संगम काल का इतिहास

संगम काल का इतिहास

  • तमिल भाषा के प्राचीन्तम् साहित्य को संगम साहित्य के नाम से भी जानते है।
  • सुदुर दक्षिण भारत में महापाषाण काल के अन्तिम चरणों में चेर, चोल व पाण्ड्य जैसे स्थानीय राजवंश अस्तित्व में आये जिन्हें चंपक लक्ष्मी ने जनजातीय, कुलीनवंश अथवा संभात्य राजवंश बताया।

 

  • संगम काल की वास्तविक अवधि क्या थी इस सम्बन्ध में इतिहासकारों का एकमत नहीं है विभिन्न इतिहासकारों ने भिन्न मत दिये –
    • 1. नीलकण्ठ शास्त्री – 100 ई. से300 ई. तक ( हिस्ट्री ऑफ साउथ इण्डिया)
    • 2. R.S शर्मा – 300 ई. से 500 ई. तक
    • 3. श्री निवास आयंगर – 500 ई.पू. से  500 ई.
    • 4. सामान्य मत के अनुसार – 100 ई. से 250 ई. तक
  • संगम साहित्य क्या था ?

  • विद्वानों की सभा, गोष्ठियों व सम्मेलन को संगम कहा जाता है। इस शब्द का पहली बार प्रयोग नयनार संत अय्यार ने किया
  • इरैयनार अगप्पोरुल ने 3 संगम होने का उल्लेख किया है इन 3 संगमों से जो तमिल सहित्य रचा गया उसे संगम साहित्य या संगमकाल कहा जाता है।

 

  • संगम काल का राजनीतिक इतिहास

  • संगम युग में 3 वंश हुए जो निम्न प्रकार है- चेर, चोल व पांड्य राजवंश जिनके बारे में हम विस्तार से पढ़ेगे।

 

चेर वंश

  • चेर राज्य को कुडावर, विल्लवर, कुट्टवर पुरैयार मलैयार व बनावर आदि नामों से भी जानते है।
  • एत्तरेय ब्राह्मण में प्राचीनात्‌म उल्लेख (सबसे प्राचीन वंश है।
  • संगम साहित्य में चेरवंश का ही सर्वाधिक उल्लेख है
  • चेर वंश का राज चिह्न – धनुष
  • चेर वंश की राजधानी – वांजि, तोण्डी,मरन्दै

 

  • चेर वंश के प्रमुख शासक –

  • 1.उदियन जेरल
  • पहला चेर शासक था।
  • इसे महाभोज भी कहा जाता था क्योंकि इसने महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र के योद्धाओं को भोजन करवाया था इस हेतु इसने 2 पाक शालाए स्थापित की । 1. वनवारामवन 2. पेरूनजोरम

 

  • 2. नेदुनजेरल आदन : –
  • इसने मरन्दै को अपनी राजधानी बनाई जहाँ पर यवन व्यापारियों को कैद किया ।
  • नेदुनजेरल आदन की उपाधि :- 1. अधिराज की उपाधि( कई मुकुटधारी शासकों को पराजित किया ) 2. इमयवरम्बन की उपाधि – (हिमालय तक अपनी पताका पहराई)

 

  • 3. कुट्ट्वन –
  • हजार हाथियों का स्वामी, कांगू प्रदेश को जीता था।

 

  • 4.  शेन गुट्टुवन –
  • धर्मपरायण कुट्ट्वन, अधिराज, लालचेर की उपाधि धारण की।
  • शेनगुट्‌टुवन चेर वंश का सबसे महानतम् शासक।
  • शेनगुट्‌टुवन ने कन्नगी की पूजा ( पतीत्व पुजा ) आरंभ करवाई।
  • शेनगुट्‌टुवन के बाद कमजोर उत्तराधिकारियों के चलते चेर कई शाखाओं में विभक्त हो गये व कमजोर हो गये।
  • शेनगुट्‌टुवन (न्यायपरायण) सात राजमुकुटों की माला धारण करता था।

 

  • 5. आदिग इमान –
  • आदिग इमान नामक चेर शासक को दक्षिण में गन्ने की खेती प्रारम्भ करने का श्रेय दिया जाता है।

 

चोल वंश

  • चोल राज्य को कल्लि, वलावन, सेम्बिदास व सेनई नामो से जानते है।
  • प्राचीनतम उल्लेख :- कात्यायन की वार्तिक ( प्रारम्भिक राजधानी उत्तरी मनलूर थी )
  • तमिलनाडु में पेन्नार तथा वेल्लारू नदियों के मध्य चोल राज्य स्थापित ।
  • राजधानी : – प्रारम्भिक राजधानी उत्तरी मनलूर , उरैयुर ( कपास की लिए प्रसिद्ध ), तंजाबुर
  • चोल वंश का राजचिन्ह – बाघ, चीता

 

  • चोल वंश के प्रमुख शासक –
  • 1.उरुवप्पहरे इलन‌जेत चेन्नी ( सदस्य रखने वाला व्यक्ति )
  • चोल वंश का पहला शासक।
  • उरैयूर को राजधानी बनाया व कई चेर शासकों को पराजित कि‌या।

 

  • 2. एलारा –
  • पहला शासक जिसने श्रीलंका को जीता ( 50 वर्षों तक शासन किया )

 

  • 3. करिकाल –
  • जले पांव वाला व्यक्ति, शत्रु रूपी गज के लिए काल समान ( शत्रुदल के हाथियों का विनाश करने वाला )
  • सबसे प्रसिद्ध व शक्तिशाली शासक था इसके द्वारा निम्न कार्य हुए –
  • 1. बेणी का युद्ध – चेर व पाण्ड्य राज्य के ग्यारह राजाओं के समुह पर विजय प्राप्त की।
  • वाहैप्परन्दलइ का युद्ध – इस युद्ध में इसने नौ राजाओं को पराजित किया ।
  • श्रीलंका विजय, तोण्ड‌माण्ड विजय, मगध, वज्र  व अवन्ती विजय प्राप्त की।
  • श्रीलंका आक्रमण के बाद वहाँ से 120000 बंदी लाया, जिनकी सहायता से पुहार बन्दरगाह बनाया तथा कावेरी नदी पर 160 km लंबा बाध बनाया
  • संगीत के सात स्वरों का जानकार, वैदिक धर्म अनुयायी था।
  • पेरूनर किल्लि नामक चोल राजा का उल्लेख मिलता है परन्तु कमजोर उत्तराधिकरियों के चलते चोल वंश अवसान को प्राप्त हुआ व 9 वीं शताब्दी में विजयालय को पुनः संगठित किया।

 

पाण्ड्य वंश (सुदूर दक्षिण में )

  • पाण्ड्‌यों का सर्वप्रथम उल्लेख मेगस्थनीज की पुस्तक में मातृसतात्मक परिवार, हेरावल की पुत्री के शासिका होने की बात कही
  • कोटिल्य के अनुसार मोतियों व सूती वस्त्र हेतु मदुरै (पाण्ड्य वंश की राजधानी ) प्रसिद्ध थी।
  • पाण्ड्य वंश का राजचिन्ह – मछली
  • पाण्ड्य वंश की राजधानी 1. कोरकोई (काल्पी) प्रारम्भिक राजधानी  2. मदुरै
  • प्रमुख शासक
  • 1. वदिमबलमबनि – साहित्यिक स्त्रोत इसे पहला शासक मानते है।
  • 2. नेडियोन –  संगम साहित्य इस को पहला शासक मानते है। इन्होंने समुद्र पूजा भी प्रारंभ करवायी। लम्बे कद वाला, पहरूली नदी को अस्तित्व में लाया।
  • 3. पल्शालइ मुदुकुदुमी – अनेक यज्ञशालाओं का निर्माता व महेश्वर की उपाधि ली। पहला ऐतिहासिक राजा मान जाता है ।
  • 4. नेडुजेलियन (200-300 मध्य ) – पाण्ड्य शासकों में सबसे विख्यात नेडुजेलियन था ।
  • कोवलन को चोरी के इल्जाम में फांसी दी गई।
  • तलैयालगानम का युद्ध – चोल चेर व पांच अन्य शासकों को पराजित किया। तत्पश्चात् तलैयालगानम उपाधि ली थी।
  • स्वयं कवि था व दरबार में कई प्रसिद्ध संगम कवि इस के दरबार मे थे। जैसे 1. नक्कीरर, 2. कल्लादनार 3. मांगुदमरूदन ( मदुरै कांची ) पाण्ड्यों की प्रथम राजधानी कोरकाई थी जिसे बाद में मदुरै स्थानान्तरित की।

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