प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत notes
- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत notes
- इस आर्टिकल में हम भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करने के स्रोत के बारे में विस्तार से पढेंगे।
- प्राचीन भारत के इतिहास जानने के स्त्रोत वे स्रोत हैं, जिनसे प्राचीन भारत के बारे में जानकारी प्राप्त होती हैं। जिससे ऐतिहासिक घटनाओं के कालक्रम का निर्धारण होता है। भारत के इतिहास को जानने के लिए कई विश्वसनीय स्रोत उपलब्ध हैं। अत: प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के तीन महत्वपूर्ण स्त्रोत निम्न प्रकार है।
- 1.पुरातात्विक स्त्रोत
- 2.साहित्यिक स्तोत
- 3.विदेशी यात्रियों के विवरण
- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत notes –
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प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोत
- प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के पुरातात्विक “स्त्रोत के अन्तर्गत सामान्यतः, अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन चित्रकला व मूर्तियाँ आते हैं। जिनसे हमें प्राचीन काल की विभिन्न मानवीय गतिविधियो, क्रियाकलापों के बारे में जानकारी प्राप्त होती हैं।
- प्राचीन भारतीय अभिलेख –
- भारतीय इतिहास को जानने के लिए अभिलेखों का स्थान महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल के शासको के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु अभिलेख महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों व प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं। ये लेख सामान्यतः संस्कृत व पाली भाषा मे लिखे गये।
- अभिलेखो के बारे में जानकारी –
- भारतीय इतिहास के संबंध में सबसे पुराने लेख सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त हुए हैं। ये अभिलेख औसतन 2500 ई.पू. के है
- मध्य एशिया के बोगजकोई नामक स्थान से 1400 ई.पू मिले अभिलेखो के अन्तर्गत इन्द्र, मित्र, वरुण व नासत्य वैदिक देवताओं के नाम मिलते हैं।
- भारत के सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के 300 ई.पू. के हैं, इन अभिलेखो के नाम मास्की, निट्टूर, उदेगोलम व गुजर्रा है। इनमें अशोक के धर्म व राजत्व के आदर्श के बारे में बताया।
- अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राम्ही, खरोष्ठी, यूनानी व आरमेइक लिपि मे मिलें हैं।
- अशोक के अभिलेख लघमान व शरे कुना से भी प्राप्त हुये इनकी लिपि यूनानी व आरमेइक हैं।
- पर्सिपोलिस व बेहिस्तून अभिलेखों से ज्ञात होता है कि ईरानी सम्राट दारा ने सिन्धु नदी की घाटी पर अधिकार कर लिया। व दारा से प्रभावित होकर अशोक ने अभिलेख लिखवाया।
- ब्रिटिश पुरातत्वविद् जेम्स प्रिंसेप ने सबसे पहले अशोक के लेखों को 1837 में पढ़ा
- प्राचीन भारत से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण, अभिलेख निम्न प्रकार है –
- 1.राजा खारवेल का हाथी गुम्फा अभिलेख
- 2.समुद्रगुप्त का प्रयाग स्तम्भ लेख
- 3.यशोवर्मन का मन्दसौर अभिलेख
- 4.स्कन्द गुप्त का भितरी व जूनागढ़, अभिलेख
- 5.बंगाल के विजयसेन का देवपाडा अभिलेख
- 6.पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख
- 7.गौतमी बलश्री का नासिक अभिलेख
- 8.रद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख
- प्राचीन भारतीय सिक्के –
- प्राचीन काल में लेन-देन के वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रयोग किया जाता था
- धीरे-धीरे सिक्के प्रचलन में आए सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहा जाता है। प्राचीन काल में सिक्के ताँबा, चाँदी, सीसा, सोना धातु के बने होते थे।
- प्राचीन भारतीय सिक्कों पर अभिलेख नही मिले। प्रतीक प्राचीन सिक्कों पर मिलते थे। लेकिन बाद के सिक्को पर राजाओं व देवताओं के नाम व तिथिक्रम भी अंकित मिलता है। जैसे सातवाहन शासकों ने सीसे के सिक्के जारी किये व गुप्त शासकों ने सोने के सिक्के जारी किऐ ।
- पाँचवी सदी के सिक्के – पांचवी सदी के सिक्को को आहत सिक्के कहते थे। इन सिक्कों का निर्माण ठप्पा मारकर किया जाता था व इन सिक्कों पर चित्र पेड़, मछली, सांड, हाथी, अर्द्धचन्द्र आदि आकृतियाँ बनी हुई हैं।
- प्राचीन भारतीय मूर्तियाँ –
- प्राचीन काल में मूर्तियों में आस्था का भाव कुषाण काल से प्रारम्भ हुआ तथा गुप्त व गुप्तोत्तर काल में निर्मित मूर्तियों के विकास में जनसाधारण की धार्मिक भावनाओं को भी महत्व दिया
- कुषाण काल की मथुरा कला तो पूर्णतः स्वदेशी जबकि गान्धार कला विदेशी हैं।
- सिन्धु सभ्यता से पत्थर, टेराकोट एवं धातु की मूर्तियों प्राप्त हुई हैं
- प्राचीन काल की मूर्तिया भारत के विभिन्न स्थानों से मिली है जो हमें उस समय की कला, संस्कृति, धर्म, रहन-सहन के बारे में जानकारी देती है।
- प्राचीन भारतीय प्राचीन स्मारक –
- स्मारक के अन्तर्गत प्राचीन काल के स्तूप, चैत्य विहार व मंदिरों में चित्रित व अंकित मूर्तियों की वेशभूषा, अलंकरण व अंकन से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक स्थिति के बारे में ज्ञान होता हैं। व वैचारिक भावना का भी पता चलता हैं।
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प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत
- प्राचीन भारतीय इतिहास के अन्तर्गत साहित्यिक स्रोत वे होते हैं जो पुस्तकों के माध्यम से प्राप्त होते हैं। यह साहित्य धार्मिक, लौकिक व विदेशी लेखकों की लेखनी से प्राप्त होते हैं।
- साहित्यिक स्रोत को दो भागो में बाँटा
- 1.धार्मिक साहित्य
- 2.ऐतिहासिक एवं लौकिक साहित्य
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1. प्राचीन भारतीय धार्मिक साहित्य
- प्राचीन भारत के धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत तत्काल की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक जीवन के बारे मे जानकारी मिलती है।
- ब्राह्मण ग्रंथो में वैदिक साहित्य प्रमुख है। धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण व ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थ की चर्चा होती हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में वेद, उपनिषद रामायण, महाभारत व पुराण आदि ग्रन्थ आते है जो निम्न प्रकार है –
- चार वेद –
- ब्राह्मण साहित्य में वेदो में सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है। वेदो के द्वारा आर्यों के धार्मिक, सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डाला गया है। वेदों की संख्या चार हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद
- वैदिक काल की सांस्कृतिक दशा के ज्ञान का एकमात्र स्रोत वेद को ही माना है।
- ऋग्वेद – ऋग्वेद का समय 1500 ई. पू. से 1000 ई.पू. का मानते हैं, ऋक का अर्थ होता है छंदों एवं चरणों से युक्त मंत्र, ऋग्वेद में कुल दस मण्डल व 1028 सूक्त हैं। ऋदग्वेद में पहला व दसवां मण्डल अन्त मे जोड़ा गया।
- यजुर्वेद – यजु: का अर्थ है, यज्ञ। इस वेद में अनेक प्रकार की यज्ञ विधियो के बारे में बताया गया है। यजुर्वेद के मन्त्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित को अध्वुर्य कहा गया है। यजुर्वेद दोनो रूपों गद्य एवं पद्य में लिखा गया
- सामवेद – सामवेद के साम का शाब्दिक अर्थ हैं गान इसमें मुख्यत यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मंत्रो का संग्रह है। सामवेद में 1549 ऋचाएँ है। परन्तु सामवेद की 75 ऋचाएँ ही मौलिक है। बाकि ऋग्वेद से ली गई।
- अथर्ववेद – इस वेद की रचना सबसे अंत में अथर्वा ऋषि द्वारा की गई। इसमें 731 सूक्त, 20 अध्याय, 5849 ऋचाएँ 6000 मंत्र है। उत्तर वैदिक काल में इस वेद का कुछ विशेष महत्व था। अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा हैं।
- ब्राह्मण ग्रन्थ –
- ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हमारे ऋषियों ने वैदिक मंत्रो का अर्थ बताने के लिए की। ब्रह्म का अर्थ है यज्ञ। अत: यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थ कहलाये । जैसे ऋग्वेद से ऐतरेय व कौषीतकी ब्राह्मण, सामवेद से ताण्डस व जैमनीय ब्राह्मण, यजुर्वेद से शतपथ ब्राह्मण व अथर्ववेद से गोपथ ब्राह्मण संबंधित हैं।
- आरण्यक –
- आरण्यक शब्द की उत्पत्ति ‘अरण्य से हुई हैं। जिसका शब्दि अर्थ है ‘जंगल’। आरण्यक वे धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों का वर्णन किया है।
- उपनिषद –
- उपनिषदों की विषय वस्तु दार्शनिक हैं। उपनिषद शब्द का सन्धि विच्छेद करने पर उप + निषद बनता है जिसमें उप का अर्थ है समीप व निषद का अर्थ है बैठना अर्थात् जिस रहस्य विद्या का ज्ञान गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया जाता है उपनिषदों की संख्या 108 मानी गई है। जिनमें प्रमुख उपनिषद निम्न प्रकार हैं – ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, माण्डुक्य,तैत्तिरीय, ऐतरेय छान्दोग्य , कौषीतकि, बृहदारण्यक व श्वेताश्वर।
- वेदांग –
- वेदांग का अर्थ है वेदों के अंग जिनकी संख्या 6 है जो निम्न हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद व ज्योतिष ।
- सूत्र –
- सूत्र मनुष्य के व्यवहार से संबंधित हैं। वैदिक साहित्य को अक्षुष्ण बनाये रखने के लिए सूत्र साहित्य का प्रणयन किया गया। कल्पसूत्र के 3 भाग है जो निम्न प्रकार है- श्रोत सूत्र, गृहय सूत्र धर्म सूत्र ।
- महाकाव्य –
- वैदिक साहित्य के बाद भारतीय साहित्य में दो महाकाव्यों के बारे मे बताया जो हैं। 1.रामायण व 2. महाभारत
- रामायण –
- रामायण की रचना ई.पू. पाँचवी सदी में महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा की गई।
- रामायण में मुख्यत: 6000 श्लोक थे जो बाद में बढ़कर 12000 श्लोक हुये व अन्तत: 24000 श्लोक हो गये
- महाभारत –
- महाभारत दुनिया के सबसे बड़े महाकाव्यों में से एक है इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की। महाभारत की रचना के समय इनमें 8800 श्लोक थे। जो बाद में बढ़कर 24000 श्लोक हो गये
- पुराण –
- पुराणों में प्राचीन ऋषियों व राजाओं की रचना का वर्णन है। ‘पुराणों के रचयिता लोमहर्ष व उनके पुत्र उग्रश्रवा थे। पुराणों की संख्या 18 है। अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी व चौथी शताब्दी मे हुई।
- मार्कण्डेय, ब्रह्माण्ड, वायु, विष्णु, भागवत, मत्स्य संभवतः प्राचीन पुराण है। शेष बाद की रचनाएँ हैं।
- गुप्त वंश के लिए वायु पुराण, शुंग वंश के लिए मत्स्य पुराण मौर्य वंश के लिए विष्णु पुराण का विशेष महत्व है।
- बौद्ध साहित्य –
- भारतीय इतिहास के साधन के रूप में बौद्ध साहित्य का विशेष महत्व हैं। सबसे प्राचीन बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक है। इनके नाम निम्न प्रकार हैं-
- बौद्ध ग्रन्थ- संस्कृत भाषा में लिखे गये बौद्ध ग्रंथों में अश्वघोष की रचना बुद्धचरित, सौन्दरानन्द, सरिपुत्र प्रकरण आदि हैं
- 1. सुत्तपिटक – बुद्ध के धार्मिक विचारों व वचनो का संग्रह हैं। यह त्रिपिटकों में सबसे बड़ा व श्रेष्ट हैं। बुद्ध के धार्मिक विचारों व वचनों का संग्रह बौद्ध धर्म का इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता हैं।
- 2. विनयपिटक – बौद्ध संघ के नियमों का उल्लेख विनयपिटक के अन्तर्गत होता है।
- 3. अभिधम्मपिटक – बौद्ध दर्शन का विवेचन
- सुत्तपिटक के 5 निकाय – 1.दीर्घ निकाय, 2.मज्झिम निकाय, 3.संयुक्त निकाय, 4.अंगुत्तर निकाय 5.खुददक निकाय
- जैन साहित्य –
- प्राचीन जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। आगमों का प्राचीन जैन साहित्य में बहुत महत्व हैं जिनमें है – 12 अंग, 12 उपांग 10 प्रकीर्ण, 6 छन्द सूत्र । इनकी रचना जैन धर्म के श्वेतांबर संप्रदाय ने की।
- आचारांग सूत्र – जैन भिक्षुओं के आचार नियमों का उल्लेख
- भगवती सूत्र – महावीर के जीवन पर प्रकाश डाला गया है
- परिशिष्ट पर्व – हेमचन्द्र कृत परिशिष्ट पर्व जिसकी रचना 12 वीं शताब्दी में हुई। परिशिष्ट पर्व व भद्रबाहु चरित से चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवनकाल के बारे में जानकारी मिलती हैं।
- नाया धम्मकहा- महावीर की शिक्षा का संग्रह है’
- जैन ग्रन्थ- प्राकृत भाषा में लिखे गये जैन ग्रन्थ में परिशिष्ट पर्व भद्रबाहु चरित, , आवश्यक सूत्र, आचारांग सूत्र, भगवती सूत्र, कालिका व पुराण आदि हैं।
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प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक एवं लौकिक साहित्य –
- लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक व अर्द्ध ऐतिहासिक ग्रन्थों व जीवनीयों का विशेष रूप से उल्लेख किया जाता है।
- अर्थशास्त्र – कौटिल्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र के अन्तर्गत चन्द्रगुप्त मौर्य के मौर्यकालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था का का ज्ञान होता है।
- नीतिसार – सातवीं-आठवीं शताब्दी में कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धान्तों को कामन्दक ने अपने नीतिसार में संकलित किया।
- मुद्राराक्षस– विशाखादत्त द्वारा लिखा गया नाटक जिसमें चाणक्य व चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा नन्द वंश के विनाशकाल के बारे में ‘बताया।
- अष्टाध्यायी – मौर्यकाल से पहले के भारत की राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक दशा के बारे में जानकारी पाणिनी की अष्टाध्यायी से होती हैं।
- मालविकाग्निमित्र – इसके रचयिता कालिदास हैं। इसमें पुष्यमित्र शुंग प यूनानियों के बीच हुए युद्ध के बारे में बताया
- गार्गी संहिता – भारत पर यूनानियों के आक्रमण के बारे में बताया।
- हर्षचरित – हर्षचरित की रचना बाणभट्ट ने की। इसमें हर्षवर्धन के जीवन-चरित्र व विजयों के बारे में वर्णन किया।
- गौडवाहो – गौड़वाहो की रचना वाक्पतिराज ने की। इसमें कन्नौज नरेश यशोवर्मन की विजय का वर्णन किया।
- पृथ्वीराज विजय – की रचना जयानक ने की। इस ग्रंथ में पृथ्वीराज्य चौहान के बारे में बताया।
- कुमारपाल चरित्र – इसके रचयिता जयसिंह हैं। जिन्होंने अन्हिलवाडा के शासक कुमारपाल की उपलब्धियों का वर्णन किया।
- महाभाष्य – इसकी रचना पतंजलि ने की। इसमें शुंग वंश के इतिहास के बारे मे बताया
- प्रियदर्शिका, नागानन्द व रत्नावली – इनके रचयिता हर्षवर्धन थे। इन ग्रन्थों में हर्षवर्धन के शासनकाल के बारे में जानकारी मिलती है।
- पृथ्वीराज रासो – इसके रचयिता चन्दबरदाई थे। इस ग्रन्थ में पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों के बारे में बताया।
- विक्रमांकदेवचरित – इसकी रचना विल्हण ने की। इसमें कल्याणी के चालुक्य वंश के इतिहास के बारे में बताया।
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विदेशियों का विवरण –
- प्राचीन काल में ही विभिन्न योजनाओं से प्रेरित होकर भारत की भूमि पर भ्रमण हेतु विदेशी यात्री आये जिन्होंने अपने अनुभव व संस्मरणों के माध्यम से भारत के इतिहास के बारे में बताया।
- हेरोडोटस (पांचवी शताब्दी) – हेरोडोटस को इतिहास का पिता भी कहते हैं। इन्होंने हिस्टोरिका नामक ग्रंथ लिखा जिसमें भारत व फारस के मध्य सम्बन्धों के बारे में बताया।
- डायमेक्स या डायोनिसियस – सीरिया शासक अन्तियोकस प्रथम का राजदुत जो बिन्दुसार के दरबार में आया।
- प्लिनी (77-78ई)- यूनानी लेखक ने अपनी पुस्तक नेचुरल हिस्ट्री’ में भारत व रोम के व्यापार के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि भारत के साथ व्यापार में रोम का स्वर्ण भण्डार कम हो रहा है।
- टॉलमी (२ शताब्दी)- टॉलमी ने अपनी ज्योग्रॉफी में भारत विषय का भौगोलिक वर्णन किया हैं। व टॉलमी ने ‘पेरिप्लस आफ द एरिथ्रियन सी‘ में भारतीय बन्दरगाहों व व्यापारिक वस्तुओं के बारे में विस्तार से बताया।
- स्ट्रैंबो – (प्रथम शताब्दी)- यूनानी यात्री स्ट्रैबो ने अनेक देशों की यात्रा की जिसमे सम्भवत: भारत भी शामिल था। स्ट्रैबो ने अपने ग्रंथ ज्योग्रॉफी में मौर्यकालीन इतिहास पर प्रकाश डाला।
- मेगस्थनीज (305 – 297ई.पू.) – यूनानी शासक सेल्यूकस के राजदूत के रूप में मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया। मेगस्थनीज ने ‘इण्डिका‘ नामक ग्रन्थ की रचना की। परन्तु वह उपलब्ध नहीं है। इण्डिका’ से चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था व सामाजिक व्यवस्था के बारे में पता चलता हैं
- निआर्कस – यह सिकन्दर के जहाजी बेड़े का कप्तान था। स्ट्रैबो व एरियन की पुस्तकों में निआर्कस के बारे में बताया। इसमें सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के विषय में जानकारी प्राप्त होती हैं।
- स्काईलैक्स (छठी शताब्दी ई.पू.) – स्काईलैक्स यह ईरान नरेश दारा प्रथम का यूनानी सेनापति था। स्काईलैक्स ने सिन्धु घाटी सभ्यता के बारे में जानकारी दी।
- तिब्बती लेख -तिब्बती विद्वान तारानाथ ने कंग्यूर व तंग्यूर नामक दो ग्रन्थों की रचना की। इनमें भी प्राचीन भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
- चीनी लेखक – चीनी लेखकों ने प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत के रूप में महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध कराई।
- सुमाचीन (9वी शताब्दी)- चीन का प्रथम इतिहासकार था। सुमाचीन ने इतिहास ग्रंथ में भारतवर्ष के संबंध में उल्लेख किया।
- फाह्यान – (399 – 414 ई.) फाहियान एक चीनी यात्री था जो 399 ई. में चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में आया। चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल के बारे में विस्तार से वर्णन किया।
- ह्वेनसांग (629-43 ई.) यह हर्षवर्धन के शासन काल में आयें। 13 वर्षो तक भारत की यात्रा की। इन्होंने हर्षवर्धन के शासन काल की राज्यनीतिक, सामाजिक, धार्मिक स्थिति के बारे में जानकारी दी।
- इत्सिंग – (675-695 ई.) – इतिसंग ने नालन्दा व विक्रमशिला विश्व विद्यालय में अध्यन किया। इन्होंने भारत में प्रचलित बौद्ध धर्म के बारे में भी जानकारी दी।
- ह्लली – इसने भारत के विषय के संदर्भ में पर्याप्त जानकारी दी।
- अरबी यात्रियों के वृतान्त –
- अरबी लेखकों ने प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत के रूप में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक साम्रगी उपलब्ध करायी।
- अलबरूनी (1000-1030ई0)- महमूद गजनवी के साथ अलबरूनी भारत आया। अलबरूनी ने अपनी पुस्तक तहकीक-ए-हिन्द या किताबुल हिन्द में राजपूत कालीन समाज, धर्म, रीतिरिवाज आदि का विस्तार से वर्णन किया।
- सुलेमान (9 वी शताब्दी) – सुलेमान ने फारस की खाडी से होकर भारत व चीन की यात्रा की। इन्होने पाल, प्रतिहार व राष्ट्रकुट के राज्यों के बारे में विस्तार से बताया।
- अलबिला दुरी – (9 वी शताब्दी) – इन्होंने अपने ग्रन्थ ‘फुतूहल बुल्दान में भारत पर अरब आक्रमण के प्रभाव का वर्णन किया।
- इब्ने खुर्दादब ( 9 वी शताब्दी) – इसका ग्रन्थ ‘किताबुल-मसालक-वल–मामालिक’ में भारत की दशा का वर्णन किया।
- अबूजईद (916 ई.) इसने भारत व चीन की यात्रा की व दोनों देशो का तुलनात्मक वर्णन किया। इसने सिलसिला-उत्-तवारीख की रचना की।
- यह भी पढ़ें –
- भारतीय रास्ट्रीय आंदोलन
- सिन्धु घाटी सभ्यता
- उतर वैदिक काल
- वैदिक काल
This note is a very important in ba 1st year of history
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