गुर्जर प्रतिहार कौन है ?
- प्रतिहार शब्द का अर्थ होता है – द्वारपाल
- अग्निकुल के राजकुलों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहार वंश था जो गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर प्रतिहार वंश कहलाया ।
- बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय के के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप में सर्वप्रथम हुआ। मिहिर भोज प्रतिहार वंश का सबसे प्रतापी सम्राट व साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था।
- इतिहासकार रमेश चन्द्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर-प्रतिहारों ने छठी सदी से बारहवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया।
- गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के विस्तार में पाल व राष्ट्रकूट जैसी समय -कालीन शक्तियों के साथ संघर्ष हुये।
- मिहिरभोज के ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट को राम का प्रतिहार एवं विशुद्ध क्षत्रिय कहा है।
गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक
गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक व उनका समयकाल
क्र.स. | शासक | शासन काल |
1. | नागभट्ट प्रथम | 730-760 ई. |
2. | कुकुस्थ व देवराज | 760-783 ई. |
3. | वत्सराज | 783-795 ई. |
4. | नागभट्ट द्वितीय | 795-833 ई. |
5. | रामभद्र | 833-836 ई. |
6. | मिहिरभोज प्रथम | 836-885 ई. |
7. | महेंद्रपाल प्रथम | 885-910 ई. |
8. | भोज द्वितीय | 910-914 ई. |
9. | महिपाल प्रथम | 914-944 ई. |
10. | महेंद्रपाल द्वितीय | 944-948 ई. |
11. | देवपाल | 948-954 ई. |
12. | विनायकपाल द्वितीय | 954-955 ई. |
13. | महिपाल द्वितीय | 955-956 ई. |
14. | विजयपाल द्वितीय | 956-960 ई. |
15. | राज्यपाल | 960-1018 ई. |
16. | त्रिलोचनपाल | 1018-1027 ई. |
17. | यशपाल | 1027-1036 ई. |
नागभट्ट प्रथम (730-760ई.)
- नागभट्ट प्रथम बड़ा प्रतापी शासक था जिसका दरबार नागावलोक का दरबार कहलाता था, जिसमें उस समय के सभी राजपूत वंश जैसे गुहिल, चौहान, परमार, राठौड, चंदेल, कलचुरि व चालुक्य आदि थे।
- नागभट्ट प्रथम ने अरबों पर विजय प्राप्त की जिसका वर्णन ग्वालियर अभिलेख से होता है जिसमें लिखा है कि नागभट्ट ने म्लेच्छ नरेश की सेना को पराजित किया। ये म्लेच्छ अरब के थे जो सिन्ध पर अधिकार करने के पश्चात् भारत के अन्य भागों पर भी अधिकार करना चाहते थे। परन्तु वह सफल नही हुये।
- नागभट्ट ने राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग के विरूद्ध भी युद्ध किया व पराजित हुआ। नागभट्ट ने अपने उत्तराधिकारियों के लिए गुजरात मालवा व राजपूताना के कुछ हिस्से दूरगामी साम्राज्य के अन्तर्गत छोड़े।
- नागभट्ट प्रथम के उतराधिकारी के रूप में उनके भतीजे ककुस्थ व उनके बाद देवराज सिंहासन पर बैठे।
वत्सराज (783-795 ई.)
- देवराज की मृत्यु के पश्चात् पुत्र वत्सराज सिंहासनासीन हुआ, यह अपने समय का एक शक्तिशाली राजा सिद्ध हुआ। व अपने अनेक युद्धों के परिणाम स्वरूप इसने अपने वंश को अभूतपूर्व गौरव प्रदान किया।
- भारतीय इतिहास में कन्नौज को प्राप्त करने के लिए पूर्व में बंगाल से पाल, दक्षिण से मान्यखेत के राष्ट्रकूट एवं उत्तर-पश्चिम से उज्जैन के प्रतिहारों के मध्य लगभग डेढ़ सदी तक संघर्ष चला।
- त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरुआत गुर्जर प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की थी, वत्सराज ने की पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया व कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया।
- इस कारण वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
- ग्वालियर अभिलेख के अनुसार वत्सराज ने भांडी जाति को पराजित कर कन्नौज व मध्य राजपुत्र तक के क्षेत्रो पर कब्जा कर लिया, वह दोआब क्षेत्र में धर्मपाल को हराने में सफल रहा व गंगा-यमुना घाटी सहित उत्तरी भारत को जीत लिया।
- वत्सराज्य का उत्तराधिकारी नागभट्ट द्वितीय था।
नागभट्ट द्वितीय (795- 833ई.)
- ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने आंध्र, सिंधु, विदर्भ व कलिंग पर विजय प्राप्त की व अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त किया।
- नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज के आयुध वंश व बंगाल के पाल वंश को पराजित करके उत्तरी भारतवर्ष में अपनी धाक जमा ली।
- बकुला अभिलेख के अनुसार परमभट्टारक महाराजधिराज परमेश्वर की उपाधि नागभट्ट द्वितीय को दी गई ।
- नागभट्ट का नियंत्रण मालवा, राजपूताना व गुजरात के कुछ हिस्सों तक फैल गया।
- नागभट्ट द्वितीय को प्रारम्भ में राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय ने उत्तरी भारत पर आक्रमण करके व नागभटट द्वितीय को पराजित किया।
- कान्यकुब्ज का राजा चक्रायुद्ध पाल नरेश धर्मपाल के संरक्षण में राज्य कर रहा था। अतः उसकी पराजय की सूचना पाते ही धर्मपाल ने नागभट्ट द्वितीय के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। परन्तु इस युद्ध में धर्मपाल नागभट्ट से पराजित हुआ ।
- नागभट्ट द्वितीय के पुत्र व उत्तराधिकारी रामभद्र अक्षम साबित हुआ व पाल शासक देवपाल के हाथों अपने कुछ क्षेत्र भी खो दिए।
रामभद्र (833-836ई.)
- यह अत्यन्त निर्बल शासक सिद्ध हुआ
- इसका शासन काल प्रतिहार वंश की अवनति का काल था।
मिहिरभोज (836-885 ई.)
- मिहिरभोज इस गुर्जर प्रतिहार वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था व रामभद्र का पुत्र था। कश्मीरी कवि कल्हण की राजतरंगिणी में मिहिरभोज की उपलब्धियों पर प्रकाश पड़ता है। व अरब यात्री सुलेमान ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- ग्वालियर अभिलेख में इनकी उपाधि आदिवराह मिलती है। व दौलतपुर अभिलेख में इन्हें प्रभास करते है।
- मिहिरभोज को प्रतिहार वंश का ही नहीं वरन प्राचीन भारतवर्ष का एक महान शासक माना जाता है।
- मिहिरभोज ने अपने शौर्य से न केवल अपने पैतृक राज्य की रक्षा की वरन् उसका और अधिक विस्तार किया। उसका राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बुन्देलखण्ड तक व पूर्व में उत्तरप्रदेश से लेकर पश्चिम में गुजरात व काठियावाड तक विस्तृत था। व इस राज्य में राजपूताना का अधिकांश भाग भी सम्मिलित था।
- अरब यात्री अल-मसुदी ने उन्हें “राजा बौरा “ की उपाधि दी।
महेन्द्रपाल प्रथम (885-910ई.)
- मिहिरभोज के पश्चात् उसका पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम प्रतिहार वंश का राजा हुआ। इनका राजकवि राजशेखर इन्हे रघुकुल चूडामणि, निर्भयराज व निर्भयनरेन्द्र आदि उपाधियों से सम्बोधित करता है। व इन्होंने परमभट्टारक, परमभागवत, महाराजाधिराज, परमेश्वर आदि विशाल उपाधियों धारण की।
- महेन्द्रपाल ने न केवल अपने पैतृक साम्राज्य की रक्षा की वरन उसने बंगाल व बिहार के अधिकांश प्रदेशों को जीतकर पूर्व में अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसका साम्राज्य उत्तर मे हिमालय से लेकर दक्षिण में बुन्देलखण्ड तक व पश्चिम में हरियाणा से लेकर कम से कम कुछ समय तक बंगाल व बिहार तक था।
- महेन्द्रपाल स्वयं विद्वान् तो था उसके साथ ही विद्वानों का आश्रय दाता भी था। संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् राजशेखर उसका राजकवि था । राजशेखर ने जिन ग्रंथों की रचना की उनमें कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, विद्वसाल भंजिका, बालभारत, बालरामायण, हरविलास व भुवनकोश विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
- महेन्द्रपाल के दो पुत्र थे । 1.भोज द्वितीय 2.महीपाल प्रथम
महीपाल प्रथम (914 -944 ई.)
- इनके शासन काल में प्रतिहार टूटने लगे।
- राष्ट्रकूट राजा इंद तृतीय ने उसे हराया व कन्नौज को नष्ट कर दिया।
- इसके समय अरब के अल-मसुदी ने भारत की यात्रा की, अल-मसुदी ने अपने वृतांत में लिखा है कि प्रतिहार साम्राज्य की समुद्र तक कोई पहुँच नहीं थी, जिसके कारण राष्ट्रकूटों ने गुजरात पर प्रभुत्व हासिल कर लिया।
- महीपाल व राज्यपाल के बीच और भी शासक आये परन्तु पह इतने शक्तिशाली नहीं थे। अतः उनके बारे में इतना विस्तार से नहीं बताया गया।
राज्यपाल (960-1018 ई.)
- राज्यपाल के समय में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया तो राज्यपाल को युद्ध छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- राष्ट्रकूट के कृष्ण तृतीय ने प्रतिहार राजा को हराया।
- खजुराहों के चंदेलवंशीय राजा विद्याधर ने राज्यपाल पर आक्रमण कर उसको मारा दिया।
त्रिलोचनपाल (1018-1027 ई.)
- अलबरूनी के वर्णन से पता चलता है कि इस समय कन्नौज प्रतिहारों की राजधानी नहीं था इनकी राजधानी बारी में थी।
- इसके समय महमूद गजनवी ने फिर भारत पर आक्रमण किया।
यशपाल ( 1027-1036 ई.)
- यशपाल प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था।
- 1093 ई. के आस पास चन्द्रदेव गहड़वाल ने प्रतिहारों से कन्नौज छीनकर इनके अस्तित्व को समाप्त कर दिया।
- राष्ट्रकूटों के खिलाफ जीत का जश्न मनाने के लिए युवराज के दरबार में राजशेखर के नाटक विद्वसाल भंजिका का मंचन किया गया था।
- उत्तर भारत को राजनैतिक इतिहास में प्रतिहार शासक महेंद्रपाल प्रथम को ही हिन्दू भारत का अन्तिम महान हिन्दू सम्राट स्वीकार करते हैं।
प्रतिहारों की प्रशासन व्यवस्था
- गुर्जर प्रतिहार राज्य केन्द्रीय राज सत्तात्मक राजतन्त्र था व राजा का पद वंशानुगत होता था।
- गुर्जर प्रतिहार इतिहास में राजा राज्य में सर्वोच्च पद पर आसीन होता था व उनके पास अपार शक्तियां होती थी।
- गुर्जर प्रतिहार काल में राजाओं ने परमेश्वर, महाराजाधिराज व परमभट्टारक जैसी उपाधियां प्राप्त की।
- सामंत अपने राजवंशों को सैन्य सहायता देते थे। उनके लिए जहाज भी चलाते व प्रशासन के मामलों में उच्च अधिकारियों को सलाह भी देते।
गुर्जर प्रतिहार वंश के अधिकारी
क्र.स | पद | कार्य |
1. | कोटापाल | किले का सर्वोच्च अधिकारी |
2. | दूतका | राजा के आदेश व अनुदान को एक स्थान से दुसरे स्थान पर भेजना |
3. | दंडपाशिका | पुलिस का सर्वोच्च अधिकारी |
4. | दंडनायक | सैन्य व न्याय विभाग की देखभाल करने वाले |
5. | बालाधिकृत | सेना के प्रमुख |
6. | विनाहरिना | कानून से सम्बंधित |
- संपूर्ण राज्य कई भुक्तियों में विभाजित थे व प्रत्येक भुक्ति में अनेक मण्डल होते थे। व उन मण्डलों में कई शहर व गाँव आते थे।
- इस काल में सामंतो को महासामंतपति या महाप्रतिहार कहा जाता था।
- गाँव के बुजुर्गों को महत्तर कहा जाता था व ग्रामपति राज्य का एक अधिकारी होता था जो गाँव के प्रशासन को देखते था। व शहर का प्रशासन परिषदों द्वारा जिन्हे प्रतिहारों के शिलालेखों में गोष्ठी, पंचकुला, सांवियक कहा गया।
गुर्जर प्रतिहार काल में सामाजिक परिस्थितियां
- गुर्जर प्रतिहार काल में जाति व्यवस्थ्ण प्रचलन में थी, व वैदिक काल की चारों जातियों का उल्लेख शिलालेखों में है।
- ब्राह्मणों में चतुर्वेद व भट्ट समूह प्रमुख रूप से थे। व वैश्यों में कंचुक व वकाटा समूह प्रमुख थे।
- इब्दा खुरदाब ने प्रतिहार काल में सात जातियों के बारे में बताया जो निम्न प्रकार है सवकुफ्रिया, ब्राह्मण, कटारिया, सुदरिया, बंदलिया व लाबला वर्ग की सात जातियां थी।
- सवकुफ्रिया – राजा का चयन इस वर्ग से किया जाता था।
- सुदरिया – इस वर्ग के लोगों को शुद्र माना जाता था।
- बसुरिया – अन्य वर्गों की सेवा करना इस वर्ग का कार्य था।
- संडीला – यह वर्ग चांडालो का काम करते थे।
- लाहुडा – यह वर्ग एक निम्न एवं घुमने वाली जनजाति थी।
- माना गया है कि गुर्जर प्रतिहार काल में जाति व्यवस्था धोरे-धीरे नष्ट होती जा रही थी।
- जैसे – ब्राह्मणों ने क्षत्रिय लड़कियों से विवाह किया व वैश्य शूद्रों का कार्य करने लगे।
- इस काल में मुस्लिम आक्रमण प्रारम्भ हुये जिनसे विजित राज्यों के अनेक हिन्दू इस्लाम के अनुयायी बने।
- इस काल में अंतर्जातीय विवाह का भी उल्लेख किया है संस्कृत के विद्वान् राजशेखर ने अंवतीसुंदरी नामक क्षत्रिय कन्या से विवाह किया था।
- महिलाओं को आभूषणों का बहुत शौक था व इस काल में महिलायें तेल व सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग भी जानती थी।
- राजशेखर के अनुसार महिलाओं ने संगीत, नृत्य व पेटिंग करनी भी सीखी।
- राजा व धनी लोग बहु विवाह करते थे।
गुर्जर प्रतिहार वंश की कला व वास्तुकला
- गुर्जर प्रतिहारों के शासनकाल के अन्तर्गत कला व वास्तुकला को बढ़ावा मिला।
- गुर्जर प्रतिहार काल के आभानेरी, ओसियां व कोटा के मंदिर की दीवारों पर मंत्रमुग्ध कर देने वाले नक्काशीदार खंभे देखने लायक जिनको देखने पर उनसे नजर नहीं हटती है।
- ग्वालियर संग्रहालय में सुरसुंदरी नामक एक महिला की आकृति है।
- नटराज मुद्रा में भगवान शिव की एक दुर्लभ बलुआ पत्थर की मूर्ति स्थित है।
- किराडू में विष्णु व सोमेश्वर मंदिर भी प्रतिहार शैली के उदाहरण है।
- ग्यारसपुर मंदिर नियोजन की दृष्टि से अधिक विकसित था।
- इसमें बालकनियों व बरामदों के साथ इसे सूली पर चढ़ा हुआ रूप दिया गया है।
- गुर्जर प्रतिहार शैली के अन्तर्गत अम्बिका माता मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए काफी प्रसिद्ध है।
- ग्यारहवीं शताब्दी के दौरान गजनवी तुर्कों ने गुर्जर प्रतिहारों को भारत के राजनीति मानचित्र से पूरी तरह हटा दिया।
- प्रतिहारों ने गुजरात को राष्ट्रकूट से खो दिया जो राज्य के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता था ।