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राजस्थान में किसान आंदोलन
- राजस्थान में किसान आंदोलन राजस्थान में ब्रिटिश आधिपत्य के बाद बढी ऊँची लगान दर, राजशाही के बढ़ते खर्चों का किसानों पर बोझ, किसानों का कर चुकाने की स्थिति में न होना, पैतृक भूमि से बार-बार उन्हें वंचित करना, अत्याचारों व जुल्मों ने किसानों को राजस्थान में किसान आंदोलन करने पर मजबूर किया और यह राजस्थान में बिजौलिया (भीलवाडा ) से शुरू हुआ और बेगूँ, बूँदी, अलवर, भरतपुर, मारवाड, आदि जगह फैल गया।
- राजस्थान में किसान आंदोलन की एक विशेष बात यह रही की कि यह जातिगत रहा।
- बिजौलिया आंदोलन में धाकड़, जाति की भूमिका रही
- सीकर व शेखावाटी आंदोलन में जाट जाति की भूमिका रही
- मेवाड व सिरोही राज्य के किसान आंदोलन में भील व गरासिया जाति की भूमिका रही।
- अलवर व भरतपुर राज्यों के किसान आन्दोलन में मेव जाति की भूमिका रहीं।
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राजस्थान में किसान आंदोलन
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बिजोलिया किसान आन्दोलन (भीलवाड़ा)
- भारत में एक संगठित किसान आंदोलन की शुरुआत का श्रेय मेवाड़ के बिजौलिया क्षेत्र को जाता है।
- बिजौलिया मेवाड़ राज्य का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था इस ठिकाने का संस्थापक अशोक परमार था।
- उपरमाल की जागीर राणा सांगा ने अशोक परमार को उपहार मे दी थी।
- इस ठिकाने का क्षेत्रफल 100 वर्ग मील था जो 25 गाँवो में संगठित था।
- बिजौलिया के राव सवाई कृष्णसिंह के समय बिजौलिया की जनता से 84 प्रकार की लागतें ली जाती थी।
- बिजौलिया आन्दोलन का प्रारम्भ –
- सन् 1897 में उपरमाल के धाकड किसान गंगाराम धाकड के मृत्यु-भोज के अवसर पर गिरधारीपुरा नामक ग्राम में बेरीसाल के नानाजी पटेल व गोपाल निवास के ठाकरी पटेल को प्रतिनिधि बनाकर शासक के पास भेजा।
- मेवाड़ का महाराणा फतेहसिंह बिजौलिया में हमीद हुसैन को शिकायतों की जांच के लिए भेजता हैं। पर राज्य सरकार उस पर कोई कार्यवाही नहीं करती।
- 1903 मैं राव कृष्णसिंह ने उपरमाल की जनता पर चंवरी की लागत लगाई (लगात के अनुसार पट्टे के हर व्यक्ति को अपनी लड़की की शादी पर 5 रूपये चंवरी कर के रूप में ठिकाने को देना पड़ता)।
- 1906 में राव कृष्ण सिंह मृत्यु हो जाने पर उनके स्थान पर पृथ्वीसिंह को बिजौलिया का स्वामी बनाया जाता है। जिन्होंने 1906 में तलवार बधाई कर लगाया।
- किसानों ने साधु सीताराम दास, फतहकरण चारण व ब्रह्मदेव के नेतृत्त्व में राव की इस कार्यवाही का विरोध किया।
- इन सब के बीच ही मैं 1914 में पृथ्वीसिंह की मृत्यु हो गयी व 1916 में बिजौलिया के किसान आन्दोलन में विजयसिंह पथिक ने प्रवेश किया।
- बिजौलिया किसान आन्दोलन से पथिक जी का जुड़ना –
- विजय सिंहपथिक भाणा से मोही व मोही से चितौड पहुँच गये । व वहाँ उन्होंने हरिभाई किंकर द्वारा संचालित – विद्या प्रचारिणी सभा से नाता जोड़ा। इसी संस्था की एक शाखा साधु सीतारामदास ने बिजौलिया में स्थापित की।
- पथिक जी ने सन् 1917 में हरियाली अमावस्या के दिन बारीसाल गांव में उपरमाल पंच बोर्ड नाम से एक जबरदस्त संगठन स्थापित कर क्रांति का बिगुल बजाया। व इस पंचायत का संरपच की मन्ना पटेल को बनाया।
- अप्रैल 1919 में उदयपुर राज्य सरकार ने बिजौलिया किसान अंदोलनकारियों की शिकायतों की सुनवाई के लिए एक आयोग गठित कर बिजौलिया भेजा। इस आयोग में ठाकुर अमरसिंह, अफजल अली व बिन्दुलाल भट्टाचार्य सदस्य थे।
- पथिकजी के प्रयत्नों से वर्धा में 1919 में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई जिसे सन् 1920 में अजमेर स्थानांतरित कर दिया गया।
- जनवरी 1927 में मेवाड़ के बन्दोबस्त अधिकारी श्री ट्रेन्च बिजौलिया आये। बिजौलिया के किसानो ने लगान की ऊँची दरों के कारण जमीनो से इस्तीफा दे दिया व कुछ समय बाद विजय सिंह पथिक आन्दोलन से अलग हुए।
- बिजौलिया आंदोलन कुल 44 वर्षों तक चला यह भारत का सबसे लंबे समय तक चलने वाला आंदोलन था।
- बिजौलिया आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण समाचार पत्र
- 1. राजस्थान केसरी समाचार पत्र – विजय सिंह पथिक द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र
- 2. तरुण राजस्थान समाचार पत्र – रामनारायण चौधरी द्वारा संपादित समाचार पत्र
- 3. नवीन राजस्थान समाचार पत्र – अजमेर से प्रकाशित समाचार पत्र
- 4. प्रताप समाचार पत्र – गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र
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बेंगू किसान आंदोलन (मेवाड)
- बिजौलिया आंदोलन से प्रेरणा पाकर बेंगू के किसानों ने भी अनावश्यक व अत्याधिक करों के विरुद्ध रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में 1921 में आंदोलन शुरु किया।
- बेंगू के किसान 1921 ई. में मेनाल के भैरुकुण्ड नामक स्थान पर एकत्र हुए। वहाँ पर सामन्ती दमन चक्र चलता रहा। व यहाँ पर 13 जुलाई 1923 ई. में किसानों के प्रमुख रुपाजी व कृपाजी धाकड़ सेना की गोलाबारी से शहीद हुए व किसान अपनी मांगो के लिए जूझते रहें।
- बेंगू के ठाकुर अनुपसिंह ने किसानों से समझोता करने का प्रयास किया पर वह भी असफल हुए। मेवाड़ सरकार इस आंदोलन को दबा नही सकी। व अंत में बेगूं के ठाकुर अनुपसिंह व राज्यस्थान सेवा संघ के मध्य बोल्शेविक समझौता हुआ।
- व अन्त में 1925 ई. में बेंगू आंदोलन समाप्त हो जाता है।
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बूँदी किसान आंदोलन
- बूंदी राज्य के कृषकों को भी अनेक प्रकार की लागतें (लगभग 25 प्रकार की बेगार) व ऊँची दरों पर लगान की रकम देनी पड़ रही थी, जो किसानों के लिए यह अतिरिक्त भार असहनीय था।
- अप्रैल 1922 में एक आंदोलन आरम्भ हुआ जिसे बरड का किसान आंदोलन कहा, इस आंदोलन का नेतृत्त्व पंडित नयनूराम मे किया।
- 2 अप्रैल 1923 को डाबी में एक अप्रिय घटना घटी, चल रही सभा स्थल पर राज्य पुलिस पहुँची व सभा को रोकने का प्रयास किया। गोलीकाण्ड में नानक जी भील व देवलाल गुर्जर शहीद हुए। जो इस आंदोलन की सबसे भीषण घटना है, उसी समय नानक भील की याद में माणिकलाल वर्मा द्वारा अर्जी शीर्षक गीत लिखा गया।
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अलवर किसान आंदोलन
- अलवर किसान आंदोलन 14 मई 1925 को गठित नीमूचाणा हत्याकाण्ड के लिए प्रसिद्ध हुआ।
- नीमूचाणा हत्याकाण्ड के अन्तर्गत लगभग 800 किसान अलवर नीमूचाणा गाँव में एकत्र हुए। उस सभा पर सैनिक बलों ने मशीनगनों से अंधाधुंध फायरिंग की जिससे सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गये।
- महात्मा गांधी ने इस कांड को जलियाँवाला बाग हत्याकांड से भी वीभत्स बताया और उसे दोहरे हत्याकांड की संज्ञा दी।
- नीमूचाणा हत्याकाण्ड में फायरिंग छजूसिंह द्वारा की गई जिसे राजस्थान का जनरल डायर भी कहा।
- अलवर रियासत के नीमूचाणा के किसान रघुनाथ की बेटी सीतादेवी ने भी अलवर किसान आंदोलन में भाग लिया।
- जब अंग्रेज सिपाहियों ने नीमूचाणा गांव मे गोलियाँ चलानी प्रारम्भ कि तो सीतादेवी किसानो को ललकार रही थी कि हम किसी भी हालत में ठिकाने को अधिक लगान नहीं देंगे।
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बीकानेर में किसान आन्दोलन
- बीकानेर राज्य में 1929 में किसान आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। जिसका का मुख्य कारण किसानों से पानी के उपर लिया जाने वाला कर था, पर उसके बदले पानी भी फसल के लिए पूरा नही दिया जाता।
- बीकानेर किसान आंदोलन को दो भागो में भी बांट सकते है
- 1.गंग नहर से संबंधित समस्या के कारण
- 2.बीकानेर की जागीरी गांवो से जोड़ना।
- 5 दिसम्बर 1925 को स्वयं महाराजा गंगा सिंह ने गंगनहर परियोजना का शिलान्यास किया व 26 अक्टूबर 1927 को इसका विधिवत रूप से शुभारम्भ किया। व इसके साथ ही सिचाई आरम्भ हो गई।
- अप्रैल 1929 में जमींदार एसोसिएशन का गठन किया व दरबार सिंह को इसका अध्यक्ष नियुक्त कर इसकी शाखा श्री गंगानगर मुख्यालय सहित श्री करणपुर, पदमपुर, अनूपगढ़ व रायसिंह नगर में खोली।
- जमींदार एसोसियेशन 1929 से आरम्भ होकर 1947 तक अपने सदस्यों के हितो को पूरा करती रही। अधिकांश गतिविधियाँ संवैधानिक व शन्तिपूर्ण रही।
- 1937 में बीकानेर किसानो की समस्याओं को महाराजा व अन्य अधिकारियों के समक्ष जीवन चौधरी ने प्रस्तुत की परन्तु इसमें उन्हें कोई सफलता नही मिली।
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दूधवाखारा किसान आंदोलन
- दूधवाखारा के किसान भी सामन्ती अत्याचारों व शोषण से पीडित थे।
- 1944 ई. में यहाँ के जागीरदारों ने बकाया राशि के भुगतान का बहाना कर किसानों को उनकी जोत से बेदखल कर दिया।
- तब ही किसानों ने महाराजा से शिकायत की। परन्तु कोई कार्यवाही नही हुई। व जागीरदारों के अत्याचारों में वृद्धि हुई।
- हनुमान सिंह के नेतृत्व में किसान आंदोलन का समर्थन हुआ व कई बार जेल भी गये उन्होंने 65 दिन की भूख हड़ताल भी की।
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रायसिंह नगर की घटना
- प्रजा परिषद् के नेतृत्त्व में दूसरा किसान आंदोलन 1 जुलाई 1946 को रायसिंह नगर में जब जुलुस निकलतें हैं उस पर गोलियाँ चलाई जाती हैं। गोलियों के दौरान बीरबल सिंह शहीद हो जाते हैं।
- 6 जुलाई 1946 को सम्पूर्ण बीकानेर राज्य में किसान दिवस मनाया।
- 17 जुलाई 1946 को शहीद बीरबल दिवस मनाया।
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मारवाड़ में किसान आंदोलन
- मारवाड राजस्थान का सबसे बड़ा राज्य था। जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण राजस्थान का 26 प्रतिशत भू-भाग था। व इसकी राजधानी जोधपुर शहर थी।
- मारवाड मे 1915 में मरुधर मित्र हितकारिणी सभा नामक प्रथम राजनीति संगठन की स्थापना हुई।
- 1921 में मारवाड़ सेवा संघ का दूसरा राजनीतिक संगठन स्थापित हुआ। जिसका कार्यक्षेत्र और भी अधिक विस्तृत था
- मारवाड किसान आंदोलन का सूत्रधार मोतीलाल तेजावत व इसको चलाने वाला जयनारायण व्यास थे।
- 1924 ई. मे जयनारायण व्यास ने जोधपुर में मारवाड, हितकारिणी सभा का गठन किया। व इसके द्वारा मारवाड़ के किसानो को लागतो व बेगारो के विरूद्ध जागरूक बनाने का प्रयास शुरू किया।
- मारवाड हितकारिणी सभा को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया ।
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मण्डौर किसान आंदोलन
- मण्डौर किसान आंदोलन चंदनमल बहड के नेतृत्त्व में 1928 से 1940 तक हुआ।
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मारवाड का तौल आंदोलन
- 1920-21 में इस आंदोलन की शुरुआत चान्दमल सुराना व उनके साथियों ने की
- मारवाड़ में 100 तौले का एक सैर को 80 तौले के सेर में परिवर्तित करने के निर्णय के विरोध में प्रारंभ किया।
- अंत में सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा।
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डाबडा काण्ड 1947
- 13 मार्च 1947 को डीडवाना परगने के डाबडा नामक गाँव में मारवाड़ लोक परिषद् व मारवाड किसान सभा ने संयुक्त सम्मेलन की कार्यवाही आरम्भ की तो वहाँ के जगीरदारों ने सिपाहियों की मदद से वहाँ हमला किया।
- आंदोलन के दौरान चुन्नीलाल शर्मा, रुघाराम चौधरी, रामनारायण चौधरी, पन्नाराम चौधरी, जग्गू जाट, मेहताब सिंह शहीद हुए।
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चन्द्रावल की घटना
- 28 मार्च 1942 को मांगीलाल नामक लोक परिषद के सदस्य ने उत्तरदायी सरकार दिवस मनाने के लिए आस-पास के सदस्यों को चन्द्रावल में आमंत्रित किया। परन्तु यहाँ के ठाकुर ने उनके आयोजन को नही होने दिया व सोजत (पाली) से आने वाले लोगों पर लाठीचार्ज करवाया जिस दौरान कई व्यक्ति घायल हुये।
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शेखावटी / सीकर किसान आंदोलन
- 1918 में जयपुर राज्य के शेखावाटी क्षेत्र में चीरवा सेवा समिति गठित की गई। इस सेवा समिति का उद्देश्य अकाल व प्राकृतिक विपदाओं से राहत दिलवाना व किसानो की सहायता करना।
- 1922 में सीकर के सामन्त कल्याणसिंह ने 25% वृद्धि कर कठोरता से वसूली की।
- रामनारायण चौधरी ने ‘तरुण राजस्थान‘ समाचार पत्र में सीकर के ‘किसानो के पक्ष में प्रभावी वातावरण उत्पन्न किया।
- सीकर किसान आंदोलन का मामला न केवल भारत की सेन्ट्रल असेम्बली मे उठा बल्कि यह इंग्लैण्ड के हाउस ऑफ कामन्स में भी उठा।
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चिड़ावा किसान आंदोलन
- सीकर की तरह शेखावाटी क्षेत्र के अन्य जागीरदार भी किसानों पर अत्याचार करते थे।
- 1922 में मास्टर प्यारेलाल गुप्ता ने चिड़ावा में अमर सेवा समिति की स्थापना की।
- मास्टर प्यारेलाल गुप्ता को जो उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले के रहने वाले थे को चिड़ावा का गांधी कहा जाता है।
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कटराथल किसान आंदोलन
- 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी (हरलाल सिंह खर्रा की पत्नी) के नेतृत्व में एक विशाल महिला सम्मलेन का आयोजन किया जिसमें लगभग 10000 जाट महिलाओं ने भाग लिया।
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जयसिंहपुरा हत्याकाण्ड
- 21 जून 1934 में डूण्डलोद ठाकुर के भाई ईश्वरीसिंह ने जयसिंहपुरा में खेत जोत रहे किसानो पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई।
- इस हत्याकाण्ड के बाद ईश्वरसिंह व उसके साथियों पर मुकदमा चलाया गया व उन्हें सजा भी दी।
- सम्पूर्ण जयपुर रियासत में जयसिंहपुरा शहीद दिवस मनाया गया।
- जयपुर राज्य मे यह प्रथम मुकदमा था जिसमें जाट किसानों के हत्यारों को सजा दिलाना सम्भव हो सका।
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19 वीं व 20 वीं सदी के राजस्थान के आदिवासी विद्रोह
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मीणा आंदोलन (1924-1952)
- जयपुर अलवर क्षेत्र में मीणों की संख्या अधिक थी। इन्होनें राज्य के कई भागों पर शासन किया।
- 1924 में भारत सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट व जयपुर राज्य जरायम पेशा कानून 1930 (दादरी अधिनियम) लागू किया जिसके तहत सभी मीणा स्त्री-पुरुषों को रोजना थाने पर हाजरी देने के लिए पाबन्द किया।
- छोटूराम, लक्ष्मीनारायण झरवाल, महादेवराम, जवाहरराम आदि मीणों ने मीणा जाति सुधार कमेठी का गठन किया।
- 1933 में मीणा क्षेत्रीय सभा की स्थापना हुई। इस सभा ने जरायम समाप्त करने की मांग की।
- 28 अक्टूबर 1946 को एक विशाल सम्मेलन बागावास में आयोजित कर मीणों ने स्वेच्छा से चौकीदारी के काम से इस्तीफा दे दिया।
- अप्रैल 1944 में जैन मुनि मगनसागर जी के नेतृत्व में नीमकाथाना क्षेत्र में एक सम्मेलन हुआ व जयपुर राज्य मीणा सुधार समिति का गठन हुआ व 1952 तक मीणों के सम्बन्ध में बने तमाम जरायम पेशा कानून समाप्त हुआ।
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भगत आंदोलन/ सम्पसभा
- भीलों में जागृति की विचारधारा फैलाने वालों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम गुरु गोविंद का हैं।
- 1883 में गोविंद गिरि ने सम्पसभा की स्थापना की व मेवाङ, डुगरपुर गुजरात, मालवा आदि क्षेत्रो के भील व गरासियों को संगठित करने का प्रयास किया।
- 1881 में दयानन्द सरस्वती उदयपुर गुरु गोविन्द सिंह से मिले व उनसे प्रेरणा पाकर भगत आंदोलन या स्वदेशी आंदोलन चलाया।
- गोविन्द गिरि ने 1913 में मानगढ़, पहाड़ी पर भीलों को एकत्रित कर सम्प सभा का आयोजन किया तो सेना द्वारा बरसाई गई गोलियों से 1500 स्त्री पुरुष घटना स्थल पर ही मारे गए। इस घटना को भारत का दूसरा जलियावाला बाग हत्याकाण्ड की संज्ञा दी व उनको व उनकी पत्नी को बंदी बनाया व 10 वर्ष बाद रिहा किया।
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मोतीलाल तेजावत का एकी आंदोलन
- मोतीलाल तेजावत ने अत्याधिक करों, बेगार, शोषण व सामन्ती जुल्मों के विरुद्ध 1921 में मातृकुण्डिया (चितौड़) में आदिवासियों के लिए एकी आंदोलन चलाया।
- एकी आंदोलन का मूल उद्देश्य भारी लगान, अन्यायपूर्ण लोगों व बेगार से किसानों को मुक्त करवाना था।
- जुलाई 1921 में तेजावत ने भीलों पर होने वाले अत्याचारों से संबंधित 21 मांगे रखी जिन्हें मेवाड़ की पुकार कहा।