राजस्थान में कृषि
राजस्थान में कृषि – कृषि राजस्थान की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड है। राजस्थान में देश का 11 प्रतिशत क्षेत्र कृषि योग्य भूमि का है। राजस्थान की लगभग 75% आबादी कृषि पर निर्भर है। राजस्थान की अधिकांश कृषि मानसून पर निर्भर है, इसलिए राजस्थान में कृषि को ‘मानसून का जुआ’ भी कहा जाता है।
राज्य की प्रमुख फसलें 3 प्रकार
खरीफ की फसल – (स्यालू व सावणू) इसकी बुवाई जून-जुलाई में की जाती है व सितम्बर-अक्टूबर में कटाई की जाती है यह वर्षाकाल पर निर्भर रहने वाली फसल है।
फसलें – चावल, बाजरा, ज्वार, कपास, गन्ना, मूंगफली, तिल, अरहर मूंग, उड़द, मोठ, ग्वार
रबी की फसल (उनालू) – इसकी बुवाई अक्टूबर-नवम्बर व मार्च-अप्रैल में कटाई की जाती है।
फसलें – गेहूं, जौ, चना, मसूर, सरसों, तारामीरा, सूरजमुखी, राई, जीरा, धनिया, सौंफ व मैथी
जायद फसल – यह फसल मार्च से जून के बीच में की जाती है।
फसलें – तरबूज, खरबूजा, कंद व सब्जियां।
खरीफ की फसल राजस्थान में लगभग 150-165 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में बोयी जाती है, जबकि रबी की फसल राजस्थान में लगभग 70-95 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में बोयी जाती है।
राजस्थान की प्रमुख फसलें –
बाजरा – बाजरे का वैज्ञानिक नाम पेनिसेटम ग्लुकम
बाजरा राजस्थान के सबसे अधिक क्षेत्र में बोयी जाने वाली फसल है। यह सूखे को सहन करने वाली फसल है। बाजरा उत्पादन में राजस्थान का प्रथम स्थान है।
वर्ष (2020-21) के आंकड़ो के अनुसार 41.71 % बाजरे का उत्पादन राजस्थान में होता है।
तापमान – 15-35°C औसत वर्षा – 40-50 सेमी
बाजरे की प्रमुख किस्में- RHB-30, RCB-911, राज-171, RCB-2 राज बाजराचरी-2
बाजरा अनुसंधान केन्द्र मंडोर (जोधपुर)
राजस्थान में प्रमुख बाजरा उत्पादक जिले – अलवर, बाड़मेर, जयपुर
चावल – चावल के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयोगी होती है।
राजस्थान में चावल उत्पादक जिले – बूंदी, बारां, हनुमानगढ़, कोटा
राजस्थान में चावल का सबसे अधिक उत्पादन बूंदी जिला करता है।
चावल उत्पादन के लिए तापमान – 20-30°C लिए
औसत वर्षा – 100 से 150 सेमी.
चावल में होने वाले रोग – भूरी-चिती, तनागलन, गन्धीबगकीट
ज्वार – ज्वार को गरीब की रोटी भी कहते है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है।
राजस्थान में ज्वार उत्पादक जिले – अजमेर, भीलवाडा, टोंक व पाली
ज्वार उत्पादन के लिए तापमान – 25-35°C
ज्वार के लिए औसत वर्षा – 50 से 60 सेमी
ज्वार अनुसंधान केन्द्र – वल्लभनगर (उदयपुर) 1970
ज्वार की किस्में – एस.पी.वी-96, एस.पी.वी-245, राजस्थान चरी-I
कपास – कपास खरीफ की नकदी फसल है। इसे सफेद सोना के नाम से भी जानते है। कपास को जून-जुलाई में बोया जाता है। व अक्टूबर-नवंबर में इसकी कटाई की जाती है।
कपास उत्पादन के लिए तापमान – 20-30°C
कपास उत्पादन के लिए औसत वर्षा – 75-100 सेमी.
देशी कपास का सबसे अधिक उत्पादन – गंगानगर, जोधपुर, झुंझुनू, बाँसवाड़ा
कपास में होने वाले रोग – बालविबल कीड़ा, अंगमारी / ब्लेक आर्म रोग
कपास का उत्पादन गांठों में गिना जाता है। प्रत्येक गांठ का वजन 170 किलो होता है।
कपास की प्रमुख किस्में – नरमा, बीकानेरी कपास, अमेरिकन कपास, US-81,PST-9
गन्ना – गन्ने की खेती के लिए काली मिट्टी, पीली मिट्टी व रेतीली मिट्टी सबसे अच्छी होती है।
यह उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु की फसल है।
गन्ना उत्पादन के लिए तापमान – 15-25°C
गन्ना उत्पादन के लिए वर्षा – 120 से 170 सेमी.
गन्ना में होने वाले रोग – पाइरला, कण्डुआ रोग, जड़ छेदक, तना छेदक, सफेद मक्खी, लाल सडन
राजस्थान में प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले – गंगानगर, चितौडगढ, बूंदी व उदयपुर
गन्ने की प्रमुख किस्में – CO-1111, CO-449, CO-419
मूंगफली – मूंगफली के लिए हल्की दोमट मिट्टी या काली मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है।
मूंगफली की किस्में – चन्द्रा, RG-141, RSB-87,RS-1
मूंगफली में होने वाले रोग – टिक्का रोग, सफेद लट, कालरा, भृंग राजस्थान में मूंगफली उत्पादक जिले – बीकानेर, जोधपुर, चुरु, जयपुर
देश में सबसे अधिक मूंगफली का उत्पादन – गुजरात
तिल – तिल को तिलहनी फसलों की रानी के नाम से भी जाना जाता है । इसकी बुवाई मुख्य रूप से उत्तरी व मध्य भारत में की जाती है।
तिल के उत्पादन के लिए तापमान – 25 से 35°C
तिल उत्पादन के लिए वर्षा – 40 से 50 सेमी.
राजस्थान में प्रमुख तिल उत्पादक जिले – पाली, सवाई माधोपुर, जोधपुर व करौली
राजस्थान में सबसे अधिक उत्पादन – पाली
मूंग – मूंग की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट भूमि सबसे अच्छी होती है। मूंग भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाये रखता है इसलिए इसे भूमि सुरक्षा फसल के नाम से भी जानते है।
मूंग का सबसे अधिक उत्पादन राजस्थान में ही होता है।
मूंग के उत्पादन के लिए तापमान – 25 से 35°C
मूंग की किस्मे RMG-62, RS-4
राजस्थान में प्रमुख मूंग उत्पादक जिले – नागौर, जोधपुर, गंगानगर व चुरु
राजस्थान में सबसे अधिक मूंग का उत्पादन – गागौर
मूंग का वैज्ञानिक नाम – बिगना रेडिएटा
मोठ – मोठ का वैज्ञानिक नाम – बिग्ना एकोनिटिफोलिया
यह शुष्क व मरुस्थलीय क्षेत्रों में होने वाली फसल है तथा यह दलहनी फसलों में सबसे अधिक सूखा सहन करने की क्षमता रखती है
मोठ की फसल के लिए तापमान – 25 से 37°C
मोठ की किस्में जड़िया, ज्वाला, RM0-40, साठी,
राजस्थान में सबसे अधिक मोठ का उत्पादन – बीकानेर
रबी की फसलें – रबी की फसलें वे होती है जिनकी बुवाई सर्दियों के मौसम मे होती है।
गेहूं – रबी की फसल में उत्पादित होने वाली गेहूं मुख्य खाद्यान्न फसल है। जो राजस्थान में सबसे अधिक उत्पादित होने वाली फसल है।
गेहूं की फसल के लिए तापमान 10-20°C
गेहूं की फसल के लिए वर्षा 50 से 70 सेमी.
गेहूं में होने वाले रोग – करजवा, चेंपा, रतुआ, स्मट रोग, काला कीट
राजस्थान में प्रमुख गेहूं उत्पादक जिले – गंगानगर, हनुमानगढ, अलवर, बंदी व चितौडगढ़
गेहूं की प्रमुख किस्में – कल्याण सोना-1482, सोनालिका, लेरमा, मालविका, कोहिनूर, दुर्गापुरा-65, चम्बल-65
जौ – जौ को गरीब का अनाज के नाम से भी जानते है इसका उपयोग शराब व बीयर बनाने में किया जाता है व मधुमेह रोग के उपचार में भी इसका उपयोग किया जाता है। जौ की फसल के लिए तापमान – 15-25°C
जौ में होने वाले रोग, – पीली रोली, भूरी रोली, मोल्या, चित्ती, आवर्त व अनावर्त
राजस्थान में प्रमुख जौ उत्पादक जिले – जयपुर, गंगानगर, सीकर व भीलवाड़ा
जौ की प्रमुख किस्में – करण, कैलाश, केदार, ज्योति
चना – यह ऐसी फसल है जो राजस्थान के अधिकांशत्य सभी जिलों में उत्पादित की जाती है।
चने की फसल के लिए तापमान – 15 से 20°C
चने में होने वाले रोग – दिमक, फली, छेदक, उक्टा, फुहरोट रोग, झुलसा
राजस्थान में प्रमुख चना उत्पादक जिले – चुरु, अजमेर, भीलवाड़ा व चितौड़गढ़
सरसों – सरसों के उत्पादन में राजस्थान का प्रथम स्थान है।
सरसों की फसल के लिए तापमान – 15-25°C
सरसों की फसल में होने वाले रोग – चेम्पा, सफेद रोली व सफेद कीट व तना गलन
सरसों की किस्में – वरदान, वरुणा, बायों 902, दुर्गामणि
राजस्थान में प्रमुख सरसों उत्पादक जिले – गंगानगर, टोंक, अलवर व भरतपुर
सरसों की प्रमुख किस्में – पूसा बोल्ड, राजविजय सरसों-2
तारामीरा – इसको अनुपजाऊ या अनुपयोगी भूमि पर भी उगाया जा सकता है। तथा इसके तेल का उपयोग साबून निर्माण में किया जाता है।
तारामीरा का वैज्ञानिक नाम – एरुका सैटिवा
तारामीरा की किस्में – RTM-314
राजस्थान में प्रमुख तारामीरा उत्पादक जिले – नागौर, पाली, बीकानेर व दौसा
जीरा – जीरे के फसल के लिए बलुई दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है।
जीरे की फसल के लिए तापमान – 24 से 28°C जीरे की फसल मे होने वाले रोग – छाछिया, झुलसा, उखटा, विल्ट
राजस्थान में प्रमुख जीरा उत्पादक जिले – जैसलमेर, जालौर, जोधपुर, बाडमेर
जीरे की किस्में – RZ19, RZ209, RZ223
धनिया – धनिया की खेती के लिए जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
धनिया की फसल के लिए तापमान – 20 से 25°C
धनिया की फसल में होने वाले रोग – लोंगिया
धनिया की किस्में – RCR 41 (कर्ण)
राजस्थान में प्रमुख धनिया उत्पादक जिले – कोटा,बूंदी, बारां, झालावाड़ व चितौडगढ़
जायद की फसले – जायद की फसले के बीच बोई जाने वाली फसल होती है। इन फसलों के अंदर गर्मी व तेज शुष्क हवाएं सहन करने की क्षमता होती है
तरबूज, खरबुजा, कंद व सब्जियां
राजस्थान में कृषि
राज्य में प्रमुख कृषि पद्धतियों का वर्गीकरण
शुष्क कृषि पद्धति – इसके अन्तर्गत कृषि कम पानी या बरसात के पानी से भी सम्पन्न हो जाती है। यह कृषि 50 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रो के लिए उपयोगी है। फसल – बाजरा, ज्वार, ग्वार, मोठ
सिंचित कृषि पद्धति – इसके अन्तर्गत कृषि को बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिसकी पूर्ति नहरों, तालाबों व कुओं से होती है। फसलें – गन्ना, कपास, गेहूँ, सरसों
आर्द्र कृषि – यह कृषि उपजाऊ व काली मिट्टी के क्षेत्रों में की जाती है। तथा वहाँ 100 सेमी. से अधिक वर्षा हो
फसलें – चाय, कॉफी, काजू, नारियल, रबर
तर कृषि – इस कृषि में फसल की जड़ो में वर्ष भर पानी भरा रहना चाहिए।
फसलें – चावल, जूट, सिंघाड़ा
स्थानान्तरित कृषि – आदिवासियों द्वारा वनों को जलाकर या काटकर जो कृषि की जाती है वह स्थानान्तरित कृषि कहलाती है।
राजस्थान में सबसे अधिक स्थानान्तरित कृषि करने वाली जनजाति – भील जनजाति
वालरा – राजस्थान में गरासियों द्वारा की जाने वाली कृषि
चिमाता – भीलों द्वारा पहाडी जंगलों को जलाकर की जाने वाली कृषि
दजिया – भीलों द्वारा मैदानी भागों को जलाकर की जाने वाली कृषि
राजस्थान में कृषि
राजस्थान में कृषि की विशेषताएँ
मानसून पर आधारित – राजस्थान की अधिकांश कृषि मानसून पर आधरित होती है। इसलिए कृषि को मानसून का जुआ भी कहते है।
राजस्थान में औसत वार्षिक वर्षा 57.5 सेमी.
पूर्वी राजस्थान में औसत वार्षिक वर्षा 70.4 सेमी.
पश्चिमी राजस्थान में औसत वार्षिक वर्षा 31 सेमी.
खाद्यान्न फसलों की अधिकता – फसलों के उत्पादन में राजस्थान के किसान खाद्यान्न फसलों पर अधिक ध्यान देने लगे है
जीविकोपार्जन का मुख्य आधार – राजस्थान की 75% जनसंख्या कृषि व पशुपालन पर निर्भर है।
दलहनी फसलों में वृद्धि – पिछले कुछ वर्षों में दलहनी फसलों में वृद्धि देखी गई है। दलहनी फसलों का क्षेत्रफल वर्ष 2007-08 में 38.69 लाख हैक्टेयर था जो 2021-22 में बढकर 64.57 लाख हेक्टेयर हुआ ।
सिंचाई के साधनों की कमी – राजस्थान के कुल कृषिगत क्षेत्र का 32% भाग ही सिंचित है। सिचाई की सुविधाओं की कमी के कारण प्रति हैक्टेयर उत्पादकता भी कम है।
मिश्रित प्रकार की कृषि – राजस्थान में कृषि व पशुपालन साथ- साथ किये जाते है, जिसे मिश्रित कृषि कहते है।
मानव श्रम का ज्यादा प्रयोग – राजस्थान में निराई, गुड़ाई सिंचाई व कटाई में मानव के श्रम का ही ज्यादा उपयोग किया जाता है।
नवीन तकनीकों व प्रौद्योगिकी का कम उपयोग – राजस्थान में नयी तकनीकों का उपयोग कम ही होता है। परम्परागत पद्धतियों का ही प्रचलन चल रहा है।
तिलहनों के क्षेत्रफल में वृद्धि – तिलहनी फसलों का क्षेत्रफल धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वर्ष 2007-08 में 40.15 लाख हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 69.17 लाख हेक्टेयर क्षेत्र हो हो गया।
राजस्थान में कृषि
राजस्थान में कृषि विश्वविद्यालय
क्र.स. | कृषि विश्वविद्यालय का नाम | स्थापन्ना वर्ष | स्थान |
1. | स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय | 1987 | बीकानेर |
2. | महाराणा प्रताप कृषि व प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय | 1999 | उदयपुर |
3. | श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय | 2013 | जोबनेर (जयपुर) |
4. | कृषि विश्वविद्यालय | 2013 | मंडोर (जोधपुर) |
5. | कृषि विश्वविद्यालय | 2013 | बोरखेडा (कोटा) |
कृषि से सम्बंधित क्रांतियाँ
क्र.स. | क्रांति का नाम | क्रांति का सम्बन्ध | जनक |
1. | हरित क्रांति | अनाज उत्पादन | M.S. स्वामीनाथन |
2. | श्वेत क्रांति | दुग्ध उत्पादन | वर्गीज कुरियन |
3. | भूरी क्रांति | खाद्य प्रसंस्करण | हीरा लाल चौधरी |
4. | लाल क्रांति | मांस उत्पादन | विशाल तिवाड़ी |
5. | नीली क्रांति | मतस्य उत्पादन | हीरा लाल चौधरी |
6. | गुलाबी क्रांति | झींगा उत्पादन | दुर्गेश पटेल |
7. | सिल्वर क्रांति | अंडा उत्पादन | B.V. राव |
8. | गोल क्रांति | आलू उत्पादन | – |
9. | पीली क्रांति | सरसों उत्पादन | सैम पित्रोदा |