंग्रेज राज करना चाहते थे
- 20 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा हुई व 16 अक्टूबर 1905 का दिन पुरे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया।
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कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन (1906)
- 1906 में कलकत्ता कांग्रेस के अधिवेशन का आयोजन हुआ जिसके अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी को चुना गया व इस अधिवेशन में ही पहली बार दादा भाई नौरोजी ने स्वराज शब्द का उल्लेख किया इस अधिवेशन में उग्रवादियों ने स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा व शासन से जुड़े चार प्रस्ताव पास करवाये गये।
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सूरत अधिवेशन में कांग्रेस का विघटन (1907)
- सूरत में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में उदारवादियों व उग्रवादियों मे अध्यक्ष के पद को लेकर विचार-विमर्श हो रहा था। जिनमें उग्रवादी लाला लाजपतराय को व उदारवादी रास बिहारी घोष को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे, अंत में रास बिहारी घोष को अध्यक्ष बनाया गया।
- सूरत में कांग्रेस अधिवेशन 26 दिसम्बर 1907 को ताप्ती नदी के किनारे हुआ। इस सम्मेलन में उग्रवादियों द्वारा पास करवाये गये प्रस्ताव ( स्वदेशी बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा, स्वशासन) के प्रयोग को लेकर विवाद और गहरा हो गया इस कारण दोनो पक्षो ( उदारवादियों व उग्रवादियों ) मे विभाजन हुआ।
- नवीन प्रावधानों के उपरान्त, सात वर्ष तक कांग्रेस में उग्रवादियों का प्रवेश का निषेध किया।
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मुस्लिम लीग की स्थापना (1906)
- बंगाल विभाजन हिन्दू मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक फूट डालने का सबसे बड़ा कारण बना। बंगाल विभाजन की घोषणा के बाद आगा खां के नेतृत्व में मुसलमानों का एक शिष्ट मण्डल शिमला में वायसराय लार्ड मिन्टो से मिला।
- इस शिष्ट मण्डल ने केन्द्रीय, प्रान्तीय व स्थानीय निकायों के अन्तर्गत मुसलमानों के लिए प्रथक निर्वाचन की मांग की।
- ढाका के नवाब सलीमुल्लाह ने 30 दिसम्बर 1906 को ढाका में एक बैठक में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की घोषणा की।
- मुस्लिम लीग के प्रथम अध्यक्ष वकार-उल-मुल्क-मुस्ताक हुसैन थे, व नवाब सलीमुल्लाह इसके संस्थापक अध्यक्ष थे ।
- मुस्लिम लीग के 1908 में अमृतसर हुए अधिवेशन में मुसलमानो के लिए पृथक निर्वाचन मण्डल की मांग की जिसे 1909 के मार्ले मिन्टो सुधारों में स्वीकार किया।
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मार्ले मिन्टो सुधार 1909
- लार्ड कर्जन के बाद लार्ड मिन्टो भारत के गवर्नर जनरल बने व इंग्लैण्ड में जान मार्ले ने भारत सचिव का पद संभाला व यह वह समय था जब भारत राजनैतिक रूप से अशांति की तरफ बढ़ रहा था।
- मार्ले मिन्टो सुधारों की संकल्पना व निर्माण में उदारवादी नेता गोपाल कृष्ण गोखले के सलाह मशविरे को भी स्थान दिया।
- 1909 ई. के सुधारों का उद्देश्य कांग्रेस के उदारवादी नेताओ को खुश करना व राष्ट्रवाद का दमन करना।
- मारले मिन्टो सुधारों में मुसलमानों को पृथक सांप्रदायिक निर्वाचन दिया गया। जिसने भारत में सांप्रदायिकता व भावी विभाजन के बीज बो दिये।
- वायसराय मिन्टो ने कहा कि पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाकर हम घातक विष के बीज बो रहे हैं।
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दिल्ली दरबार (1911)
- दिसम्बर 1911 में ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम व महारानी मेरी भारत आये जिनके स्वागत हेतु दिल्ली दरबार का आयोजन किया।
- जार्ज पंचम ब्रिटिश शासन काल में भारत आने वाले एकमात्र ब्रिटिश सम्राट था।
- दिल्ली दरबार में ही सम्राट ने बंगाल विभाजन को रद घोषित किया व कलकत्ता की जगह दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाने की अनुमति दी।
- 1अप्रैल 1912 को दिल्ली को कलकत्ता की जगह भारत की नई राजधानी बनाया।
- बंगाल विभाजन रद्द करने के बाद बिहार व उड़ीसा को बंगाल से अलग कर दिया। असम को 1874 की स्थिति में लाया व असम मे सिलहट को शामिल किया।
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हार्डिंग बम काण्ड (1912)
- 23 दिसम्बर 1912 को कलकत्ता से दिल्ली राजधानी हस्तांतरण का दिन तय किया। जिस समय हार्डिंग अपने परिवार व बिट्रेन के शाही राजवंश के साथ एक लम्बे जुलूस में समारोहपूर्वक दिल्ली मे प्रवेश कर रहे थे। उसी समय उन पर बम फेंका गया जिससे हार्डिंग घायल हो गये।
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प्रथम विश्व युद्ध 1914
- प्रथम विश्व युद्ध 20 वीं सदी के द्वितीय दशक की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी जिसमें यूरोप में महाशक्तियो के दो गुट बन गये।
- 4 अगस्त 1914 को प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई जिसमें एक तरफ तो जर्मनी, आस्ट्रिया, इटली व टर्की तथा दूसरी और फ्रांस, रूस व इंग्लैण्ड थे।
- प्रथम विश्व युद्ध का उस समय राजनीतिक पार्टियां ने भी समर्थ किया जिनमे प्रमुख है कांग्रेस, मुस्लिम लीग, मॉडरेट, नेशनलिस्ट राजे-रजवाडे आदि ।
- उदारवादी भारतीय नेताओ ने ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा व्यक्त कि जिससे उन्हें स्वराज्य की प्राप्ति हो सके।
- लार्ड हार्डिंग की बुद्धिमता के कारण प्रथम विश्व युद्ध में बिट्रेन को भारत का पूर्ण समर्थन मिला।
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कामागाटामारू प्रकरण (1914)
- कामागाटामारू प्रकरण कनाडा में भारतीयों के प्रवेश से सम्बन्धित विवाद था।
- जिसके अन्तर्गत कनाडा सरकार ने भारतीयों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाया जो सीधे भारत से नही आते थे। उन दिनों भारत से सीधे कनाडा जाने कोई मार्ग नही था। जिसके अन्तर्गत नवम्बर 1913 में कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ने 35 भारतीयो को कनाडा में प्रवेश की अनुमति दी जो सीधे भारत से कनाडा नही आये थे।
- 35 भारतीयो को कनाडा में प्रवेश मिलने से प्रसन्न होकर सिंगापुर के भारतीय मूल के व्यापारी गुरदीत सिंह ने कामागाटामारू नाम का जहाज किराये पर लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया के करीब 376 यत्रियो को बैठाकर बैकुअर ले गया। इस जहाज के बैकुअर पहुँचने से पहले ही कनाडा सरकार ने प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।
- यात्रियों के अधिकार के लिए लड़ने के लिए हुसैन रहीम, बलवंत सिंह, सोहनलाल पाठक की अध्यक्षता में शोर कमेठी का गठन हुआ।
- इस समय अमेरिका में रह रहे भारतीयों ने जिनमें भगवान सिंह, बरकतुल्ला, सोहन सिंह व रामचन्द्र यात्रियो के समर्थन में आंदोलन चलाया।
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लखनऊ पैक्ट (1916)
- लखनऊ अधिवेशन (1916) की अध्यक्षता अम्बिका चरण मजूमदार ने की।
- लखनऊ अधिवेशन की दो महत्वपूर्ण घटनाएँ-
- 1.उग्रवादियों को जिन्हें पिछले नौ वर्ष से कांग्रेस से निकाला दिया था उनका फिर से कांग्रेस में प्रवेश।
- 2.कांग्रेस व मुस्लिम लीग के बीच ऐतिहासिक लखनऊ समझौता।
- जिन्ना ने 1913 में पहली बार मुस्लिम लीग के लखनऊ अधिवेशन व करांची अधिवेशन में हिस्सा लिया।
- लखनऊ समझौते के द्वारा कांग्रेस ने पहली बार मुसलमानों के लिए प्रथम निर्वाचन मण्डल की मांग की जो कालान्तर एक बड़ी भूल सिद्ध हुई
- लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस व मुस्लिम लीग में समझौता कराने मे तिलक व जिन्ना ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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होमरूल आंदोलन (1916)
- 1914 में तिलक के जेल से निकलने के बाद बाल गंगाधर तिलक व एनी बेसेन्ट ने मिलकर भारत में होमरूल लीग की स्थापना कि जिसमें तिलक जे 28 अप्रैल 1916 को बेलगाँव में व एनी बेसेन्ट ने सितम्बर 1916 में मद्रास में लीग की स्थापना की।
- तिलक का होमरूल का कार्यक्षेत्र कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रान्त व बरार था व शेष भारत एनी बेसेन्ट का था।
- होमरूल आंदोलन के दौरान तिलक ने अपना प्रसिद्ध नारा दिया कि “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहुँगा”
- एनी बेसेन्ट ने न्यू इंडिया व कामनवील नामक अखबार व तिलक ने मराठा व केसरी के माध्यम से लीग के कार्यक्रमों का प्रचार प्रसार किया
- लीग ने अपने उद्देश्यों की सफलता के लिए एक कोष बनाया धन एकत्रित कर सामाजिक कार्यो का आयोजन किया व स्थानीय कार्यों में भागीदारी निभाई।
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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का तृतीय चरण1917 से 1947
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रौलेट एक्ट (1919)
- बढ़ रहे असन्तोष को कुचलने के लिए सरकार ने 1917 में न्यायधीश सिडनी रौलेट की अध्यक्षता में समिति का गठन किया जिससे आतंकवाद को कुचलने के लिए प्रभावी योजना का निर्माण हो सके।
- रौलेट समिति के सुझाव पर 17 मार्च 1919 को केन्द्रीय विधान परिषद ने भारतीय सदस्यों के विरोध के बावजूद रौलेट एक्ट पारित किया।
- रौलेट एक्ट के अन्तर्गत अंग्रेज सरकार द्वारा बिना मुकदमा चलाये किसी भी व्यक्ति को जेल में रख सकती थी। रौलेट एक्ट को बिना वकील, बिना अपील, बिना दलील का कानून कहा गया।
- गाँधीजी ने रौलट ऐक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह करने के लिए सत्यागृह सभा की स्थापना की। सत्यागृह सभा में जमनालाल दास, द्वारका दास, शंकरलाल, बी.जी.हार्नीमिन व सोमानी थे।
- 6 अप्रैल 1919 को गांधीजी के अनुरोध पर देश भर में हड़ताल की गई गांधीजी का पंजाब व दिल्ली में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया और 9 अप्रैल को दिल्ली मे प्रवेश करने पर उन्हे गिरफ्तार किया।
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जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड (1919)
- पंजाब मे रौलट एक्ट का विरोध करने वाले दो स्थानीय कांग्रेसी नेता डॉ सत्यपाल व सैफुद्दीन किचलू को 9 अप्रैल को गिरफ्तार किया जिसके विरोध में 10 अप्रैल को रैली निकाली, जिसके अन्तर्गत गोलीबारी में कुछ आन्दोलनकारी मारे गये।
- 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन गिरफ्तारी व गोलीबारी के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा चल रही उसी दौरान पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर डायर ने बिना चेतावनी दिये ही भीड पर गोलियां चलवा दी, जिसमें 1000 से ज्यादा निर्दोष लोग मारे गये।
- हत्याकाण्ड के विरोध में टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि व वायसराय की कार्यकारिणी सदस्य शंकर नायर ने इस्तीफा दे दिया
- कांग्रेस ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया समिति के अन्य सदस्य – मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी, सी.आर. दास, तैयब जी व जयकर उसी समय के दौरान पंजाब में चमनदीप के नेतृत्व में डंडा फौज का गठन किया गया।
- सरकार ने जलियावाला बाग हत्याकाण्ड की जांच के हण्टर की अध्यक्षता में हन्टर कमेटी की नियुक्त की। हन्टर कमेटी ने डायर को दोषमुक्त घोषित किया। ब्रिटिश हाउस ऑफ कामन्स में डायर को ब्रिटिश साम्राज्य का शेर कहा।
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खिलाफत आन्दोलन
- जलियावाला बाग हत्याकाण्ड से भारत की राजनीति में अचानक परिवर्तन आया जो खिलाफत आन्दोलन के साथ अधिक उग्र हो गया
- भारतीय मुस्लिम तुर्की के सुल्तान को इस्लाम का खलीफा मानते थे युद्ध के बाद जब ब्रिट्रेन ने तुर्की के विभाजन की सोची तो भारतीय मुस्लिमों ने नाराज होकर खिलाफत आन्दोलन की शुरुआत की।
- हकीम अजमल खाँ, अली बन्धु, डाँ अन्सारी, अब्दुल कलाम आजाद आदि प्रमुख तुर्की समर्थन कर्ता व खिलाफत नेता थे। इनके नेतृत्व में ही सितम्बर 1919 में अखिल भारतीय कमेटी का गठन हुआ।
- गाँधीजी ने खिलाफत कमेटी को असहयोग आन्दोलन करने के बारे में कहा, सितम्बर 1920 में कलकत्ता में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में मुख्य मुद्दा जलियांवाला काण्ड व खिलाफत था। कांग्रेस ने इसी समय पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करने विधान परिषदों का बहिष्कार करने व असहयोग व सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया
- 17 अक्टूबर 1919 को अखिल भारतीय स्तर पर खिलाफत दिवस मनाया गया।
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असहयोग आंदोलन (1920-21)
- असहयोग आंदोलन गांधीजी के द्वारा 1अगस्त 1920 को प्रारंभ किया गया।
- कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन (1920) में पास हुये असहयोग आंदोलन से सम्बन्धीत प्रस्ताव को दिसम्बर 1920 में नागपुर में हुए अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन की पुष्टि की।
- नागपुर अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन के साथ महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये जिसके अन्तर्गत कांग्रेस ने अब ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन के लक्ष्य का त्याग कर या तो ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर व आवश्यक होतो उसके बाहर ‘स्वराज का लक्ष्य’ घोषित किया।
- असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम के दो प्रमुख भाग थे रचनात्मक व नकारात्मक।
- 1.रचनालक कार्यक्रम मे राष्ट्रीय विद्यालयों व पंचायती अदालतों की स्थापना।
- 2.अस्पृश्यता का अन्त व हिन्दु मुस्लिम एकता।
- 3.स्वदेशी का प्रसार।
- नकारात्मक कार्यक्रम में
- सरकारी उपाधियों, सरकारी स्कूलों, कॉलेजो, अदालतो, विदेशी कपड़ो का त्याग।
- सरकारी उत्सवों का त्याग व विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
- इस आन्दोलन के दौरान कई वरिष्ठ वकील व बैरिस्टर जिनमें मोती लाल नेहरू, लाला लाजपतराय, सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहर लाल नेहरु, राजेन्द्र प्रसाद आदि ने न्यायलयों का त्याग कर आंदोलन में कूद पड़े व गांधीजी ने कैसरे हिन्द व पदकों को वापस कर दिया व गांधीजी को देखकर कई भारतीयों ने भी ब्रिटिश सरकार से मिले पदकों को वापस कर दिया।
- बहिष्कार आंदोलन में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार सर्वाधिक सफल रहा। विदेशी कपड़ो की सार्वजनिक होली जलायी ।
- 17 नवम्बर 1921 ई. को प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर पूरे देश हडताल का आयोजन रखा गया।
- खिलाफत व असहयोग आंदोलन ने हिन्दू व मुसलमानों को नजदीक लाने में अपना प्रभाव दिखाया।
- मुसलमनों ने आर्यसमाजी नेता श्रदानंद को मस्जिद में भाषण देने का आमंत्रण दिया। व अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की चाभियां किचलू को सौंप दी।
- फरवरी 1922 को गांधी जी ने वायसराय को पत्र लिखकर धमकी दी कि यदि एक हफ्ते के अंदर सरकार की उत्पीड़न कारी नीतियां वापस न ली हो व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो जायेगा।
- वायसराय को दी समय सीमा होने से पहले ही उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी चौरा नामक स्थान पर 5 फरवरी 1922 को एक घटना घट गई। चौरी चौरा कांड के नाम से चर्चित घटना के अन्तर्गत क्रोध से पागल भीड ने पुलिस के 22 जवानों को थाने के अंदर ही जला दिया इस घटना से गांधीजी आहत हुए व उन्होने आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया।
- जिस समय जनता उत्साहित थी उसी समय गांधीजी द्वारा आंदोलन को वापस लेने के निर्णय से देश को आघात पहुँचा मोतीलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरु, राजगोपालचारी, सी.आर. दास व अलीबंन्धु ने गांधीजी के इस निर्णय व की आलोचना की।
- असहयोग आन्दोलन के अचानक स्थगित होने से खिलाफत के मुद्दे का भी अंत हुआ, हिन्दु मुस्लिम एकता भी समाप्त हुई, साम्प्रदायिकता का बोल-बाला हुआ 1923 व 27 के बीच देश भर में बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगे हुए।
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साइमन कमीशन (1927-28)
- 1919 के भारत शासन अधिनियम में कहा कि अधिनियम के पारित होने के दस वर्ष बाद एक संवैधानिक आयोग की नियुक्ति की जायेगी, जो इस बात की जांच करेगा कि अधिनियम व्यवहार में कहाँ तक सफल रहा।
- आयोग की नियुक्ति दस वर्ष बाद की जानी थी परन्तु ब्रिटेन की कंजर्वेटिव सरकार ने समय से दो वर्ष पूर्व ही कर दी उन्हे आशंका थी कि 1928 के चुनाव मे लेबर पार्टी ही जीतेगी जो भारत सदस्यों का वैधानिक आयोग नियुक्त कर सकती है।
- नवम्बर 1927 में भारत के राज्य सचिव लार्ड बर्किनहेड द्वारा जोन साइमन की अध्यक्षता में सात सदस्य वाला साइमन कमीशननियुक्त किया जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे अत: कांग्रेस ने इसे श्वेत कमीशन भी कहा।
- 11 दिसम्बर 1927 को इलाहाबाद में हुए एक सर्वदलीय सम्मेलन में आयोग में एक भी भारतीय सदस्य न होने पर बहिष्कार का निर्णय दिया।
- 27 दिसम्बर 1927 को मद्रास में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेश की अध्यक्षता एम.ए.अंसारी ने की जिन्होंने साइमन कमीशन के पूर्ण बहिष्कार का निर्णय लिया।
- 3 फरवरी 1928 को आयोग बम्बई गया उस दिन पूरी बम्बई मे हडताल का आयोजन कर काले झण्डे के साथ साइमन वापस जाओ के नारे दिये।
- आयोग जहाँ – जहाँ गया वहाँ इसे साइमन गौ बैक के नारे के साथ स्वागत किया। व लखनऊ में खलीकुज्जमा व मद्रास में टी. प्रकाशम ने विशेष रूप से विरोध किया, लखनऊ में आयोग के विरोध के समय गोविन्द वल्लभ पंत व जवाहर लाल नेहरू को लाठिया भी खानी पड़ी।
- बीमार हालात में भी लाला लाजपतराय आयोग का विरोध करने वाली भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे उसी समय पुलिस ने उन्हें बर्बर तरीके से पीटा कि कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई।
- 1928 व 29 में साइमन कमीशन ने भारत की दो बार यात्रा की व आयोग ने 1930 में रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमे लंदन में होने वाले गोलमेज सम्मेलनों में विचार करना था।
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नेहरू रिपोर्ट (1928)
- साइमन कमीशन की नियुक्ति के समय ही भारत सचिव लार्ड बार्किनहैंड ने भारतीयों के समक्ष एक चुनौती रखी की वे एक ऐसा संविधान बनाये जो सभी भारतीयो को मान्य हो।
- इस चुनौती को ध्यान कर भारतीय नेताओं ने 28 फरवरी 1928 को दिल्ली में डॉ. अंसारी की अध्यक्षता में सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया। जिसमें पूर्ण उत्तरदायी सरकार की व्यवस्था हो।
- दुसरे सर्वदलीय सम्मेलन में जो 11 मई 1928 को बम्बई मे हुआ जो मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में सात सदस्यीय समिति की स्थापना की जिसमें भारत के संविधान के सिद्धान्तों का निर्धारिण करना था।
- मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में स्थापित समिति के अन्य सदस्य सुभाष चन्द्र बोस, एम.एस. सरदार, मंगल सिंह, अली इमाम, जी.आर. प्रधान, सर तेज बहादुर सप्रू।
- 28 अगस्त 1928 को मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली समिति ने रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना। इसकी प्रमुख सिफारिशें-
- 1.भारत को पूर्ण औपनिवेशक राज्य का दर्जा मिला
- 2.भारत एक संघ होगा जिसके नियंत्रण में केन्द्र में द्विसदनीय विधानमण्डल होगा। मंत्रिमंडल सदन के प्रति उत्तरदायी होगा
- 3.गवर्नर जनरल की स्थिति संवैधानिक मुखिया भर ही रहेगी।
- 4.नागारिकता को परिभाषित करते हुए मूल अधिकारों को प्रतिपादित करना।
- 5.साम्प्रदायिक आधार पर पृथक निर्वाचक मांग को अस्वीकार कर दिया गया।
- कांग्रेस में सुभाष चन्द्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, सत्यमूर्ति भक्त जैसे नेताओ ने डोमेनियन स्टेट के स्थान पर पूर्ण स्वराज को कांग्रेस का लक्ष्य बनाना चाहते थे।
- नेहरू रिपोर्ट पर कलकत्ता मे 1928 में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्वराज व डोमेनियन स्टेट को लेकर मतभेद की स्थिति उत्पन्न होने पर गांधीजी के हस्तक्षेप से मामला सुलझा उन्होने सरकार को एक वर्ष का समय दिया व कहा कि नेहरू रिपोर्ट में प्रस्तावित सांविधानिक योजना को स्वीकार करके डोमेनियन स्टेट का दर्जा न दिया तो कांग्रेस ‘पूर्ण स्वराज्य’ से कम कोई समझौता नही करेगी।
- जिन्ना का चौदह सूत्री फार्मूला –
- मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट में मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिक मण्डल न दिये जाने के कारण मुसलमानों के 14 मांगो की एक सूची जारी की।
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कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन (1929)
- कांग्रेस को कलकत्ता अधिवेशन में ब्रिटिश सरकार को दी एक वर्ष की समय सीमा समाप्त होने पर 31 दिसम्बर 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन का आयोजन किया।
- कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू ने की। सम्मेलन के अन्तर्गत नेहरू रिपोर्ट को पूरी तरह निरस्त किया। सम्मेलन मे नेहरू ने भाषण देते हुये कहा कि हमारा सिर्फ एक लक्ष्य है स्वाधीनता का लक्ष्य स्वाधीनता है पूर्ण स्वतंत्रता उन्होने स्वीकारा कि मैं समाजवादी व गणतंत्रवादी हूँ।
- लाहौर अधिवेशन में पारित कुछ ऐतिहासिक प्रस्ताव-
- नेहरू समिति की रिपोर्ट को निरस्त घोषित किया।
- लाहौर कांग्रेस के अधिवेशन में पारित पूर्ण स्वराज्य के प्रस्ताव के अनुसार कांग्रेस के संविधान में स्वराज्य शब्द का पूर्ण स्वराज्य इसे ही अब राष्ट्रीय आन्दोलन का लक्ष्य निर्धारित किया।
- सम्मलेन 1929 को आधी रात्रि को रावी नदी के तट पर कांग्रेस के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा झण्डा फहराकर पूर्णस्वराज्य, वंदेमातरम व इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे दियेइसलिए 26 जनवरी 1930 आधुनिक भारत में प्रथम स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1929
- लाहौर कांग्रेस अधिवेशन के अन्तर्गत कांग्रेस कार्यकारिणी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने का अधिकार दिया।
- फरवरी 1930 में साबरमती आश्रम में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में महात्मा गांधी को सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
- गांधी जी ने वायसराय इरविन के सामने 11 सूत्री मांगे रखी जो इस प्रकार थी-
- 1.सैन्य खर्च व प्रशासनिक खर्चे में 50 प्रतिशत की कटौती।
- 2.राजनैतिक कैदियों की रिहाई।
- 3.आत्मरक्षार्थ हथियार रखने का लाइसेंस
- 4.शराब बन्दी व नशीली वस्तुओं की बिक्री पर प्रतिबन्ध
- 5.रुपये का विनिमय दर एक सीलिंग चार पेन्स के बराबर किया
- 6.लगान में 50 प्रतिशत की कटौती
- 7.नमक पर सरकारी इजारेदारी व नमक कर को समाप्त करना ।
- 8.डाक आरक्षण विधेयक पास किया।
- 9.सी.आई.डी. पर सार्वजनिक नियंत्रण।
- 10.तटीय यातायात रक्षा विधेयक पास किया जावे।
- 11.रक्षात्मक शुल्क लगाये व विदेशी वस्त्र के आयत को नियंत्रित किया जावे।
- इन मांगो को पूरा करने के लिए गांधीजी ने 31 जनवरी 1930 का समय दिया। इन मांगो को इरविन ने नहीं माना तो गांधीजी ने इरविन को लिखा कि मैनें रोटी मांगी तो मुझे पत्थर मिला अब इन्तजार की घाडियां समाप्त हुई।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह की शुरुआत की।
- साबरमती आश्रम से गांधीजी ने 78 अनुयायियों के साथ डांडी मार्च किया। 24 दिन की यात्रा के बाद 5 अप्रैल 1930 को डांडी में गांधीजी ने नमक कानून को तोड़ा।
- आन्दोलन का कार्यक्रम :
- 1.नमक कानून का उल्लंघन
- 2.शराब व विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना ।
- 3.भू-राजस्व करो की अदायगी पर रोक।
- 4.सरकारी अदालतो, सरकारी स्कूलों, कॉलेजों व सरकारी समारोहों का बहिष्कार।
- 5.विदेशी वस्तुयें व विदेशी कपड़ो का बहिष्कार।
- तमिलनाडु से रजिगोपालाचारी ने त्रिचनापल्ली से तंजौर तट से वेदारण्यम तक नमक यात्रा की।
- मालाबार में वायकोम सत्याग्रह के केलपण मे कालीकट से पेन्नार तक नमक यात्रा की।
- निर्ममता पूर्वक दमन के बाद भी आंदोलन की तीव्र गति को देखकर इरविन ने गांधीजी से समझौते का प्रयास किया व 5 मार्च 1931 को इरविन समझौते के बाद आंदोलन वापस लिया
- प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवम्बर 1930 से 13 जनवरी 1931 तक लंदन मे आयोजित हुआ, इसके अन्तर्गत ब्रिटिश शासको को भी बराबरका दर्जा दिया।
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गांधी इरविन समझौता (1931)
- तेज बहादुर सप्रू व जयकर के प्रयास से 5 मार्च 1931 को गांधी व इरविन के बीच गांधी-इरविन समझौता हुआ। समझौते के दौरान इरविन ने निम्न आश्वासन दिये।
- सभी राजनीतिक कैदियो को रिहा किया जाएगा।
- जब्त की गई संपत्ति उनके स्वामियों को वापस दी जायेगी व जिनकी संपत्ति नष्ट हुई उन्हें हर्जाना।
- समुद्र तटीय प्रदेशो में बिना नमक कर दिये नमक बनाने की अनुमति
- विदेशी कपड़ो व शराब की दुकानों पर शांतिपूर्ण रूप से धरना देने का अधिकार।
- इस समझौते की आलोचना की गई क्योंकि देश को ‘समाजवाद व ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ का नारा देने वाले सुखदेव, भगतसिंह व राजगुरू के बारे में कुछ नहीं कहा जो इस समय जेल में थे।
- दुसरा गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर 1931 से दिसम्बर 1931 तक चला। जिसके अन्तर्गत कांग्रेस की तरफ से गाँधी जी ने हिस्सा लिया।
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साम्प्रदायिक पंचाट व पूना समझौता (1932)
- ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त 1932 को विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधित्व के लिए सम्प्रदायिक पंचाट की घोषणा की।
- जिसमें दलितो साहित 11 समुदायों को पृथक निर्वाचक मंडल प्रदान किया।
- दलित वर्ग को पृथक निर्वाचक मण्डल की सुविधा दिये जाने के विरोध में महात्मा गाँधी ने 20 सितम्बर 1932– यरवदा जेल में आमरण अनशन मे प्रारम्भ किया।
- अत: गांधीजी के उपवास के 5 दिन बाद 26 सितम्बर 1932 को गांधीजी व दलित नेता अम्बेडकर में पूना समझौता हुआ। लेकिन दलित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या प्रान्तीय विधानमंडलो में से 71 बढ़ाकर 147 व केन्द्रीय विधायिका में सीटों की 18% तक कर दी गई।
- इस समझौते से हिन्दुओं से हरिजनों को पृथक करने के सरकारी प्रयास को विफल कर दिया गया।
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1937 के चुनाव व प्रांतो में कांग्रेसी मंत्रिमण्डल
- 1935 के भारत सरकार अधिनियम को अखिल भारतीय संघ, प्रांतीय स्वायतता व केन्द्र में द्वेध शासन पद्धति होनी चाहिए के लिए पारित किया।
- भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों के अनुकूल सरकार ने प्रान्तों में फरवरी 1937 में चुनाव कराने की घोषणा की
- 1937 मे हुए चुनावों से एक बात यह निश्चित रूप से मानी गई कि जनता का एक बड़ा भाग कांग्रेस के साथ है।
- जुलाई 1937 में 11 मे से 7 प्रांतो में कांग्रेसी मंत्रिमंडल गठित हुई, बाद में कांग्रेस ने दो प्रान्तों मे साझी सरकारे भी बनाई। केवल बंगाल व पंजाब मे ही गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन सके 3 सितम्बर 1939 को वायसराय लिनलिथगो ने प्रांतीय मंत्रिमंडलो या राष्ट्रीय भारतीय कांग्रेस के नेताओं की सलाह लिए बिना एक और से भारत को जर्मनी के साथ ब्रिटेन के युद्ध में झोक दिया।
- एकतरफा निर्णय के विरोध में 29-30 अक्टूबर 1939 को प्रान्तों के कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अपने 28 महीने के शासन के पश्चात् त्याग पत्र दे दिया।
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अगस्त प्रस्ताव (1940)
- युद्ध में भारतीयों की सहायता प्राप्त करने के विचार से 8 अगस्त 1940 को वायसरॉय लिनलिथगो ने एक घोषणा की जिसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना।
- अगस्त प्रस्ताव की मुख्य बातें –
- 1.डोमेनियन स्टेट
- 2.युद्ध के उपरान्त भारतीय प्रतिनिधियों द्वारा संविधान निर्मात्री संस्था का गठन
- 3.वायसराय की कार्यकारिणी में भारतीय सदस्यों की संख्या में वृद्धि।
- 4. युद्ध सलाहकार परिषद का गठन।
- 5.अल्पसंख्यको को पूर्ण रूप से सुरक्षा का आश्वासन
- अगस्त प्रस्ताव मेही सबसे पहले भारतीयों द्वारा स्वयं संविधान निर्माण करने के तर्क को मान्यता दी गई।
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व्यक्तिगत सत्यागृह 1940
- अगस्त प्रस्ताव को पूर्ण रूप से अस्वीकार करते हुए कांग्रेस ने 17 अक्टूबर 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत की।
- प्रथम सत्याग्रही के रूप में महात्मा गांधी ने विनोबा भावे व दुसरे सत्याग्रही जवाहर लाल नेहरू थे।
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क्रिप्स मिशन 1942
- द्वितीय महायुद्ध में मित्र राष्ट्रो की कमजोर हो रही स्थिति के कारण ब्रिटेन पर दबाव डाला गया कि भारत की जनता के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करे।
- ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने भारत के राजनैतिक व वैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए युद्धकालीन मंत्रिमंडल के सदस्य स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्त्व में एक मिशन भारत भेजा।
- क्रिप्स 22 मार्च 1942 को भारत आया,भारत आते ही 25 मार्च को भारतीय नेताओं के सामने रखा व 29 मार्च को जनता के सामने रखा।
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भारत छोडो आन्दोलन 1942
- क्रिप्स प्रस्तावों की असफलता के साथ 1942 में भारतीय नेताओं द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की।
- गांधीजी का मानना था कि भारत में अग्रेजों की उपस्थिति जापानी आक्रमण को भी दावत देगी अत: 9 अगस्त 1942 से भारत छोडो आन्दोलन की शुरुआत हुई। \
- गाँधीजी ने करो या मरो का भी नारा दिया।
- 14 जुलाई 1942 को वर्धा में आयोजित कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भारत छोडो आन्दोलन पर एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें अग्रेजो को भारत से चले जाने के बारे मे कहा।
- स्कूल कॉलेजों में हड़तालें, व क्रोधित जनता ने पुलिस, थानों व डाकखानो आदि ब्रिटिश शासन के प्रतीकों पर हमले।
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सुभाष चन्द्र बोस व आजाद हिन्द फौज
- जर्मनी में सुभाष चंद्र बोस द्वारा’ फ्री इंडिया सेंटर‘ की स्थापना। इस संस्था में सुभाष ने पहली बार जयहिंद का नारा दिया।
- रास बिहारी बोस ने जापान में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की व 1941 में इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की।
- 18 फरवरी 1942 को मोहन सिंह इस सेना के जनरल बनाये गये। सुभाष चंद बोस अप्रैल 1943 में पहुँचे तो जुलाई 1943 मे रास बिहारी बोस ने इंडियन इंडिपेंडेस लीग व आजाद हिंद फौज की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया व सुभाष चन्द्र बोस को इनका दायित्व सौंपा।
- 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर लौट गये व वहाँ पर स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार (आजाद हिन्द सरकार की) स्थापना कर रंगून व सिंगापुर को मुख्यालय बनाया
- सुभाषचन्द्र बोस ने लक्ष्मी बाई के नाम पर रानी झांसी रेजिमेंट महिलाओं के लिए स्थापित किया।
- मई 1945 में ब्रिटिश सेना द्वारा रंगून पर पुन: अधिकार कर लेने के बाद आजाद हिन्द के सिपाहियों को जापानी सेना के आत्मसमर्पण करना पड़ा।
- 18 अगस्त 1945 को ताइकु हवाई अड्डे पर हवाई दुर्घटना मे सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु हो गई।
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वेवल योजना व शिमला समझौता (1945 )
- अक्टूबर 1943 को लिनलिथगो की जगह लार्ड वेवल भारत के वायसराय बन कर आये। उन्होंने भारत के संवैधानिक गतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से एक योजना बनाई जो 14 जून 1945 से वेवेल योजना के नाम से जानी गयी।
- जिसकी प्रमुख बाते –
- केन्द्र में एक नई कार्यकारी परिषद का गठन हो जिसमे वायसराय व कमाण्डर इन चीफ के अलावा शेष सदस्य भारतीय हो
- कार्यकारी परिषद एक अंतरिम व्यवस्था थी जिसे तब तक देश का शासन चलना था। जब तक की एक नये स्थायी संविधान पर आम सहमति नहीं हो जाती।
- वेवल प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हेतु शिमला में 25 जून 1945 को शिमला सम्मेलन का आयोजन किया। इसमे 21 भारतीय राजीनीतिक नेताओं ने हिस्सा लिया।
- शिमला सम्मेलन असफल हुआ क्योकि जिन्ना चाहते थे कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद मे सभी मुस्लिम सदस्य मुस्लिम लीग द्वारा मनोनीत हो। जिसका हिन्दु महासभा को एतराज था।
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कैबिनेट मिशन योजना 1946
- वेवेल योजना व शिमला समझौता दोनो के असफल हो जाने पर भारत में राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए कैबिनेट मिशन को भारत भेजा।
- इस शिष्टमंडल में तीन सदस्य थे- पैथिक लॉरेस, सर स्टेफोर्ड क्रिप्स व ए.वी.अलेक्ज़ेंडर।
- कैबिनेट मिशन 23 मार्च 1 946 को भारत आया। राजनीतिक दलों में लंबी बातचीत के बाद त्रिपक्षीय सम्मेलन में कांग्रेस की और से मौलाना आजाद, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल व मुस्लिम लीग की और से जिन्ना, नवाब इस्माल खाँ, लियाकत अली व सरकार की और से गवर्नर जनरल शामिल हुये।
- कैबिनेट मिशन का उद्देश्य संविधान का निर्धारण करना नहीं बल्कि उस पक्ष को सकारात्मक बनाना है जिसके माध्यम से भारतीयों के लिए संविधान तय किया जा सके।
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अंतरिम सरकार का गठन (1946)
- 2 सितम्बर 1946 को जवाहरलाल नेहरू और उनके 11 सहयोगियों के साथ अन्तरिम सरकार का गठन हुआ।
- मुस्लिम लीग शुरू में सरकार में शामिल नही हुई परन्तु वायसराय के प्रयास से 26 अक्टूबर 1946 को अन्तरिम सरकार में शामिल हुई।
- मुस्लिम लीग के पाँच सदस्य :- लियाकत अली, आई आई चुन्दरीगर, अब्दुल रब निश्तर, गजनफर अली खाँ व जोगेन्द्र नाथ मण्डल
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एटली की घोषणा (1947)
- कांग्रेस लीग में आपस में मनमुटाव व संविधान सभा की बैठक मे लीग के भाग न लेने पर व उसके द्वारा चलाये गई प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के परिणाम स्वरूप भारत में दंगे बहुत भयानक रूप धारण करते जा रहे हैं।
- 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा कि अंग्रेज 30 जून 1948 तक सत्ता भारतवासियो को सौंप देगी।
- एटली ने लार्ड वैवेल के स्थान पर लार्ड माउण्टबेटन को भारत का वायसराय बनाया। लार्ड बैवेल ने ब्रेक डाउन प्लान के अन्तर्गत 31 मार्च 1947 तक अंग्रेजो को भारत छोड़ने के बारे मे सुभाव दिया।
- लार्ड माउण्टबेटेन भारत के अन्तिम गर्वनर जनरल बनकर 15 अगस्त 1947 का दिन भारतीयों को सता सौंपने के लिए निर्धारित किया।
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माउंट बेटन योजना ( जून 1947)
- मार्च 1947 में माउंटबेटन भारत का वायसराय बनाकर भेजा।
- माउंटबेटन ने भारत व पाकिस्तान के बीच बंटवारे के प्रश्न पर कांग्रेस व मुस्लिम लीग के नेताओ के साथ विचार-विमर्श कर योजना तैयार की जिसे माउंटबेटन योजना कहा।
- 3 जून 1947 को माउंटबेटेन ने भारत के विभाजन के साथ सता हस्तान्तरण की योजना प्रस्तुत की जिसे माउंटबेटन योजना कहा गया।
- दो मुख्य संप्रदायों का समायोजन करने के लिए देश को भागो मे बांटने का परामर्श दिया। भारत व पाकिस्तान इनमें सत्ता का हस्तांतरण डोमिनियम स्टेट्स के आधार पर किया।
- इस योजना के अन्तर्गत 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान को डोमिनियन स्टेटस के आधार पर सता का हस्तान्तरण किया जायेगा।
- कांगेस व मुस्लिम लीग सहित सभी दलों ने इस योजना को स्वीकृति दी। व इसके बाद ब्रिटिश संसद में किसी योजना को कार्य रूप देने के लिए विधेयक पारित किया।
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भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947
- माउंटबेटन की योजना को मध्य नजर रखते हुए ब्रिटिश संसद ने 4 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया यह विधेयक 18 जुलाई 1947 को पारित होने के बाद इस पर सम्राट के हस्ताक्षर हुये।
- इस अधिनियम की प्रमुख धारायें / बातें-
- 15 अगस्त 1947 को भारतीय उपमहाद्वीप को दो उपनिवेशों भारतीय संघ व पकिस्तान में बांट दिया।
- देशी रियासतें भारत व पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में शामिल हो सकती थी। देशी रियासतों पर से ब्रिटिश क्राउन की सर्वोच्चता समाप्त हो गई।
- नए संविधान के बनने व लागू होने तक वर्तमान संविधान सभायें ही विधानसभाओं के रूप में 1935 के एक्ट के तहत कार्य करेगी।
- दोनो राज्यो के लिए राज्य मंत्रिमंडल के सुझाव पर पृथक गवर्नर जनरल की नियुक्ति की जायेगी।
- इस अधिनियम के अन्तर्गत 15 अगस्त 1947 को भारत को दो स्वतंत्र डोमिनियनों भारत व पाकिस्तान में बांटा पकिस्तान के प्रथमगा गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना बने व भारत के लिए माउन्टबेटन को ही गवर्नर जनरल बने रहने को कहा।