भक्ति आंदोलन व प्रमुख संत

  • भक्ति आन्दोलन हिन्दुओं में सुधार के लिए आन्दोलन था। इस आन्दोलन के अन्तर्गत एक ही ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत समर्पण भाव पर  बल दिया है। दक्षिण भारत में भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ सातवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच हुआ जिसका उद्देश्य नयनार व अलवार सन्तो के बीच मतभेद को समाप्त करना था।
  • शैव नयनारों व वैष्णव अलवारों ने जैन व बोद्ध धर्म को अस्वीकार कर ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत भक्ति को ही मुक्ति का मार्ग बताया। भक्ति आन्दोलन एक ऐसा शास्त्र है जिसके अन्तर्गत ईश्वर के साथ एकता के व्यक्तिगत अनुभव को लिया जाता है।
  • दक्षिण भारत के अलवार भक्ति संतो ने 5वीं से 9वीं शताब्दी के बीच अपनी भक्ति कविताओं की रचना की जो कृष्ण भक्त थे।
  1. निर्गुण – कबीर और नानक निर्गुण धारणा से संबंधित थे।
  2. सगुण – वल्लभाचार्य, चैतन्य, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई आदि सगुण धारणा से संबंधित थे।
  • भक्ति आन्दोलन के प्रमुख सन्त

  • रामानुजाचार्य ( 1017- 1137 ई.)

  • रामानुज का जन्म तमिलनाडु के पेराम्बदूर मे हुआ। इनकी गतिविधियो का प्रमुख केन्द्र काँची व श्रीरंगम था। ये मानते थे कि सगुण ब्रह्म की भक्ति से ही मोक्ष को प्राप्त किया जाता है।
  • भक्ति आन्दोलन में रामानुज  वैष्णव धर्म के अनुयायी थे। इन्होंने विशिष्ट द्वैतवाद का प्रचार प्रसार किया। व इन्होंने श्री संप्रदाय की स्थापना की।
  • कुलोन्तुंग प्रथम के विरोधाभास के कारण रामानुज को श्रीरंगम छोड़ कर तिरुपति को अपना केन्द्र बनाया, इन्होंने अपने गुरु यादव प्रकाश से कांची में वेदान्त की शिक्षा ली।

 

  • निम्बार्क (12वीं सदी)

  • निम्बार्क का जन्म दक्षिण में तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ। निम्बार्क रामानुज के समकालीन थे व वैष्णव सम्प्रदाय मे इन्होंने द्वैताद्वैत  दर्शन प्रचलित किया।
  • इन्होंने राधाकृष्ण की भक्ति द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग ढूंढा। तथा मथुरा के समीप ब्रज में अपना आश्रम स्थापित किया।
  • राजस्थान में निम्बार्क पीठ अजमेर जिले में सलेमाबाद में स्थित है।
  • निम्बार्क का अधिकांश समय बृन्दावन मे ही व्यतीत हुआ तथा वे अवतारवाद में पूर्ण विश्वास रखते थे।

 

  • माधवाचार्य (1197 से 1276 ई.)

  • इनका जन्म सन् 1199 ई. में दक्षिण भारत के उड़पी में हुआ इन्होंने विष्णु की उपासना व ज्ञान प्राप्ति पर बल दिया।
  • माधवाचार्य  ने द्वैतवाद दर्शन का प्रतिपादन किया इनके अनुसार ईश्वर व जीव अलग-अलग है।
  • रामानन्द :- (14वीं शताब्दी)
  • इनका जन्म इलाहाबाद में कान्यकुब्ज के ब्राह्मण परिवार मे हुआ उत्तर भारत में भक्ति मार्ग का प्रसार करने में इन्होंने अपना योगदान दिया।
  • रामानन्द ने शैव व वैष्णव धर्म में प्रयाग में समन्वय स्थापित किया।
  • रामानन्द ने विष्णु के स्थान पर राम की भक्ति की। वे सभी जातियों को समान मानते थे।
  • रामानन्द के 12 शिष्य :
  • रैदास (चमार)
  • कबीर (जुलाहा)
  • धन्ना (जाट)
  • पीपा (राजपूत)
  • सेना (नाई)
  • सघना ( कसाई )

 

  • कबीर (1398-1518) ई.
  • कबीर का जन्म एक ब्राह्मण विधवा से हुआ था लोक लज्जा  के भय से लहरतारा तालाब के पास छोड दिया व वहाँ से नीरू व नीमा नामक जुलाहा ने कबीर को प्राप्त किया।
  • ये रामानन्द के शिष्य थे तथा यह निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे।
  • कबीर की शिक्षाएँ उनके शिष्य भागदास द्वारा बीजक में संग्रहीत की।
  • कबीर अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है महान
  • कबीर निर्गुण भक्ति सन्त थे, जो सन्त होकर भी अन्तिम समय तक गृहस्थ बने रहे।

 

  • रविदास (रैदास) 15 वी शताब्दी

  • रैदास का जन्म वाराणसी में निम्न जाति (चमार / मोची) में हुआ
  • कबीर ने रैदास को संतों का संत कहा है।
  • रैदास ने रायदास संप्रदाय की स्थापना की।
  • इनका मानना था कि ईश्वर भक्तों के हृदय में रहते है।
  • सिक्खों के गुरू ग्रन्थ साहिब में रविदास के तीस से अधिक भजनों का संग्रहण है।

 

  • दादू दयाल (1544-1603 ई.)

  • इनका जन्म अहमदाबाद में एक जुलाह के घर में हुआ और मृत्यु 1603 में राजस्थान के नारायण गाँव में हुई। जहाँ अब इनके अनुयायीयों का मुख्य केन्द्र है।
  • दादू दयाल की शिक्षा थी कि विनयशील बनो व अहम् से मुक्त रहो।
  • दादू के प्रमुख शिष्य सुन्दरदास रज्जब व सूरदास थे।

 

  • गुरुनानक (1469-1538 ई.)

  • इनका जन्म तलवंडी पंजाब में एक खत्री परिवार में हुआ।
  • इन्हे सिख धर्म का प्रवर्तक माना है।
  • गुरुनानक भी कबीर की तरह मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा व धार्मिक आडम्बरों के विरोधी थे। लेकिन गुरुनानक कर्म व पुनर्जन्म में विश्वास करते थे।
  • अकबर की धार्मिक व राजनीतिक नीतियो में कबीर व नानक के उपदेशों को लिखा है।
  • गुरुनानक आकार रहीत ईश्वर की कल्पना और निराकार ईश्वर को आकाल पुरुष की उपाधि दी।
  • 1538 में करतार में इनकी मृत्यु हो गई

 

  • चैतन्य (1486-1533 ई.) :-
  • इनका जन्म नवद्वीप / नदिया (बंगाल) मे हुआ।
  • इनका वास्तविक नाम विश्वम्भर था।
  • भक्त कवियों में चैतन्य ही एक ऐसे कवि थे जिन्होने मूर्तिपूजा का विरोध नही किया।
  • इन्होंने वृन्दावन में कृष्ण भक्त संप्रदाय को स्थापित कर वृन्दावन के गौरव को पुनः स्थापित किया।
  • चैतन्य ने भक्ति में कीर्तन प्रथा को प्रसिद्ध बनाया। वे अपने अनुयायियों के साथ भक्ति भाव से ओत-प्रोत होकर नृत्य करते थे।
  • कविराज कृष्णदास द्वारा रचित चैतन्य चरितामृत में चैतन्य के उपदेशो का संग्रहण हैं।
  • वे जति व्यवस्था के विरोधी थे इन्होंने गौडीय सम्प्रदाय को स्थापित किया।

 

  • मीराबाई (1498-1546 ई.) :-
  • मीराबाई मेड़ता के राजा रत्नसिंह की बेटी थी जो उनकी इकलौती संतान थी।
  • इनका विवाह राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ।
  • अपने पति (भोजराज ) की मृत्यु के बाद कृष्ण भक्ति में लीन होकर उन्होने राजस्थानी व ब्रजभाषा मे गीतों की रचना की

 

  • सूरदास (16वीं-17वीं शताब्दी)
  • सूरदास का जन्म आगरा मथुरा मार्ग पर रूनकता नामक गाँव में हुआ ये अकबर व जहाँगीर के समकालीन थे। व जन्म से अंधे थे।
  • सूरदास भगवान कृष्ण व राधा भक्त थे। सूरदास ने ब्रजभाषा में सूरसागर, सूर सारावली व साहित्य लहरी की रचना की।
  • सूरसागर की रचना जहाँगीर के समयकाल में हुई।

 

  • तुलसीदास (1532-1623ई.)

  • तुलसीदास का जन्म 1523 में बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में हुआ।
  • ये राम के भक्त थे। 1574-75 में इन्होंने अवधी भाषा में रामचरित मानस की रचना की।
  • इन्होने कई ग्रंथों की रचना की जो निम्न हैं
  • दोहावली, गीतावली, कवितावली, विनय पत्रिका, वैराग्य, बरवै रामायण प संदीपनी।
  • तुलसीदास अकबर के समकालीन ही थे परन्तु आइने अकबरी में इनका कहीं भी उल्लेख नही मिलता।

 

  • वल्लभाचार्य (1479-1531)

  • वल्लभाचार्य का जन्म जब इनके माता-पिता वाराणसी में तीर्थ यात्रा पर आये तो 1479 में इनका यही जन्म हुआ। ये ब्राह्मण परिवार के थे।
  • काशी में इन्होंने अपनी शिक्षा पूर्ण की व विजयनगर में कृष्णदेवराय के समय इन्होंने बैष्णव सम्प्रदाय की स्थापना की।
  • वल्लभाचार्य शुद्धाद्वैत में विश्वास करते थे व इन्होंने सुबोधनी व सिद्धांत रहस्य नामक धार्मिक ग्रन्थ लिखे।
  • वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठल नाथ ने कृष्ण भक्ति को ओर अधिक लोकप्रिय बनाया। व अकबर ने इनको गोकुल व जैतपुरा की जागीर प्रदान की।
  • वल्लभाचार्य पुष्टिमार्ग व भक्तिमार्ग में विश्वास करते थे। इनका दर्शन एक वैयक्तिक व प्रेम रूप में ईश्वर की अवधारणा पर केन्द्रित है।
  • नरसी मेहता (15 वीं सदी) :-
  • नरसी मेहता का जन्म जूनागढ़, समीपवर्ती’ तलाजा’ नामक गाँव में हुआ। इनके पिता कृष्णदामोदर वडनगर के नागरवंशी कुलीन ब्राहम्ण थे।
  • ये गुजरात के प्रसिद्ध सन्त थे। इन्होंने राधा कृष्ण की भक्ति में गुजराती में एक लाख दोहों की रचना की।

 

  • महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन

  • महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन पण्ढरपुर के देवता विठोबा के मंदिर के चारों और केन्द्रित था।

 

  • ज्ञानदेव (13 वीं सदी ) :-

  • इनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ।
  • इन्होंने मराठी भाषा में भागवद्‌गीता पर ज्ञानेश्वरी नामक टीका लिखी।

 

  • एकनाथ (1533-1599)

  • इनका जन्म पैठण औरंगाबाद में हुआ।
  • ये अत्याधिक दयालु प्रवृत्ति के थे। इन्होंने ज्ञानेश्वरी का विश्वसनीय संस्करण प्रकाशित करवाया।

 

  • नामदेव  (1270-1350)

  • नामदेव का जन्म ‘पंढरपुर’ मराठवाडा महाराष्ट्र में हुआ।
  • नामदेव ने वारकरी सम्प्रदाय की विचारधारा को लोकप्रिय बनाया।

 

  • तुकाराम  (1598-1650)

  • तुकाराम का जन्म पुणे जिले के अन्तर्गत देहू नामक गांव में हुआ।
  • ये शिवाजी के समकालीन थे।
  • इन्होंने बारकरी पंथ की स्थापना की।

 

  • रामदास (1608-1681ई. )

  • रामदास का जन्म रामनवमी को गोदातट के निकट गाँव जालना में हुआ।
  • ये शिवाजी के आध्यात्मिक गुरू थे रामदास ने दास बोध नामक एक किताब की रचना की।

 

  • भक्ति आन्दोलन की विशेषता

  • भक्ति आन्दोलन के लगभग सभी संतों के अनुसार ईश्वर के सामने पूर्णरूप से समर्पण करने पर ही ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
  • भक्ति आन्दोलन के सभी सन्त सामाजिक रूप से लगभग सभी को समान मानते थे, किसी भी जाति वर्ग के साथ ऊँच नीच का व्यवहार नही किया जाता।
  • भक्ति आन्दोलन के सभी सन्त धर्म व समाज दोनो रूपों मे सुधार कर मानवतावादी का उच्च दृष्टिकोण प्रस्तुत करना चाहते थे।
  • भक्ति आन्दोलन के सभी सन्तो का मानना था कि सभी प्रकार की मोह माया को छोडकर ईश्वर की भक्ति करने से मोक्ष या मुक्ति प्राप्त हो सकती है।

 

  • भक्ति आन्दोलन का प्रभाव

  • भक्ति आन्दोलन के माध्यम से सबसे अधिक प्रभावित होने वाल क्षेत्र सामाजिक क्षेत्र था। इसके माध्यम से जातिगत भेदभाव को दुर करने पर बल दिया व हिन्दु व मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया।
  • इसके माध्यम से ब्राह्मणों द्वारा कर्मकाण्ड, आडम्बरो पर अन्धविश्वासों को कम करने का प्रयास किया। व सभी को समान रूप से मानने के बारे में कहा।
  • निम्न वर्ग के प्रति देखने की हीन भावना को हटाने का प्रयास किया।

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत व उनके सिद्धांत

प्रमुख संत सिद्धांत व पंथ
श्री कंठ शैव विशिष्टाद्वैत
निम्बार्काचार्य भेदाभेद वाद
श्री पति वीर शैव विशिष्टाद्वैत
विज्ञान भिक्षु अविभागाद्वैत
कबीर विशुद्ध द्वैतवाद
हितहरिवंश राधावल्लभ संप्रदाय
तुकाराम बारकरी पंथ

 

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