दिल्ली सल्तनत का इतिहास

दिल्ली सल्तनत का इतिहास 

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दिल्ली सल्तनत का इतिहास

इतिहासकारों ने 1206 से 1526 ईस्वी तक भारत पर शासन करने वाले पांच वंश ( गुलाम, खिलजी, तुगलक,सैयद व लोदी ) के  काल को दिल्ली सल्तनत / सल्तनत-ए-हिन्द कहा है Ι

1192 ईस्वी में तराइन के दुसरे युद्ध में मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज राज चौहान को हराकर जीते गए भारतीय प्रदेशों को अपने गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक के संरक्षण में छोड़कर वापिस अपने प्रदेश लोट जाता हैΙ मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद व उसके कोई संतान नहीं होने के कारण भारत में जीते गये प्रदेशों पर कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन स्थापित हों जाता हैΙ कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का गुलाम होने के कारण इसके वंश को गुलाम वंश के नाम से जाना जाता हैΙ

दिल्ली सल्तनत (1206 से 1526 ईस्वी ) के राजवंश –

क्र.स. राजवंश का नाम समय काल संस्थापक
1. गुलाम वंश 1206  से 1290 ई. तक कुतुबुद्दीन ऐबक
2. खिलजी वंश 1290 से 1320 ई. तक जलालुद्दीन खिलजी
3. तुगलक वंश 1320 से 1414 ई. तक गयासुद्दीन तुगलक
4. सैय्यदवंश 1414 से 1451 ई. तक खिज्र खां
5. लोदी वंश 1451 से 1526 ई. तक बहलोल लोदी

 

  • गुलाम वंश –

  • दिल्ली सल्तनत के पहले वंश गुलाम वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ईस्वी में की थी। गुलाम वंश को मामलूक वंश के नाम से भी जानते है। मामलूक शब्द का अर्थ होता है स्वतन्त्र माता-पिता से उत्पन्न दास

 

  • 1. कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 – 1210 ई.) –

  • कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत मैं तुर्की राज्य का संस्थापक माना जाता है।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक शासक बनने के बावजूद भी स्वयं को मोहम्मद गौरी का गुलाम ही मानता था। अतः सिंहासन पर बैठने के बाद भी सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की बल्कि मलिक व सिपहसालार की पद‌वियों से सन्तुष्ट रहा । ऐबक ने हमेशा (1206 से 1210ई. तक) लाहौर से ही शासन किया।
  • मिनहाजुद्दीन सिराज ने कुतुबुद्दीन ऐबक को वीर व उदार हृदय वाला सुल्तान बताया। तथा वह लाखों में दान देते थे इस कारण उन्हें लाखबख्श भी कहा गया।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने प्रसिद्ध सूफी सन्त ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी ने नाम पर दिल्ली में “कुतुबमीनार की नींव रखी व उसका पूर्ण निर्माण कार्य इल्तुतमिश ने किया।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने चौहान सम्राट विगृहराज चतुर्थ द्वारा बनाये गये संस्कृत विद्यालय को तोड़कर वहाँ अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण करवाया । इस इमारत पर संस्कृत नाटक हरिकेलि के कुछ अंश भी अंकित है।
  • कुरान का अत्यन्त सुरीली आवाज में पाठ करने के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक को ‘कुरान खां’ भी कहा जाता है।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक मृत्यु 1210 ई. में लाहौर में चौगान खेलते समय घोड़े से गिर जाने के कारण हुई व उन्हे लाहौर ही दफनाया गया।
  • कुतुबुद्दीन का उत्तराधिकारी उसका अनुभवहीन व अयोग्य पुत्र आरामशाह था। किन्तु इल्तुतमिश ने इसे परास्त कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया।

 

  • 2.इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) –

  • इल्तुतमिश ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था। कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के समय वह बदायूँ का सूबेदार था।
  • इल्तुतमिश ने ही सबसे पहले लाहौर के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाया।
  • इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन का दामाद था वह ही उत्तराधिकारी बना व यह इल्बारी तुर्क था। इल्तुतमिश ने चालीस वफादार गुलामों का समूह तैयार किया जिसे बरनी ने चालीसा या तुर्कान-ए-चहलगानी कहा।
  • इल्तुतमिश ने मुद्रा व्यवस्था में भी सुधार किया उसने शुद्ध अरबी के सिक्के चलाये तथा चांदी का टंका व ताँबे का जीतल भी प्रारम्भ्र किया। व सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवाने की परम्परा शुरू की।
  • 1215 ई. में तराइन के तीसरे युद्ध में इल्तुतमिश ने ताजुद्दीन यल्दौज को पराजित कर बन्दी बना लिया व बदायूँ के दुर्ग में उसका वध करवा दिया।
  • इल्तुतमिश ने नागौर में अतारकिन का दरवाजे का निर्माण करवाया था इल्तुतमिश का वजीर मुहम्मद जुनैदी था व दिल्ली में इल्तुतमिश ने मदरसा-ए-मुइज्जी का निर्माण करवाया।
  • उसने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाई, 1221 ई. मे दिल्ली सल्तनत को चंगेज खां के आक्रमण का खतरा उत्पन्न हुआ जब वह ख्वारिज्म के अंतिम शाह जलालुद्दीन मांगबरनी का पीछा करते हुए सिन्ध तक पहुंच गये। जलालुद्दीन ने इल्तुतमिश से शरण मांगी जिसे इल्तुतमिश ने माना कर दिया व नवोदित तुर्की साम्राज्य को बचा लिया।
  • उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र चयन प्रथा का त्याग कर अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया परन्तु इल्तुतमिश मृत्यु के बाद तुर्की अमीरों ने उसके पुत्र रुकनुद्दीन को गद्दी पर बैठाया उस  समय उसकी मां शाहतुर्कान के हाथ में सत्ता थी जो अतिमहत्वाकांक्षी महिला थी। जिसे जनसमूह द्वारा हटाकर रजिया को सुल्तान बनाया।

 

  • रजिया (1236-1240 ई.) –

  • रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक थी। उसे लोगों का समर्थन प्राप्त था, परन्तु बदायूँ, मुल्तान, हाँसी व लाहौर के गवर्नर उसके विरोधी थे
  • रजिया के काल से ही राजतन्त्र व तुर्क सरदारों के बीच संघर्ष प्रारम्भ हुआ था।
  • रजिया ने पर्दा प्रथा त्याग कर पुरुषों के समान कुबा (कोट) व कुलाह टोपी पहनकर दरबार में आती थी।
  • रजिया ने अल्तूनिया से विवाह कर दिल्ली की ओर आये किन्तु वह बहरामशाह द्वारा पराजित हुई । व 13 अक्टूबर 1240 ई० में उसकी हत्या कर दी गई।
  • एलफिस्टन ने रजिया के बारे में कहा है कि यदि रजिया स्त्री न होती तो उसका नाम भारत के महान मुस्लिम शासको में होता।

 

  • मुइजुद्दीन बहरामशाह (1240-1242 ई.)-

  • बहरामशाह ने नायब-ए-मुमलकत नामक पद का सृजन किया।
  • सर्वप्रथम यह पद (नायब) रजिया के विरुद्ध षड्यन्त्र करने वाले एक नेता एतगीन को मिला।

 

  • अलाउद्दीन मसूदशाह (1242-1246 ई.) –

  • यह रूकनुद्दीन फिरोज शाह का पुत्र था। इसने सारी शक्ति चालीसा को सौंप कर सिर्फ नाम मात्र का सुल्तान रहा। इसने बलबन को अमीर-ए-हाजिब नियुक्त किया था।

 

  • नासिरुद्दीन महमूद (1246-1265ई.) –

  • यह इल्तुतमिश का पुत्र था। अलाउद्दीन मसूदशाह को गद्दी से हटाकर बलबन ने नासिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनाया।
  • बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरूद्दीन महमूद के साथ किया था।
  • मिनहाजुद्दीन सिराज ने अपनी तबकात-ए-नासिरी नासिरूद्दीन महमूद को समर्पित की। उनके शासनकाल में वह मुख्य काजी के पद पर था जो बाद मे एक षड्‌यन्त्र द्वारा हराया गया।
  • 1265 ई. में नासिरुदीन महमूद की जब मृत्यु हो गई तब बलबन ने स्वयं को ही सुल्तान घोषित किया ।

  • बलबन (1265-1287 ई.)

  • बलबन सुल्तान बनने से पहले 20 वर्ष तक नासिरूदीन महमूद के साथ वजीर के रूप में कार्य करते हुए सुल्तान की शक्तियों का प्रयोग किया।
  • उसने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए। रक्त व लौह की नीति को अपनाया।
  • बलबन ने जागीरों से आय एकत्र करने का अधिकार सरकारी कर्मचारियों को दि‌या व जागीरदारों को नकद धन देने का आदेश व सैनिकों को वेतन के स्थान पर पहले की तरह भूमि प्राप्त होती रही।
  • बलबन के काल में जो सैनिक सेवा के योग्य नहीं रह गये थे उन्हें पेंशन देकर सेवा से मुक्त किया था।
  • बलबन के काल में गुप्तचर विभाग भी था जो सामन्तों की गतिविधियों पर निगरानी रखने का कार्य करते थे। यह गुप्तचर विभाग ही शासन के सफल संचालन के लिए महत्वपूर्ण था।
  • बलबन ने गैर इस्लामी प्रथाओं की शुरुआत की जिनमें सिजदा व पायबोस जैसी ईरानी प्रथाएँ व नौरोज का त्यौहार बनाना प्रारम्भ किया ।
  • बलबन ने फारसी के महान् कवि शेख सादी को भी दरबार में आने का आमंत्रण दिया था परन्तु वृद्धावस्था के कारण वह नहीं आ सके।
  • 1279 ई. में बंगाल के सूबेदार तुगरिल खां ने विद्रोह किया, यह प्रथम गुलाम सरदार का विद्रोह था। तुगरिल ने मुगीसुद्दीन की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम के सिक्के चलवाए व खुतबा पढ़वाया। बलबन ने विद्रोह को दबाकर उन्हें मृत्यु दण्ड दिया।
  • बलबन ने चालीसा दल का दमन किया व बलबन के शासन की सफलता का मुख्य श्रेय भी उसके गुप्तचर विभाग को दि‌या जाता है।
  • बलबन ने सिजदा व पाबोस की प्रथा को फिर से शुरू किया जो मूलतः ईरानी मानी जाती थी व बलबन ने नौरोज प्रथा भी प्रारम्भ की।
  • बलबन की मृत्यु के बाद उसका पौत्र कैकुबाद उत्तराधिकारी बना परन्तु वह अत्यन्त विलासी व आलसी व्यक्ति था। उसी दौरान अमीरों के एक गुट के नेता जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने कैकुबाद की हत्या कर गद्दी पर अधिकार कर लिया ।

 

 

  • खिलजी वंश (1290 से 1320 ई.)

  • जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-1296 ई.)

  • जलालुद्दीन ने सिंहासन पर अधिकार शक्ति या बल द्वारा किया था।
  • बलबन के पौत्र कैकुबाद ने जलालुद्दीन को शाइस्ता खां की उपाधि दी व उन्हे आरिज-ए-मुमालिक (सेना मंत्री का पद) का पद दिया।
  • जलालुद्दीन ने अपना राज्यभिषेक किलूखरी के महल में करवाया। जिसका निर्माण कैकुबाद द्वारा कराया गया ।
  • जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने ईरानी फकीर सीदी मौला को हाथी के पैरों तले कुचला दिया था।
  • विद्रोहियों के प्रति जलालुद्दीन ने दुर्बल नीति अपनाई और कहा कि मुसलमानों का रक्त बहाने की उसकी आद आदत नहीं है।
  • जलालुद्दीन ने मंगोलों के प्रति उदार नीति अपनाई व अपनी एक पुत्री का विवाह चंगेज खाँ के वंशज उलुग खाँ के साथ कर दिया तथा उलुग खाँ व उसके अनुयायियों ने इस्लाम ग्रहण किया तथा वे दिल्ली ही बस गये।
  • दक्षिण भारत में प्रथम मुस्लिम आक्रमण जलालुद्दीन के समय 1294 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में देवगिरि के शासक रामचन्द्र देव पर किया।
  • 1290 ई. में जलालुद्दीन ने रणथम्भौर की धेरे बन्दी को यह कहकर हटा दिया कि मुसलमानों के सिर के बाल की कीमत ऐसे 100 किलों से ज्यादा है।
  • 1296 ई. में जुलालुद्दीन अपने भतीजे अलाउद्दीन से मिलने कड़ा गये थे वहाँ उनके भतीजे ने छल पूर्वक ज‌लालुद्दीन का वध कर दिया।

 

  • अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316ई.)

  • अलाउद्दीन खिलजी – जलालुद्दीन के भतीजे थे। अलाउद्दीन का प्रारम्भिक नाम अली गुरशास्प था।
  • अलाउद्दीन कड़ा का सुबेदार था उसने स्वयं को कड़ा में ही सुल्तान घोषित किया । उन्होंने अपना राज्यभिषेक दिल्ली में बलबन के लाल-महल में करवाया।
  • अलाउद्दीन के काल में हुए मंगोलों के आक्रमणों का उद्देश्य भारत विद्यय व प्रतिशोध की भावना थी।
  • मंगोलों के आक्रमण से सुरक्षा के लिए 1304 ई. में सीरी को अपनी राजधानी बनाया व उसके बाद किलेबंदी की गई।
  • 1301 ई. में रणथम्भौर राज्य को अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत में मिलाया लेकिन राजपूतना के अन्य प्रदेशों के लिए कोई प्रयास नहीं किया ।
  • 1303 में अलाउद्दीन ने चितौड़ विजय किया इसके पहले किसी सुल्तान ने इसे नहीं जीता व अपने पुत्र के नाम पर चितौड़ को खिज्राबाद कहा।
  • अलाउद्दीन के काल में पाण्ड्‌य राजाओं ने न तो अधिपत्य स्वीकार किया व न ही कर दिया ।
  • अलाउद्दीन की प्रथम योजना एक नवीन धर्म की स्थापना करना व दूसरी योजना सिकन्दर के समान अपनी विजय पताका दूर दूर तक लहराने की थी ।
  • अलाउद्दीन के समय हुए विद्रोह जैसे मलिक उमर, मंगू खाना, अकत खां, हाजी मौला व नवीन मुसलमानों द्वारा विद्रोह हुए।
  • अकत खां अलाउद्दीन का भतीजा था व हाजी मौला कोतवाल फखरुद्दीन का सेवक था।
  • अलाउद्दीन के समय में पहला विद्रोह मंगोलों का था जो जलालुद्दीन खिलजी के समय इस्लाम में परिवर्तित होकर नवीन मुसलमान कहलाये । इन नवीन मुसलमानों ने 1299 ई. में गुजरात से नुसरत खां के नेतृत्व में लौट रही सेना में अचानक विद्रोह कर दिया व अलाउद्दीन के एक भतीजे व नुसरत खां के भाई को मार दिया। नुसरत खां ने विद्रोह को बड़ी क्रूरता से दबाया ।
  • जियाउद्दीन बरनी व इसामी ने कहा है कि अलाउद्दीन ने एक ही दिन में बड़ी संख्या में मुसलमानों का कत्ल करवाया था।

 

  • अलाउद्दीन का राजनीतिक आदर्श :-

  • अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था। जिसने धर्म को राजनीति से पृथक किया। तथा यामिन-उल-खलीफा व नासिरी-अमीर-उल- मुमनिन की उपाधि ग्रहण की। लेकिन प्रशासन में खलीफा के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया ।
  • अमीर खुसरो ने खजाइनुल कुतूह में अलाउद्दीन को विश्व का सुल्तान /  पृथ्वी के शासकों का सुल्तान /  जनता का चरवाहा जैसी उपधियां प्रदान कि
  • अलाउद्दीन ने स्वयं को जिल्ले इलाही घोषित किया ।

 

  • अलाउद्दीन का प्रशासनिक सुधार –

  • अलाउद्दीन ने व्यापारियों पर नियत्रंण व बाजार सुधार के लिए दीवाने-ए-रियासत नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की।
  • अलाउद्दीन ने गुप्तचर प्रणाली को पूर्ण रूप से संगठित किया व वरीद-ए-मुमालिक नामक अधिकारी की नियुक्ती की।
  • अलाउद्दीन ने सूचनादाता नियुक्त किये जो मुनहियन या मुन्ही कहलाये ।
  • जनसाधारण का रक्षक व बाजारों पर नियंत्रण के लिए मुहतसिब नामक अधिकारी की नियुक्ति की जाती थी।
  • अलाउद्दीन ने काजी मुगीसुद्दीन से बोला कि “मुझे कोई ज्ञान नहीं है और न हीं मैंने कोई पुस्तक पढ़ी है। फिर भी मैं जन्म से मुसलमान हूँ।

 

  • अलाउद्दीन का सैनिक सुधार –

  • किलों या दुर्गों की देखरेख के लिए अनुभवी सेनानायक नियुक्त किये जाते थे जिन्हे कोतवाल कहा जाता था ।
  • सेना का केन्द्रीकरण करके सैनिको को नकद वेतन देना प्रारम्भ किया।
  • अलाउद्दीन ने निरीक्षण करके नियुक्त किये गये सैनिकों को मुर्रतब कहा। सेना की इकाइयों का विभाजन हजार, सौ व दस पर आधारित था। जो खानों, मालिकों, अमीरों, सिपह सलारों के अन्तर्गत थे। दस हजार की सैनिक टुकड़ी को तुमन कहा जाता था।

 

  • अलाउद्दीन का आर्थिक सुधार

  • अलाउदीन खिलजी के बाजार नियंत्रण के बारे में विस्तार से जानकारी हमें तारीख-ए-फिरोजशाही, अमीर खुसरो के खजाइनुलफुतूह, इसामी की कुतूहसलातीन व इब्नबतूता के रेहला नामक ग्रंथ से जानकारी प्राप्त होती है।
  • तुर्की सुल्तानों में अलाउद्दीन ही पहला शासक था जिसने वितीय व राजस्व सुधारों में रुचि ली।
  • अलाउद्दीन ने सुल्तान बनने के बाद अमीरों का दमन किया उसने आदेश दिया की प्रजा के पास जो भू-सम्पत्ति, गाँव या अन्य भूमि या इनाम के रूप में है उसे वापस ले ली जाय व खालसा भूमि में परिवर्तित कर दी जाये।
  • अलाउद्दीन ने मूल्यों का निर्धारण मनमाने ढंग से नहीं किया वरन् उत्पादन लागत । को ध्यान में रखकर किया।
  • अलाउद्दीन के काल में अन्न भण्डारों का निर्माण भी किया गया जिनका उपयोग विशेष परस्थितियों या आपातकालीन स्थिति में किया जाता है।
  • जाब्ता के अन्तर्गत भूमि की पैमाइश के आधार पर लगान का निर्धारण करना था।
  • सराय-ए-अदल (न्याय का स्थान) – इसके अन्तर्गत निर्मित वस्तुओं बाहर के प्रदेशों, अधीनस्थ राज्यों व विदेशों से आने वाले माल का बाजार था। इसे सरकारी धन से सहायता प्राप्त बाजार बोला जाता था।

 

  • अलाउद्दीन की राजस्च व्यवस्था –

  • अलाउद्दीन के समय में उपज का आधा हिस्सा (50%) कर के रूप में लिया जाता था व मुसलमानों से उपज का एक चौथाई हिस्सा भूमिकर के रूप में लिया जाता था।
  • अलाउद्दीन भारत का पहला मुस्लिम शासक था जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया।
  • राजस्व नकद व अनाज दोनों रूपों में लिया जाता था। गैर मुसलमानों से लिया जाने वाला कर जजिया व मुसलगानों से लिया जाने वाला  धार्मिक कर जकात कहलाता था।
  • अलाउद्दीन ने राजख व्यवस्था व भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए दीवान-ए- मुस्तखराज नामक विभाग की स्थापना की।
  • सरकारी कर्मचारियों द्वारा लगान वसूल करने की प्रथा सबसे पहले अलाउद्दीन खिलजी ने ही प्रारम्भ की।
  • मसाहत अलाउद्दीन के काल मापन की एक पद्धति थी जिसके अन्तर्गत पचास प्रतिशत की दर से लगान वसुल किया जाता था।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने अमीर खुसरो व अमीरहसन देहलवी को संरक्षण प्रदान किया था।

 

  • मुबारक शाह खिलजी (1316-1320 ई.)

  • यह सल्तनत का प्रथम शासक था जिसने स्वयं को खलीफा घोषित किया व इन्होंने अल इमाम, उल इमाम, खिलाफत उल-लह की उपाधियां ग्रहण की।
  • मुबारक शाह खिलजी ने अपने पिता के कठोर आदेशों को रद्द किया।
  • बरनी के मतानुसार मुबारक शाह खिलजी कभी-कभी दरबार में शराब पीकर नग्न अवस्था में आ जाता था।
  • मुबारकशाह ने निजामुद्दीन औलिया का अभिवादन स्वीकार नही किया था। व मुबारक शाह ने देवगिरि को जीतकर उसे दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था व देवगिरि के राजा हरपाल की हत्या कर दी थी।

 

  • तुगलक वंश (1320 -1414 ई.)

  • तुगलक वंश ने दिल्ली सल्तनत में सबसे लम्बे समय काल तक शासन किया ।

 

  • गयासुदीन तुगलक (1320-1325 ई.)

  • गयासुद्दीन तुगलक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी के शासन काल के दौरान उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त का शक्तिशाली गवर्नर नियुक्त किया गया था।
  • गयासुद्दीन के दो मुख्य उद्देश्य थे वह किसानों की स्थिति में सुधार करना चाहता था। व कृषि योग्य भूमि में वृद्धि करना चाहता था।
  • सिंचाई हेतु नहर का निर्माण करने वाला पहला सुल्तान था।
  • गयासुद्दीन तुगलक ने डाक व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, सिंचाई व कृषि व्यवस्था को महत्व दिया।
  • गयासुद्दीन तुगलक ने लगभग संपूर्ण दक्षिण भारत को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था। जिससे क्षेत्रीय विस्तार अधिक हो गया जिस कारण असंख्य विद्रोह हुए ।
  • गयासुद्दीन ले ने बंगाल, उत्कल, उडीसा, वारंगल को अपने अधीन ले लिया था।
  • निजामुद्दीन औलिया से गयासुद्दीन के मनमुटाव होने के कारण निजामुद्दीन औलिया ने कहा कि “दिल्ली अभी बहुत दूर है।”
  • अफगानपुर गाँव में गयासुद्दीन के स्वागत के लिए निर्मित लकड़ी का महल गिरने से 1325 में गयासुदीन की मृत्यु हो गई थी।

 

  • मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351ई.)

  • मुहम्मद बिन तुगलक सबसे अधिक विलक्षण बुद्धि वाला शासक था।
  • वह अरबी व फारसी का महान विद्वान था । तथा खगोलशास्त्र, गणित, दर्शन, चिकित्सा आदि में परिपूर्ण था।
  • मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल (1333) में अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता भारत आये जिन्हे दिल्ली का काजी नियुक्त किया।
  • 1342 सुल्तान के राजदूत की हैसियत से चीनी शासक तोगन तिमूर के दरबार में गये । मुहम्मद बिन तुगलक की समय की घटनाओं को उसने रेहला पुस्तक में लिखा।

 

  • मुहम्मद बिन तुगलक का राजनीतिक व प्रशासनिक सुधार

  • कुछ विद्वानों के मतानुसार ट्रांसअक्सियाना के मंगोल शासक तरमाशरीन के आक्रमण को रोकने में सुल्तान असफल रहा जिस कारण उसे धन दिया व मंगोल अफसरों को नौकरियों दी।
  • मुहम्मद बिन तुगलक ने सोने का नया सिक्का चलाया जिसे दीनार कहा गया जिसका तौल 200 ग्रेन का था व एक 140 ग्रेन का अदली नामक चांदी का सिक्का चलाया ।
  • मुहम्मद बिन तुगलक के समय के विद्रोह में अवध के सूबेदार आइन-उल-मुल्क मुल्तानी का विद्रोह सबसे भयंकर था। आइन-उल-मुल्क ने इंशा-ए-महरू नामक पुस्तक भी लिखी।
  • मुहम्मद बिन तुगलक के समय ही दिल्ली सल्तनत का सबसे ज्यादा विस्तार हुआ व संपूर्ण दक्षिण भारत को जीता।
  • मुहम्मद बिन तुगलक के समय ही हरिहर व बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी।
  • मुहम्मद बिन तुगलक ने किसानों की सहायता के लिए दीवान-ए-कोही की स्थापना की व तकावी ऋण प्रदान किया।

 

  • मुहम्मद बिन तुगलक के काल में सबसे अधिक 34 विद्रोह हुये जिनमें 27 विद्रोह दक्षिण में हुये। फिरोज तुगलक (1351 से 1388 ई.):- मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फिरोज शाह तुगलक दिल्ली की गद्दी पर बैठा। परन्तु उसमे सफल शासक के गुण व साहस दोनों का अभाव था। कमजोर व्यक्तित्व के कारण दिल्ली सल्तनत का धीरे-धीरे पतन होता गया।
  • मुहम्मद बिन तुगलक के काल में जो प्रदेश दिल्ली सल्तनत से पृथक हो गये थे उन्हें वापस लेने का प्रयास नहीं किया।
  • फिरोज तुगलक के अकुशल व्यवहार व कमजोर विदेश नीति के के कारण सल्तनत का तेजी से पतन हुआ। फिरोज तुगलक ने सभी करों को समाप्त कर दिया केवल चार करों को ही चालु रखा जिनमे – खराज , जकात, जजिया व ख़ुम्स थे।
  • फिरोजपुर तुगलक ने नहर निर्माण के पश्चात् ‘शुर्ष’ नामक एक सिंचाई कर लगाया जो भूमि की उपज का 10% होता था।
  • फिरोज तुगलक द्वारा स्थापित नगरों में हिसार फिरोजा, जौनपुर फतेहबाद, फिरोजपुर आदि नगर थे।
  • उलेमाओं की प्रशंसा प्राप्त करने के लिये फिरोज तुगलक ने उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर को हानि पहुँचाई व कांगड़ा के ज्वालामुखी मंदिर से संस्कृत के पुराने दस्तावेज दिल्ली ले गया।
  • फिरोज ने गुलामों के लिये पृथक विभाग की स्थापना की जिसका नाम दीवान-ए-बन्दगान था।
  • फिरोज ने अपने को खलीफा का नाइब भी पुकारा था उसने अनाथ व विधवा मुस्लिम स्त्रियों की सहायता हेतु दीवाने खैरात विभाग की स्थापना की।
  • फिरोज के बाद उसका पौत्र तुगलक शाह, अबूबक्र, मुहमदशाह व अलाउद्दीन सिकन्दरशाह गद्दी पर बैठे ।

 

  • सैय्यद वंश (1414-1451 ई.)

  • तुगलक वंश के बाद खिज्र खां ने सैय्यद वंश की स्थापना की जो दिल्ली सल्तनत का चौथे नंबर का वंश था।
  • खिज्र खां ने दिल्ली की सता दौलत खान लोदी से छीनकर सैयद वंश की स्थापना की। इस वंश के चार शासक निम्न प्रकार है।

 

  • 1.खिज्र खां 1414-1421ई.) –

  • खिज्र खाँ ने सुल्तान की उपाधि धारण न करके रैयत-ए-आला की उपाधि ली।
  • खिज्र खाँ ने स्वतंत्र शासक के रूप में शासन न करके तैमूर के पुत्र शाहरुख के सहायक के रूप शासन करने का दिखावा किया।

 

  • 2.मुबारक शाह (1421-1434ई.)

  • मुबारक शाह ने याहिया-बिन-अहमद सरहिंद को संरक्षण दिया जिन्होंने तारीख-ए-मुबारकशाही ग्रंथ को फारसी भाषा में लिखा। यह ग्रंथ सैयद वंश का एक मात्र समकालीन ग्रंथ है जो सैय्यद वंश के बारे में जानकारी देता है।

 

  • 3.मुहम्मदशाह (1434-1445ई.) –

  • मुहम्मदशाह ने बहलोल लोदी को पुत्र कहकर पुकारा व उन्हें खान-ए-जहाँ की उपाधि से सम्मानित किया ।

 

  • 4.अलाउद्दीन आलमशाह (1445-1451 ई.) –

  • यह सैट्यद वंश का अन्तिम शासक था।
  • 1451 ई. में आलमशाह ने बहलोल लोदी के पक्ष में सता त्याग कर बदायूँ की जागीर से सन्तुष्ट रहा।

 

  • लोदी वंश (1451-1526 ई.)

  • लोदी वंश दिल्ली सल्तनत का आखिरी वंश था जिसकी स्थापना बहलोल लोदी ने की।

 

  • बहलोल लोदी (1451-1489 ई.) –

  • सैय्यद वंश के आखिरी शासक को हटाकर बहलोल लोदी ने लोदी वंश की स्थापना की।
  • बहलोल ने जौनपुर को जीतकर 1484 ई. में अपने साम्राज्य में मिला लिया था। बहलोल अप‌ने अमीरों को मसनद-ए-अली कहकर पुकारता था
  • अब्दुल्ला खां की पुस्तक तारीखे दाउदी में लोदी वंश व अफगानों के राजत्व सिद्धान्त की जानकारी मिलती है।

 

  • सिकंदर लोदी (1489-1517) –

  • सिकंदर लोदी लोदी वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक था।
  • 1504 ई. में यमुना नदी के किनारे आगरा नगर की स्थापना की।
  • 1506 ई. मे आगरा को अपनी राजधानी बनाया व सिकन्दर लोदी ने बादलगढ, के किले का निर्माण करवाया।
  • सिकन्दर लोदी ने गुलरुखी के नाम से फारसी में कविता लिखी, सिकन्दर लोदी ने भूमि मापने के लिए 30 इंच की गजे सिकन्दरी शुरू की।
  • सिकन्दर ने एक आयुर्वेदिक ग्रन्य का फारसी में अनुवाद करवाया व उसका नाम फरहंगे सिकन्दरी रखा।
  • सिकन्दर लोदी ने ग्वालियर के किले पर 5 बार आक्रमण किया परन्तु उसे सफलता की प्राप्ति नहीं हुई ।

 

  • इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई.)

  • इब्राहीम लोदी सिकन्दर का ज्येष्ठ पुत्र था
  • इब्राहीम लोदी 1517-18 ई. से घाटोली के युद्ध में मेवाड के राणा सांगा से पराजित हुआ
  • इब्राहीम लोदी पानीपत के प्रथम युद्ध में (21 अप्रैल 1526) बाबर से हारकर मारा गया।
  • इ‌ब्राहीम लोदी के साथ ही दिल्ली सल्तनत का पतन हो गया।

दिल्ली सल्तनत के सामान्य ज्ञान के प्रश्न

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