सुखा व अकाल
सूखा एक प्राकृतिक आपदा है जो वर्षा की कमी होने पर जल की कमी होने से सुखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उस सूखे के कारण मनुष्य व पशु पक्षियों के लिए के खाने के लिए चारा व पानी की कमी अकाल की स्थिति उत्पन्न करती है।
राजस्थान में सुखा अकाल व सरकारी योजनाएं
राजस्थान में सुखा व अकाल –
- चालीसा अकाल 1783 ईस्वी
- पंचकाल – 1812 -1813 ईस्वी
- सहसा भुदुसा काल 1843-1844 ईस्वी
- छप्पनिया काल – 1899-1900 ईस्वी
सूखा – मौसम विभाग ने सूखे को दो भागों में बांटा 1.प्रचंड सुखा – इसके अन्तर्गत 50 प्रतिशत से कम बारिश होती है। तो वह प्रचंड सुखा के अन्तर्गत आती है। 2.सामान्य सुखा – इसके अन्तर्गत 25 प्रतिशत से कम बारिश होती है। तो वह सामान्य सुखा के अन्तर्गत आती है।
राजस्थान में अकाल संभावित क्षेत्र – अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थलीय क्षेत्रों के अन्तर्गत जैसलमेर, बाडमेर, जोधपुर, सिरोही व जालौर जिले शामिल है।
- सूखे के प्रकार
- मौसम विज्ञान संबंधी सूखा- अपर्याप्त वर्षा, पानी का असमान वितरण
- जल विज्ञान संबंधी सूखा – भू जल स्तर का कम होना व जलाशयों का सूखना
- कृषि संबंधी सूखा – मृदा की नमी, व फसल की कमी
परिस्थितिक सूखा – प्रकृति में जल की कमी से उत्पादकता में कमी होना पारिस्थितिक सुखे के अन्तर्गत आता है।
- सूखे के कारण अभावग्रस्त जिले
- 2002-03 में राजस्थान के सबसे अधिक 32 जिले अकाल से प्रभावित हुये।
- 2010-11 में राजस्थान के 2 जिले अकाल से प्रभावित हुये, (बाड़मेर, जैसलमेर)
- 2022 में पाली जिले की पाली तहसील को सूखे के कारण अभाव ग्रस्त घोषित किया गया।
- 2022 में 15 जिलों (बारा, भरतपुर, बूंदी, धौलपुर, श्रीगंगानगर, झालावाड़, करौली, नागौर, सवाई माधोपुर, टोंक, कोटा, बांसवाडा, प्रतापगढ़, जोधपुर व अजमेर) के 7834 गाँवों को बाढ़ से फसल खराब अभाव ग्रस्त घोषित किया गया।
राजस्थान में सुखा अकाल व सरकारी योजनाएं
अकाल व सूखे से सम्बंधित सरकार की योजनाएं –
सूखा सम्भावित क्षेत्र (DPAP) 1974-75 –
यह कार्यक्रम अरावली के पूर्व के 11 जिलों (बांसवाडा, बारां, भरतपुर, डूंगरपुर, झालावाड, सवाई माधोपुर, उदयपुर, टोंक, कोटा, अजमेर, करौली) के 32 ब्लोकों में प्रारम्भ किया। 1999 से वित्तीय पैटर्न – केन्द्र : राज्य 75% : 25% वर्ष
मरू विकास कार्यक्रम – (DDP) – 1977-78 – इस कार्यक्रम का 16 जिलों के 85 विकास खण्डों में संचालन किया गया।
उद्देश्य – परिस्थितिकीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए भूमि की उत्पादकता में वृद्धि करना व मरुस्थलीकरण को रोकना
प्राकृतिक आपदा कोष -1990-91 –
इस कोष में हर वर्ष केन्द्र सरकार 31 करोड़ व राज्य सरकार 93 करोड़ रूपये जमा करते हैं। इस राशि को हर वर्ष प्राकृतिक आपदाओं पर खर्च किया जाता है।
जलधारा कार्यक्रम – 1994 –
यह योजना केन्द्र सरकार द्वारा संचालित की गई है जिसमें किसानों को नाममात्र किराये पर पम्पसेट व कृषि उपकरण दिये जा रहे हैं।
राज्य आपदा मोचन निधि (S.D.R.F) –
इसमें भारत सरकार व राज्य सरकार का अंशदान 75 : 25 है।
राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण – (DMA) –
इसके अन्तर्गत राज्य में प्राकृतिक व मानवजनित आपदाओं को दोकने सम्बन्धित उपाय बताये गये हैं। व इसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री को नियुक्त किया गया।
जिला आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण – (DDMA) –
इसकी अनुपालना जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में प्रत्येक जिले में 6 सितम्बर 2003 से की गई है।
फूड स्टैम्प योजना –
इस योजना को भूख से होने वाली मोत को रोकने के लिए किया गया । इसको लागू 15 अगस्त 2004 से किया गया। तथा इसके अन्तर्गत संरपच को 10-10 किलो गेहूँ के कूपन उपलब्ध कराये गये।
काम के बदले अनाज योजना –
इस योजना का प्रारम्भ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पिछड़े हुए 150 जिलों में 14 नम्बर-2004 को किया गया।
सातवीं पंचवर्षीय योजना –1985-90 –
इस पंचवर्षीय योजना में 5 वर्ष आकाल पड़ा, जिसके कारण लोगों का नारा था – भोजन, काम, उत्पादन
राजस्थान में सुखा अकाल व सरकारी योजनाएं
टिड्डी आक्रमण – राजस्थान सरकार ने 13 मार्च 2020 को टिड्डी आक्रमण के कारण राज्य के 8 जिलों में जैसलमेर, बजमेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर, जालौर, पाली व सिरोही के 908 गाँवों को अभावग्रस्त घोषित किया। वर्ष 2020 में बाँसवाड़ा को छोड़कर राजस्थान के 32 जिलों में टिड्डियों का प्रकोप हुआ।